शनिवार, 25 दिसंबर 2010

पुलिस तंत्र फेल, अब केवल मुखबिरों पर भरोसा

पुष्कर इलाके में स्कूली छात्र सूरज व महंत सेवापुरी की हत्या से पर्दा उठा पाने में नाकाम पुलिस को थक-हार कर मुखबिरों का ही सहारा लेना पड़ रहा है। उसने इन दोनों हत्याकांडों का सुराग बताने वालों के लिए इनाम की घोषणा की है। मतलब साफ है। पुलिस तंत्र ने हाथ खड़े कर दिए हैं। न तो उसे फिंगर प्रिंटों से कुछ पता लगा और न ही मोबाइल कॉल डिटेल से।
असल में इन हत्याकांडों की बला पिछले पुलिस कप्तान हरिप्रसाद शर्मा के गले आई हुई थी, जिनके गले में जाते-जाते कुछ संस्थाओं ने मालाओं का ढेर लगा दिया था। ऐसे विदा किया मानो कोई बहुत बड़ा बहादुरी काम करके जा रहे हैं। ये ही समझ में नहीं आता कि उनका अभिनंदन इस कारण किया गया कि वे सफलतम एसपी थे, या फिर इस कारण कि ऐसे नाकाम एसपी को विदा करते हुए खुशी हो रही थी। सब जानते हैं कि यदा-कदा मुखबिर की सहायता से कोई मामला खोलने में कामयाबी मिल भी जाती थी तो वे संबंधित थानाधिकारी को श्रेय देने की की बजाय खुद ही क्रेडिट लेने की कोशिश करते थे। यहां तक की छोटे-मोटे मामलों के खुलासे की ब्रीफिंग भी खुद ही करने में रुचि रखते थे।
बहरहाल, दस्तूर के मुताबिक उन्होंने जाते-जाते अपनी बला नए एसपी बिपिन कुमार पांडे के गले डाल दी। पांडे जी आए तो पता लगा कि वे बहुत बड़े तीस मार खान हैं। राजनीतिक माफियाओं के गढ़ बिहार राज्य के आईपीएस हैं और राजस्थान में भी काफी घूम चुके हैं। आते ही जादू की छड़ी घुमा कर पर्दाफाश कर देंगे। मगर कुछ दिन की मशक्कत के बाद उन्होंने भी हथियार डाल दिए। वैसे भी वे अकेले क्या कर सकते थे? उनको टीम तो वही मिली न जिसकी मुस्तैदी से मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोप में अमेरिका में गिरफ्तार डेविड कॉलमेन हेडली उसके चेहरे पर कालिख पोत कर जा चुका है।
पुलिस की नाकामी को बयां करने वाले अकेले ये सूरज व सेवापुरी हत्याकांड ही नहीं हैं। वह अनेक हत्याकांडों की गुत्थियां नहीं सुलझ पाई हैं। आशा व सपना हत्याकांड जैसे कुछ कांड तो भूले-बिसरे हो गए हैं, जिन्हें पुलिस ने अपनी अनुसंधान सूची से ही निकाल दिया है। अब तो हालत ये है कि उनकी फाइलों पर ही धूल की परतें चढ़ गई हैं। वो तो रावत समाज ने एकजुट हो कर दबाव बना रखा है, वरना सूरज व सेवापुरी हत्याकांडों को भी भुलाये जाने की स्थिति आ चुकी थी।
अपुन ने तो पहले ही कहा था कि कई चैलेंज पांडे साहब का स्वागत करने को मुंह बाये खड़े हैं। चैन स्नेचिंग के मामले तो इस कदर बढ़े हैं, महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। पुलिस डाल-डाल है तो चोर पात-पात। नकली पुलिसकर्मी बन कर ठगने वाले असली पुलिस को मुंह चिढ़ा रहे हैं। वाहन चोरी की तो इंतहा हो चुकी है। जुए-सट्टे पुलिस थानों की नाक के नीचे चल रहे हैं। अवैध शराब और मादक पदार्थों की तस्करी में तो अजमेर रिकार्ड बना चुका है। कच्ची शराब का धंधा पुलिस वालों की देखरेख में होता रहा है, इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि शराब तस्करों को छापों से पूर्व जानकारी देने की शिकायत के आधार पर दो पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर करना पड़ा। पुलिस की मिलीभगत का अंदाजा क्या इससे भी नहीं लगता कि अपराधी जेल से ही अपने गिरोह संचालित करते हैं। ऐसे में स्वाभाविक सा है कि पुलिस कप्तान अपने तंत्र पर कैसे भरोसा करें, मुखबिरों का ही सहारा लेना पड़ेगा।