रविवार, 20 मई 2012

जेएलएन में सीसी टीवी केमरे लगाने में दिक्कत क्या है?

हाल ही फेसबुक पर अजमेर के एक जागरूक नागरिक श्री सोमेश्वर शर्मा ने एक ज्वलंत और निहायत ही जरूरी मुद्दा उठाया है। उन्होंने सवाल खड़ा किया है कि रोज अखबार में पढ़ते हैं कि जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में सीसी टीवी कैमरे लगेंगे, अरे भई कब लगेंगे? जब कोई बड़ा दंगा-फसाद हास्पिटल मैं होगा तब?
वे लिखते हैं कि हमेशा अखबारों में यह आता है कि डाक्टर और मरीज की लड़ाई हुई। कभी भी कोई मरीज आते ही नहीं लड़ता है। पहले वो डाक्टर से विनती करता है, डाक्टर साहब देख लो, जब डाक्टर साहब नहीं देखते तो मरीज देख लेता है उनको। सच बात तो यह है कि अस्पताल प्रशासन केमरे लगवाना ही नहीं चाहता, क्योंकि इससे आपातकालीन इकाई के अंदर के हालत रिकार्ड हो जाएंगे, जो अंदर की ढ़ील-पोल को खोल देंगे। जब डाक्टर ही विभाग के राज्यमंत्री डा. राजकुमार शर्मा का गिरेबान पकड़ सकते हैं, वो क्या मरीज की अंदर आरती उतारते होंगे, सोचने का विषय है। श्री शर्मा ने अपेक्षा की है कि कोमन काज सोसाइटी इस दिशा में कुछ करेगी।
श्री शर्मा की बात में दम तो है। जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में आए दिन मरीजों के परिजन और डाक्टर्स के बीच भिड़ंत होती रहती है। यहां कभी किसी मरीज के परिजन डाक्टरों के साथ मारपीट कर उत्पात मचाते हैं तो कभी मेडिकोज अस्पताल सहित आसपास के पूरे इलाके में उत्पात मचाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल में पुलिस चौकी भी स्थापित की गई, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। एक बार तो मारपीट की वारदात के बाद पूरे चार घंटे तक अराजकता का माहौल रहा, जिसे जंगलराज की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पुलिस चौकी में भी जम कर तोडफ़ोड़ हुई। मेडिकल कालेज के छात्रों ने इमरजेंसी वार्ड पर कब्जा कर लिया और मरीजों के परिजन के साथ मारपीट की।
अव्वल तो अस्पताल में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाने चाहिए। चाहे पुलिस की व्यवस्था हो चाहे अस्पताल प्रशासन के क्षेत्राधिकार वाले सुरक्षा गार्डों की, ताकि मरीजों के परिजन की हंगामा करने की हिम्मत ही न हो। सुरक्षा कर्मियों के अभाव में मरीज की परेशानी अथवा मृत्यु पर परिजन उत्तेजित हो जाते हैं और नियंत्रण के अभाव में बेकाबू हो जाते हैं। वे ये भी नहीं देखते इससे अन्य मरीजों को परेशानी होगी। हालत ये हो गई है कि हंगामा करना एक चलन सा हो गया है। यदि किसी को डाक्टर के इलाज से संतुष्टी नहीं है तो वह उच्चाधिकारियों से संपर्क कर सकता है। यदि डाक्टर की लापरवाही से मौत हुई तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है। लेकिन इतना इंतजार किसे है। हर कोई कानून हाथ में लेने को उतारू रहता है। और इसी से हालात बिगड़ते हैं।
होता असल में यूं है कि जब-जब भी कोई हंगामा होता है, प्रशासन व पुलिस हरकत में आते हैं, लेकिन जल्द ही ढ़ीले भी पड़ जाते हैं। नतीजतन आज तक इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। इस मामले में अस्पताल प्रशासन का रवैया ढुलमुल रहा है। अफसोसनाक बात ये भी है कि अस्पताल में भिड़ंत को लेकर न तो कोई राजनीतिक संगठन ठीक से बोला है और न ही किसी समाजसेवी संस्था ने आवाज उठाई है। उनका तो मानो ऐसी वारदातों से कोई लेना-देना ही नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि वह पुलिस, अस्पताल प्रशासन व मेडिकल कालेज के छात्रों के साथ मीटिंग कर कोई ऐसी मजबूत व्यवस्था करे ताकि भविष्य में एकाएक ऐसी वारदात न हो। यदि कभी हो भी जाती है तो उस पर तुरंत काबू पाने के इंतजाम होने चाहिए। उत्पात मचाने वालों पर नियंत्रण के लिए जरूरी है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपियों को सजा के अंजाम तक पहुंचाया जाए। अमूमन राजनीतिक दखलंदाजी के कारण या तो समझौता हो जाता है और या फिर मेडिकल छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए नरमी बरती जाती है। इसी कारण कानून-व्यवस्था का डर कभी कायम नहीं हो पाता। यदि यह तथ्य एक बार स्थापित हो जाए कि उत्पातियों को किसी भी सूरत में नहीं बख्शा जाएगा तो ऐसी वारदातों पर अंकुश लग सकता है।
अस्पताल में इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश के लिए विशेष रूप से आपातकालीन इकाई में सीसी टीवी केमरे लगाने की बात भी आई, जहां कि मारपीट की अधिसंख्य वारदातें होती हैं, मगर उसने कभी इस पर गंभीरता नहीं दिखाई। यदि वहां सीसी टीवी केमरे लग जाएं तो न केवल मरीजों के परिजनों पर कुछ अंकुश लगेगा, डाक्टर भी एकाएक उग्र नहीं होंगे। देखते हैं कि अस्पताल प्रशासन या जिला प्रशासन इस दिशा में कोई कदम उठता है या फिर श्री शर्मा की अपील पर कोमन काज सोसायटी जैसे किसी संस्था को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। 

-तेजवानी गिरधर
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