रविवार, 26 अगस्त 2012

सेवा के भाव से कितने आते हैं दरगाह कमेटी में?


प्रो. सोहल अहमद की सदारत वाली दरगाह कमेटी का कार्यकाल पूरा होते ही एक ओर जहां नए सदस्यों के लिए भाग दौड़ तेज हो गई है, वहीं मुस्लिम एकता मंच ने कमेटी में राजनीतिक व्यक्तियों की नियुक्तियों पर रोक लगाने व स्वच्छ छवि के ईमानदार लोगों को शामिल करने की मांग कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से करके एक नई बहस को जन्म दिया है।
हालांकि मंच के कर्ताधर्ता शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती व मुजफ्फर भारती की मांग तार्किक दृष्टि से सही है, मगर सच्चाई यही है कि नियुक्ति राजनीतिक आधार पर ही होती है। कांग्रेस राज में कांग्रेसी विचारधारा वाले और भाजपा राज में भाजपा पृष्ठभूमि के लोगों को तरजीह दी जाती है। अलबत्ता उनकी इस मांग में दम है कि ऐसी साफ सुथरी छवि के लोगों का मनोनयन किया जाना चाहिये, जो हर नजरिये से जायरीने ख्वाजा की खिदमत का जज्बा रखते हों, मगर धरातल का सच ये ही है कि कुछ ले दे कर अथवा सिफारिश से सदस्य बनने वाले जायरीन की सेवा की बजाय कमेटी के संसाधनों का उपयोग ही ज्यादा करते हैं। विशेष रूप से दरगाह गेस्ट हाउस का अपने जान-पहचान वालों के लिए उपयोग करने के तो अनेक मामले उजागर हो चुके हैं।
यद्यपि चिश्ती व भारती कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं, मगर उन्होंने बेकाकी से स्वीकार किया है कि मुगलकाल से ब्रिटिश शासन और आजाद भारत के शुरुआती सालों में दरगाह का प्रबंध इस्लामिक विद्धानों, धर्म प्रमुखों, सूफीज्म से जुड़े लोगों द्वारा किया जाता रहा है, मगर 1991 में केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्री सीताराम केसरी ने सांसद तारिक अनवर तथा सैयद शहाबुद्दीन को नियुक्त कर मुसलमानों के इस धर्म स्थल को सियासी कार्यकर्ताओं के हाथों में सौंपने की बुनियाद डाल दी। बाद में 2003 में भाजपा शासित केन्द्र सरकार ने भी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही शामिल किया। दुर्भाग्य से इस कमेटी का पूरा कार्यकाल विवादास्पद रहा। दरगाह के इतिहास में पहली बार कमेटी को भंग करने के लिये एक सामाजिक संस्था हम आपके ने दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। इस पर 24 अगस्त 2007 को केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्री ए. आर. अंतुले ने तत्कालीन दरगाह कमेटी को कुप्रबंधन के लिये जिम्मेदार मानते हुए भंग कर दिया। मगर किया ये कि कांग्रेस व सहयोगी दलों के ही कार्यकर्ताओं को भर दिया, जिनके खाते में दरगाह की सम्पत्तियों में कुप्रबंधन, दरगाह गेस्ट हाउस व वाहन का दुरुपयोग कर लाखों रुपए का नुकसान दर्ज हो गया। ऐसे में मंच की यह मांग जायज ही है कि कमेटी में स्वच्छ छवि के लोगों की नियुक्ति होनी चाहिए, ताकि दुनियाभर में मशहूर दरगाह के साथ भ्रष्टाचार के किस्से न जुड़ें।
हालांकि निवर्तमान कमेटी विवादास्पद रही है, फिर भी सोहेल अहमद की सदारत में कायड़ विश्राम स्थली कमेटी को सौंपे जाने, आस्ताना शरीफ में नया गेट निकालने सहित पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के 5 करोड़ 47 लाख 48 हजार 905 रुपये के नजराने में से एक करोड़ 46 लाख रुपए हासिल करने और दरगाह गेस्ट हाउस में रेलवे आरक्षण काउंटर की शुरुआत करने की उपलब्धियां कमेटी के खाते में दर्ज हैं।
प्रसंगवश बता दें कि दरगाह कमेटी भारत सरकार के अधीन एक संवैधानिक संस्था है, जिसका गठन संसद द्वारा पारित दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 के तहत किया जाता है। निवर्तमान कमेटी का कार्यकाल गत 24 अगस्त को समाप्त हो गया। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय नई कमेटी के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी करेगा। जैसी कि जानकारी है राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व मध्यप्रदेश आदि राज्यों के अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, शिक्षाविद् आदि कमेटी सदस्य बनने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। यहां तक कि निवर्तमान कमेटी के सदस्य भी दुबारा मौका हासिल करने की जुगत कर रहे हैं। अब देखना ये है कि क्या मुस्लिम एकता मंच की शिकायत पर गौर करके अच्छे लोगों को नियुक्त किया जाता है, या फिर वही ढर्ऱे के मुताबिक कमेटी के संसाधनों का दुरुपयोग करने वाले ही काबिज होते हैं।
-तेजवानी गिरधर

