मंगलवार, 26 अगस्त 2014

आखिरी विकल्प के रूप में मिला सरिता को टिकट

नसीराबाद विधानसभा उप चुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व जिला प्रमुख सरिता गेना को आखिरी विकल्प के रूप में टिकट दिया है। इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि उन्होंने टिकट के लिए कोई खास मशक्कत नहीं की। मात्र और मात्र जाट व महिला होने के नाते वे टिकट लेने में कामयाब हो गई।
दरअसल भाजपा की यह मजबूरी थी कि वह यहां से किसी जाट को प्रत्याशी बनाती। हालांकि पूर्व में लंबे समय तक, अर्थात लगातार तीन बार रावत प्रत्याशी के रूप में मदन सिंह को स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के सामने खड़ा किया जाता रहा। ये बात दीगर है कि वे एक बार भी जीत नहीं पाए, मगर टक्कर कांटे की ही होती थी। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर महज 71 वोटों से हार गए। यानि की कांटे की टक्कर रही। दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी। वे जब लोकसभा चुनाव लड़ कर सांसद बन गए तो यह सीट खाली हो गई और उनकी कोशिश तो यही थी कि उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा को टिकट मिल जाए, मगर मौजूदा सांसदों के रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिए जाने के पार्टी के फैसले की वजह से ऐसा हो नहीं पाया। हालांकि रावत समाज की इच्छा थी कि इस बार फिर उन्हें मौका दिया जाए, मगर जिले में पहले से ही दो रावत विधायक होने के कारण यह संभव नहीं था। भाजपा हाई कमान पहले ही तय कर चुका था कि किसी जाट को ही टिकट दिया जाएगा। एक मात्र कारण ये था कि पूर्व मंत्री दिगम्बर सिंह का नाम भी चला, मगर स्थानीयतावाद के आगे पार्टी को झुकना पड़ा। वैश्य समाज से पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व ब्राह्मण समाज से देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत ने भी टिकट मांगा, मगर उस पर गौर नहीं किया गया।
जाट समाज को टिकट देने की वजह स्पष्ट है कि प्रो. जाट के सीट खाली करने के बाद जाट समाज यह बर्दाश्त कर सकता था कि किसी और समाज को टिकट दिया जाता। अगर गलती से भाजपा कोई नया प्रयोग करती तो उसे जाट समाज झटका भी दे सकता था। खैर, अब सवाल आया कि किस जाट नेता को टिकट दिया जाए। पक्के कांग्रेसी रहे अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने लोकसभा चुनाव में खुल कर भाजपा का साथ दिया था, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी इनाम देगी, मगर बताया जाता है कि संघ ने उनका विरोध कर दिया। ऐसे में आखिरी विकल्प के रूप में सरिता गेना का नाम तय किया गया, जो कि पूर्व में जिला प्रमुख रह चुकी हैं। एक तरह से देखा जाए तो सरिता के लिए यह एक लाटरी के टिकट की तरह है। अब ये लॉटरी खुलती है या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा।
अजमेर जिले में जिला प्रमुख बनने के बाद विधानसभा का टिकट पाने वाली सरिता गैना दूसरी महिला बन गई हैं। इससे पहले पूर्व जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा को मसूदा से भाजपा ने टिकट दिया और वह विधायक बनी। उन्होंने उस धारणा को भंग कर दिया कि जो नेता एक बार जिला प्रमुख बन गया, उसके राजनीतिक भविष्य पर पूर्व विराम लग जाता है। बहरहाल, भाजपा ने सरिता पर दाव खेल दिया है, अब देखना ये है कि वह कितना कामयाब होता है।
-तेजवानी गिरधर