मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

भाजपा व संघ ने वाकई सहयोग नहीं किया बाबा रामदेव की रैली का


जैसी कि आशंका थी, भाजपा संघ ने योग गुरू बाबा रामदेव महाराज के आह्वान पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध अभियान के तहत निकाली गई जनचेतना रैली को सहयोग नहीं किया। हालांकि इक्का-दुक्का संघ-विहिप कार्यकर्ता जरूर व्यक्तिगत रूप से रैली में शामिल हुए, लेकिन संगठन स्तर पर भाजपा संघ ने रैली से दूरी ही बनाए रखी। समझा जाता है कि दोनों ही संगठनों ने भीतर ही भीतर कार्यकर्ताओं को इस प्रकार का संदेश जारी कर दिया था कि वे इसमें भागीदारी नहीं निभाएं। हालांकि रैली के आयोजकों ने तैयारी बैठक में जब शहर के चुनिंदा लोगों को बुलाया तो उसमें अधिसंख्य संघ से जुड़े हुए लोग थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने रैली के साथ अपने राजनीतिक एजेंडे का खुलासा किया, वे चौंक गए।
अजमेर आर्य समाज का गढ़ है और रैली को आर्य समाज ने जरूर समर्थन दिया क्योंकि बाबा रामदेव स्वयं आर्य समाज से जुड़े रहे हैं, लेकिन आम लोगों की बाबा रामदेव के प्रति श्रद्धा होने के बाद भी उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई। रैली में जितने भी लोग थे, वे बाकायदा प्रयासों से बुलवाए गए थे। इस लिहाज से रैली औपचारिक रूप से तो सफल कही जा सकती है, मगर इस अभियान के प्रति आम आदमी का जुड़ाव होता दिखाई नहीं दे रहा है।
जहां तक रैली के उद्देश्य और प्रयास का सवाल है, बेशक सराहनीय है, मगर अन्य राजनीतिक दलों की ओर से, विशेष रूप से समान विचारधारा के भाजपा संघ के दूरी बनाने का यह साफ मतलब निकाला जा रहा है कि वे इसे प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पहल के रूप में देख रहे हैं। चूंकि बाबा रामदेव स्वयं यह घोषणा कर चुके हैं कि वे आगामी लोकसभा चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे, भाजपा इस अभियान से सतर्क है। इसकी खास वजह ये है कि बाबा रामदेव से जुड़े अधिसंख्य लोग हिंदूवादी अथवा धार्मिक संगठनों के ही कार्यकर्ता हैं। अगर वे बाबा के प्रभाव में कर उनके साथ हो जाते हैं तो इससे उनके वोट बैंक में सेेंध पड़ जाएगी। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि योग को प्रतिष्ठा दिलाने वाले बाबा रामदेव योग सिखाते-सिखाते जैसे ही अपने आसन की खातिर राजनीतिक जाजम बिछाने लगे हैं, तब से भाजपा उनके प्रति चौकन्नी हो गई है। हालांकि यह सही है कि जब तक बाबा रामदेव केवल योग और आयुर्वेद की ही बातें कर रहे थे तो हिंदू मानसिकता से जुड़े संगठनों ने ही उनकी मदद की। कदाचित भाजपा को बाबा के इर्द-गिर्द जमा हो रही भीड़ का बाद में राजनीतिक लाभ मिलने का ख्याल रहा, मगर जैसे ही बाबा ने खुद की छत्रछाया में ही राजनीतिक दल बनाने की सोची, भाजपा परेशान हो उठी है। जहां तक आम आदमी का सवाल है तो वह योग के मामले में भले ही बाबा का अनुयाई हो, मगर राजनीतिक रूप से बाबा को सहयोग करेगा ही, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह ये है कि हर व्यक्ति का पहले से ही किसी किसी राजनीतिक दल के प्रति झुकाव है और वह एकाएक बाबा की अपील पर उनके साथ शामिल नहीं जाएगा।
बहरहाल, बाबा ने रैली के जरिए आकलन कर ही लिया होगा। यह एक अच्छी शुरुआत तो कही जा सकती है, मगर जब पूरा राजनीतिक तंत्र ही भ्रष्टाचार, जातिवाद, बाहुबल धन बल पर टिका हो, उनकी मुहिम को सफलता मिलना बेहद कठिन है।

एक-एक करके सारे अधिकारी रुखसत

दीप दर्शन सोसायटी के नाम से नगर सुधार न्यास द्वारा पंचशील क्षेत्र में कथित रूप से अवैध तरीके से आवंटित 63 बीघा जमीन के मामले में एक-एक करके सारे अधिकारियों को अजमेर से रुखसत कर दिया गया है। जिला कलेक्टर राजेश यादव पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगता, इससे पहले ही उन्हें सीएमओ में बुला लिया गया। कोई इसे सजा मान रहा है तो कोई संरक्षण, मगर कानाफूसी छोड़ कर उन पर सीधे अंगूली तो नहीं उठाई जा सकी।
पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व अन्य कांग्रेसियों का ज्यादा गुस्सा न्यास सचिव अश्फाक हुसैन पर था, क्योंकि उन्होंने उचित तवज्जो नहीं दी, तो उन्हें भी यहां से हटा कर जयपुर बुला लिया गया। बाकी बचे कथित आरोपी न्यास के ओएसडी-लैंड अनुराग भार्गव को भी बारां रवाना कर दिया गया है। ऐसे में अब कांग्रेसी यह आरोप नहीं लगा पाएंगे कि कथित घोटाले में शामिल अधिकारी कागजों में हेराफेरी कर सकते हैं। जाहिर है अब कांग्रेसियों के कलेजे की आग शांत हो गई है। अब वे मूंछ तान कर कह सकते हैं कि जो हमसे टकराएगा, अजमेर में नहीं रह पाएगा।
रहा सवाल झगड़े की जड़ जमीन घोटाले का तो सरकार ने जिस तरीके से एकतरफा निर्णय करते हुए आवंटन व लीज रद्द करने के आदेश दिए थे, उस पर न्यायालय का स्थगनादेश आना ही था। मामला न्यायालय में न चला जाए, इसके लिए आरोप लगाने वाले सरकार पर केवियट लगाने का दबाव बनाते, इससे पहले ही स्थगनादेश आ गया। असल में इस मामले में सरकार ने दीप दर्शन सोसायटी का पक्ष सुना ही नहीं। कदाचित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस खामी को जानते रहे होंगे, मगर उन्होंने एकपक्षीय कार्यवाही कर खुद का दामन तो दागदार होने से बचा ही लिया। इस पर सोसायटी के अधिकृत प्रतिनिधि कमल शर्मा की यह शिकायत वाजिब ही थी कि उनका पक्ष सुने बिना एकतरफा फैसला कैसे कर दिया गया। सीधी सी बात है कि जो जमीन न्यास ने खुद आवंटित की थी, उसका बेचान करके जब नियमानुसार लीज करवा ली गई तो जिन लोगों ने उसे खरीदा, उनका कोई दोष नहीं है। उन्होंने कोई अतिक्रमण तो किया नहीं था। बहरहाल, फैसला तो न्यायालय ही करेगा, मगर जैसे रंगढंग हैं, नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही होता नजर आता है, भले ही उसमें वक्त लग जाए।