बुधवार, 25 मई 2011

कानून के अभाव में पनप रहा है खून बेचने का धंधा

खून बेचने के खिलाफ कोई ठोस और विशेष कानून न होने के कारण अजमेर में खून बेचने का धंधा पनपता जा रहा है। हाल ही खून खरीदने और बेचने वाला एक दलाल व उसके तीन साथी युवकों को पकड़ा गया है, लेकिन उनके खिलाफ प्राथमिक रूप से शांति भंग करने की धारा 151 ही लगाई गई है। यह तो एक मामला है, जो कि उजागर हो गया है, वरना हकीकत ये है कि चोरी छिपे यह धंधा खूब पनप रहा है। हालांकि इस ओर सरकार का ध्यान गया है और चिकित्सा मंत्री एमामुद्दीन अहमद उर्फ दुर्रु मियां ने पिछले दिनों ऐलान किया है था कि खून के व्यावसायिक कारोबार को रोकने के लिए कानून बनाया जाएगा, मगर उस घोषणा का क्या हुआ, आज तक पता नहीं लग पाया है।
यह तो एक संयोग है कि ताजा मामला इस कारण उजागर हुआ क्योंकि राजस्थान पत्रिका के एक जागरूक फोटो जर्नलिस्ट जय माखीजा ने मुस्तैदी दिखाई, मगर खून के धंधे का पहले भी खुलासा हो चुका है। पूर्व में भी नेहरू अस्पताल के पास कई बार संदिग्ध लोगों के बारे में केसरबाग पुलिस चौकी को सूचित किया जा चुका है, लेकिन पुलिस भी क्या करे? खून बेचने वाले और दलाल के खिलाफ किस कानून के तहत कार्यवाही करे? हद से हद उन्हें धारा 151 या 109 के तहत पकड़ती है, लेकिन छूटने के बाद वे फिर उसी धंधे में लग जाते हैं। पुलिस उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में असमर्थ है।
असल में खून बेचने का धंधा इस वजह से भी पनप रहा है कि जरूरत पडऩे पर खून आसानी से मिल नहीं पाता। जैसे ही अस्पताल की ओर से कहा जाता है कि खून की व्यवस्था करो तो मरीज के परिजन के हाथ-पैर फूल जाते हैं। पहले तो वे किसी जान-पहचान वालों के माध्यम से रक्तदाताओं से संपर्क करते हैं, इसके बावजूद सफलता हाथ नहीं आने पर दलालों से संपर्क करते हैं। जाहिर तौर पर इस मामले में नेहरू अस्पताल के कुछ कर्मियों की मिलीभगत का भी संदेह होता है। समझा जा सकता है कि मरीज और दलाल के बीच की कड़ी का काम करते हैं, वरना दलाल को कैसे पता लग सकता है कि अमुक मरीज को खून की जरूरत है और वह खून नहीं जुटा पा रहा। अलबत्ता इस बात की भी संभावना भी है कि दलाल अपने गुर्गों को ब्लड बैंक के आसपास तैनात करते होंगे। ताजा प्रकरण में तो यह साफ ही है कि दलाल अस्पताल के बाहर ही बीड़ी-सिगरेट बेचता है, इस कारण उसकी ब्लड बैंक पर पूरी नजर रहती थी। संभावना इस बात की है कि कुछ और दलाल भी