बुधवार, 19 जून 2013

नसीम को मिलने लगी चुनौती, मगर होगा क्या?

विधानसभा चुनाव की आहट के साथ शुरू हुई राजनीतिक सरगर्मी के बीच पुष्कर की कांग्रेस विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ को चुनौती मिलने लगी है, मगर जिस जातीय समीकरण के तहत मुस्लिम होने के नाते उन्हें पिछली बार पुष्कर से टिकट मिला था, उसे देखते हुए यह सवाल तो खड़ा होता ही है कि क्या अन्य जातियों के दावे ठहर भी पाएंगे भी या नहीं?
हाल ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पर्यवेक्षक राजेश खेरा ने पुष्कर में जब नेताओं व कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर मौजूदा विधायक की परफोरमेंस और संभावित उम्मीदवारों के बारे में चर्चा की तो जहां अनेक जनप्रतिनिधियों ने मौजूदा विधायक नसीम को ही फिर से टिकट देने की मांग उठाई तो दूसरी ओर रावत व गुर्जर समाज सहित कई अन्य लोगों ने भी टिकट की दावेदारी ठोक दी। फीडबैक से पता लगा कि अधिसंख्य नेता नसीम के ही पक्ष में हैं। यथा पुष्कर ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष ओम प्रकाश गुर्जर, नगर कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष भागचंद गंगवाल, पालिकाध्यक्ष मंजू कुर्डिया, पीसांगन पंचायत समिति की प्रधान कमलेश कंवर पोखरणा, श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान रामनारायण गुर्जर, देवनगर की सरपंच मिथलेश शर्मा, कडै़ल की सरपंच संपत कंवर, नांद सरपंच कुमकुम कंवर, जिला देहात कांग्रेस महामंत्री दामोदर शर्मा आदि। मगर कुछ नेता ऐसे भी थे, जिन्होंने अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर दी। इनमें रावत महासभा राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष ज्ञान सिंह रावत व कुंदन सिंह रावत और गुर्जर समाज एडवोकेट हरीसिंह गुर्जर व लतपत राम गुर्जर शामिल हैं। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों की ओर से शरीफ मोहम्मद, अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री फिरोज खान, चीता मेहरात समाज के भंवर बहादुर चीता एवं सोमलपुर के सरपंच कालू खां ने भी दावेदारी की।
सवाल ये उठता है कि नसीम अख्तर का अच्छा परफोरमेंस होने के बाद भी ये दावे कैसे हो गए? क्या वाकई इस क्षेत्र में नसीम को चुनौती देने वाले पैदा हो गए हैं या फिर अपनी इंपोर्टेंस बनाने के लिए अन्य दावेदार सामने आए हैं। असल में इसकी एक मात्र वजह ये है कि अजमेर जिले में मसूदा सीट भी अल्पसंख्यकों के लिए मुफीद है और वहां भी किसी मुस्लिम को टिकट दिया जा सकता है। पिछली बार वहां पूर्व विधायक हाजी कयूम खान का दावा काफी मजबूत था, मगर जाट लॉबी के दम पर रामचंद्र चौधरी टिकट ले आए। ऐसे में कयूम को पुष्कर से लडऩे को कहा गया, मगर उन्होंने यह कह कर टिकट लेने से इंकार कर दिया कि वे लड़ेंगे तो मसूदा से ही, क्योंकि वहां उन्होंने पिछले पांच साल काम किया है। पुष्कर के तत्कालीन विधायक ने अजमेर उत्तर की राह पकड़ी तो पुष्कर खाली रह गया और ऐसे में जिले में किसी एक मुस्लिम को टिकट देने के चक्कर में नसीम का नसीब खुल गया। खैर, यदि जातीय समीकरणों के तहत कुछ सीटों पर कांग्रेस हेरफेर करती है तो संभव है मसूदा से किसी मुस्लिम पर विचार किया जाए। ऐसे में एक संभावना ये बनती है कि नसीम को वहां भेजा जाए या फिर कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमेद पटेल से करीबी के चलते पूर्व विधायक कयूम खान भी टिकट लाने में कामयाब हो सकते हैं। रहा सवाल पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का तो वे फिर से अजमेर उत्तर में ही रुचि दिखा रहे हैं, ऐसे में पुष्कर सीट खाली हो जाएगी। तब यहां रावतों व गुर्जरों का दावा बन सकता है। इनमें कुंदन सिंह रावत का दावा काफी मजबूत माना जा रहा है। हालांकि पर्यवेक्षक खेरा ने इस मौके पर कहा कि रावत, गुर्जर सहित विभिन्न समाज के लोग भले ही अपनी जाति के एकमुश्त वोट के दम पर टिकट मांग रहे हैं, बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी जातिगत आधार पर टिकट नहीं देगी, मगर सब जानते हैं कि टिकट वितरण का आधार जातिगत ही होता है।
-तेजवानी गिरधर

