बुधवार, 28 नवंबर 2012

कुछ और दावेदारों के नाम भी आए सामने


भारती श्रीवास्तव
जैसे ही अजमेर जिले में विधानसभा चुनाव का टिकट हासिल करने के लिए सक्रिय नेताओं से संबंधित न्यूज आइटम इस कॉलम में प्रकाशित हुआ, कुछ छुपे रुस्तम भी सामने आ गए। जाहिर सी बात है कि समीक्षा रिपोर्ट में ऐसे दावेदारों के नाम नहीं आएंगे तो उनमें कसमसाहट तो होगी ही कि कॉलमिस्ट को उनके बारे में जानकारी कैसे नहीं मिली। ऐसे में वे खुद तो कुछ नहीं बोले, मगर उनके समर्थकों ने फोन करके बताया कि वे भी चुनावी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।
जानकारी ये है कि अजमेर उत्तर से मौजूदा भाजपा पार्षद भारती श्रीवास्तव भी दावेदारी करने के मूड में बताई जा रही हैं। उनकी गिनती सर्वाधिक सक्रिय पार्षदों में होती है। चाहे नगर निगम में कोई मसला हो या फिर अपने वार्ड का मामला, वे हर कहीं नजर आ ही जाती हैं। बिंदास स्वभाव के कारण वे जल्द की शहर के लिए सुपरिचित हो गई हैं। केसरगंज इलाके में उन्हें भाभीजी के नाम भी जाना जाता है। समझा जाता है कि निगम की राजनीति करते-करते उन्हें अजमेर की राजनीति भी पल्ले पडऩे लगी है।
बीना सिंगारियां
कुछ इसी प्रकार भाजपा पार्षद श्रीमती बीना सिंगारियां भी इस दिशा में सक्रिय हैं। उन्हें अजमेर दक्षिण में अपनी जाति के पर्याप्त वोट होने का गुमान है। वे भी अमूमन सक्रिय नजर आती हैं। भाजपा के हर धरने-प्रदर्शन में बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। कदाचित उनका ये भी विचार हो कि यदि राजनीति में निपट कोरी रही अनिता भदेल पार्षद बनने के बाद सभापति और उसके बाद विधायक बन सकती हैं तो वे क्यों नहीं बन सकतीं।
जानकारी ये भी मिली है कि भाजपा की सर्वाधिक सक्रिय महिला नेत्रियों में शामिल वनिता जैमन का भी मन हो रहा है, पुष्कर से भाजपा का टिकट मांगने का।
वनिता जैमन
उनकी गिनती भाजपा में अच्छी पढ़ी-लिखी व संजीदा नेत्रियां में होती है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इन उभरती नेत्रियों को टिकट मिले न मिले, मगर दावेदारी से उनका कद तो बढ़ेगा ही। और कुछ नहीं तो जिसको भी टिकट मिलेगा, वह उनसे लाइजनिंग करके चलेगा। अभी दावेदारी करने पर भविष्य में कोई राजनीतिक पद भी हासिल हो सकता है।
पता ये भी लगा है आईएनजी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में ग्रुप सेल्स मैनेजर जनाब मुंसिफ अली भी पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे गांवों में आम लोगों की समस्याओं पर ध्यान दे रहे हैं और जरूरतमंदों की मदद भी कर रहे हैं।
मुंसिफ अली
उनकी जाति देशवाली के काफी वोट इस क्षेत्र में हैं। बताया जाता है उनके ताल्लुकात पुष्कर से ही भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार सलावत खां से हैं। समझा जाता है कि वे सलावत खां के डमी हो सकते हैं। अगर सलावत को बाहरी होने के कारण टिकट लेेने में कठिनाई आई तो वे मुंसिफ अली पर हाथ रख सकते हैं।
एक जानकारी ये भी आई है कि कांग्रेस पार्षद रश्मि हिंगोरानी का भी अजमेर उत्तर से टिकट की दावेदारी करने का मन हो सकता है। अपनी सक्रियता कायम रखने के लिए वे निगम के सभी कार्यक्रमों अतिरिक्त सिंधी समाज के हर कार्यक्रम में शरीक होती हैं।
ज्ञान सारस्वत
पिछले न्यूज आइटम में अरविंद केजरीवाल की नई पार्टी आप के बारे में कोई जिक्र न होने पर एक प्रबुद्ध पाठक ने सवाल किया उसके बारे में कुछ क्यों नहीं लिखा। असल में यह पार्टी अभी गठन के दौर से गुजर रही है। इस कारण अभी दावेदारों का ठीक-ठीक पता नहीं है। जाहिर है चुनाव नजदीक आने पर अन्य पार्टियों का टिकट न मिलने पर चुनाव लडऩे को आतुर कुछ दावेदार उभर कर आएंगे। कुछ किसी को निपटाने की खातिर ही आम आदमी पार्टी का टिकट लेने की कोशिश करेंगे। वैसे जानकारी है कि निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत पर इस नई पार्टी की नजर है। उन्हें तो केजरीवाल से मिलने तक का न्यौता मिल चुका है। उनमें वे सब गुण हैं, जो कि इस पार्टी की प्राथमिकताओं में हैं। वे साफ सुथरी छवि के हैं और पकड़ भी अच्छी है। उनके पास कार्यकर्ताओं की भी फौज है। देखने वाली बात ये होगी कि मूलत: भाजपा विधारधारा वाले इस नेता का मन डौलता है या नहीं। कोई आश्चर्य नहीं कि नए दल की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक पर भी ऐन वक्त पर पार्टी का दबाव बने कि वे चुनाव मैदान में उतरें।
बहरहाल, जैसे ही और दावेदारों की जानकारी मिलेगी, आपके साथ जरूर शेयर की जाएगी।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 24 नवंबर 2012

