सोमवार, 10 दिसंबर 2012

भगत पर धर्मेश जैन के हमले के क्या हैं मायने?

एक ओर जहां अजमेर नगर सुधार न्यास के मौजूदा अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत ने अपने कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर अपनी उपलब्धियों का बखान किया, वहीं पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने भगत और सरकार पर जम कर निशाने साधे। जैन की ओर से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में हालांकि शहर भाजपा का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरविंद यादव मौजूद थे, मगर इसका आयोजन विशुद्ध रूप से जैन ने ही किया था। जाहिर ऐसे में यह सवाल तो बनता ही है कि जैन की इस गतिविधि के मायने क्या हैं?
पूरे संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने जिस प्रकार अपने कार्यकाल का बखान किया और अधूरे कार्य मौजूदा न्यास अध्यक्ष भगत द्वारा आगे न बढ़ाने पर अफसोस जताया, उससे साफ नजर आया कि उन्हें इस बात की बड़ी पीड़ा है कि वे अपने सपनों का अजमेर नहीं बना पाए। काश फर्जी सीडी का प्रकरण सामने नहीं आता तो अपना कार्यकाल पूरा कर पाते और उन्होंने जो-जो विकास योजनाएं आरंभ कीं, वे पूरी करके पूर्व न्यास अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की तरह ही इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा पाते। ज्ञातव्य है कि एक फर्जी सीडी की वजह से जैन को इस्तीफा देना पड़ा, जिसकी जांच पर यह साफ हो गया कि किसी ने षड्यंत्रपूर्वक वह सीडी बनाई और जैन को क्लीन चिट मिल गई। उल्लेखनीय बात ये है कि यह क्लीन चिट कांग्रेस राज में आ कर मिली।
ऐसा नहीं है कि जैन कुछ कर ही नहीं पाए, उन्होंने अनेक उपलब्धियां हासिल कीं, मगर अधूरे कार्यकाल की वजह से उनका जो क्रेडिट मिलना चाहिए था, उस पर तो असर पड़ा ही है। जो मजा आना चाहिए था, वह नहीं आ पाया।
संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने जिस प्रकार बिंदुवार समस्याओं व विकास की संभावनाओं का जिक्र किया, उससे यह तो परिलक्षित हुआ ही कि न्यास के मामलों पर उनकी गहरी पकड़ है। इतनी ही पकड़ पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत को भी है, मगर उन्होंने अपनी ओर से प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं समझी। असल में उन्हें प्रदेश की राजनीति से ही फुर्सत नहीं है। भाजपा के दो गुटों में कैसे तालमेल हो, किसका टिकट कटवाना है और किसे दिलाना है, वे अभी उसी में व्यस्त हैं। ऐसे में विपक्ष की भूमिका जैन ने निभाई, मगर उसमें उनका व्यक्तिगत एजेंडा ज्यादा नजर आया। और वो यह कि वे राजनीति में लगातार सक्रिय बने रहना चाहते हैं, ताकि फिर मौका मिले तो कुछ कर पाएं। यूं अजमेर उत्तर के टिकट दावेदारों में उनकी भी गिनती होती है, मगर वे स्वयं में लोकसभा चुनाव लडऩे का माद्दा रखने का अहसास पाले हुए हैं। यद्यपि वे स्वयं यही कहते हैं कि वे अपनी ओर से टिकट नहीं मांगेंगे, मगर समझा जाता है कि मौका आने पर हाथ-पैर जरूर मारेंगे। यूं अगर अगली सरकार भाजपा की हुई तो दुबारा न्यास अध्यक्ष बनने का उनका दावा कमजोर नहीं होगा।
जहां तक भगत के कार्यकाल पर टिप्पणी करने का सवाल है, उनकी इस बात में तो दम है ही कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक तो तीन साल बाद जा कर न्यास अध्यक्ष की नियुक्ति की और न्यासियों की नियुक्ति के मामले में चुप्पी साध गए। इससे पूर्व भी जब डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को अध्यक्ष बनाया था, तब भी न्यासियों की नियुक्ति नहीं की थी। जाहिर सी बात है कि ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधियों की पूरी भागीदारी से शहर का जो विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पाता। जैन को ज्यादा तकलीफ ये है कि उन्होंने जो कार्य आरंभ किए, उनको कांग्रेस के कार्यकाल में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उनका आरोप है कि न्यास खजाने में आने वाला करोड़ों रुपये का राजस्व भूमि दलालों को उपकृत करने में जा रहा है। अगर ये सच है तो यह वाकई चिंताजनक है। जैन ने भगत को तो नकारा बताया ही, राज्य सरकार पर भी गंभीर आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार करने की खातिर भू उपयोग परिवर्तन में राज्य एम्पावर्ड कमेटी का उपयोग किया जा रहा है।
-तेजवानी गिरधर