सोमवार, 29 अगस्त 2016

मारोठिया की जीत हेमंत भाटी के लिए एक बड़ी उपलब्धि

छात्र संघ चुनाव में एनएसयूआई को मिली सफलता से कांग्रेस को तो लाभ मिला है, वह जग जाहिर है, मगर विशेष रूप से पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में अध्यक्ष पद पर हनीश मारोठिया की जीत से अजमेर दक्षिण के प्रबल संभावी प्रत्याशी हेमंत भाटी को बंपर लाभ होगा।
वस्तुत: मारोठिया माली समाज के जाने माने व्यवसायी परिवार से हैं और यह भी सब जानते हैं कि माली समाज आम तौर पर भाजपा की ओर रुझान रखता है। इसी का फायदा पिछले तीन चुनाव में महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल को मिलता रहा है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की वजह से या पारंपरिक रूप से माली समाज के कुछ लोग कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, मगर अधिसंख्य माली भाजपा के खाते में ही गिने जाते हैं। सच तो ये है कि भाजपा के लिए माली समाज एक तगड़े वोट बैंक की तरह रहा है। श्रीमती भदेल को टिकट भले ही कोली वोट बैंक की वजह से मिलता है, मगर उनकी जीत होती माली व सिंधी वोटों से है।
जैसी कि जानकारी है, मारोठिया की उम्मीदवारी से लेकर जीतने तक माली समाज के प्रभावशाली लोगों का समूह हेमंत भाटी के संपर्क में रहा। जाहिर है उन्होंने टिकट दिलवाने से लेकर समर्थन की एवज में आगे चल कर समर्थन देने का वायदा किया ही होगा। इस लिहाज से भाटी ने चुनाव से काफी पहले ही भाजपा के वोट बैंक में सेंध मार दी है।  राजनीतिक क्षेत्रों में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। हनीश मारोठिया के जीतने से कांग्रेस का जनाधार बढऩे का सामान्य संकेत तो मिलता ही है, मगर उससे भी अधिक इस घटना का सीधा सीधा लाभ कांग्रेस के प्रबल संभावी उम्मीदवार हेमंत भाटी को ही मिलेगा।
-तेजवानी गिरधर
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बढ़ा विजय जैन का कद, मगर पड़ा रंग में भंग

विजय जैन
छात्र संघ चुनाव में एनएसयूआई को मिली सफलता से शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन का कद बढ़ा है, मगर साथ ही परिणाम वाले दिन पत्थरबाजी व लाठीचार्ज के चलते कांग्रेस में जो खुशी की लहर थी, उसके रंग में भंग पड़ गया है।
यूं तो आमतौर पर एनएसयूआई अपने स्तर पर ही चुनावी रणनीति बनाती रही है और कांग्रेस संगठन से फौरी मार्गदर्शन ही लेती है, मगर इस बार शहर कांग्रेस की भी सक्रियता के कारण जीत का श्रेय विजय जैन के खाते में भी गया है। चुनाव को लेकर कांग्रेस कितनी उत्साहित थी, इसका अनुमान इसी बात से लग जाता है कि लाठीचार्ज में कई कांग्रेसी नेता भी चोटिल हुए। स्वाभाविक सी बात है कि वे घटनास्थल पर मौजूद थे। हालांकि जैन जब अध्यक्ष बने थे तो उन्हें अपेक्षाकृत कम अनुभव का मान कर यह आशंका जताई जा रही थी कि क्या वे दिग्गज नेताओं की गुटबाजी के रहते इस बेड़े को चला भी पाएंगे या नहीं, मगर लगातार धरना-प्रदर्शन और आयोजनों में लगभग सभी बड़े नेताओं की भागीदारी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं की शिरकत से संगठन को गति मिली। जाहिर तौर पर इससे जैन को ठीक से स्थापित होने में सुविधा रही। एनएसयूआई के चुनाव में कामयाब होने से जैन का कद और बढ़ा है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि उनका असली वजूद शहर जिला कार्यकारिणी घोषित होने के बाद ही पता लग पाएगा कि वे कितनी मजबूती से संगठन को चला पाते हैं, मगर फिलवक्त तो यही लग रहा है कि वे सौभाग्यशाली हैं। एनएसयूआई की सफलता का जश्न और भी रंगीन होता, मगर परिणाम वाले दिन किसी शरारती तत्व के पत्थरबाजी करने और पुलिस ने अतिरिक्त जोश दिखाते हुए लाठीचार्ज करने से रंग में भंग पड़ गया।  