चेन स्नेचरों का गुस्सा निकाला आम जनता पर

पुलिस कप्तान राजेश मीणा

इन दिनों पुलिस चेन स्नेचरों से बेहद परेशान है। चेन स्नेचरों को नहीं पकड़ पाने पर हो रही फजीहत से दुखी हो कर पुलिस कप्तान के आदेश पर शनिवार को शहर में कंपोजिट नाकाबंदी की गई। मार्टिंडल ब्रिज, रोडवेज बस स्टैंड, चौपाटी, वैशाली नगर, रामगंज, इंडिया मोटर सर्किल सहित अन्य क्षेत्रों में शहर की पूरी पुलिस को सीओ स्तर के अधिकारियों के नेतृत्व में सर्किल के सभी थाना प्रभारियों को तैनात किया गया। उससे भी बड़ी नाकामी ये रही कि इस पूरी कवायद के बाद एक भी चेन स्नेचर नहीं पकड़ा गया,  जो कि पकड़ा भी नहीं जाना था। भला चेन स्नेचर इतने बेवकूफ थोड़े ही हैं कि ऐसी नाकाबंदी में शहर से गुजरेंगे। और वैसे भी इस नाकाबंदी से कौन सा पता लगना था कि कौन चेन स्नेचर है। मगर पुलिस कप्तान का अदेश था, सो उसकी पालना करनी ही थी।
पुलिस की इस कवायद से चेन स्नेचरों में खौफ हुआ हो न हुआ हो, आम जनता में जरूर हो गया। जिस पुलिस से आम आदमी को सुरक्षा का अहसास होना चाहिए, उसी से भय का वातावरण बनाया गया। पुलिस ने बाकायदा अपने प्रसिद्ध पुलिसिया तरीके से वाहनों को रोका और वाहन चालकों के साथ जम कर बदतमीजी की। मानो चेन स्नेचरों का गुस्सा आम लोगों पर निकाल रहे हों। विशेष रूप से उन युवतियों के साथ पुलिस जवानों के साथ नई नई भर्ती हुई लड़कियों ने सबसे ज्यादा घटिया रवैया अपनाया। वे इतनी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, मानों इन्हीं युवतियों में उन्हें कोई चेन स्नेचर नजर आ गया हो। जाहिर है पुलिस के इस रवैये से आम लोगों में रोष होना ही था। कई जगह झड़पें भी हुई। लोगों का आरोप था कि पुलिस का वाहनों को रोकने का तरीका गलत था। कई लोग हादसे का शिकार होने से बचे। भले ही पुलिस यह कह कर जिन लोगों के कागजात पूरे नहीं थे, उनके चालान किए गए, बचने की कोशिश करे, मगर सवाल ये उठता है कि यह चेन स्नेचरों को पकडऩे का अभियान था या यातायात पुलिस का यातायात सप्ताह? अफसोस की पुलिस की इस आतंक फैलाने वाली कार्यवाही की किसी भी जनप्रतिनिधि ने खिलाफत नहीं की। अलबत्ता कांग्रेस पार्षद मुबारक अली चीता ने जरूर विरोध किया, मगर वह जायज इस कारण नहीं माना गया क्योंकि वे अपने किसी परिचित का वाहन पकडऩे की वजह से अटक रहे थे। उनके खिलाफ बाकायदा रपट भी डाली गई।
लब्बोलुआब, पुलिस की इस कार्यवाही का नतीजा ये निकला कि उसे सौ से अधिक चालान करने की कमाई हुई और पचास वाहन सीज किए गए। और एक अहम सवाल, क्या दिन ब दिन गिरती पुलिस की छवि को सुधारने के लिए आए दिन होने वाली पुलिस सेमिनार का पुलिस अधिकारियों पर ही कोई असर नहीं होता? ऐसा करके पुलिस कप्तान ने अपने मातहतों को क्या संदेश देने की कोशिश की?
-तेजवानी गिरधर

