गुरुवार, 16 जून 2011

लो अब बीसलपुर के पानी पर टौंक का भी हक जताया जा रहा है


राजस्व मंडल के विखंडन को रुकवाने को लेकर अभी जद्दोजहद चल ही रही है कि अजमेर के एक और हक पर भी हाथ मारने के संकेत मिलने लगे हैं। हाल ही नियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान ने बीसलपुर के पानी पर टौंक का पहला हक जता दिया है। जाहिर सी बात है ऐसा बयान उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को खुश करने के लिए दिया है, मगर इससे अजमेर की इस जीवनदायिनी परियोजना पर तो संकट का इशारा हो ही गया है। पहले जयपुर ने जबरन पानी लिया और अब टौंक
असल में यह सब इस कारण है कि अजमेर का कोई धणी-धोरी नहीं है। और जो धणी-धोरी कहे जाने योग्य हैं, उनमें वो ताकत नहीं कि अजमेर के हितों की रक्षा कर सकें। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों के ही नेता इतने कमजोर हैं कि अजमेर की अस्मिता पर हो रहे हमलों से रक्षा करने के काबिल नहीं हैं। सब जानते हैं कि बीसलपुर परियोजना बनी ही अजमेर के लिए थी और इसकी पहल पूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी ने की थी। हालांकि बाद में पूर्व विधायक डा. राजकुमार जयपाल, ललित भाटी, श्रीकिशन सोनगरा आदि ने भी पूरा ध्यान दिया, मगर दुर्भाग्य से श्रीमती वसुंधरा राजे के कार्यकाल में प्रो. सांवरलाल जाट के जलदाय विभाग का केबीनेट मंत्री बनने के बावजूद वे बीसलपुर परियोजना का पानी जयपुर को दिए जाने के नीतिगत फैसले का वे विरोध नहीं कर पाए। इस मामले दोनों ही दलों के नेता फिसड्डी साबित हुए।
अजमेर का राजनीतिक वजूद कमजोर होने का ही परिणाम है कि समुचित विकास तो दूर यहां स्थापित अनेक दफ्तर ही धीरे-धीरे अन्यत्र स्थानांतरित हो गए। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और राजस्व मंडल के विखंडन को लेकर अनेक बार उठापटक हो चुकी है। इसी प्रकार वसुंधरा राजे ने तो जाते-जाते राजस्थान लोक सेवा आयोग का विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड गठन कर दिया था, मगर हमारे राजनेता चुप्पी साध गए। यह संयोग ही है कि मौजूदा कांग्रेस सरकार ने उसे भंग कर दिया, मगर उसको श्रेय स्थानीय नेताओं को नहीं दिया जा सकता। इसी प्रकार अंग्रेजों के जमाने में रेलवे की दृष्टि से खास अहमियत रखने वाले अजमेर के हर दृष्टि से पात्र होने के बावजूद रेलवे का जोन मुख्यालय यहां स्थापित नहीं किया गया। यहां की आर्थिक उन्नति के आधार कारखाने पर कई बार हथोड़े चल चुके हैं।
अलबत्ता राजस्व मंडल के विखंडन को रुकवाने के मामले में जरूर एक मंच पर आ कर संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं, मगर उसमें भी सच्चाई ये है कि दोनों पार्टियों के कुछ प्रमुख नेता वकील हैं, इस कारण अपने वकील समुदाय का साथ देने को मजबूर हैं। जहां भाजपा के पूर्व सांसद औंकारसिंह लखावत, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष पूर्णाशंकर दशोरा, पूर्व महापौर धर्मेन्द्र गहलोत आदि वकील हैं, वहीं शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल और वरिष्ठ कांगे्रस नेता राजेश टंडन सरीखे कई नेता भी वकालत करते हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस विचारधारा के पूर्व जिला प्रमुख सत्यकिशोर सक्सैना भी वकील हैं। राजस्व मंडल के मामले में एकजुटता की एक प्रमुख वजह यही है। इन सब ने तब कोई एकजुटता नहीं दिखाई, जब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का एक दफ्तर जयपुर में खोला जा रहा था। एकजुटता तो दूर कोई बोला तक नहीं। अकेले भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी चिल्लाते रहे, मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान साबित हुई। विपक्ष के नाते न तो उनका साथ अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने दिया और न ही शहर भाजपा संगठन ने। नतीजा ये हुआ कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उस दफ्तर की आधारशिला जयपुर के शिक्षा संकुल में रख दी। वह भी बोर्ड का एक प्रकार का विखंडन ही था, मगर देवनानी के अलावा किसी को नजर नहीं आया। बाद में सब को तब समझ में आया जब शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल ने शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर में होने के बावजूद एक परीक्षा परिणाम जयपुर में जारी कर दिया। उसकी कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी यह हरकत की गई, अजमेर को चिढ़ाने के लिए। अगर शिक्षा मंत्री को परिणाम जारी करने का ही शौक था तो अजमेर में आकर कर देते, लेकिन ऐसा कैसे कर सकते थे, अजमेर का महत्व जो बढ़ जाता।
बहरहाल, राजस्व मंडल के विखंडन के मामले में विरोध के दौर में ही बीसलपुर पर टौंक का हक जताया जाना यह साबित करता है कि अजमेर को गरीब की जोरू माना जा रहा है। देखते हैं कि इस मामले में विरोध करने में माहिर भाजपाई क्या करते हैं और कांग्रेसी अपने प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ बोल भी पाते हैं या नहीं। देखना ये भी है कि उम्मीद की आखिरी किरण अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट क्या रुख अख्तियार करते हैं। बताते हैं कि राजस्व मंडल के मामले में उन्होंने रुचि लेना शुरू कर दिया है, मगर अभी उसमें कुछ सफलता मिले, इससे पहले ही अजमेर के हक पर एक और हमला करने की साजिश होने लगी है।