मालिश कर रहे हैं चुनावी टिकट के दावेदार


बेशक राजस्थान विधानसभा चुनाव में करीब एक साल बाकी है, बावजूद इसके अजमेर जिले में चुनावी टिकट की दावेदारों ने दंगल में उतरने की खातिर मालिश शुरू कर दी है। जिन को टिकट की ज्यादा ही उम्मीद है, वे तो जमीन पर भी तैयारी कर रहे हैं, जब कि तीर में तुक्का लगने की उम्मीद में कुछ कुछ दावेदारों ने अजमेर से जयपुर व दिल्ली तक तार जोडऩे की कवायद शुरू कर दी है।
आइये, सबसे पहले बात करते हैं अजमेर उत्तर सीट की। यहां से लगातार दो बार जीते पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी अपना टिकट पक्का मान कर अभी से चुनावी रण की बिसात बिछाने में व्यस्त हैं। दूसरी ओर देवनानी से नाराज भाजपा का एक बड़ा धड़ा शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी का समर्थन करता दिखाई दे रहा है। सिंधी दावेदारों में वरिष्ठ भाजपा नेता तुलसी सोनी, भामसं नेता महेन्द्र तीर्थानी, संघ पृष्ठभूमि निरंजन आदि के नाम गाहे बगाहे चर्चा में उठ रहे हैं। गैर सिंधी दावेदारों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। उनके बारे में तो चर्चा यहां तक है कि अगर पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय ही मैदान में उतर जाएंगे। यूं दावेदारी करने को तो ऐन वक्त पर पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा व पूर्णाशंकर दशोरा भी आगे आ सकते हैं।
रहा सवाल कांग्रेस का तो नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत को मुख्य दावेदार माना जाता है, मगर उभरते कांग्रेस नेता नरेश राघानी व कर्मचारी नेता हरीश हिंगोरानी भी दावेदारी के प्रति गंभीर नजर आते हैं। विशेष परिस्थिति में पूर्व वरिष्ठ आईएएस एम. डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी भी मैदान में आ सकते हैं। वे केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट के दोस्त भी हैं। गैर सिंधीवाद के नाते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने फिर से तैयारी शुरू कर दी है। वे पिछली बार कुछ खास अंतर से नहीं हारे थे, इस कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम पर दावा ठोक सकते हैं। इसी प्रकार शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता की दावेदारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से संबंधों के कारण गंभीर मानी जाती है। पिछली बार चुनाव मैदान से हटे शहर कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग फिर दावेदारी कर सकते हैं।
अजमेर दक्षिण की बात करते तो लगातार दो बार जीतीं श्रीमती अनिता भदेल का दावा सबसे मजबूत माना जाता है। उसकी वजह ये है कि एक तो वे मौजूदा विधायक हैं, दूसरा भाजपा के पास पूरे जिले में फिलहाल कोई मजबूत महिला दावेदार नजर नहीं आ रही। यूं भाजपा का एक बड़ा गुट उनके साथ है, मगर नगर निगम चुनाव में महापौर का चुनाव लड़ चुके डॉ. प्रियशील हाड़ा दावा ठोकने की तैयारी में हैं। एक सरकारी डॉक्टर की भी चर्चा है। संभव है पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा भी कोशिश करें। कांग्रेस में इस बार पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का दावा मजबूत माना जा रहा है। वे सचिन पायलट खेमे में शामिल हैं व शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता से ठीक ट्यूनिंग है। भाटी के धुर विरोधी पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल भी दावेदारी तो कर सकते हैं, मगर समझा जाता है केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्यमंत्री सचिन पायलट उनकी राह में रोड़ा अटकाएंगे। केकड़ी के पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी अंदर ही अंदर तैयारी कर रहे हैं। हर बार की तरह वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रताप यादव भी दावा करने से नहीं चूकेंगे। ऐन वक्त पर पार्षद विजय नागौरा भी दावेदारी ठोक सकते हैं।
तीर्थराज पुष्कर की अगर बात करें तो वहां मूल दावा युवा भाजपा नेता व सरेराह समूह के एमडी भंवर सिंह पलाड़ा का ही है। पिछली बार भाजपा में बगावत होने के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उनके अतिरिक्त शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत भी रुचि दिखा रहे हैं, मगर सवाल ये है कि ब्यावर में विधायक शंकर सिंह रावत का टिकट पक्का माना जाने के कारण क्या एक और रावत नेता को जिले में दूसरा टिकट दिया जाएगा? नगर निगम के पूर्व उप महापौर सोमरत्न आर्य भी इन दिनों पुष्कर के खूब चक्कर काट रहे हैं। उनके अतिरिक्त सलावत खां व खादिम सैयद इब्राहिम फखर भी दावेदारी के मूड में हैं।
कांग्रेस में मौजूदा शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ की टिकट पक्की मानी जा रही है। फिलहाल वहां कोई और दावेदार उभर कर सामने भी नहीं आया है, मगर ऐन वक्त पर अजमेर उत्तर से टिकट न मिलने पर यहीं के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती यहां का रुख कर सकते हैं। वैसे श्रीमती इंसाफ का टिकट उसी स्थिति में कटेगा, जबकि जिले में किसी और सीट पर किसी मुस्लिम को टिकट दे दिया जाए।
लंबे अरसे तक स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के कब्जे में रही नसीराबाद सीट पर भाजपा की ओर से यूं तो पूर्व मंत्री सांवर लाल जाट का ही दावा मजबूत है, हालांकि पिछले चुनाव में वे चंद वोटों से हार गए थे। वे स्थान बदल कर किशनगढ़ भी जा सकते हैं। वैसे उनका टिकट पक्का है, चाहे कहीं से लें, क्योंकि वे पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया के हनुमान माने जाते हैं। नसीराबाद में पिछली बार जाट के अचानक टपकने की वजह मन मसोस कर रह जाने वाले पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा भी इस बार दावा कर सकते हैं। कांग्रेस में मौजूदा विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर का टिकट कटने की कोई संभावना नहीं है, इस कारण किसी और की दावेदारी उभर कर सामने नहीं आई है।
पिछले चुनाव से सामान्य हुई केकड़ी सीट पर भाजपा टिकट के प्रमुख दावेदारों में पिछली बार हार चुकीं श्रीमती रिंकू कंवर व भूपेन्द्र सिंह के नाम ही सामने हैं, मगर बताते हैं कि इस बार युवा भाजपा नेता व सरेराह ग्रुप के एमडी भंवर सिंह पलाड़ा वहां से चुनाव लडऩे का विचार बना सकते हैं। उधर कांग्रेस में सरकार मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा का टिकट पक्का माना जा रहा है।
मसूदा में भाजपा की ओर से पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा व प्रहलाद शर्मा में से किसी एक को टिकट मिलने की उम्मीद है। ऐन वक्त पर महिला नेत्री डा. कमला गोखरू भी मैदान में आ सकती हैं। देहात जिला भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा फिर दावेदारी के मूड में हैं। पिछली बार वे तीसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस में संसदीय सचिव ब्रह्मदेव की दावेदारी को कहीं से भी कमजोर नहीं माना जा रहा। वे पिछली बार कांग्रेस के बागी रामचंद्र चौधरी को हरा कर जीते और कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया। इस बार चौधरी की दावेदारी का तो पता नहीं, मगर पूर्व विधायक हाजी कयूम खान जरूर पूरी ताकत लगाए हुए हैं।
मार्बल मंडी के रूप में विकसित किशनगढ़ में भाजपा से पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी इस बार फिर दावेदारी करेंगे, मगर नसीराबाद से हार चुके पूर्व मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट भी इस बार दावेदारी कर सकते हैं। कांग्रेस के मौजूदा विधायक नाथूराम सिनोदिया का टिकट पक्का ही है। वे सब गुटों को साथ ले कर चल रहे हैं।
मगरा इलाके की ब्यावर सीट पर रावत वोटों की बहुलता के चलते भाजपा के मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत का टिकट कटने की कोई संभावना नहीं है, मगर फिर भी देहात भाजपा अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा दावेदारी कर सकते हैं। कांग्रेस से पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी फिर दावेदारी कर सकते हैं। वे पिछली बार कांग्रेस के बागी हो कर निर्दलीय चुनाव लड़े थे और भाजपा के शंकर सिंह रावत से 37 हजार वोटों से हार कर निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे थे। कांग्रेस के मूल सिंह रावत तीसरे स्थान रहे। यहां सुदर्शन रावत उभरते कांग्रेसी नेता के रूप में माने जा रहे हैं। ब्यावर में वोटों का धु्रवीकरण शहर व गांव के बीच होता है।
कुल मिला कर जिले में चुनावी टिकट की दावेदारी की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं और चुनाव के नजदीक आते आते समीकरणों में बदलाव हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

प्रताप यादव को मिली चुनावी साल में रेवड़ी


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व पार्षद प्रताप यादव को राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास मंडल का सदस्य बना कर चुनावी साल में रेवड़ी दे दी गई है। अब एक साल ही तो बचा है। इसके बाद न जाने किसकी सरकार बनेगी। चुनावी सरगरमी की आहट भी सुनाई देने लगी है। दावेदार तैयारियां कर रहे हैं। इसके दो ही अर्थ हैं। या तो उनका अजमेर दक्षिण विधानसभा सीट की टिकट का दावा कमजोर होगा, या फिर कुछ करके दिखाने पर मजबूत भी हो सकता है। इसे खुद यादव की बेहतर समझते हैं।
बेशक इस नियुक्ति से उनका कद कुछ बढ़ा है। इससे वे प्रसन्न होंगे कि उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का वरदहस्त हासिल हुआ है, मगर सरकार के कार्यकाल के चार साल बीत जाने के बाद। कहते हैं कि अशोक गहलोत कार्यकर्ताओं का बड़ा ख्याल रखते हैं, मगर इस बार उन्होंने कार्यकर्ताओं को इनाम देने में काफी देर कर दी। अपने खास चहेते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को भी मात्र बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति की उपाध्यक्ष बना कर संतुष्ट करने का कोशिश की। कदाचित विधानसभा चुनाव तक सक्र रखने की खातिर। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद।
यहां उल्लेखनीय है कि यादव पिछले चार चुनावों से विधानसभा टिकट की दावेदारी करते रहे हैं। मगर उन्हें कभी मौका नहीं दिया गया। वजह ये कि अजमेर की अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित एक सीट केवल दो लॉबियों के बीच ही फंसी रही। या फिर जातीय समीकरण आड़े आया। वे लंबे समय से पार्टी की सेवा करते रहे हैं। भूतपूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष माणक चंद सोगानी के जमाने से। मगर कभी कुछ खास इनाम हासिल नहीं कर पाए। मनोनीत पार्षद जरूर बने। वे खुद व उनकी पत्नी तारादेवी यादव निर्वाचित पार्षद पद का सुख भोग चुके हैं, मगर खुद अपने दम पर। अब जब कि फिर विधानसभा चुनाव का मौका आया तो चुनावी साल में उन्हें रेवड़ी दे दी। खैर, अब इस पर निर्भर करेगा कि सीमित समय में वे प्रन्यास मंडल में क्या कुछ कर पाते हैं। वैसे वे चाहें तो अजमेर-पुष्कर धार्मिक नगरी के धर्म स्थलों की बहबूदी के लिए प्रयास कर सकते हैं। यहां करने को तो बहुत कुछ है। और कुछ नहीं तो कुछ करने का प्रहसन तो किया ही जा सकता है। देखते हैं, क्या करते हैं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