कांग्रेस का यह आरोप कि लाठीचार्ज भाजपा नेताओं व सरकार की शह पर हुआ, अपनी जगह है, मगर निष्पक्ष राय रखने वालों का भी मानना है कि पुलिस ने अतिरिक्त बहादुरी इसी वजह से दिखाई कि उसे पता था कि सामने कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं। अगर दो-चार के हाथ पैर टूटे तो भी कुछ खास बात नहीं है। कांग्रेस ने ज्यादा ही विरोध जताया तो उसके कार्यकर्ताओं पर मुकदमे दर्ज करवा कर उन्हें दबा दिया जाएगा। लाठीचार्ज के बाद जिस प्रकार सोशल मीडिया पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं गुस्सा फूटा उससे लग रहा था विरोध प्रदर्शन तगड़ा होगा, मगर दूसरे ही दिन जन्माष्ठमी होने के कारण कांग्रेस ज्ञापन दे कर औपचारिक विरोध ही कर पाई। इसका दूसरा पक्ष ये भी है कि अगर कांग्रेस ज्यादा उग्र होती तो भी पुलिस व प्रशासन दमनात्मक कदम उठा सकते थे।
कुल मिला कर जीत की खुशी काफूर हो गई है। मगर दूसरी और ये भी तय है कि इन चुनावों ने भाजपा का जनाधार खिसकने के संकेत दे दिए हैं।  और यही वजह है कि यह आम धारणा बनने लगी है कि आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बड़ी चुनौती ले कर आएंगे। छात्रों अर्थात युवाओं का इस प्रकार का प्रदर्शन जाहिर करता है कि भाजपा की एबीवीपी के माध्यम से युवाओं पर जो पकड़ होनी चाहिए थी, वह कमजोर हुई है। इसको भाजपा ने कितनी गंभीरता से लिया, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के नेता कह रहे हैं कि इस चुनाव में हार को जनाधार खिसकने से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 23 अगस्त 2016

प्रकाश जेठरा जाएंगे अब राजनीति में?

कानाफूसी है कि कृषि विभाग से आगामी 31 अगस्त को सेवानिवृत्त होने जा रहे प्रकाश जेठरा अब राजनीतिक क्षेत्र में काम करना चाहते हैं। इस आशय की मंशा वे अपने कुछ मित्रों के समक्ष जाहिर भी कर चुके हैं।
ज्ञातव्य है कि जेठरा सरकारी नौकरी में रहते हुए सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। वे अजमेर सिंधी सेंट्रल महासमिति के प्रचार सचिव पद पर काफी समय से हैं और चोरसियावास रोड स्थित झूलेलाल मंदिर कमेटी के प्रमुख कर्ताधर्ता हैं। अन्य कई संस्थाओं व मंदिर-दरबारों से भी जुड़े हुए हैं और कई संस्थाओं में मीडिया का काम भी देखते हैं। नौकरी के दौरान वे स्थानीय राजनीतिक गुटबाजी का शिकार भी हुए हैं, जिसके चलते उनका तबादला हुआ, मगर उन्होंने दूसरे गुट का सहारा लेकर तबादला रद्द करवा दिया। कदाचित इसी वजह से सेवानिवृत्ति के बाद स्वयं राजनीति में आना चाहते हैं। उनकी पकड़ विशेष रूप से वैशाली नगर में है। इसके अतिरिक्त वे सिंधी समाज का जाना पहचाना चेहरा हैं। समझा जाता है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से भाजपा टिकट के लिए दावेदारी का मानस बना रहे हैं। वैसे जानकारी ये भी है कि वे बहुजन समाज पार्टी के संपर्क में भी हैं। ऐन चुनाव के वक्त क्या करेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।

शनिवार, 13 अगस्त 2016

अपने गढ़ में ही है भाजपा की हालत खस्ता

जिले के आठ में से सात विधानसभा क्षेत्रों, लोकसभा सीट, जिला परिषद व नगर निगम पर काबिज भाजपा यूं तो बहुत मजबूत दिखाई देती है, है भी, मगर  मात्र ढ़ाई साल में ही उसका ग्राफ जिस तरह से गिरने लगा है, उससे प्रतीत होता है कि यहां भाजपा की जो भी पकड़ नजर आती है, वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की लोकप्रियता के कारण बनी, जिसे कि स्थानीय नेता संभाल नहीं पा रहे।
