गुरुवार, 11 जुलाई 2013

कांग्रेस उठा सकती है अजमेर विकास प्राधिकरण का फायदा

अजमेर नगर सुधार न्यास के क्षेत्रांतर्गत अजमेर शहर में पुष्कर व किशनगढ़ को मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन जल्द होने जा रहा है। राजनीतिक पंडित समझते हैं कि कांग्रेस सरकार इसमें अध्यक्ष की नियुक्ति कर जातीय संतुलन का फायदा उठा सकती है।
ज्ञातव्य है कि पिछली बार अजमेर उत्तर में परंपरागत को तोड़ते हुए गैर सिंधी के रूप में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को टिकट दी थी, जिसके परिणामस्वरूप सिंधी-गैर सिंधीवाद उफना और नतीजतन डॉ. बाहेती सशक्त उम्मीदवार होते हुए भी पराजित हो गए। आगामी चुनाव को लेकर भी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। हर किसी की नजर है कि क्या इस बार कांग्रेस फिर गैर सिंधी का प्रयोग करने का साहस दिखाएगी। हालांकि सूत्र यही बताते हैं कि कांग्रेस पिछली हार के बाद सकते में है, मगर गैर सिंधी दावेदारों के रूप में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता दमदार तरीके से दावेदारी कर रहे हैं। विशेष रूप से लैंड फॉर लैंड मामले में उलझने के कारण नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद से नरेन शहाणी के इस्तीफे के बाद उनका दावा कमजोर होने और प्रत्यक्षत: दूसरा सशक्त सिंधी दावेदार नहीं उभरने के कारण बाहेती व रलावता अति उत्साहित हैं। ऐसे में कांग्रेस को यह समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वह क्या करे। राजनीतिक पंडित समझते हैं कि अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन इसी समय होने के कारण कांग्रेस के लिए एक ऐसा मौका है, जिसमें वह जातीय संतुलन बैठा सकती है। वह अजमेर उत्तर की सीट व एडीए अध्यक्ष का पद सिंधी-गैर सिंधी के बीच बांट कर दोनों समुदायों को राजी कर सकती है। हालांकि जैसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रवृत्ति है, किसी को यह नहीं लग रहा कि वे चंद माह के लिए एडीए में अध्यक्ष की नियुक्ति करेंगे, मगर हाल ही विभिन्न आयोगों व बोर्डों में नियुक्ति किए जाने से अनुमान लगाया जा रहा है कि वे यहां भी नियुक्ति कर सकते हैं।
उधर एडीए के जल्द गठन की प्रक्रिया के बीच इसका अध्यक्ष बनने की कवायद भी तेज हो गई है। हालांकि चंद माह के लिए अध्यक्ष बनना बेमानी सा है, क्योंकि यह जरूरी नहीं कि कांग्रेस की सरकार दुबारा आए ही, मगर बावजूद इसके कांग्रेस के वे नेता जो अजमेर उत्तर या दक्षिण के टिकट के दावेदार हैं, यहां भी भाग्य आजमाना चाहते हैं। विशेष रूप से गैर सिंधी दावेदार पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का नाम सामने आ रहा है। ज्ञातव्य है कि डॉ. बाहेती पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का वरदहस्त माना जाता है, जबकि रलावता पर केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट व कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का। हालांकि केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की की डॉ. बाहेती से नाराजगी उनके लिए बाधक हो सकती है, मगर माना जा रहा है कि आगामी चुनाव को देखते हुए सचिन का रुख कुछ नरम पड़ सकता है। ऐसे में अगर डॉ. बाहेती अध्यक्ष बन जाएं तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए। जहां तक डॉ. जयपाल का सवाल है, उनके संबंध भी पायलट से अच्छे नहीं हैं, इस कारण उनकी नियुक्ति में संदेह उत्पन्न होता है, मगर संभावित बदले समीकरणों के तहत उनको भी कुछ न कुछ दिया जा सकता है। रहा सवाल भाटी का तो वे हैं तो सचिन के खेमे में, मगर उनका ज्यादा जोर विधानसभा टिकट पर नजर आता है। वैसे अनुसूचित जाति के किसी नेता के अध्यक्ष बनने की संभावना इस कारण कुछ कम है क्योंकि अजमेर दक्षिण सीट व नगर निगम मेयर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और अजमेर उत्तर की सीट अघोषित रूप से सिंधियों के लिए। ऐसे में सामान्य वर्ग के नेताओं को प्राथमिकता देना कांग्रेस की मजबूरी है। अब देखते हैं मुख्यमंत्री गहलोत क्या करते हैं?
राजनीतिक जोड़तोड़ की कवायद करने वालों का कयास है कि गहलोत बाहेती को एडीए का अध्यक्ष, डॉ. जयपाल को शहर कांग्रेस अध्यक्ष, रलावता को देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष, भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट व किसी सिंधी को अजमेर उत्तर का टिकट देकर संतुलन बैठा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि किशनगढ़ विधायक नाथूराम सिनोदिया को इस बार फिर टिकट दिया जाना लगभग तय है, इस कारण उन्हें देहात अध्यक्ष पद से मुक्त करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
-तेजवानी गिरधर