झलकारी बाई स्मारक पर भाजपा का कब्जा


दीपों की रोशनी से जगमग झलकारी बाई स्मारक। फोटो दैनिक भास्कर से साभार
वीरांगना झलकारी बाई की 182वीं जयंती के मौके पर पंचशील नगर स्थित झलकारी स्मारक जब हजारों दीपों के साथ जगमगाया गया तो एक बार यह फिर याद हो आया कि इस स्मारक का न तो आज तक विधिवत उद्घाटन हो पाया है और न ही इसकी ठीक से देखरेख हो पा रही है।
यह वाकई दुर्भाग्य की बात है कि अजमेर में कोली समाज राजनीतिक रूप से निर्णायक की भूमिका में रहता है, मगर कोली समाज की आदर्श झलकारी बाई के स्मारक को बनने के बाद भी एक दर्शनीय स्थल के रूप में स्थापित नहीं किया जा सका है। गाहेबगाहे अगर साल में एक बार याद भी किया जा रहा है तो भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल की पहल के कारण। आखिरकार इसमें श्रीमती भदेल के विधायक कोष का पैसा भी तो लगा हुआ है। हालांकि महापुरुषों के स्मारक किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं होते, मगर एक अर्थ में देखा जाए तो इस पर अनिता भदेल के नेतृत्व में भाजपाइयों का ही कब्जा है। तभी तो जयंती के मौके पर दीपों से रोशनी किए जाने की पहल झलकारी बाई समिति की प्रमुख श्रीमती अनिता भदेल ने ही की और कोली समाज के प्रमुख नेता पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व उनके समर्थक नहीं नजर आए। कार्यक्रम में भाटी के प्रतिद्वंद्वी भाई हेमंत भाटी, जो कि एक प्रमुख उद्योगपति व समाजसेवी हैं, की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कहने की जरूरत नहीं है कि भाई से प्रतिद्वंद्विता की वजह से ही वे अनिता भदेल का साथ देते रहे हैं। श्रीमती भदेल के नेतृत्व में आयोजित समारोह को चुनावी सरगरमी की शुरुआत से ठीक पहले विशेष अर्थ में देखा जा रहा है। हालांकि स्मारक परिसीमन के बाद अब अजमेर उत्तर में है, मगर कोली समाज की आदर्श होने के नाते अजमेर दक्षिण में बसे कोली समाज की तो इसमें आस्था का लाभ श्रीमती भदेल को मिल ही सकता है। यह तथ्य इस कारण भी अहम है क्योंकि इस बार समझा जा रहा है कि केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट से नजदीकी के चलते ललित भाटी इस बार टिकट के प्रमुख दावेदार हैं।
बहरहाल, प्रसंगवश आपको बता दें कि वीरांगना झलकारी बाई का जन्म झांसी के निकट भोझला गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता सिद्धू बाबा एवं माता जानकी बाई थीं। झलकारी बचपन से ही वे बहादुर थीं। जब उनकी वीरता की जानकारी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को हुई तो उन्होंने झलकारी को नारी सेना का प्रमुख बनाया। झलकारी बाई ने अनेक वीरता के कार्य किए। 1857 में अंग्रेजों से युद्ध में लोहा लेते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 21 नवंबर 2012

उत्कृष्ठ व जानी-मानी कलाकार हैं किरण सोनी गुप्ता


कम लोगों को ही पता होगा कि अजमेर की संभागीय आयुक्त श्रीमती किरण सोनी गुप्ता न केवल कुशल प्रशासक हैं, अपितु एक कलाकार के नाते कला जगत में एक जानी-मानी व उत्कृष्ठ कलाकार के रूप में स्थापित हैं। कला के प्रति उनकी गहरी रुचि का ही प्रमाण है कि इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर मेले में उनकी पहल पर पहली बार कार्तिक कला मेले का शुभारम्भ किया गया, जिसमें 25 से अधिक चित्रकार पुष्कर मेले को वाटर कलर से शीट पर उकेर रहे हैं। पुष्कर मेले में कला व फोटो को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से पहली बार यह कला मेला और फोटो कन्टेस्ट आयोजित किया गया है। इन दोनों प्रतियोगिता में 5 सर्वश्रेष्ठ और 5 श्रेष्ठ पेन्टिंग्स व फोटो को पुष्कर मेला विकास समिति की ओर से नकद राशि से सम्मानित किया जायेगा।
पेन्टिग बनाकर कार्तिक कला मेले का शुभारंभ करतीं श्रीमती गुप्ता
अपनी कला को दुनियाभर में साझा करने व कला को प्रोत्साहन देने की खातिर ही उन्होंने किरण सोनी आटर््स नामक वेबसाइट बना रखी है, जिसमें उनकी बेहतरीन कलाकृतियां मौजूद हैं।
आइये, और अधिक जानें उनके बारे में, जो कि उनकी साइट पर ही अंकित है:-
Kiran Soni Gupta is an artist, prolific writer and an activist administrator. She is an officer from the 1985 batch of the Indian Administrative Service presently posted in Rajasthan. She has worked in different assignments in Government of India, Government of Kerala and Rajasthan. She has been District Collector of two districts and Divisional Commissioner of Jaipur and Jodhpur. The National Productivity Council NPC and NABARD have recognized her with National awards for her administrative and developmental initiatives.
Harvard University selected her in 2005 for the prestigious Mason Fellowship to study for a Master’s in Public Administration at the Kennedy School of Government. She was also awarded a popular scholarship in 2004 for a Master’s in Public Policy at the Maxwell School, Syracuse.
In addition to her professional responsibilities, she has kept up her interest in painting as an artist for more than two decades. It has been a journey of exploring her soul and the environment through her varied administrative experiences. Her works can be accessed on website www.kiransoniarts.com.
Kiran was conferred with the" Artist of the Year 2009" and “Special Achiever Award 2009". She was also given the “Kala Shiromani Award" in 2008. One of her paintings on the ‘Famine’ depicting its impact on women and children in India won the National Award in 2003. In 2004 another painting ‘Matters of Heart' was commended in the All India Fine Arts Exhibition. The Times of India has brought out a trilogy of books “Beyond Strokes",” Kiran's Art Renderings" and "Women - God's Finest Creation" based on themes in her artworks..
The artist has held more than two dozen solo art shows in major cities including Boston, Los Angeles, New York, Toronto, Chicago, Mumbai, Chennai, Bangalore and Hyderabad. Her latest exhibit “Desert Symphony" at the National Museum New Delhi was inaugurated by Dr. Karan Singh in April 2011. Dr. Swaraj Paul in 2010 had presided over her exhibit at Nehru Centre London. This is her third exhibit in Mumbai which is scheduled to be held at the Nehru Centre Worli from 15th-21st May 2012. Her first show was at Taj Mumbai in 2002 and the second one at Artists' Centre Kala Ghoda in November 2011 that received an overwhelming response..
श्रीमती किरण सोनी गुप्ता की एक बेहतरीन कलाकृति
Many institutions have provided Kiran opportunities to teach ethnic Indian Art including the East-West Centre, Hawaii and Centre for Adult Education, Harvard. She was awarded the Valparaiso Fellowship, Spain this year and Centrum Residency, US in 2008. Kiran has also promoted art through events in many places, including "Kala Kumb' in Bikaner, a congregation of 150 artists from across India organized through community support.
She believes that man’s soul is the architect of history and that art is the manifestation of man’s soul & reflection of human identity. Art is unbounded and recognizes no constraints. Her artworks auctions in Cambridge for raising charity for children’s food and education have helped her in realizing her vision of art for social causes. In her words, “I prefer that my works of art begin with an intimate cerebral connection with my subject. In order to love what I paint, I must paint what I love, and get to know my subject personally. Direct observation connects me with my subject in a way that no photograph ever did. I get to wrap my head around it - while the visual elements get woven in my memory through use of my hands and eyes. I get clear about my feelings about the subject and then translate those feelings, along with my ideas, into the final artistic work- making art that connects.
श्रीमती गुप्ता की साइट देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:-
www.kiransoniarts.com

रविवार, 18 नवंबर 2012

नसीम को बदनाम करने में लगा है एक गुट?


शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर व उनके पति हाजी इंसाफ अली को विवादित करने और बदनाम करने में मुसलमानों का ही एक गुट सक्रिय नजर आ रहा है। इस प्रकार की आशंका के एकाधिक मामले सामने आ चुके हैं।
ताजा मामला इस प्रकार है। किशनगढ़ के बहुचर्चित आसिफ हत्याकांड के मामले पर शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ व उनके पति हाजी इंसाफ अली के खिलाफ पोस्टर लगाने के आरोप में गिरफ्तार पुराना हाउसिंग बोर्ड, मदनगंज निवासी मोंटी उर्फ विपेन्द्रसिंह व चमड़ाघर, खारीकुई, अजमेर निवासी आसिफ से हुई पूछताछ से अब तक स्थापित धारणा के विपरीत तथ्य उजागर हुआ है। पूछताछ से पता लगा है कि पोस्टर लगवाने में अजमेर के चंदवरदायी नगर निवासी युवक कांग्रेस लोकसभा महासचिव वाजिद खान चीता का भी हाथ था। उसने आसिफ के साथ मिल कर ये पोस्टर लगवाए। ज्ञातव्य है कि वाजिद खान चीता इन दिनों काफी चर्चित है। उस पर आरोप है कि उसने चन्द्रवरदाई नगर में रहने वाले ललित शर्मा का अपहरण  किया और फिर उस पर जानलेवा हमला कर उसे मरने के लिए सुनसान इलाके में छोड़ दिया। पुलिस ने इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया लेकिन मुख्य आरोपी वाजिद चीता घटना के काफी दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस गिरफ्त से दूर है। वाजिद की गिरफ्तारी की मांग को लेकर विश्व हिन्दू परिषद्, हिंदू जागरण और बजरंग दल आंदोलित हैं। कहा ये जा रहा है कि कांग्रेस के दबाव की वजह से वाजिद को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा। कहा ये भी गया कि श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के दबाव की वजह से वह बचा हुआ है।
ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि यदि वह नसीफ अख्तर के खिलाफ पोस्टर लगवाने में शामिल था तो आखिर यह कैसे मान लिया गया कि उसकी गिरफ्तारी न होने देने में भी नसीफ अख्तर का ही हाथ है। इस विरोधाभासी कयास से तो यही प्रतीत होता है कि वाजिद के मामले में नसीम पर लगाया गया आरोप हवाई है।
ज्ञातव्य है कि नसीम पर इससे पहले भी ऐसा ही एक हवाई आरोप लग चुका है। वो यह कि उन्होंने किशनगढ़ के आसिफ हत्याकांड के आरोपियों को शरण दी, जिसका कि खुद आसिफ के घर वालों ने ही प्रेस कांफ्रेंस करके खंडन किया। इस प्रकार एक और वारदात से भी यही इशारा हुआ था कि कुछ लोग नसीम को विवादित करने की कोशिश में लगे हुए हैं। वो यह कि जब नसीम की ओर से रोजा इफ्तार की दावत दी गई थी तो उसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  को आने देने से रोकने की खातिर कचहरी मस्जिद की दीवारों पर उनसे सवाल करते हुए पोस्टर लगाए गए थे। इसी वजह से मुख्यमंत्री आते आते भी रुक गए थे। पोस्टर लगाने वालों का अभी तक पता नहीं लग पाया है।
ऐसा प्रतीत होता है कि नसीम के खिलाफ षड्यंत्र इसलिए रचा जा रहा है ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में उनका टिकट कट जाए।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

क्यों रुकने दिया बसों को पुष्कर रोड विश्राम स्थली पर?


एक ओर जहां राज्य सरकार जायरीन की सुविधा के बड़े-बड़े दावे करती है और जिला प्रशासन भी बैठक दर बैठक कर इंतजाम पुख्ता करने की दुहाई देता है, वहीं इस बार खुद प्रशासन की घोर लापरवाही के चलते ही जायरीन को ठहराने की विकट समस्या खड़ी हो गई है। जिस पुष्कर रोड स्थित विश्राम स्थली पर पानी भरने के कारण कोई इंतजामात नहीं किए गए, वहीं पर जायरीन की सैकड़ों बसों का डेरा जमा हो गया है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि प्रशासन ने वहां आई बसों को रुकने ही क्यों दिया? बसों के आना शुरू होते ही उन्हें क्यों नहीं कायड़ विश्राम स्थली की ओर रवाना किया गया?
हुआ असल में ये है कि इस बार की बारिश की वजह ये पुष्कर रोड स्थित विश्राम स्थली में पानी भर गया था। इस कारण प्रशासन ने वहां जायरीन के लिए कोई इंतजाम नहीं किया। उसकी बजाय कायड़ स्थित विश्राम स्थली पर इंतजाम करने का निर्णय किया। हालांकि शिकायत तो ये भी है कि वहां भी पुख्ता इंतजामात नहीं हैं। प्रशासन ने पुष्कर रोड विश्राम स्थली पर इंतजामात करने का ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं किया, नतीजतन मोहर्रम माह आरंभ होते ही हर बार की तरह अधिकतर बसों ने यहां का रुख किया। जाहिर सी बात है कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, क्योंकि उन्हें नए इंतजामात का पता नहीं था, मगर स्थानीय प्रशासन को पता होने के बावजूद उसने बसों को वहां न रुकने देने की कोई व्यवस्था नहीं की। अब हाल ये है कि पूरे पुष्कर रोड पर दोनों ओर बसों का जमावड़ा हो गया है। कई बसें तो रोड से सटी कॉलोनियों में खाली स्थानों पर जमा हो गई हैं। इन बसों के जरिए आए हजारों जायरीन नहाने-धोने व पीने और खाने की कोई व्यवस्था न होने के कारण इधर-उधर भटक रहे हैं। आनासागर किनारे गंदे पानी से नहाने को मजबूर हैं। नहाने के लिए आसपास की कॉलोनियों के हैंडपंपों पर भीड़ पड़ रही है। औरतें खुले में नहाने को मजबूर हैं। भारी शोरगुल की वजह से कॉलोनी वासियों का जीना मुहाल हो गया है। जायरीन के शौच जाने के लिए व्यवस्था न होने के कारण वे आसपास की झाडिय़ों में शौच जा रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में गंदगी की भारी समस्या उत्पन्न होने वाली है। सोने की व्यवस्था न होने के कारण हालत ये हो गई कि रात में सड़क के दोनों किनारों पर बसों के इर्दगिर्द सैंकड़ों जायरीन को खुले में सोने को मजबूर होना पड़ रहा है। न तो जायरीन की सुरक्षा के कोई इंतजाम हैं और न ही यहां उनके लिए चिकित्सा, यातायात सहित अन्य व्यवस्थाएं ही की गई हैं। इस रोड की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
अफसोसनाक बात ये है कि प्रशासन ने उसकी लापरवाही के कारण उत्पन्न अव्यवस्था से निपटने की सुध तक नहीं ली है। कितनी अफसोसनाक बात है कि न्यास के अधिशाषी अभियंता अनूप टंडन कह रहे हैं कि इस विश्राम स्थली पर जायरीन ने अनाधिकृत रूप से प्रवेश किया है। ऐसे में यदि कोई हादसा यहां होता है तो उसकी जिम्मेदारी न्यास की नहीं होगी।
लब्बोलुआब, हालात बेकाबू होने पहले ही प्रशासन को चेतना होगा। या तो यहां जमा जायरीन को कायड़ विश्राम स्थली पर भेजे या फिर यहां पर अस्थाई इंतजाम तुरंत करे।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

भाजपा किसान मोर्चा में थम नहीं रहा विवाद


भाजपा किसान मोर्चा में चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। कभी किसी मुद्दे पर कभी किसी सवाल पर सवाल खड़े हो जाते हैं। हाल ही ब्यावर में रिखबचंद खटोड़ की मंडल अध्यक्ष पद पर हुई नियुक्ति को चुनौति मिल गई है। ब्यावर भाजपा मंडल ने उनकी नियुक्ति को असंवैधानिक करार दे दिया है। मंडल महामंत्री देवेंद्र कुमार शर्मा ने बाकायदा विज्ञप्ति जारी कर खटोड़ की इस नियुक्ति को भाजपा संविधान के विपरीत बताया है। शर्मा का कहना है कि भाजपा संविधान के पृष्ठ संख्या 43 के अनुसार भाजपा में मोर्चों व प्रकोष्ठों की घोषणा व नियुक्ति का अधिकार संबंधित क्षेत्र के भाजपा मंडल अध्यक्ष को होता है। ब्यावर में किसान मोर्चा के अध्यक्ष पद पर सुंदरलाल भाटी को काफी समय पहले ही नियुक्त किया जा चुका है और इस नियुक्ति की जानकारी भाजपा जिलाध्यक्ष को है। इस बारे में खटोड़ का कहना है कि उनकी नियुक्ति जिला किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष पवन अजमेरा द्वारा प्रदेशाध्यक्ष सांवरलाल जाट के निर्देशन में हुई है।
असल में यह सारा विवाद किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व उनके विरोधियों के बीच चलती खींचतान के चलते हुआ है। जाट जिले में अपना दबदबा बनाए रखना चाहते हैं। स्वाभाविक भी है। वे जिस मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, भला उसमें कम से कम अपने जिले में तो मन मुताबिक ही नियुक्ति करना चाहेंगे। मगर उनका विरोधी गुट किसी न किसी बहाने उन्हें चुनौति देता रहता है।
आपको याद होगा कि एक ओर जहां प्रो. सांवरलाल जाट ने पूर्व जिला उप प्रमुख पवन अजमेरा को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया था तो वहीं भाजपा देहात जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा ने जिला परिषद सदस्य ओम प्रकाश भडाणा को अध्यक्ष घोषित कर दिया था। हुआ यूं कि जाट कुछ असमंजस में थे, इस कारण नियुक्ति को टालते हुए अजमेरा को कार्यवाहक की जिम्मेदारी दे दी थी। उधर उनकी इस ढि़लाई का फायदा उठाते हुए दूसरे गुट ने पैनल में शामिल भडाणा को अध्यक्ष घोषित करवा दिया। ऐसा होते ही बवाल हो गया। प्रो.जाट के आपत्ति करने पर मोर्चा के प्रदेश महामंत्री नंद लाल बैरवा ने भडाणा की नियुक्ति को निरस्त कर दिया। इस सिलसिले में देहात जिला अध्यक्ष शर्मा का कहना था कि भडाणा की नियुक्ति सही है और मोर्चा के किसी पदाधिकारी को नियुक्ति निरस्त करने का कोई अधिकार नहीं है।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 14 नवंबर 2012