वस्तुत: इन नेताओं में आपसी तालमेल का कितना अभाव है, इसकी बानगी उस वक्त नजर आ गई, जब केन्द्र व राज्य में भाजपा का झंडा बुलंद होने के बाद भी नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में खुद प्रो. सांवरलाल जाट अपनी इस सीट से खड़ी हुई सरिता गेना को नहीं बचा पाए। ज्ञातव्य है कि वे यहां से विधायक और प्रदेश के केबीनेट मंत्री थे। उन्होंने ने बड़ी अनिच्छा के बाद इस सीट का मोह छोड़ लोकसभा का चुनाव लड़ा था। एक सांसद का अपने ही इलाके में पार्टी की साख न बचा पाना गंभीर संकेत था। चटकारे लेने वाले तो यहां तक कहते हैं कि खुद उनकी रुचि ही सरिता को जिताने में नहीं थी, क्योंकि अगर वे जीत जातीं तो इस सीट पर उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा का भविष्य समाप्त हो जाता। समझा जा सकता है कि स्वार्थ के आगे पार्टी हित की क्या अहमियत है? वरना ऐसा हो नहीं सकता था कि उनके खुद के इलाके में ही पार्टी की भद पिट जाती। उनका कद पार्टी से कितना ऊंचा है, इसकी बानगी हाल ही पार्टी की फीडबैक बैठक के दौरान उनके समर्थकों द्वारा उन्हें मंत्रीमंडल से हटाए जाने के विरोध में जम कर हंगामा करने के दौरान मिली थी। अगर ये कहा जाए कि उनकी मथुरा तीन लोक से न्यारी है तो गलत नहीं होगा। वे जो कुछ हैं, अपने दम पर हैं, संगठन से उनका कोई खास वास्ता नहीं। यहां यह उल्लेख करना लाजिमी है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को वे फूटी आंख नहीं सुहाते, फिर भी वे वसुंधरा राजे की पसंद होने के कारण जिले व राज्य दिग्गज नेता हैं।
अब चर्चा करते हैं लगातार तीन बार दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा को जीत दिलाने वाले अजमेर शहर की, जिसमें पिछले दिनों हुए नगर निगम चुनाव ने पार्टी नेताओं की फूट को चौराहे पर ला खड़ा किया था। पार्टी एकजुट हो कर नहीं लड़ पाई। संगठन मूक दर्शक सा खड़ा था। अजमेर दक्षिण के वार्ड श्रीमती अनिता भदेल ने संभाले तो उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी ने। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पूरे शहर के चुनाव न हो कर दो हिस्सों में बंटे इलाकों के चुनाव हो रहे थे। इतना ही नहीं, जिसका जितना बस चल रहा था, उसने उतना ही दूसरे के इलाके में भीतरघात की। नतीजा सामने आ गया। भाजपा के इस कथित गढ़ में बोर्ड बनाना ही कठिन हो गया। मेयर बनने को आतुर पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत कांग्रेस का समर्थन लेकर बागी हो गए। यद्यपि धर्मेन्द्र गहलोत विजयी घोषित हुए, मगर आरोपित रूप से गड़बड़ करके। शेखावत कोर्ट चले गए। संगठन की मर्यादाओं से इतर दो धुर विरोधियों की हठधर्मिता देखिए कि देवनानी ने सामान्य सीट पर फिर गहलोत के रूप में ओबीसी को मेयर बनवा दिया तो भदेल ने भी अपने चहेते, ओबीसी के संपत सांखला को डिप्टी मेयर पद पर आसीन करवा दिया। सामान्य वर्ग के नेता ठगे से रह गए। उनकी कुंठा आगे चल कर कुछ गुल खिला सकती है। पार्टी को एक बड़ा नुकसान ये हुआ कि उसने सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे शेखावत को खो दिया। संभवत: वे आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक बड़ा सिरदर्द साबित हो जाएं।
बात ताजा घटनाक्रम की करते हैं। केन्द्र व राज्य में बहुमत वाली सरकारों के होते हुए पंचायती राज उपचुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। एकजुटता का अभाव समझने के लिए इतना ही काफी है कि स्थानीय नेता इस चुनाव को मैनेज नहीं कर पाए। या तो सत्ता के नशे में चूर नेताओं ने लापरवाही बनती, या फिर उनकी रुचि ही नहीं थी।
हालांकि उपचुनाव और अगर वे विशेष रूप से पंचायतीराज व स्थानीय निकाय के हों, तो उसके नतीजे किसी पार्टी को पूरी तरह से नकार दिए जाने अथवा किसी को नवाजने का सीधा-सीधा संकेत तो नहीं देते, मगर वे ये इशारा तो करते ही हैं कि राजनीतिक बयार कैसी बह रही है या बहने जा रही है। इसे साफ तौर पर भले ही आम जनादेश की संज्ञा नहीं दी जा सकती, मगर इतना तय है कि सत्तारूढ़ भाजपा को आम जनता ने खतरे की घंटी तो सुना ही दी है। यद्यपि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर ये छोटे व स्थानीय चुनाव अनाज की बोरी में लगाए जाने वाली परखी की तरह हैं, जो बयां कर रही है कि वर्तमान में भाजपा की हालत क्या है?