अस्पताल के बाहर खड़े रहते होंगे। बताया जाता है कि दलाल जनाना अस्पताल के पास भी मौजूद रहते हैं। अनेक प्रसूताओं को खून की जरूरत होती है और उसके लिए उनके परिजन मुंह मांगा पैसा देने को तैयार रहते हैं। दूसरी ओर सरकारी व्यवस्था इतनी लचर है कि वह जरूरतमंद को खून देने से पहले काफी परेशान करता है। ऐसे में दलाल की चल पड़ती हैं। बताया जाता है कि दलाल प्राइवेट नर्सिंग होम व अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जरूरतों को भी पूरा करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों नेहरू अस्पताल के ब्लड बैंक के इंचार्ज ने कहा था कि वे पूरी जांच और पता-ठिकाना जानने के बाद ही खून लेते हैं, लेकिन वे भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं थे कि खून का कारोबार पूरी तरह से रुक गया है। उनका कहना था कि वे आमतौर पर मरीज के रिश्तेदार से ही खून लेते हैं, लेकिन दलाल के जरिए कब कौन मरीज का रिश्तेदार बन कर आ जाए, इसका पता लगाना कठिन हो जाता है। अहम बात ये है कि जिस मरीज को खून की जरूरत होती है, उसका रिश्तेदार मरीज को बचाने के लिए जहां कहीं से भी खून मिलता है, लेने की कोशिश करता है। वैसे भी कई मरीजों के रिश्तेदार खून देने में आनाकानी करते हैं। ऐसे में उनकी मजबूरी हो जाती है कि दलाल के जरिए खून खरीदें। सबसे बड़ी बात ये है कि मरीज का रिश्तेदार मरीज की जान बचाने की खातिर, खून बेचने वाला पैसों की खातिर और दलाल कमीशन के लिए आपसी रजामंदी से काम करते हैं। ऐसे में शिकायत का तो सवाल ही नहीं उठता।
हालांकि अब तक यही जानकारी थी कि आर्थिक रूप से कमजोर व फकीर ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खूब बेचते थे, लेकिन अब यह भी साफ हो गया है कि शौक पूरा करने की खातिर पढ़े-लिखे युवक भी इस जाल में फंस चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ खानाबदोश भी नशे की लत को पूरा करने के लिए खून बेच रहे हैं। ऐसे में पुलिस को और ज्यादा सतर्क होना पड़ेगा। विशेष रूप से आगामी उर्स मेले के दौरान। मेले में आए अनेक फकीर इस धंधे में लग जाते हैं। वे खून बेच कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। उनका ठिकाने आमतौर पर बजरंगगढ़ के नीचे, दरगाह इलाके और रेलवे स्टेशन के आस-पास हैं। बताया जाता है कि एक यूनिट खून के बदले तकरीबन पांच सौ रुपए तक मिल जाते हैं, जिससे उनका दो-तीन दिन का काम तो चल ही जाता है।