श्राद्ध में शुरू हुई डीडी पुरम योजना का हो गया श्राद्ध


नगर सुधार न्यास, अजमेर की वर्षों पुरानी और महत्वाकांक्षी आवासीय योजना डीडी पुरम उतनी सफल नहीं होती दिख रही, जितनी कि उम्मीद की जा रही थी। हालांकि इसके अनेक कारण हैं, मगर धार्मिक विचार वालों का मानना है कि चूं कि यह श्राद्ध के दौरान शुरू की गई, इस कारण इसको ग्रहण लग गया है। बताया तो यहां तक जाता है कि योजना के फार्म बेचने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही न्यास के कुछ समझदार लोगों ने आशंका जाहिर की थी कि श्राद्ध पक्ष को टाल कर योजना की शुरुआत की जाए, क्योंकि कोई भी शुभ काम श्राद्ध में शुरू नहीं किया जाता, मगर तत्कालीन न्यास सचिव श्रीमती पुष्पा सत्यानी की जिद के चलते हुए उनकी राय को दरकिनार कर दिया गया।
हुआ ये कि फार्म छप कर आ गए थे। उस पर उनकी बिक्री सहित लॉटरी निकाले जाने का कार्यक्रम छपा हुआ था, जिसके तहत 2 अक्टूबर को उनकी बिक्री आरंभ होने की सूचना छपी थी। फार्म में सचिव के नाते श्रीमती सत्यानी का फोटो भी छपा था, मगर इस बीच उनके तबादला आदेश आ गए। ज्ञातव्य है कि 2 अक्टूबर को आश्विन शुक्ल द्वितीया तिथि थी और तृतीया का श्राद्ध था। किसी ने सुझाव दिया कि योजना की शुरुआत श्राद्ध के बाद हो। इसके लिए सिर्फ कवर पेज को बदलने की जरूरत होती। मगर इसके लिए श्रीमती सत्यानी राजी नहीं हुईं क्योंकि अंदर के पेज पर उनका फोटो छपा हुआ था। उन्होंने बहाना बनाया कि कवर पेज बदलने पर व्यर्थ का खर्चा आएगा। इस पर तर्क दिया गया कि मात्र 50 रुपए की लागत वाला फार्म वैसे ही 500 रुपए में बेचा जाना है, सो कवर पेज बदलने पर कोई ज्यादा लागत नहीं आएगी। मगर श्रीमती सत्यानी नहीं मानीं। आखिर योजना को श्राद्ध पक्ष में शुरू कर दिया गया। अब जब कि योजना के फार्म बड़ी तादात में बिकने के बाद भी जमा होने वाले फार्मों की संख्या काफी कम है, आशंका जताने वाले उलाहना दे रहे हैं कि उन्होंने तो पहले ही कहा था कि श्राद्ध पक्ष में योजना शुरू न की जाए।
वैसे योजना को अपेक्षित सफलता न मिलने की एक वजह ये भी है कि यह ब्यावर बाईपास पर जिस स्थान पर स्थित है, वहां की बाजार दरों व न्यास की दरों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। अर्थात किसी की लॉटरी निकलती भी है तो उसे कुछ खास लाभ नहीं होगा। सबको पता है कि उसी इलाके में हाउसिंग बोर्ड की आवासीय योजना की भी दुर्गति हो चुकी है। ऐसे में इस योजना के विकसित होने की संभावना भी कम ही है। फिर भी शौक में लोगों ने जल्दबाजी में फार्म खरीद लिए, मगर जैसे ही उन्हें यह अंदेशा हुआ कि इस योजना में पैसे फंसाना बेकार है तो लोगों ने फार्म जमा नहीं करवाए। हालत ये हो गई कि कई लोग तो आवेदन पत्र ढ़ाई सौ रुपए में बेचने को तैयार थे, मगर कोई खरीददार नहीं था। वैसे कुछ जानकारों का मानना है कि योजना का अपेक्षित सफलता इस कारण भी नहीं मिली क्योंकि न्यास की प्रतिष्ठा में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है। उसकी वजह ये है कि न्यास ने पृथ्वीराज नगर जैसी महत्वाकांक्षी योजना को विकसित करने पर ही पूरा ध्यान नहीं दिया है। इसी प्रकार ज्वाला प्रसाद नगर योजना में 10-15 वर्ष बीत जाने के बाद भी नल, बिजली, पानी, व सड़क जैसी मूल-भूत सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में भला लोग यह यकीन कैसे कर लें कि वह डीडी पुरम का ठीक से विकास करवाएगी।
कुल मिला कर न्यास को डीडी पुरम की लोकप्रियता की जितनी उम्मीद थी, वह खरी नहीं उतरी है। मगर उससे क्या, न्यास ने तो फार्मों की बिक्री से ही अच्छी खासी रकम इक_ा कर ली है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 11 नवंबर 2012

लो, नरवाल ने दिखाया अपना दम


भाजयुमो के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल नरवाल ने आखिर बहाली के बाद अजमेर में अपनी अलग से मौजूदगी दर्ज करवा ही दी। उनके नेतृत्व में भाजयुमो शहर जिला के कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर दीपदान किया, जबकि इसमें शहर जिला अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह शेखावत सहित उनके गुट के कार्यकर्ता इस मौके पर मौजूद नहीं थे। साफ है कि उन्होंने अपनी अलग से मौजूदगी दिखा कर यह साबित करने की कोशिश की है कि उनमें वही पहले जैसा दमखम है। मजे की बात ये है कि अखबारों ने उनके कार्यक्रम को भाजयुमो का कार्यक्रम ही करार दिया, न कि निजी।  उनके इस ताजा कदम से साफ है कि भले ही देवेन्द्र सिंह शेखावत अध्यक्ष हों, मगर कई कार्यकर्ताओं की निष्ठा अब भी नरवाल में है।
आपको याद होगा कि जब नरवाल को बहाल किया गया था तो अपुन ने इसी कॉलम में यह सवाल उठाया था कि क्या वे बहाली होने पर चुप हो कर बैठ जाएंगे? ये सवाल उठाने की वजह ये थी कि शेखावत का विरोध करने वाले उनके प्रतिद्वंद्वी नितेश आत्रेय की नाराजगी को दूर करने के लिए उन्हें कोटा संभाग का प्रभारी बनाया गया तो यही समझा गया था कि उन्हें बोतल में बंद कर लिया गया है। मगर चंद दिन बाद ही उन्होंने जता दिया कि वे अपनी अलग से मौजूदगी को खत्म नहीं होने देंगे। डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी को लेकर उन्होंने अपने समर्थकों के साथ रैली निकाली थी। खैर, उसके बाद जब नरवाल की बहाली हुई तो यही माना गया कि संभव है उन्हें तो इसी शर्त के साथ मुख्य धारा में लाया गया होगा कि शेखावत के लिए सिरदर्द नहीं बनेंगे, मगर ताजा कार्यक्रम से यह साबित हो गया है कि वे अपना वजूद अलग से कायम रखना चाहते हैं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

