सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

संघी तो नहीं लेने देंगे चौधरी को टिकट

हाल ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अजमेर आईं तो उन्होंने अजमेर लोकसभा सीट के उपचुनाव के लिए उपयुक्त प्रत्याशी के लिए स्थानीय नेताओं से सलाह-मश्विरा किया। अगर खबरची व राजनीतिक पंडित एडवोकेट राजेश टंडन की फेसबुक पोस्ट को सही मानें तो चर्चा में अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का नाम आया, हालांकि उन्होंने नाम का खुलासा करने से बचते हुए उन्हें दूध वाले भैया व दूधनाथ के नाम से संबोधित किया है। खोज-खबर के अनुसार चौधरी के प्लस-माइनस पर विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ। उससे तो यही प्रतीत होता है कि कम से कम संघियों को तो चौधरी फूटी आंख नहीं सुहाते। उन्होंने एक संघनिष्ठ और संस्कारित पुराने बैंडमास्टर नेता जी का हवाला दिया है, निश्चित ही वे अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह रह चुके नेताजी का जिक्र कर रहे हैं। जैसे ही ये बात आई कि चौधरी के पक्ष में खूब नारे लगते हैं और मीडिया भी उन पर मेहरबान है, तो तथाकथित बैंड मास्टर से नहीं रहा गया और तपाक से बोले कि उनको खाना-वाना खिला कर भीड़ जुटाने में हैडमास्टरी है और अखबार वालों को समय-समय पर देसी घी की थैली देते हैं। इस पर मैडम ने इसे तो चौधरी की खूबी करार दिया। जब उन्हें ये बताया गया कि वे जब कांग्रेसी थे तो उनके खिलाफ अखबार वाले हड़ताल कर चुके हैं, इस पर भी मैडम ने यही प्रतिक्रिया दी कि ये तो अच्छी बात है कि हमारे यहां आ कर वे कितने सुधर गए हैं, जो मीडिया वाले हड़ताल कर चुके हैं, वे ही तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
खैर, कुल जमा इस संक्षिप्त वार्तालाप से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चौधरी संघ को तो हजम नहीं हैं, जबकि वसुंधरा की नजर में वे जंच रहे प्रतीत होते हैं। समझा जा सकता है कि वसुंधरा आरंभ से गैर संघियों को साथ लेकर चल रही हैं। जैसे अजमेर सीट के सांसद रहे प्रो. सांवरलाल जाट। वे भी संघ पृष्ठभूमि के नहीं थे, इस कारण संघ को कभी रास नहीं आए। वसुंधरा ही उन्हें आगे ले कर आईं और अस्वस्थता के चलते केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने के बाद राज्य किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया। हालांकि अकेली वसुंधरा ही प्रत्याशी तय नहीं करेंगी, भाजपा हाईकमान का भी अहम रोल होगा, मगर उनकी चली तो चौधरी गंभीर दावेदार हो सकते हैं। अगर वे टिकट लेने में कामयाब नहीं होते तो यह तय मान कर चलिए कि उसमें संघ वालों का ही हाथ होगा। भला कांग्रेसी कल्चर वाले को संघ क्यों आगे आने देगा?
असल में भाजपा की दिक्कत ये है कि उसे प्रो. जाट के निधन से खाली हुई सीट पर किसी जाट को ही टिकट देना मजबूरी है। सबसे पहले दावेदार प्रो. जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा हैं, मगर लगता यही है कि भाजपा उन्हें अपेक्षित मजबूत नहीं मान रही, इसी कारण रामचंद्र चौधरी पर विचार हो रहा है। चर्चा सी बी गेना की भी है, मगर सबसे उपयुक्त चौधरी को माना जा रहा है। टिकट हासिल करने के लिए उन्होंने एडी से चोटी का जोर भी लगा रखा है। उनकी सबसे बड़ी बाधा है प्रो. जाट के परिवार को राजी करना। अगर लांबा नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए राजी हो भी गए तो संघ वाले आड़े आ जाएंगे।
जहां तक स्थानीय नेताओं का सवाल है तो उनकी चौधरी से कभी ट्यूनिंग नहीं रही। होती भी कैसे? वे शुरू से कांग्रेसी रहे। समझा जाता है कि स्थानीय लॉबिंग देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी पी सारस्वत के पक्ष में हो रही है। वे वसुंधरा की पसंद भी हैं, मगर उन्हें टिकट दिए जाने पर जाट समाज भाजपा को पटखनी खिला सकता है। दावा अजमेर से पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत भी ठोक चुके हैं, मगर उन्हें तो अजमेर से रुखसत किया ही इसलिए गया था कि रावत बहुल मगरा इलाका अजमेर संसदीय क्षेत्र से बाहर हो गया था। बताते हैं कि अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने तो यह कह कर टिकट मांगा है कि वे जीतने पर सांसद के नाते मिलने वाले वेतन-भत्ते नहीं लेंगे, मगर भाजपा गैर जाट के रूप में किसी जैन पर दाव खेलेगी, इसमें तनिक संदेह है।
वैसे अपना मानना है कि ये जितने भी नाम हैं, इन पर विराम तभी लग जाएगा, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का नाम फाइनल होगा। उनसे भिड़ाने के लिए भाजपा को बाहर से दावेदार लाना होगा, जैसे पहले किरण माहेश्वरी को लाया गया था। बाहर से आने वालों में सतीश पूनिया व रामपाल जाट का नाम चर्चा में है।
जैसे ईश्वर के बारे व्याख्या करते करते वेद भी आखिर में नेति नेति कह मौन हो जाते हैं, ठीक वैसे ही राजनीति के बारे में भी चर्चा करते हुए आखिर में नेति नेति ही कहना उपयुक्त होगा, क्यों कि राजनीति के ऊंट किस करवट बैठेगा है, इसकी भविष्यवाणी दुनिया का बड़ा से बड़ा ज्योतिषी नहीं कर सकता।
-तेजवानी गिरधर
7742067000