मंगलवार, 24 मई 2011

अजमेर में इंडिया अगेंस्ट करप्शन खुद ही पथ-भ्रष्ट

देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का झंडाबरदार बनी इंडिया अगेंस्ट करप्शन मुहिम की अजमेर इकाई इसके दिल्ली में बैठे मैनेजरों की लापरवाही की वजह से पथ-भ्रष्ट हो गई। पथ-भ्रष्ट कहना इसलिए अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं कहा जा सकता क्यों कि उसमें गुटबाजी हो गई और उसका परिणाम ये रहा कि मौजूदा दौर की सर्वाधिक पवित्र मुहिम का कार्यक्रम फ्लॉप शो साबित हो गया।
असल में यह हालत पद और प्रतिष्ठा की लड़ाई के कारण हुआ। अजमेर इकाई का झंडा लेकर अब तक सक्रिय रही कॉर्डिनेटर प्रमिला सिंह को न केवल हटा दिया गया, अपितु उनको दिया गया पद ही समाप्त कर दिया गया। उनके स्थान कीर्ति पाठक को मुख्य कार्यकर्ता की जिम्मेदारी सौंप दी गई। बात यहीं खत्म नहीं हुई। एक ओर जहां कीर्ति पाठक ने ब्लॉसम स्कूल में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य श्रीओम गौतम का उद्बोधन आयोजित किया, वहीं प्रमिला सिंह भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने भी गौतम का कार्यक्रम कश्यप डेयरी में आयोजित करने की प्रेस रिलीज जारी कर दी। बड़ी दिलचस्प बात ये थी दोनों का समय शाम छह बजे बताया गया। जहां तक स्थान का सवाल है, बताने भर को दोनों अलग-अलग हैं, जबकि वे हैं एक ही स्थान पर। कश्यप डेयरी परिसर में ही ब्लॉसम स्कूल चलती है।
खैर, हुआ वही जो होना था। कीर्ती पाठक की ओर से आयोजित कार्यक्रम ब्लॉसम स्कूल में हुआ, प्रमिला सिंह वाला नहीं। इतना ही नहीं प्रमिला सिंह व उनके समर्थकों को कार्यक्रम में घुसने ही नहीं दिया गया। कीर्ति पाठक के पति राजेश पाठक ने पहले से ही पुलिस का बंदोबस्त कर दिया था। प्रमिला सिंह ने वहां खूब पैर पटके, मगर उनकी एक नहीं चली। इस पर उन्होंने झल्ला कर कहा कि वे आईएसी दिल्ली को शिकायत करेंगी। देखने वाल बात ये है कि उनकी शिकायत क्या रंग लाती है?
इस पूरे प्रकरण से यह तो स्पष्ट है कि प्रमिला सिंह को भी श्रीओम गौतम के आने की पुख्ता जानकारी थी। गौतम उनके कार्यक्रम में क्यों नहीं आए, इस पर दो सवाल उठते हैं। या तो प्रमिला सिंह को आखिर तक बेवकूफ बनाया जाता रहा या फिर उन्हें पता था कि गौतम उनके कार्यक्रम में नहीं आएंगे, फिर भी उन्होंने अपनी ओर से कार्यक्रम की घोषणा कर दी। हालांकि गौतम सुबह ही अजमेर आ गए थे, मगर प्रमिला सिंह लाख कोशिश के बाद भी उनसे मिल नहीं पाईं। वैसे ये संभव लगता नहीं है कि प्रमिला सिंह इतनी मासूम हैं कि उन्हें कीर्ति पाठक के कार्यक्रम का पता ही नहीं था।
बहरहाल, अजमेर इकाई में तो गुटबाजी उजागर हो ही गई है, मगर इस बात अभी पता नहीं लग पाया है कि क्या यही हाल ऊपर भी है? रहा सवाल कॉर्डिनेटर जैसे पद को समाप्त करने का तो साफ है कि मुहिम के मैनेजरों को पद का झगड़ा समाप्त करने की अक्ल बाद में आई है। और पहले जो पद देने की व्यवस्था की गई थी, उसी का परिणाम है कि अजमेर में गुटबाजी हो गई। वैसे मुहिम से जुड़े कार्यकर्ताओं में यह कानाफूसी होते हुए जरूर सुनी गई कि प्रमिला सिंह को उनके व्यक्तित्व के मुहिम के अनुकूल नहीं मान कर हटाया गया है।
खैर, पूरे उत्तर भारत में सबसे पहले पूर्ण साक्षर घोषित होने का गौरव हासिल अजमेर में इस मुहिम का क्या हाल है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गौतम के लोकपाल बिल विवेचना कार्यक्रम में एक सौ से कुछ अधिक ही लोग पहुंचे, वे भी जुटाए हुए। ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली में मुहिम के मैनेजरों को यह पता ही नहीं कि अजमेर में उन्होंने जिन स्वच्छ छवि के लोगों को कमान सौंपी है, उनकी न तो कोई पहचान है और न ही जनता पर पकड़। तुर्रा ये कि वे आम जनता को जोड़ कर अभियान छेड़े हुए हैं। हालांकि इससे उनकी निष्ठा व ईमानदारी पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता, मगर इतना तो तय ही है कि उनको जनता को जोडऩे का कोई अनुभव ही नहीं है। केवल मीडिया के दम पर टिके हुए हैं। सोचते हैं कि चूंकि आमजन में भ्रष्टाचार के प्रति विरोध का भाव है, इस कारण मात्र मीडिया के जरिए ही वे उस फसल को काट लेंगे। अब ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि लोकपाल बिल के मामले में मीडिया ने पिछले दिनों क्या कमाल कर दिखाया था। अजमेर वाला कार्यक्रम भी उसकी जीती जागती मिसाल है। जितना बड़ा वह कार्यक्रम था नहीं, उससे कहीं अधिक उसे कवरेज दिया गया। और यही वजह है कि कार्यक्रम आयोजित करने वाले जितने बड़े नेता हैं नहीं, उससे कहीं अधिक अपने आप को मानने लगे हैं।

शनिवार, 14 मई 2011

कल के अछूत बाबो सा आज पूजनीय कैसे हो गए?