खादिमों में आ रही है नई जागृति


महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के जागरूक खादिमों ने चिश्तिया तंजीम खुद्दाम ए ख्वाजा बुजुर्ग अलैह रहमत नामक संस्था का गठन कर नौजवान खादिमों को रूहानी तालीम देने की बीड़ा उठाया है। यह एक अच्छी पहल है। विशेष रूप से इस मायने में कि इससे युवा खादिमों में संस्कार विकसित होंगे। साथ ही कतिपय खादिमों के दुव्र्यवहार की वजह से बदनाम हो रही पूरी कौम को राहत मिलेगी।
समझा जाता है कि इस नई संस्था में कुछ प्रगतिशील विचारों के खादिम शामिल हुए हैं, जो कि कदीमी दरगाह की महत्ता के प्रति चिंतित हैं। संस्था ने आस्ताने में व्यवस्था कायम करने पर भी जोर दिया है। इससे जाहिर होता है कि संस्था ने इन दिनों आस्ताना शरीफ में हो रही बदइंतजामी पर गौर किया है। यह आम शिकायत है कि जो जायरीन नजराना देते हैं, वे तो सुकून से जियारत कर पाते हैं, जबकि आम जायरीन को लंबी लाइन में लग कर आस्ताना शरीफ में जाने का मौका मिलता है और वे ठीक से जियारत नहीं कर पाते। अगर संस्था ने इस पर ध्यान दिया तो स्वाभाविक है कि जो जायरीन यहां की बदइंजामी से परेशान हो कर गलत छवि अपने दिमाग में बैठाते हैं, उनकी धारणा में परिवर्तन आएगा।
जाहिर सी बात है कि खादिमों की दो रजिस्टर्ड अंजुमनों के होते हुए अगर कुछ खादिमों को नई संस्था के गठन का विचार आया है तो वे खादिमों की बिगड़ती छवि के प्रति भी चिंतित रहे होंगे। वरना ये काम तो अंजुमनें ही कर सकती हैं। दरगाह इलाके में परचे बांट कर कौम के लोगों का सहयोग लेने की कवायद का मतलब यही है कि संस्था अपना जनाधार कायम करना चाहती है। जानकारी के मुताबिक परचे में संस्था के सरगना हफ्तबारीदारान सैयद अनीस मियां चिश्ती के साथ मौलाना सैयद मेहंदी मियां, मौलाना सैयद मुसव्विर, सैयद सरवत संजरी, सैयद इफ्तेखार नियाजी, सैयद गुलफाम चिश्ती और शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती के नाम दिए गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस नई संस्था से दरगाह में बिगड़ रहे माहौल में सुधार आएगा।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

पुष्कर से दावेदारी के चक्कर में हैं इब्राहिम फखर?


इन दिनों भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहिम फखर जिस तरह से पुष्कर के मामलों में रुचि ले रहे हैं, उससे यह कयासबाजी शुरू हो गई है कि कहीं वे पुष्कर से विधानसभा चुनाव की टिकट की दावेदारी के चक्कर में तो नहीं हैं? ज्ञातव्य है कि पुष्कर मेले को लेकर प्रशासन की सुस्ती व लापरवाही को मुद्दा बना कर अजमेर जिला भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा व भाजपा पुष्कर मंडल के संयुक्त तत्त्वावधान में कलेक्ट्रेट पर धरना दिया गया, जिसके कर्ताधर्ता इब्राहिम फखर थे। कुछ दिन पहले भी उन्होंने पुष्कर मेले के लिए पर्याप्त राशि जारी करने संबंधी बयान जारी किया था। इससे भी लगा था कि उनकी पुष्कर में रुचि है।
यदि पुष्कर भाजपा मंडल की ओर से ही धरना दिया जाता तो कोई खास बात नहीं होती, मगर अल्पसंख्यक मोर्चा और वह भी इब्राहिम फखर भी इसमें रुचि लेते हैं तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक है। मुख्य रूप से अल्पसंख्यक मोर्चे की जिम्मेदारी अल्पसंख्यक मामलात में दखल देना व भाजपा में अल्पसंख्यकों की तादात बढ़ाना है। पुष्कर व पुष्कर मेले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। न ही मेले में अल्पसंख्यक आते हैं, जिनकी खातिर वे इस मुद्दे पर जोर दे। यही वजह है कि इब्राहिम फखर के वहां से दावेदारी करने की चर्चा हो रही है।
यहां बताना प्रासंगिक ही होगा कि अब तक भाजपा नेता सलावत खां टिकट की खातिर से वहां काफी दिन से रुचि लेते रहे थे। उनके प्रयासों से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भूतपूर्व सरसंघ चालक स्वर्गीय कु. सी. सुदर्शन व मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। हालांकि इस आयोजन को संघ की ओर से मुसलमानों को अपने साथ जोडऩे की कवायद माना गया, लेकिन आयोजन के लिए पुष्कर का चयन करने को सलावत खान की पुष्कर सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी के रूप में देखा गया।
जहां तक हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर से किसी मुस्लिम की दावेदारी का सवाल है, उसकी वजह इस विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों मतदाताओं की पर्याप्त संख्या है। वर्तमान में वहां से कांग्रेस की श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ विधायक हैं और राज्य की शिक्षा राज्य मंत्री हैं। इस सीट से पूर्व में भी पूर्व मंत्री स्वर्गीय रमजान खान विधायक रह चुके हैं।  रमजान खान यहां से 1985, 1990 व 1998 में चुनाव जीते थे। 1993 में उन्हें विष्णु मोदी ने और उसके बाद 2003 में डा. श्रीगोपाल बाहेती ने परास्त किया। मोदी से हारने की वजह ये रही कि उनका चुनाव मैनेजमेंट बहुत तगड़ा था। हार जीत का अंतर कुछ अधिक नहीं रहा। मोदी (34,747) ने रमजान खां (31,734) को मात्र 3 हजार 13 मतों से पराजित किया था। डा. बाहेती से रमजान इस कारण हारे कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने निर्दलीय रूप से मैदान में रह कर तकरीबन तीस हजार वोटों की सेंध मार दी थी। बाहेती (40,833) ने रमजान खां (33,735) को 7 हजार 98 मतों से पराजित किया था, जबकि पलाड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 29 हजार 630 वोट लिए थे। स्पष्ट है कि रमजान केवल पलाड़ा के मैदान में रहने के कारण हारे थे। यदि पलाड़ा नहीं होते तो रमजान को हराना कत्तई नामुमकिन था।
कुल मिला कर यह सीट भाजपा मुस्लिम प्रत्याशी के लिए काफी मुफीद रह सकती है। एक तो उसे मुस्लिमों के पूरे वोट मिलने की उम्मीद होती है, दूसरा भाजपा व हिंदू मानसिकता के वोट भी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। इसी गणित के तहत रमजान तीन बार विधायक रहे और दो बार निकटतम प्रतिद्वंद्वी। हालांकि एक फैक्टर ये भी है कि रमजान पुष्कर के लोकप्रिय नेता थे। गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी उनकी जबदस्त पकड़ थी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके मुस्लिम प्रत्याशी के लिए यह सीट उपयुक्त नहीं है, फिर भी पिछली बार श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ (42 हजार 881) ने भाजपा प्रत्याशी पलाड़ा (36 हजार 347) को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। वजह ये रही कि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत 27 हजार 612 वोट खा गए। ज्ञातव्य है कि रावत मतदाताओं की पर्याप्त संख्या होने के आधार पर ही शहर जिला भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत की रुचि पुष्कर से चुनाव लडऩे में है, मगर दिक्कत ये है कि ब्यावर की सीट रावतों के लिए काफी बेहतर है, तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिले में एक साथ दो रावतों को भाजपा टिकट देने का निर्णय करेगी?
बहरहाल, कदाचित कुछ गुंजाइश देख कर ही इब्राहिम फखर पुष्कर क्षेत्र में दखल देने की सोच रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 4 नवंबर 2012

