शनिवार, 23 अगस्त 2014

बाबा के उत्तराधिकार व सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा रामनारायण गुर्जर को

हालांकि नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में भाजपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही यह कहा जा सकेगा कि भिड़ंत कैसी रहेगी, मगर कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को पुड्डुचेरी के पूर्व उपराज्यपाल बाबा गोविंद सिंह गुर्जर की विरासत और खुद के सहज-सरल स्वभाव का लाभ जरूर मिलेगा। बाबा के दो अन्य उत्तराधिकारियों पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर व सुनिल गुर्जर की तुलना में वे बेशक बेहतर उम्मीदवार माने जा रहे हैं। कुद शिकायतों के कारण पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से ट्यूनिंग गड़बड़ हो चुकी थी, कदाचित इस कारण वे टिकट से वंचित रह गए, जबकि इस प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव के लिहाज से सुनिल गुर्जर की अनुभवहीनता टिकट में आड़े आ गई।
जहां तक रामनारायण गुर्जर का सवाल है, उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है, साथ ही कांग्रेस संगठन के अतिरिक्त श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान के रूप में काम करने का भी अनुभव है। इससे भी बड़ी बात ये है कि उनकी छवि साफ सुथरी है और सहज-सरल स्वभाव के कारण लोकप्रिय हैं। जो कुछ भी हो, मगर कांग्रेस की ओर से यह सीट बाबा की विरासत के रूप में ही काउंट हो गई है। ज्ञातव्य है कि बाबा गोविंद सिंह गुर्जर इस सीट पर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार विजयी रहे। उनके निधन के बाद 2008 में महेन्द्र सिंह गुर्जर विजयी हुए। उन्होंने पूर्व मंत्री सांवरलाल जाट को मामूली अंतर से हराया। इसके 2013 के चुनाव में मोदी लहर के चलते जाट ने यह सीट हथिया ली।
यहां आपको बता दे कि हालांकि कुछ और गुर्जर नेताओं ने भी दावेदारी की थी, मगर उनका कद इतना बड़ा नहीं था कि उन पर दाव खेला जा सके। चाहते तो स्वयं सचिन पायलट या उनकी माताश्री रमा पायलट भी चुनाव मैदान में उतर सकती थीं, मगर उन्होंने अपने आप को रोक लिया।
आइये, जरा रामनारायण गुर्जर के बारे में भी कुछ जान लें:-
नसीराबाद इलाके में बाऊजी के नाम से सुपरिचित रामनारायण गुर्जर का जन्म 15 अगस्त 1946 को नसीराबाद के सुत्तरखाना मोहल्ले में श्री गोगराज गुर्जर के आंगन में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा अर्जित करने के बाद वे ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर रहे। वे 1988 में नसीराबाद नगर कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1992 तथा 2000 में जिला देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे। वे 1995 तथा 2005 में जिला परिषद सदस्य रहे। इसके 2010 में श्रीनगर पंचायत समिति सदस्य बने और 10 फरवरी 2010 को कांग्रेस के 8 और भाजपा के 11 सदस्य होने के बावजूद श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान बन कर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
-तेजवानी गिरधर