ये दुनिया भी अजीब है। कई बार जीते जी किसी शख्स की दो कौड़ी की इज्जत कर देती है और मरने के बाद पूजने लग जाती है। कभी राजस्थान के एक मात्र सिंह के नाम से अलंकृत पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत जब उपराष्ट्रपति पद से निवृत्त हो कर प्रदेश में लौटे तो भाजपा में ऐसा माहौल बना दिया गया था मानो वे कोई अनजान प्राणी हैं, जिनके लिए इस प्रदेश में कोई जगह ही नहीं है। इसे यूं भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक वक्त ऐसा भी आया जब राजस्थान का यह शेर अपने ही प्रदेश में बेगाना करार दे दिया गया था।
अजमेर वासी भलीभांति जानते हैं कि जब वे दिल्ली से लौट कर दो बार अजमेर आए तो उनकी अगुवानी करने को चंद दिलेर भाजपा नेता ही साहस जुटा पाए थे। शेखावत जी की भतीजी संतोष कंवर शेखावत, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा और पूर्व मनोनीत पार्षद सत्यनारायण गर्ग सहित चंद नेता ही उनका स्वागत करने पहुंचे। अधिसंख्य भाजपा नेता और दोनों विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने उनसे दूरी ही बनाए रखी। वजह थी मात्र ये कि अगर वे शेखावत से मिलने गए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नाराज हो जाएंगी। पूरे प्रदेश के भाजपाइयों में खौफ था कि वर्षों तक पार्टी की सेवा करने वाले वरिष्ठ नेताओं को खंडहर करार दे कर हाशिये पर धकेल देने वाली वसु मैडम अगर खफा हो गईं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। असल में वे नहीं चाहतीं थीं कि शेखावत जी की परिवार शृंखला राजनीति में वजूद कायम पाए। इसी कारण शेखावत जी के जवांई नरपत सिंह राजवी को भी पीछे धकेलने की उन्होंने भरसक कोशिश की।
मगर अब समय बदल गया है। सत्ता से च्युत होने के बाद जबरन विपक्षी दल की नेता पद से हटाए जाने के बाद मजबूरी में फिर से उसी पद पर काबिज होने वाली वसु मैडम को टक्कर देने को संगठन तैयार दिखाई दे रहा है। वसु मैडम का अब वह खौफ नहीं रहा, हालांकि अब भी तय है कि आगामी चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाना है। पिछले दिनों पुष्कर में आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भी वसु मैडम का न आना यह साबित करता है कि अब संगठन पहले की तरह उनका गुलाम नहीं रहा है। उसी का नतीजा है कि रविवार, 15 मई को भारतीय जनता पार्टी शहर जिला अजमेर ने पूर्व उपराष्ट्रपति, भारतीय जनसंघ और भाजपा के संस्थापक सदस्य एवं वरिष्ठ नेता स्व. भैरोंसिंह शेखावत की पहली पुण्यतिथि पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। उसमें अधिसंख्य भाजपा नेता शरीक हुए। जिला अध्यक्ष रासासिंह रावत के नेतृत्व में अनाथालय में बच्चों में फल वितरण भी किया गया। प्रवक्ता व वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरविंद यादव की ओर से जारी भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति में बाबो सा शेखावत जी के नाम के साथ भारतीय जनसंघ और भाजपा के संस्थापक सदस्य अलंकार भी जोड़े गए थे। ऐसा देख कर बड़ा अजीब लगा कि क्या आज श्रद्धा के पात्र ये शेखावत जी वही हैं, जिन्हें उनके जीते जी अजमेर आने पर किसी ने भाव नहीं दिया था। कैसी विडंबना है कि कल के अछूत बाबो सा आज अचानक पूजनीय कैसे हो गए?
खैर, शायद की इसी कारण राजनीति को बड़ी कुत्ती चीज कहा जाता है।