समित शर्मा जी, इसलिए हुआ आपकी शानदार योजना का कचरा


राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डॉ. समित शर्मा ने बीते दिन जब मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना का निरीक्षण किया तो उन्हें पता लग गया कि जिस आदर्श योजना के कारण उनकी देशभर में सराहना हो रही है, धरातल पर उसकी स्थिति क्या है? कहीं डॉक्टर गायब तो कहीं दवाइयों के स्टॉक में गड़बड़ी। जेएलएन के एक काउंटर दवाई थी तो दूसरे पर नहीं होने के नाम पर मरीजों को लौटाया जा रहा था। कहीं दवाई होते हुए भी नहीं देना तो कहीं दवाइयों को बेचे जाने की शिकायतें। कल्पना की जा सकती है कि जब संभाग मुख्यालय के सबसे बड़े अस्पताल की हालत ये है, जहां कि अधिकारियों, नेताओं व मीडिया की नजर है, वहीं ये हाल है तो कस्बों व गांवों में क्या हालत होगी? हालांकि उन्होंने संबंधित दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए हैं, मगर होना जाना क्या है, सब जानते हैं।
असल में जब यह योजना लागू की गई थी तब ही इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल उठाए गए थे। बेशक योजना ऐसी है, जो कि वाकई आम जनता के लिए बेहद उपयोगी है, साथ ही सरकार को भी वाहवाही दिला सकती है, मगर ऐसा हुआ नहीं। वजह साफ है कि जो चुनौतियां थीं, उनसे निपटने पर न तो ठीक से विचार हुआ और न ही योजना को धरातल पर लागू कर ढ़ांचे में कोई सुधार किया गया। डॉ. शर्मा तो कलेक्टर तक रह चुके हैं और अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे यहां किस किस्म और प्रवृत्ति का स्टाफ है। उन्हें योजना लागू करने के साथ ही उस पर सख्त निगरानी का विशेष सेल कायम करना चाहिए था। उसी सड़े-गले सिस्टम के भरोसे ही योजना लागू कर दी गई। नतीजा ये है कि जिस अत्यंत लोककल्याणकारी योजना के कारण गहलोत सरकार को ख्याति मिलनी चाहिए थी, उसी के कारण आम आदमी की गालियां पड़ रही हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि पूरा सिस्टम ही सड़ा हुआ है या इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, मगर चूंकि सिस्टम में कई खामियां हैं और अनेक मरीजों को पूरी दवाइयां नहीं मिल पा रही, उन्हें धक्के खाने पड़ रहे हैं, इस कारण वे मुफ्त में मिल रही दवाइयों पर दुआ देने की बजाय गालियां दे रहे हैं। योजना के ठीक से क्रियान्वयन पर ध्यान न देने और सुपरविजन सख्त न होने के कारण एक भलीचंगी योजना का कचरा हो गया है। अब तो स्थिति ये है कि स्वयं समित शर्मा कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना का लाभ आमजन को तब ही मिलेगा जब डॉक्टर्स गंभीर होंगे। यानि कि स्पष्ट है कि कहीं न कहीं उन्हें डॉक्टरों की लापरवाही पकड़ में आ गई है। इस योजना की परफोरमेंस की हालत ये है कि हर जगह भ्रष्टाचार की तलाश करने वाले योजना के जनक डॉ. समित शर्मा के बारे में बिना सबूत के कुछ भी कहे जा रहे हैं। अगर योजना ठीक से लागू होती तो इस प्रकार की बातें करना आसान नहीं होता।
कुल मिला कर संतोष करने लायक बात ये है कि राजस्थान में यह योजना अलबत्ता ठीकठाक चल रही है, जबकि अन्य प्रदेशों में तो कई विवादों में पड़ जाने से सरकार को बंद करनी पड़ी थी।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 3 नवंबर 2012

रासासिंह को टिकट चाहिए तो पद छोडऩा होगा


प्रो. रासासिंह रावत
हालांकि राजस्थान भाजपा में भावी मुख्यमंत्री के रूप में श्रीमती वसुंधरा राजे को प्रोजेक्ट करने अथवा न करने की जद्दोजहद थमी नहीं है, लेकिन इस बीच चुनावी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। एक ओर जहां प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी अपने स्तर सर्वे करवा रहे हैं, वहीं वसुंधरा ने भी फीड बैक लेना शुरू कर दिया है। जयपुर में चल रही इस सरगरमी के बीच खबर आई है कि अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने पुष्कर से चुनाव लडऩे की इच्छा जताई है। इस पर उन्हें कहा गया बताया कि अगर टिकट चाहिए तो आपको पद छोडऩा होगा। वजह ये कि जो दावेदार टिकट की भागदौड़ करेगा तो अपने पद की जिम्मेदारी कर ठीक से निर्वहन नहीं कर पाएगा। यह फार्मूला अन्य शहर व देहात जिला अध्यक्षों पर भी लागू किए जाने की जानकारी मिली है।
जहां तक रासासिंह की टिकट का सवाल है, उसमें अड़चन ये है कि परिसीमन के बाद रावत बहुल बनी ब्यावर सीट पर पहले से ही भाजपा के शंकरसिंह रावत काबिज हैं। उनका टिकट कटने की संभावना कम है। ऐसे में जिले से रावतों को दो टिकट देना कुछ कठिन है। विशेष परिस्थिति में दी भी जा सकती है।
इसी बीच रावत के उत्तराधिकारी की चर्चा भी आरंभ हो गई है। यूं तो इसके लिए एक बार फिर पूर्णाशंकर दशोरा, शिवशंकर हेडा, धर्मेश जैन, धर्मेन्द्र गहलोत, हरीश झामनानी, श्रीकिशन सोनगरा आदि के नाम उभर कर आ रहे हैं, मगर मौजूदा जिला सदस्यता अभियान प्रभारी प्रो. बी. पी. सारस्वत का नाम पुन: प्रमुखता से सामने आ रहा है। पिछली बार भी जब शहर भाजपा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की खींचतान मची हुई थी तो आखिर तक प्रो. सारस्वत ही नंबर वन चल रहे थे, मगर विधायकद्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने प्रो. रावत के नाम पर सहमति दी थी। अब जब कि प्रो. रावत के पद से हटने की बात आ रही है तो फिर से प्रो. सारस्वत का नाम सामने आ गया है। इस बार उनका नाम और दमदार तरीके से सामने आया है। एक तो उस वक्त सहमति न देने वाले अब सहमति देने को आतुर दिखाई देते हैं। दूसरा सदस्यता अभियान के कुशल संचालन की वजह से उनका पाया और मजबूत हो गया है कि उनमें बेहतर संगठन क्षमता है, जिसका उपयोग पार्टी हित में किया जाना चाहिए। बेशक प्रो. सारस्वत के लिए यह अच्छी स्थिति है, मगर ऐसे में उनकी पिछले पंद्रह साल से ब्यावर से टिकट हासिल करने की इच्छा का क्या होगा? क्या वे इस इच्छा की तिलांजलि दे देंगे?
प्रो. बी. पी. सारस्वत
राजनीति के जानकार बताते हैं कि कोई भी नेता संगठन की अहम जिम्मेदारी की बजाय जनप्रतिनिधि बनना ज्यादा पसंद करता है। कारण ये है कि जनप्रतिनिधि के ठाठ कुछ अलग ही होते हैं। संगठन में तो केवल घिसाई होती है, प्रतिष्ठा भले ही हो। उसमें भी यदि सरकार अपनी पार्टी की हो तो ठीक है, विरोधी पार्टी की सरकार है तो घिसाई कुछ ज्यादा ही होती है। गांठ का पैसा भी पूरा होता है। इसके अतिरिक्त एक बार जिसमें मन में चुनावी राजनीति करने की इच्छा जागृत हो जाती है तो वह छूटती नहीं है। प्रो. सारस्वत की छूटी या नहीं, पता नहीं। एक पहलु ये भी है कि वे जिस ब्यावर सीट से चुनाव लडऩा चाह रहे थे, वह अब रावत बहुल हो गई है। वर्तमान में भी रावत विधायक ही है। जिले की अन्य सीटों की दावेदारियां पहले से ही अन्य जातियों के लिए पुख्ता मान ली जाएं तो उनके लिए मसूदा सीट ही बचती है। वह उनको कितना मुफीद रहेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। बहरहाल, अजमेर में चुनावी सरगरमी शुरू हो गई है और नित नई चर्चाएं होती रहेंगी।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