अजमेर के विशेष संदर्भ में बात करें तो भाजपा के लिए यह हार इस कारण सोचनीय है क्योंकि जिले के 8 में से 7 विधायक भाजपा के हैं। इनमें से दो राज्यमंत्री व एक संसदीय सचिव हैं। जिला परिषद और स्थानीय निकाय में भी भाजपा का कब्जा है। भाजपा के लिए यह शर्मनाक इस वजह से भी हो गया है, क्योंकि उसने सत्तारूढ होने के हथकंडे इस्तेमाल करके भी पराजय का मुंह देखा। इन चुनावों पर कदाचित ज्यादा गौर नहीं किया जाता, मगर भाजपा ने खुद ही मंत्रियों व विधायकों से लेकर नगर पालिका अध्यक्षों आदि को जोत कर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्र बना दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी, जो कि आजकल कुछ ज्यादा ही संवदेनशील हो गई है। यह संवेदना इस वजह से है कि भाजपा ने जिस सुराज का सपना दिखा कर आम जन का जबदस्त समर्थन हासिल किया, वह सपना धरातल पर कहीं उतरता नजर नहीं आया। इस चुनाव ने साफ कर दिया है कि अच्छे दिन के नारे यदि धरातल पर नहीं उतरे तो जनता पलटी भी खिलाना जानती है।
इन उपचुनावों ने देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है, क्योंकि चंद दिन बाद ही 15 अगस्त को अजमेर में आयोज्य राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे आने वाली हैं। कभी सफल सदस्यता अभियान चला कर भाजपा हाईकमान के चहेते बने प्रो. बी. पी. सारस्वत को दुबारा देहात जिला अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया था कि उनसे बेहतर संगठनकर्ता नहीं मिल रहा था, मगर ताजा चुनाव परिणाम ने उनकी कलई खोल दी है। हालांकि पार्टी प्रत्याशियों की हार के अनेक स्थानीय कारण हैं, मगर चूंकि उनके नेतृत्व में रणनीति बनी, इस कारण हार की जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। अब तो ये भी गिना जा रहा है कि नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में आने वाली 9 ग्राम पंचायतों को मिला कर बनाये गए जिला परिषद के वार्ड नंबर 5 में सारस्वत का गांव बिड़कच्यावस भी आता है, लेकिन उनके गांव में भी भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव से जिला प्रमुख वंदना नोगिया को महज आभूषणात्मक जिला प्रमुख साबित कर दिया है, जिनकी धरातल पर कोई पकड़ नहीं है। उनके अतिरिक्त पुष्कर विधायक सुरेश रावत व किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी पर भी हार की जिम्मेदारी आयद होती है। हार की एक वजह जाटों की बेरुखी भी बताई जा रही है, जो कि अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने से नाराज हैं।
असल में अजमेर जिले में पार्टी संगठन का ढ़ांचा कुछ खास मजबूत नहीं है। धरातल पर जरूर पार्टी समर्थक दमदार हैं, मगर उन्हें एक सूत्र में बांधने वाला कोई नहीं है। कुछ साफ तौर पर गुटों में बंटे हैं तो तटस्थ कार्यकर्ताओं की स्थिति पैंडुलम सी है। अगर ये कहें कि संगठन तो नाम मात्र का है, चंद नेता अपने-अपने हिसाब से पार्टी कार्यकर्ताओं को हांक रहे है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यूं तो मोटे तौर पर पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है, मगर बड़ी गुटबाजी शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी और महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल के बीच है। हालांकि वरिष्ठ नेता और राजस्थान पुरा धरोहर प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत स्थानीय पचड़ों से दूर हैं, मगर जयपुर में बैठ कर देवनानी की कब्र खोदते रहते हैं। श्रीमती भदेल के गॉड फादर वे ही हैं। अजमेर के खाते में गिने जाने वाले राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव का कद इतना ऊंचा है कि उनको कोई छू भी नहीं सकता। वे स्थानीय चंद नेताओं पर वरदहस्त रखे हुए हैं। स्थानीय मसलों में कुछ खास दखल नहीं करते।