मंगलवार, 10 मई 2011

राजस्थान में राजनीतिक नियुक्ति मृग मरीचिका-सिंह

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के राजनीतिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एस. एन. सिंह ने कहा है कि राजस्थान में राजनीतिक नियुक्ति एक मृग मरीचिका सी हो गई है, इस कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में असंतोष व्याप्त है। साथ ही अफसरशाही के हावी होने के कारण जनहित के काम प्रभावित हो रहे हैं।
एक बयान जारी कर उन्होंने कहा कि दिसम्बर 2008 में हुए चुनाव और मई 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में अच्छी सफलता मिली और प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत ने दुबारा कार्यभार संभाला एवं लोकसभा में कांग्रेस को 25 में से 20 सीटों पर सफलता हासिल हुए। बाद में पंचायत, जिला परिषद, पालिका और छात्रसंघ चुनाव में भी कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सफलता मिली। कांग्रेस को लगातार चुनावी जीत दिलवाने में मेहनत करने वाले कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता व नेता राजनीतिक नियुक्तियों के माध्यम से आयोग, बोर्ड, समिति व संस्थानों में अध्यक्ष, सदस्य व पदाधिकारी बनने की उम्मीद करने लगे। नियुक्तियों के इच्छुक दावेदारों ने लगातार प्रदेश व केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष अपने बायोडाटा प्रस्तुत किए, मगर ढ़ाई साल गुजर जाने के बाद भी मानवाधिकार, अल्पसंख्यक, अभाव-अभियोग और अन्य संस्थानों में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की गईं। यहां तक कार्यवाहक कुलपति और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर भी नौकरशाहों को लगाया गया। हालांकि सरकार की ओर से समय-समय पर राजनीतिक नियुक्ति करने का आश्वासन दिया जाता रहा, लेकिन हर बार नतीजा शून्य ही निकला। इसी प्रकार नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति में भी अनावश्यक विलम्ब से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ा है। सरकार व पार्टी में समन्वय नहीं और जनहित के कार्य नहीं हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौकरशाह ही जनप्रतिनिधियों, विशेषज्ञों व शिक्षाविदों के काम कर रहे हैं। लोकतंत्र अब अधिकारी तंत्र जैसा दिख रहा है। नौकरशाह भी काम के बोझ के तले दब गए हैं और राजनेताओं के सामने जन आकाक्षाओं को नहीं रख पाते। इससे जनता व सरकार के बीच दूरी बढ़ी है। यदि समय रहते कांग्रेस नेतृत्व ने विधायक, कम मतों से हारे उम्मीदवारों व कर्मठ कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी नहीं तो ऐसा संभव है कि कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता के कारण पुन: पराजय का मुंह देखना पड़ सकता है।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस पार्टी को 1998 के विधानसभा चुनाव में 153 सीट व 44.95 प्रतिशत मत मिले थे। अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री के रूप में काम किया, लेकिन दिसम्बर 2003 के चुनाव में प्रदेश की 200 सीटों में से कांग्रेस को केवल 56 सीटें ही मिल पाईं। मतों का प्रतिशत दस प्रतिशत गिर कर 35.63 रह गया। असल में 1998-2003 के दौरान कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई थी। केवल भ्रष्ट, चापलूस और अवसरवादी ही लाभान्वित हुए। यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव में जहां पूरे देश में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को सफलता मिली, वहीं राजस्थान में कांग्रेस को पराजय हासिल हुई। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब भी कार्यकर्ता की उपेक्षा हुई है, कांग्रेस को नुकसान हुआ है। हालात को समझते हुए कांग्रेस नेतृत्व को अविलम्ब राजनीतिक नियुक्तियां करके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना चाहिए। जनप्रतिनिधियों और शिक्षाविदों का काम नौकरशाहों से नहीं करवाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ता नेहरूजी के समय से ही पार्टी की धुरी रहे हैं। तत्पश्चात इंदिरा गांधी व राजीव गांधी ने भी पार्टी संगठन को महत्व दिया। इसके बाद जिस प्रकार श्री राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस व एनएसयूआई को लोकतांत्रिक तरीके से संगठित किया, उसी तरह से राजस्थान में पार्टी संगठन का लोकतांत्रीकरण होना चाहिए। राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष व जिला अध्यक्ष के पदों पर नई नियुक्तियां होना शेष है। पार्टी के योग्य कार्यकर्ताओं के साथ छलावा न किया जाए और उनको विभिन्न पदों की मृग मरीचिता नहीं दिखाई जाए। पार्टी हित में ऐसे कार्य किए जाएं, जो आम मतदाताओं को दिखाई दें। इसके लिए जिला स्तर पर नगर सुधार न्यास, बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति व जिला कांग्रेस कमेटी में अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी चाहिए। राज्य स्तर पर हाउसिंग बोर्ड, उद्योग विकास निगम, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, पर्यटन विकास निगम, गौ सेवा संघ, निशक्तजन विकास संस्थान, बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति, जन अभाव अभियोग समिति, हज कमेटी, अल्पसंख्यक आयोग, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग जैसी संस्थाओं में राजनीतिक नियुक्तियां की जाएं। इसी तरह शैक्षणिक और अकादमिक संस्थाओं में ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, पंजाबी भाषा अकादमी, सिंधी भाषा अकादमी, बृज भाषा अकादमी आदि में भी नियुक्तियां होना बाकी हैं। विश्वविद्यालयों में जहां कांग्रेस पार्टी और राजीव गांधी स्टडी सर्किल के समर्पित सुयोग्य प्रोफेसर कार्यरत हैं, उनके स्थान पर नियम विरुद्ध तरीके से और उच्च न्यायालय के पूर्व के निर्देश के बावजूद डिवीजनलन कमिश्नर को कुलपति का कार्यभार सौंपा गया है। इससे शिक्षकों व शिक्षक संगठनों में घोर असंतोष है। ऐसे में राजस्थान सरकार से शीघ्र ही राजनीतिक नियुक्तियां करके कार्यकर्ताओं का उत्साहवद्र्धन करना अपेक्षित है।