नागौरा की विधानसभा टिकट की दावेदारी को झटका


कहते हैं अति सर्वत्र वर्जयते। मगर हमेशा आक्रामक रुख रखने वाले कांग्रेस पार्षद विजय नागौरा को शायद इस सूत्र का कभी ख्याल नहीं रहा।  ऐसे में उन पर अति भारी पड़ गई है। निगम मेयर कमल बाकोलिया के खिलाफ सदैव विरोधी रुख रखने वाले नागौरा ने जब नगर निगम में प्रतिपक्ष के नेता पद पर नरेश सत्यावना की नियुक्ति को भी खुली चुनौती दी तो पार्टी ने इसे गंभीर माना। विशेष रूप से सेवादल जैसे अनुशासित अग्रिम संगठन में मुख्य संगठक का दायित्व निभाने वाला शख्स यदि इस प्रकार खुल कर हाईकमान के निर्णय का विरोध करता है तो उसे गंभीर माना ही जाना था। नतीजतन सेवा दल के राजस्थान प्रभारी रामजीलाल ने उनकी इस पद से छुट्टी कर दी गई। उनके स्थान पर सेवादल में उन जितने ही सीनियर शैलेन्द्र अग्रवाल को नियुक्त कर दिया गया है।
हालांकि यूं तो नागौरा केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट गुट के न्यास सदर नरेन शहाणी भगत के खास सिपहसालार हैं, मगर चूंकि सत्यावना की नियुक्ति पायलट की सहमति से ही हुई थी, इस कारण वहीं से इशारा किया गया बताया कि नागौरा के पर कतर डालो। पार्टी नेता भले ही नागौरा को हटाने का कारण यह मानने से इंकार करें, मगर अचानक संगठन में फेरबदल की वजह एक मात्र सत्यावना की खिलाफत मानी जा रही है।
नागौरा को यह झटका सिंगल नहीं है। इसे डबल माना जा रहा है। वे अपने आका भगत के न्यास सदर बनने के बाद अजमेर दक्षिण में ज्यादा से ज्यादा काम करवा कर आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी करने की तैयारी कर रहे थे। उनकी इस इच्छा को भी झटका लग गया है। भगत के प्रयासों से ही नागौरा इस सेवादल संगठक के पद पर काबिज थे। अब जब कि उन्होंने यह पद खो दिया है, यह खबर भगत की राजनीतिक सेहत के लिए भी अच्छी नहीं मानी जाएगी। वे आगामी विधानसभा चुनाव में भगत को टिकट मिलने पर सेवादल टीम का भरपूर इस्तेमाल करते, मगर अब उसकी संभावना खत्म हो गई। हालांकि किसी जमाने नए संगठक शैलन्द्र अग्रवाल भी भगत खेमे के ही खास सिपहसालार रहे हैं, मगर पिछले विधानसभा चुनाव के बाद अब उनके भगत से पहले जैसे संबंध नहीं हैं।
जहां तक पायटल की सहमति से सत्यावना की नियुक्ति पर विरोध का सवाल है, उस पर सर्वाधिक मुखर नौरत गुर्जर के इस दावे पर चौंकना स्वाभाविक है कि सभी गुर्जर पार्षद जिया देवी, सुरेश भडाणा, ललित गुर्जर भी उनके साथ हैं। सवाल उठता है कि क्या गुर्जर पार्षद भी गुर्जर समाज के प्रमुख नेता पायलट के विरोधी हो गए हैं?
-तेजवानी गिरधर