कुल मिला कर इससे समझा जा सकता है कि शहर जिला अध्यक्ष अरविंद यादव और देहात जिला अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत कितनी कमजोर स्थिति में हैं। दोनों संगठन के प्रमुख तो हैं, मगर उनका बड़े नेताओं पर कोई जोर नहीं चलता। अजमेर देहात में कई क्षत्रप हैं तो अजमेर शहर में पार्टी दो हिस्सों में विभाजित है।
पिछले पंद्रह साल से संगठन की हालत ये ही है। न तो पूर्व अध्यक्ष व पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत की कोई सुनता था और न ही अजमेर विकास प्राधिकरण के मौजूदा अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा के शहर अध्यक्ष होने के दौरान उनकी कुछ खास अहमियत रही। नगर निकाय के चुनाव में केवल और केवल देवनानी व भदेल की ही चलती आई है। अगर ये कहा जाए कि इन दोनों का जब से अभ्युदय हुआ है, तब से संगठन नाम मात्र का रह गया है तो गलत नहीं होगा। संयोग से दोनों लगातार तीन बार जीत गए, मगर पार्टी कार्यकर्ता इतना पीडि़त है कि उसे बयां करना मुश्किल है। केडर बेस पार्टी की ये हालत वाकई अजीबोगरीब है।

-तेजवानी गिरधर
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सबसे बेहतर साबित हो सकता है महाराणा प्रताप स्मारक

पुष्कर घाटी में नौसर माता मंदिर के पास लोकार्पण को तैयार महाराणा प्रताप स्मारक अजमेर में अब तक स्थापित सभी स्मारकों से बेहतर साबित हो सकता है। इसकी एक मात्र वजह है इसकी लोकेशन। इसके सामने  दिन-रात तीर्थराज पुष्कर व अजमेर के बीच की आवाजाही रहती है। इस रूट का जुड़ाव मेड़ता व नागौर और उनसे जुड़े जोधपुर व बीकानेर मार्गों से भी है। स्मारक पर खड़े हो कर अजमेर शहर और आनासागर का सुंदर नजारा दिखाई देता है। इसकी एप्रोच भी अन्य स्मारकों की तुलना में बेहतर है। यदि अजमेर विकास प्राधिकरण ने ठीक से इसका विकास किया और बेहतर सुविधाएं जुटाईं तो यह स्मारक सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। इसका शिलान्यास तत्कालीन न्यास सदर धर्मेश जैन के कार्यकाल में हुआ था। बीच में पांच साल कांग्रेस सरकार के दौरान किसी ने इसकी खैर खबर नहीं ली। अब भाजपा राज में इसका निर्माण पूरा किया गया है और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इसका लोकार्पण करने वाली हैं। इस बीच इस स्मारक को जिंदा रखने के लिए जैन साल में एक बार यहां आयोजन करते रहे। बन जाने के बाद इसे लोकप्रिय करने के लिए शायद जैन ही प्रयास करें। हालांकि महाराणा प्रताप भी एक बड़ी शख्सियत रहे, मगर यह इसकी लोकेशन की वजह से ज्यादा सजीव रहेगा, जिसकी सोच का श्रेय जैन को जाता है।
अन्य स्मारकों की चर्चा करें तो उनमें सबसे महत्वपूर्ण है तारागढ़ मार्ग के बीच स्थापित अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक। ऐतिहासिक दृष्टि से यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। अजमेर के इतिहास से इसका सीधा संबंध है। इसी वजह से आने वाले समय में भी इसका महत्व बना रहेगा। यह विकसित भी ठीक से किया गया है। इसका श्रेय सीधे तौर पर अजमेर नगर सुधार न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष औंकार सिंह लखातव को जाता है, जिनकी कल्पना, कड़ी मेहनत और लगन से यह निर्मित हुआ। उनके ही प्रयासों से हर साल यहां बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। यह लखावत के न्यास अध्यक्ष के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मगर अफसोस कि इस पर पर्यटक का पैर नहीं पड़ता। अधिकतर पर्यटक तारागढ़ स्थित मीरा साहब की दरगाह की जियारत करने को आने वाले होते हैं, जिनकी इसमें कोई खास रुचि नहीं होती। अजमेर के शहर वासी तो यदा कदा ही वहां जाते हैं।