दिव्या को कद के अनुरूप पद न मिला तो छोड़ दी आरपीएससी


हालांकि राजस्थान लोक सेवा आयोग की सदस्य रहीं श्रीमती दिव्या सिंह के पति विश्वेन्द्र सिंह खंडन कर रहे हैं, मगर राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिव्या सिंह ने मौका पडऩे पर आयोग का अध्यक्ष नहीं बनाए जाने से नाराज हो कर ही इस्तीफा दे दिया। ज्ञातव्य है कि उन्होंने गत 30 अक्टूबर को अपना इस्तीफा राज्यपाल व आयोग अध्यक्ष को भिजवा दिया था और 2 नवंबर को राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने उसे स्वीकार कर कार्मिक विभाग को भिजवा दिया।
उल्लेखनीय है कि इस्तीफा देते वक्त दिव्या सिंह ने इसकी वजह निजी कारण बताई थी, मगर माना जाता है कि वे आयोग का अध्यक्ष न बनाए जाने से खफा थीं। खफा होने की वजह ये मानी जा रही है कि वे अपने आपको उनके साथ ही आयोग के सदस्य बने मौजूदा अध्यक्ष हबीब खां गौरान से कहीं अधिक योग्य व प्रभावशाली मानती हैं। राजनीतिक लिहाज से हैं भी। दोनों की नियुक्ति नवंबर, 2011 को की गई थी। तब उन्हें उम्मीद थी कि जैसे ही प्रो. बी. एल.शर्मा सेवानिवृत्त होंगे, उनको अध्यक्ष बनाया जाएगा। इसके पीछे आधार भी था। वो यह कि उन्हें वसुंधरा राजे के कार्यकाल में जाते-जाते आयोग के दो टुकड़े करते हुए जिस राजस्थान अधीनस्थ कर्मचारी सेवा बोर्ड का गठन किया था, उसका उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। अर्थात वे एक बार आयोग अध्यक्ष के समतुल्य पद बैठ चुकी थीं। बाद में अशोक गहलोत सरकार ने उस बोर्ड को भंग कर दिया, मगर उन्हें आयोग में सदस्य के रूप में नियुक्ति दी गई। उन्हें ख्याल था कि अगस्त, 2012 में प्रो. बी. एल. शर्मा सेवानिवृत्त होंगे, तब वे आयोग अध्यक्ष पद के लिए कोशिश करेंगी। उन्होंने कोशिश की भी बताई, मगर गहलोत सरकार ने जातीय समीकरण के तहत गोरान को प्राथमिकता दे दी, जो कि दिव्या सिंह को नागवार गुजरी। स्वाभाविक सी बात है कि जो शख्स एक बार आयोग के अध्यक्ष के बराबर का टैग हासिल कर चुका हो, भला वह उससे वंचित होने को कैसे स्वीकार कर सकता है। वह भी अपने साथ नियुक्त हुए सदस्य गोरान को प्राथमिकता देते हुए। बताया जाता है कि नाराजगी की वजह से इस्तीफा देने वाली वे दूसरी सदस्य हैं। इससे पहले आयोग सदस्य नाथूलाल जैन की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए जब उनके जूनियर याकूब खान को अध्यक्ष बनाया गया तो जैन ने तत्काल ही आयोग की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
असल में उनकी रुचि शुरू से आयोग का अध्यक्ष बनने में थी। इस कारण सदस्य रहते हुए वे आयोग में कम ही आईं। जानकारी के मुताबिक वे एक साल के कार्यकाल में मात्र तीन बार ही आयोग आईं। पहली बार वे 30 नवंबर 2011 को सदस्य का कार्यग्रहण करने के लिए आयोग पहुंचीं। इसके बाद 31 जनवरी 2012 को आयोग सदस्य एच एल मीणा की सेवानिवृत्ति पर विदाई समारोह में शामिल हुईं और एक बार आयोग में साक्षात्कार बोर्ड की बैठक के लिए आयोग पहुंचीं।
बहरहाल, उनका इस्तीफा मंजूर किया जा चुका है और उनके पति विश्वेन्द्र सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने अध्यक्ष न बनाए जाने की वजह से सदस्य पद नहीं छोड़ा है, मगर राजनीति के जानकार यही मान रहे हैं कि यह उनका कोई नया राजनीतिक समीकरण है। आगामी चुनाव के मद्देनजर वे भरतपुर सहित पूर्वी राजस्थान में नई रणनीति बना रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

राजस्थान राजस्व मंडल अजमेर की शान


अजमेर में स्थित राजस्थान राजस्व मंडल 1 नवंबर को अपना स्थापना दिवस मना रहा है। यह राजस्थान में अजमेर की अहमियत का अहसास कराता है। आइये, जानें मंडल के बारे में:-
आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना एक नवंबर 1949 को की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसके प्रथम अध्यक्ष बृजचंद शर्मा थे। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया।
सन 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उदघाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय स्व. श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया। सन 1966 में अध्यक्ष के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बदल कर कम से कम तीन और अधिकतम सात निर्धारित की गई। कुछ ही साल पहले इसकी सदस्य संख्या की सीमा 15 कर दी गई। इसमें सुपर टाइम आईएएस अधिकारियों के अतिरिक्त राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ अभिभाषक और आरएएस से पदोन्नत वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को पदस्थापित किया जाता है।
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि अजमेर में सशक्त राजनीतिक नेतृत्व न होने के कारण कई बार इसके विखंडन की स्थितियां आईं, मगर वकीलों, बद्धिजीवियों, राजनीति नेताओं व समाज के अन्य तबकों के एक जुट हो कर विरोध करने के कारण टल गया।
विखंडन का नाम लिए बिना की गई थी विखंडन की तैयारी
बीते साल संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल का सदस्य बना कर उसका विखंडन करने का प्रस्ताव था। इसके विरोध में एक ओर जहां अजमेर आंदोलित हुआ, वहीं राज्य सरकार इसे हल्के में ले रही थी और स्थिति स्पष्ट करने की बजाय उलझाए जा रही थी।
वस्तुत: विवाद शुरू ही इस बात से हुआ कि राजस्व महकमे के शासन उप सचिव ने संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल के सदस्य की शक्तियां प्रदत्त करने संबंधी पत्र मंडल के निबंधक को लिखा। पत्र की भाषा से ही स्पष्ट था कि सरकार मंडल को संभाग स्तर पर बांटने का निर्णय कर चुकी थी, बस उसे विखंडन का नाम देने से बच रही थी। शासन उपसचिव के पत्र से ही स्पष्ट था कि गत 1 अप्रैल 2011 को अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में हुई बैठक में ही निर्णय कर यह निर्देश जारी कर दिए थे कि संभागीय आयुक्तों को मंडल सदस्य के अधिकार दे दिए जाएं। तभी तो शासन उपसचिव ने निबंधक को साफ तौर निर्णय की नोट शीट भेज कर आवश्यक कार्यवाही करके सूचना तुरंत राजस्व विभाग को देने के लिए कहा था। इस पर वकीलों ने आंदोलन शुरू कर दिया, दूसरी ओर राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी यही कहते रहे कि मंडल के विखंडन जैसा कोई प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन नहीं है। ऐसे में सवाल ये उठाा था कि क्या राजस्व मंत्री की जानकारी में लाए बिना ही अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में निर्णय कर लिया गया? उससे भी बड़ा सवाल ये कि अगर अधिकारियों के स्तर पर निर्णय ले भी लिया था तो उसे कार्यान्वित किए जाने के लिए उनके अधीन विभाग के शासन उप सचिव ने राजस्व मंत्री को जानकारी दिए बिना ही मंडल के निबंधक को पत्र कैसे लिख दिया? माजरा साफ था कि या तो वाकई मंत्री महोदय को जानकारी दिए बिना ही पत्र व्यवहार चल रहा था, या फिर वे झूठ बोल रहे थे।
इस बाबत अजमेर फोरम ने भी सरकार को पत्र लिख कर कहा था कि बड़े हित के लिये किसी छोटे हित का बलिदान अवांछित नहीं माना जाता, किन्तु किसी छोटे को अकारण इसलिये भी बलि की वेदी पर नहीं चढ़ाया जा सकता कि वह छोटा है। राजस्व मंडल के अधिकार संभागीय मुख्यालयों को हस्तान्तरित करने का निर्णय भले ही कार्य विकेन्द्रीकरण के तर्क पर टिकाया गया हो मगर यह सच भी भुलाये जाने योग्य नहीं है कि अजमेर में राजस्व मंडल की स्थापना का निर्णय भी इस तर्क के आधार पर ही लिया गया था कि राज्य के अन्य शहर भी राजधानी के साथ साथ अपने किसी महत्व के आधार पर विकास की दौड़ में आगे बढ़ सकें। सिर्फ इतना ही नहीं याद रखने लायक यह ऐतिहासिक तथ्य भी है कि सन 1958 में पी.सत्यनारायण राव, विश्वनाथन एवं गुहा कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य की राजधानी जयपुर को बनाया जाता है तो लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्व मंडल सरीखे महत्वपूर्ण दफ्तर अजमेर में स्थापित किये जायें। ऐसी स्थिति में राजस्व मंडल के अधिकार यदि अनावश्यक रूप से विखंडित किये जाते हैं तो इसे एक आधारभूत समझौते की अवहेलना ही माना जाएगा।
अजमेर फोरम राजस्व मंडल के मुद्दे पर अजमेर के वकीलों की मंाग का समर्थन करते हुए अनुरोध करता है कि राजस्व मंडल की गरिमा व अजमेर की अस्मिता के साथ छेड़छाड न की जाए।
बहरहाल, आखिरकार सरकार ने दबाव बढ़ता देख मामला दफ्तर दाखिल कर दिया और राजस्व मंडल आज अपने मूल रूप में अजमेर की शान बना हुआ है।
-तेजवानी गिरधर