शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

क्या पीसीसी चीफ बनने पर भी चुनाव लड़ेंगे सचिन पायलट?

इन दिनों अजमेर के लोगों, विशेष रूप से राजनीति में रुचि रखने वाले नागरिकों व कार्यकर्ताओं-नेताओं में यह सवाल चर्चा में है कि क्या अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी अजमेर से चुनाव लड़ेंगे? ज्ञातव्य है कि पिछले कुछ दिन से पायलट को विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित कांग्रेस का पुनरुद्धार करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा जोरों पर है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष पद के कुछ और दावेदारों के नाम भी आए, मगर अधिसंख्य समाचार पत्रों का अनुमान है कि सचिन को ही यह जिम्मेदारी दी जा रही है। ऐसे में यह सवाल भी स्वत: ही उठ रहा है कि ऐसे में क्या वे अजमेर से लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे? सवाल वाजिब भी है। आज कांग्रेस की जैसी स्थिति है, उसे संवारने और प्रदेश की पच्चीसों सीटों पर प्रत्याशियों का चयन और उनके लिए चुनावी रणनीति बनाना ही अपने आप में बहुत बड़ा टास्क है। किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए इतने बड़े टास्क के साथ-साथ खुद की सीट पर भी पूरा ध्यान देना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसकी वजह ये भी है कि हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र की आठों सीटों पर कांग्रेस के हारने के बाद यहां से चुनाव लडऩा बेहद चुनौतीपूर्ण है। यदि आंकड़ों की बात करें तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा को मिले वोटों में तकरीबन दो लाख का फासला है। उसे पाट कर जीत दर्ज करने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी को एडी चोटी का जोर लगाना होगा। अन्य संभावित स्थानीय दावेदारों की तुलना में सचिन जैसी सेलिब्रिटी के लिए भले ही यह असंभव न हो, मगर दुष्कर जरूर है। यूं पूर्व भाजपा सांसद प्रो. रासासिंह रावत के पांच टर्म की तुलना में एक ही टर्म में अच्छा परफोरमेंस देना उनके पक्ष में जाता है और जनता भी मानती है कि  ठहरे हुए शहर व जिले को विकास की ओर उन्मुख किया है, मगर इतना तो तय है कि यहां से जीतने के लिए सचिन को पूरी ताकत लगानी होगी। विशेष रूप से इस वजह से भी कि यहां कांग्रेस संगठन की स्थिति ठीक नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी मनमुटाव बढ़ा है। ऐसे में साथ ही प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी का निर्वहन करना कठिन ही है। वैसे भी उन्हें यदि प्रदेश की जिम्मेदारी दी जाती है तो स्वाभाविक रूप से उनसे ये उम्मीद की जाएगी कि वे लोकसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति सुधारने के अतिरिक्त आगामी विधानसभा चुनाव तक पार्टी को फिर भाजपा की टक्कर में ला खड़ा करें। अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो यह भी स्वाभाविक है कि वे ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे। प्रदेश के कुछ मसलों पर उनकी भी भागीदारी को देखते हुए राजनीतिक पंडित यह अनुमान पहले से लगाते रहे हैं कि उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए तैयार किया जा रहा है।
बहरहाल, अब ये तो कांग्रेस हाईकमान और खुद सचिन को ही निर्णय करना है कि एक साथ दो टास्क हाथ में लेते हैं या नहीं, मगर आम जन में तो यह चर्चा है ही क्या पीसीसी चीफ बनने पर वे अजमेर से चुनाव लड़ेंगे अथवा नहीं?