लखावत की ही एक और सौगात है हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार स्थित दाहरसेन स्मारक। अजमेर में बड़ी तादात में बसे सिंधी समुदाय के सम्मान के लिए काफी बड़े क्षेत्र में यह बनाया गया, मगर सच्चाई ये है कि अस्सी प्रतिशत सिंधियों ने इसे देखने की जहमत नहीं उठाई है। और उसकी एक मात्र वजह ये रही कि अधिसंख्य सिंधियों को पता ही नहीं कि महाराजा दाहरसेन कौन थे? चंद साहित्यकारों को जरूर पता था कि वे सिंधुपति महाराजा थे। उनके नाम पर स्मारक बनाना लखावत की एक बड़ी सोच का परिणाम है। वहां लगातार हर साल जयंती व पुण्यतिथी पर दो बार बड़े आयोजन करवा कर उन्होंने इसे सुपरिचित तो कर दिया है, मगर आज भी इसका भ्रमण करने वाले नगण्य हैं। इर्द गिर्द बसे कुछ निवासी जरूर मॉर्निंग और ईवनिंग वॉक के लिए आते हैं। और कुछ महिलाएं स्मारक परिसर में स्थित मंदिर में पूजा अर्चना करने आती हैं। कुल मिला कर जितनी मेहनत करके लखावत ने इसको बनवाया, उसका एक प्रतिशत भी अजमेर वासी इसका लाभ नहीं उठाते। इसे अजमेर वासियों की फितरत समझ लीजिए।
एक स्मारक है पंचशील इलाके में। नाम है वीरांगना झलकारी बाई स्मारक। वहां से लोहागल, जनाना अस्पताल और जयपुर का रास्ता खुलता है। यहां भी पर्यटक नहीं आता। साल में एक बार जरूर कोली समाज के लोग यहां एकत्रित होते हैं। न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष धर्मेश जैन ने अजमेर दक्षिण में बड़ी तादात में रहने वाले कोली समुदाय के सम्मान की खातिर किया, मगर इतनी दूर है कि वे यहां पहुंच ही नहीं पाते। जैन के ही कार्यकाल में कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी में विवेकानंद स्मारक का निर्माण शुरू हुआ। यह भी काफी सुरम्य होगा, मगर पर्यटकों को कितना आकर्षित करेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। जब डॉ. श्रीगोपाल बाहेती न्यास सदर थे, तब उन्होंने राजवी उद्यान व अशोक उद्यान बनवाये, मगर वे भी दूर होने के कारण आबाद नहीं हो पाए।
कुल मिला कर सभी स्मारकों में दर्शकों के सर्वाधिक दीदार महाराणा प्रताप स्मारक को हो सकते हैं, मगर उसके लिए जैन को ही अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। वरना अजमेर के लोग कितने टायर्ड और रिटायर्ड हैं, सबको पता है।
-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 10 अगस्त 2016

सपना साकार होने जा रहा है धर्मेश जैन का

धर्मेश जैन
अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन का सपना साकार होने जा रहा है। आगामी 15 अगस्त को उनके कार्यकाल में शिलान्यासित महाराणा प्रताप स्मारक का राज्य की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे लोकार्पण करेंगी। जाहिर है वे बेहद खुश होंगे। मगर साथ ही इस बात का मलाल भी कि यही काम उनके कार्यकाल में नहीं हो पाया। एक फर्जी सीडी के चक्कर में बिना मामले की पूरी तहकीकात किए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने खुद को साफ सुथरा जताने के लिए उनका इस्तीफा ले लिया और जैन का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया। बाद में कांग्रेस सरकार के दौरान उनका क्लीन चिट भी मिल गई, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा सरकार उन्हें फिर मौका देगी, मगर इस बार समीकरण कुछ और थे और शिवशंकर हेडा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बन गए।
