अजमेर जिले में सिरेमिक उद्योग को व्यापक योनजा बना कर स्थापित किया जा सकता है, मगर न तो प्रशासन को फिक्र है और न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति ही कहीं नजर आती है। इसका शहर कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष व पत्रकार डॉ. सुरेश गर्ग को बड़ा भारी मलाल है। उनका कहना है कि राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनने के लिए तो आनन्द शर्मा जीभ लपलपा कर बन गये, मगर जब उनसे अजमेर में सिरेमिक उद्योग लगाने हेतु पूरी तकनीकी जानकारी देते हुए आग्रह किया गया तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। उन्हें दु:ख है कि राजस्थान से राज्यसभा में जाने के बाद भी उन्होंने राजस्थान के हित की चिंता नहीं है। यह कांग्रेस सरकार व संगठन दोनों के लिए शर्मनाक है, अजमेर के लिए तो अफसोसनाक है ही।
डॉ. गर्ग का कहना है कि अजमेर में कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता है, जमीन व पानी की भी खास कमी नहीं है, श्रमशक्ति का भी कोई अभाव नहीं है, रेलवे व सड़क मार्ग से पविहन के अच्छे साधन भी हैं, मगर अजमेर जिले की उपेक्षा व अनदेखी कर गिलोट क्षेत्र में सिरेमिक जोन की स्थापना की जा रही है। इसे हमारे नेताओं की कमजोरी कहें या इच्छाशक्ति की कमी, जिससे एक बड़ी औद्योगिक सौगात हमारे यहां संभव होते हुए भी दूसरों को परोसी जा रही है। यह अजमेर का दुर्भाग्य ही है कि यहां बाहरी लोग आकर अपना साम्राज्य जमाते हैं। धींगा-मस्ती करके चले जाते हैं और अजमेरवासी रोते रह जाते हैं। क्या हमारे जनप्रतिनिधि नहीं जानते कि सिरेमिक या ग्लास उद्योग में कच्चे माल के रूप में काम आने वाल खनिज कोट्स, फेल्सपार, वैलोस्नाइट, कैल्साइट आदि का 80 प्रतिशत उत्पादन राजस्थान में होता है और हमारा राज्य ही इस उद्योग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। खनिज विभाग के आंकड़ों के अनुसार अजमेर और भीलवाड़ा जिले में देश के कोट्स, फेल्सपार एवं वैलोस्नाइट का 80 से 90 प्रतिशत उत्पादन होता है। ये जिले ही इस उद्योग के लिए दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश के सिरेमिक उद्योग को कच्चे माल की पूर्ति करते हैं। अजमेर जिले के ब्यावर व किशनगढ़ में कोट्स एवं फेल्सपार की 350 से ज्यादा मिनरल ग्राइंडिंग इकाइयां हैं। नेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि चन्द भूमाफियों के इर्द-गिर्द रहने से कोई सेलिब्रेटी नहीं बन जाता है। अजमेर की जनता एक ही सवाल पूछती है, जब हमारे जिले में इतना कुछ है, तो फिर सवाल यही उठता है कि सिरेमिक जोन यहां स्थापित क्यों नहीं किया जा सकता है? यदि सिरेमिक जोन यहां स्थापित कर दिया जाए तो वर्षों से पिछड़े अजमेर जिले को औद्योगिक प्रगति का अवसर मिल सकता है। इससे न केवल जिले का विकास होगा, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय नक्शे पर अजमेर का नाम होगा लेकिन यह सब तब संभव है, जब चमचागिरी करने वालों से दूर रह कर अजमेर की उन्नति की ओर ध्यान दिया।
डॉ. गर्ग का कहना है कि अजमेर में कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता है, जमीन व पानी की भी खास कमी नहीं है, श्रमशक्ति का भी कोई अभाव नहीं है, रेलवे व सड़क मार्ग से पविहन के अच्छे साधन भी हैं, मगर अजमेर जिले की उपेक्षा व अनदेखी कर गिलोट क्षेत्र में सिरेमिक जोन की स्थापना की जा रही है। इसे हमारे नेताओं की कमजोरी कहें या इच्छाशक्ति की कमी, जिससे एक बड़ी औद्योगिक सौगात हमारे यहां संभव होते हुए भी दूसरों को परोसी जा रही है। यह अजमेर का दुर्भाग्य ही है कि यहां बाहरी लोग आकर अपना साम्राज्य जमाते हैं। धींगा-मस्ती करके चले जाते हैं और अजमेरवासी रोते रह जाते हैं। क्या हमारे जनप्रतिनिधि नहीं जानते कि सिरेमिक या ग्लास उद्योग में कच्चे माल के रूप में काम आने वाल खनिज कोट्स, फेल्सपार, वैलोस्नाइट, कैल्साइट आदि का 80 प्रतिशत उत्पादन राजस्थान में होता है और हमारा राज्य ही इस उद्योग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। खनिज विभाग के आंकड़ों के अनुसार अजमेर और भीलवाड़ा जिले में देश के कोट्स, फेल्सपार एवं वैलोस्नाइट का 80 से 90 प्रतिशत उत्पादन होता है। ये जिले ही इस उद्योग के लिए दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश के सिरेमिक उद्योग को कच्चे माल की पूर्ति करते हैं। अजमेर जिले के ब्यावर व किशनगढ़ में कोट्स एवं फेल्सपार की 350 से ज्यादा मिनरल ग्राइंडिंग इकाइयां हैं। नेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि चन्द भूमाफियों के इर्द-गिर्द रहने से कोई सेलिब्रेटी नहीं बन जाता है। अजमेर की जनता एक ही सवाल पूछती है, जब हमारे जिले में इतना कुछ है, तो फिर सवाल यही उठता है कि सिरेमिक जोन यहां स्थापित क्यों नहीं किया जा सकता है? यदि सिरेमिक जोन यहां स्थापित कर दिया जाए तो वर्षों से पिछड़े अजमेर जिले को औद्योगिक प्रगति का अवसर मिल सकता है। इससे न केवल जिले का विकास होगा, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय नक्शे पर अजमेर का नाम होगा लेकिन यह सब तब संभव है, जब चमचागिरी करने वालों से दूर रह कर अजमेर की उन्नति की ओर ध्यान दिया।