अजमेर की बहबूदी के लिए अजमेर फोरम का गठन

हाल ही अजमेर कुछ बुद्धिजीवियों के एक समूह ने ऐतिहासिक अजमेर को उसका पुराना गौरव पुन: दिलाने और अनेकानेक समस्याओं से जूझते नागरिकों को निजात दिलाने के लिए आवाज बुलंद करने व संघर्ष करने के मकसद से पूर्णत: गैर राजनीतिक अजमेर फोरम नामक मंच का गठन किया।
इस मंच की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि न तो इसका कोई एक नेता होगा और न ही पदाधिकारी। मंच की गतिविधियों को सुव्यवस्थित रखने के लिए एक कोर कमेटी जरूर गठित की जाएगी, मगर किसी का एकल नेतृत्व नहीं होगा। मंच सामूहिक नेतृत्व के रूप में काम करेगा। सभी निर्णय आपसी सहमति से किए जाएंगे। उसके सदस्य कोई भी कार्य करने पर उसके समाचार के साथ अपना नाम अखबारों में प्रकाशित करवाने से परहेज रखेंगे। अव्वल तो फोरम के रूटीन के कामकाज की खबरें प्रकाशित नहीं करवाई जाएंगी। अगर आम जनता की भागीदारी की अत्यंत आवश्यकता हुई, तभी समाचार माध्यमों का सहयोग लिया जाएगा। फोरम की इस विशेषता को अगर चंद लफ्जों में समेटने की कोशिश की जाए तो केवल इतना कहा जा सकता है कि यह अजमेर से प्यार करने वाले और उसकी बहबूदी चाहने वाले बुद्धिजीवियों का ऐसा समूह है, जिसका मकसद काम करना होगा, प्रचार या प्रसिद्धि नहीं।
मंच की दूसरी विशेषता यह है कि यह बैठकों, पत्र-व्यवहार अथवा आंदोलन में किसी भी व्यक्ति विशेष से आर्थिक सहयोग नहीं लेगा, अर्थात मंच के संचालन के चंदा एकत्रित नहीं किया जाएगा। यदि जरूरत हुई भी तो मंच के ही सदस्य आपस में मिल कर जरूरी धनराशि जुटा कर उसका उपयोग करेंगे। मंच किसी भी समस्या के समाधान के लिए प्रयास करने के लिए समस्या विशेष से जुड़े विषय विशेषज्ञों से भी संपर्क साधेगा, ताकि समस्या के कारणों और उसके समाधान के सभी विकल्पों का ठीक से आकलन किया जा सके। मंच राजनीतिक नेताओं का सहयोग तो लेगा, किंतु अपना स्वरूप किसी भी स्थिति में राजनीतिक नहीं होने देगा। अगर आंदोलन की जरूरत पड़ी तब भी जनचेतना जागृत कर अहिंसक और शांति पूर्ण आंदोलन किया जाएगा। मंच किसी संस्था के समानान्तर काम नहीं करेगा, अपितु अजमेर के हित से संबंधी किसी भी संस्था की गतिविधि में सहयोग भी करेगा। जब स्वयं पहल करेगा, तब भी उद्देश्य विशेष के लिए काम करने वाली संस्था का सहयोग भी बिना किसी भेदभाव के करेगा।