यहां कहने की आवश्कता नहीं है कि कांग्रेस के राज में इस प्रस्तावित स्मारक की किसी ने सुध नहीं ली। तत्कालीन न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत भाजपा राज में शिलान्यासित स्मारक को बनवाने के पचड़े में पडऩा नहीं चाहते थे और राज्य सरकार को भला क्या पड़ी कि वह इसमें रुचि लेती। जब भाजपा सरकार दुबारा आई तो उम्मीद जगी कि अब स्मारक जरूर बनेगा, मगर जिला कलेक्टर व पदेन अध्यक्षों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। एक बार तो लगा कि शायद ये स्मारक बन ही नहीं पाएगा, मगर जैसे ही प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर राजनीतिक नियुक्ति हुई तो हेडा पर दबाव रहा कि वे इस स्मारक का काम पूरा करवाएं। वैसे भी यह स्मारक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की अकबर महान की तुलना में महाराणा प्रताप को राष्ट्रीय प्रतीक व प्रेरणा स्रोत बनाने की मंशा को पूरा करता है। इसके अतिरिक्त हेडा पर ये भी दबाव रहा कि वे पूर्व भाजपा सरकार के दौरान बनी योजना को पूरा करवाएं, ताकि किरकिरी न हो। जैन ने भी पीछा नहीं छोड़ा। वे भी महाराणा प्रताप जयंती मनाने के बहाने स्मारक को जिंदा किए रहे।
बहरहाल, जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए, ठीक उसी प्रकार उनकी प्रतिमा को भी यहां स्थापित होने के लिए ग्वालियर से अजमेर आने तक नौ साल का सफर पूरा करना पड़ा। एक दिलचस्प बात देखिए कि जैन के कार्यकाल में सिंधुपति महाराजा दाहरसेन और वीरांगना झलकारी की प्रतिमा तो स्थापित हो गई, मगर जिस महाराणा प्रताप की प्रतिमा में उनकी अधिक रुचि थी, उसकी स्थापना से पहले ही उनका कार्यकाल अधूरा छूट गया। यह वही प्रतिमा है, जो जैन के कार्यकाल में बनी थी। इसके लिए उन्होंने न्यास की एक टीम ग्वालियर भेजी थी। प्रतिमा का घोड़ा महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की तरह हष्ट पुष्ट हो, इसके लिए उन्होंने उसे दुरुस्त भी करवाया था। प्रतिमा जब यहां लाई गई तो महाराणा प्रताप की प्रतिमा की टांग टूट जाने का विवाद उठा, मगर बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह तो जूता था, जो कि यहीं पर असेंबल होना था।
बहरहाल, अब जब कि जैन का सपना साकार होने जा रहा है मन ही मन मुग्ध होंगे ही। हों भी क्यों न। वे भी तो मेवाड़ के पुत्र हैं। मगर साथ ही ऐतराज भी कि जैसा स्वरूप उन्होंने सोचा था, उसमें काफी तब्दीली कर दी गई है, वरना इसकी खूबसूरती कुछ और ही होती। मगर क्या हो सकता है। वे सुझाव मात्र दे सकते हैं। होगा वही, जो हेडा चाहेंगे। बावजूद इसके इस स्मारक पर जैन की ही छाप रहेगी, भले ही हेडा इसे पूरा करवा रहे हों। समझा जाता है कि जिस प्रकार न्यास के पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत अपने कार्यकाल में बने पृथ्वीराज स्मारक और महाराजा दाहरसेन स्मारक को पुजवाते हैं, वे भी कोई न कोई समारोह-वमारोह करवाते रहेंगे, ताकि जब तक यह स्मारक रहे, उनका नाम भी अमर रहे।
-तेजवानी गिरधर
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रविवार, 7 अगस्त 2016

जनता ने सुनाई भाजपा को खतरे की घंटी

हालांकि उपचुनाव और अगर वे विशेष रूप से पंचायतीराज व स्थानीय निकाय के हों, तो उसके नतीजे किसी पार्टी को पूरी तरह से नकार दिए जाने अथवा किसी को नवाजने का सीधा-सीधा संकेत तो नहीं देते, मगर वे ये इशारा तो करते ही हैं कि प्रदेश में राजनीतिक बयार कैसी बह रही है या बहने जा रही है। प्रदेश के सातों संभागों के सत्रह जिलों में 37 सीटों पर हुए पंचायती राज और नगर निकायों के उपचुनाव में कांग्रेस का 19 सीटों और भाजपा का मात्र 10 सीटों पर जीतना यही दर्शाता है कि जहां कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार से उबरने लगी है, वहीं केन्द्र व राज्य में प्रचंड बहुमत से जीती भाजपा का ग्राफ गिरने लगा है। इसे साफ तौर पर भले ही आम जनादेश की संज्ञा नहीं दी जा सकती, मगर इतना तय है कि सत्तारूढ़ भाजपा को आम जनता ने खतरे की घंटी तो सुना ही दी है। यद्यपि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर ये छोटे व स्थानीय चुनाव अनाज की बोरी में लगाए जाने वाली परखी की तरह हैं, जो बयां कर रही है कि वर्तमान में भाजपा की हालत क्या है?