मेयर-सीईओ की ये जंग कहां तक जाएगी?

अजमेर नगर निगम में अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के बीच एक बार फिर टकराव की नौबत आ गई है। पहले जिन सीईओ सी. आर. मीणा को खुद मेयर कमल बाकोलिया ले कर आए, उन्हीं से नहीं पटी। आखिरकार मीणा का तबादला जिला परिषद में किया गया। अब उनकी मौजूदा सीईओ विनीता श्रीवास्तव से भी नहीं पट रही है। दोनों के बीच टकराव अब खुली जंग का रूप ले चुका है। एक ओर जहां विनीता ने बाकोलिया के निर्देश को नियमों का हवाला दे कर मानने से इंकार कर दिया तो दूसरी ओर बाकोलिया ने भी जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया है।
असल में मेयर बाकोलिया ने सीईओ को धारा 49 का हवाला देते हुए निगम में आयुक्तों के कार्य के बंटवारे के आदेश को निरस्त करने के निर्देश दिये थे, इस पर सीईओ ने इस निर्देश को मानने से साफ इंकार करते हुए अपने फैसले को यथावत रखा। सीईओ ने साफ कह दिया कि मेयर ने बंटवारे को निरस्त करने के लिए कहा था, लेकिन आदेश नियमानुसार जारी किए गए हैं। इस वजह से निरस्त नहीं किए गए। एक्ट के अनुसार प्रशासनिक अधिकार सीईओ के पास हैं। इस मसले पर पहले तो बाकोलिया ने बाहर होने का बहाना बना कर कोई प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया, लेकिन दूसरे ही दिन कुछ पार्षदों ने उनमें हवा भर दी। इस पर उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों की शिकायत की है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि स्वायत्तशासी संस्था में अधिकारी अगर जनप्रतिनिधियों की शिकायतों का निवारण नहीं करेंगे, तो जनता को जवाब कौन देगा? उनकी बात में दम तो है, मगर जनप्रतिनिधियों की अपेक्षाएं कितनी वाजिब हैं, ये तो सरकारी प्रतिनिधि ही तय करेंगे, जो कि सीधे तौर पर नियमों की पालना करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसका ताजा तरीन मामला सबको पता है कि नो कंस्ट्रक्शन जोन वाले मामले में निगम के प्रस्ताव पारित करने के बावजूद सीईओ ने अपना स्टैंड साफ रखा, जिसे कि स्वायत्त शासन विभाग ने पूरा समर्थन किया। नतीजतन मेयर को यह कह कर खीज मिटानी पड़ी कि सरकार का निर्णय शिरोधार्य है।
खैर, बाकोलिया ताजा मामले में जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा को लेकर  कुछ संयत भाषा में बोल कर रह गए, मगर निगम में नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना ने तो खुल कर हमला ही बोल दिया। उन्होंने निगम प्रशासन के कुछ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि महज रिश्वत के कारण अवैध भवनों का नियमन किया जा रहा है, जबकि जनप्रतिनिधियों की क्षेत्रीय समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिससे नागरिकों में जनप्रनिधियों के खिलाफ  आक्रोश बढ़ गया है। समझा जा सकता है कि उन्होंने यह आरोप किस के इशारे पर लगाया है। यानि कि अब स्पष्ट है कि निगम में अधिकारियों और पार्षदों व मेयर के बीच जंग और तेज हो जाएगी। ये जंग कहां तक जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर सरकार बाकोलिया पर अंकुश लगाने का मानस रखती होगी तो विनीता को यहीं पर तैनात रखेगी, वरना कहीं और रुखसत कर देगी।