फोरम की पहली बैठक गत दिवस इंडोर स्टेडियम के हॉल में हुई, जिसमें शहर के अनेक संभ्रांत नागरिक मौजूद थे, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी मौजूद थे। बैठक में अधिसंख्य वक्ताओं ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि जनता में जागृति के अभाव और सशक्त नेतृत्व की कमी के कारण अजमेर अन्य संभागीय मुख्यालयों और शहरों की तुलना में विकास नहीं कर पाया है। बैठक में शहर की समस्याओं पर गहन चिंतन किया गया और उनके निराकरण पर चर्चा की गई। यह तय किया गया कि पहले चरण में समस्याओं और संभावित विकास के बिंदुओं को सूचीबद्ध किया जाए और उसके बाद एक-एक करके उन पर काम किया जाए। मंच केवल जनता का ही प्रतिधित्व नहीं करेगा, अपितु यदि सरकार और प्रशासन कोई अच्छा काम कर रहे हैं तो उसमें सहयोग भी करेगा। अर्थात जनता को केवल उसके अधिकारों के प्रति ही जागरूक नहीं करेगा, अपितु नागरिकों के कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करेगा।
उल्लेखनीय है कि यूं तो अजमेर में अनेक सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन कार्यरत हैं और वे विभिन्न मुद्दों के लिए काम कर रहे हैं, मगर पहली बार एक ऐसा मंच गठित किया गया है, जिसके किसी भी सदस्य का उद्देश्य मंच के माध्यम से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता हासिल करना नहीं होगा। मंच अपनी लोकप्रियता की ओर भी ध्यान नहीं देगा, सिर्फ और सिर्फ काम पर ध्यान देगा। उम्मीद है यह मंच अजमेर के विकास में अपनी भागीदारी निभा कर इस ऐतिहासिक शहर को उसका पुराना गौरव फिर से दिलाने में कामयाब होगा। बैठक में दैनिक नवज्योति के प्रधान सम्पादक श्री दीनबंधु चौधरी, दैनिक भास्कर के स्थानीय सम्पादक श्री रमेश अग्रवाल, स्वामी न्यूज चैनल के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य, पीयूसीएल के डी. एल. त्रिपाठी, श्रमजीवी महाविद्यालय के प्राचार्य अनंत भटनागर, समाजसेवी महेन्द्र विक्रम सिंह, शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग, उद्योगपति हेमन्त भाटी, पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, शिक्षाविद् दिनेश शर्मा, कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता, पूर्व पार्षद सतीश बंसल, रणजीत मलिक, डॉ. सुरेश अग्रवाल, एलआईसी के पीआरओ हरि भारद्वाज, पत्रकार एस. पी. मित्तल, गिरधर तेजवानी, संतोष गुप्ता, प्रताप सनकत, अरविंद गर्ग, संतोष खाचरियावास, बलजीत सिंह, आर. डी. कुवेरा, एन. के. जैन सीए, दिनेश गर्ग आदि मौजूद थे।