शनिवार, 26 नवंबर 2011

आखिर नसीब जाग गया नसीम का


पुष्कर की कांग्रेस विधायक श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ का नसीब आखिर जाग गया। असल में उन्होंने कोशिश तो सरकार का गठन होने के वक्त भी की थी, मगर उस वक्त उनका नंबर नहीं आया। अब जब कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मंत्रीमंडल का विस्तार करना पड़ गया, इस कारण मुस्लिम, महिला और अजमेर कोटे में उनका नंबर आ गया।
श्रीमती इंसाफ वाकई किस्मत की धनी हैं। सब जानते हैं कि विधानसभा चुनाव के टिकट बंटते वक्त उनका दूर-दूर तक नाम नहीं था। उनका दावा भी कुछ खास मजबूत नहीं था। जैसे ही पुष्कर से भाजपा ने भंवर सिंह पलाड़ा को टिकट दिया तो यही माना गया था कि कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना कठिन हो जाएगा। जैसे ही पलाड़ा का नाम आया, पुष्कर के तत्कालीन विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती घबरा गए और अपने आका अशोक गहलोत से कह कर सीट बदलवाई व अजमेर पश्चिम में आ गए। बाहेती के मैदान छोडऩे के बाद तो कांग्रेस के सामने संकट खड़ा हो गया। कांग्रेस ने मसूदा के पूर्व विधायक हाजी कयूम खान से पुष्कर से चुनाव लडऩे का आग्रह किया, मगर उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। उन्हें मसूदा से टिकट नहीं मिल रहा था, इसके बावजूद उन्होंने पुष्कर से चुनाव लडऩे से साफ इंकार कर दिया। कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं रहा। आखिरकार यूं ही टिकट की लाइन में लगी नसीम अख्तर को बुलवा कर उन्हें टिकट थमा दिया गया। नसीम अख्तर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें टिकट मिल पाएगा, सो तुरंत टिकट लेने को राजी हो गई। उन्हें काफी कमजोर माना जा रहा था, मगर पलाड़ा के सामने समस्या ये आ गई कि भाजपा के बागी श्रवण सिंह रावत भी मैदान में आ डटे। उन्होंने परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहने वाले रावतों के 27 हजार 612 वोट झटक लिए। नतीजतन नसीम अख्तर ने पलाड़ा को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। यानि कि टिकट मिलने और जीतने, दोनों ही मामलों में नसीब ने नसीम का साथ दिया।
हालांकि मंत्रीमंडल के गठन के वक्त उनका नंबर पहली बार जीत कर आने और निर्दलियों व अन्य को मौका दिए जाने के कारण नहीं मिल पाया। अब जब कि पुनर्गठन हुआ है तो मुस्लिम महिला होने के साथ-साथ अन्य पहलु भी उनके पक्ष में बन गए। सर्वविदित है कि अजमेर जिले से एक भी विधायक को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया था। सर्वाधिक दमदार दावेदार केकड़ी विधायक रघु शर्मा के पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सी. पी. जोशी खेमे का होने के कारण नंबर नहीं आ पाया था। अजमेर जिले को मसूदा के बागी कांग्रेसी ब्रह्मदेव कुमावत के जीत कर आने और सरकार बनाने में मदद करने के कारण संसदीय सचिव बनाए जाने पर ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में अजमेर से कम से कम एक मंत्री की जरूरत महसूस की जा रही थी। और यह जरूरत श्रीमती अख्तर से पूरी कर ली गई। श्रीमती इंसाफ के पक्ष में एक बात और गई कि वे अजमेर में रहती हैं, पुष्कर दूर भी नहीं है। साथ ही अजमेर शहर की दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा है, इस कारण उन्हें एक साथ तीन विधानसभा क्षेत्रों की नेतागिरी करने का मौका हुआ है। उन्होंने मौके का फायदा भी उठाया और पुष्कर से कहीं ज्यादा जिला मुख्यालय अजमेर में सक्रिय बनी हुई हैं। उनकी सक्रियता दिखाई भी देती है। केन्द्र व राज्य सरकार का कोई भी वीआईपी आए, उसकी अगवानी वे ही करती है। प्रशासन भी उन्हें ववज्जो देता है। उन्हें राज्य मंत्री बनाए जाते वक्त एक पहलु ये भी देखा गया है कि उनकी अजमेर के मुस्लिमों के अतिरिक्त अन्य पर भी पकड़ है।
सोने पे सुहागा ये है कि उन्हें शिक्षा विभाग सौंपा गया है, जिस पर पहले से उनके पति शिक्षक नेता हाजी इंसाफ अली की जबरदस्त पकड़ है। पत्नी के केवल विधायक होने पर भी उनका शिक्षा विभाग में खासा दखल रहा है। अब राज्य मंत्री बनने पर उनकी चवन्नी रुपए में चलनी ही है। वे वैसे भी काफी चतुर व सक्रिय हैं। उनके स्थापित होने से एक ओर जहां आगामी चुनाव में भी टिकट पक्की मानी जा रही है, वहीं अन्य दावेदार मुस्लिम नेताओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। संकट सिर्फ एक है। वो ये कि शिक्षा विभाग तबादलों के कारण बहुधा विवादों में रहता है। उसमें साफ-सुथरा बना रहना काफी मुश्किल है।
बहरहाल, यह तथ्य एक बार फिर स्थापित हो गया है कि राजनीति वाकई सितारों का ही खेल है। भाग्य में न हो तो वर्षों तक जूतियां घिसने वाले भी विधायक और मंत्री नहीं बन पाते और सितारे बुलंद हों तो व्यक्ति फर्श से अर्श तक पहुंच जाता है। अजमेर के दोनों विधायक श्रीमती अनिता भदेल व प्रो. वासुदेव देवनानी भी इसकी मिसाल हैं।