अजमेर के विशेष संदर्भ में बात करें तो भाजपा के लिए यह हार इस कारण सोचनीय है क्योंकि जिले के 8 में से 7 विधायक भाजपा के हैं। इनमें से दो राज्यमंत्री व एक संसदीय सचिव हैं। जिला परिषद और स्थानीय निकाय में भी भाजपा का कब्जा है। भाजपा के लिए यह शर्मनाक इस वजह से भी हो गया है, क्योंकि उसने उसने सत्तारूढ होने के हथकंडे इस्तेमाल करके भी पराजय का मुंह देखा। इन चुनावों पर कदाचित ज्यादा गौर नहीं किया जाता, मगर भाजपा ने खुद ही मंत्रियों व विधायकों से लेकर नगर पालिका अध्यक्षों आदि को जोत कर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्र बना दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी, जो कि आजकल कुछ ज्यादा ही संवदेनशील हो गई है। यह संवेदना इस वजह से है कि भाजपा ने जिस सुराज का सपना दिखा कर आम जन का जबदस्त समर्थन हासिल किया, वह सपना धरातल पर कहीं उतरता नजर नहीं आया। इस चुनाव ने साफ कर दिया है कि अच्छे दिन के नारे यदि धरातल पर नहीं उतरे तो जनता पलटी भी खिलाना जानती है।
इन उपचुनावों ने देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है, क्योंकि महज एक हफ्ते बाद ही 15 अगस्त को अजमेर में आयोजित राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे आने वाली हैं। कभी सफल सदस्यता अभियान चला कर भाजपा हाईकमान के चहेते बने प्रो. बी. पी. सारस्वत को दुबारा देहात जिला अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया था कि उनसे बेहतर संगठनकर्ता नहीं मिल रहा था, मगर ताजा चुनाव परिणाम ने उनकी माइनस मार्किंग कर दी है। हालांकि पार्टी प्रत्याशियों की हार के अनेक स्थानीय कारण हैं, मगर चूंकि उनके नेतृत्व में रणनीति बनी, इस कारण हार की जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। अब तो ये भी गिना जा रहा है कि नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में आने वाली 9 ग्राम पंचायतों को मिला कर बनाये गए जिला परिषद के वार्ड नंबर 5 में सारस्वत का गांव बिड़कच्यावस भी आता है, लेकिन उनके गांव में भी भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव से जिला प्रमुख वंदना नोगिया को महज आभूषणात्मक जिला प्रमुख साबित कर दिया है, जिनकी धरातल पर कोई पकड़ नहीं है। उनके अतिरिक्त पुष्कर विधायक सुरेश रावत व किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी पर भी हार की जिम्मेदारी आयद होती है। हार की एक वजह जाटों की बेरुखी भी बताई जा रही है, जो कि अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने से नाराज हैं।
बात कांग्रेस की करें तो उसके इसलिए सुखद क्योंकि वह बहुत सशक्त नहीं रही, फिर भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में फिर से खड़े होने की कोशिश कर रही है। इस जीत को पायलट की लोकप्रियता और रणनीति से जोड़ा जा रहा है, मगर स्थानीय स्तर पर नए नवेले देहात जिला अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के कंघे पर जीत का तमगा लग गया है। उन्होंने पूर्व विधायक श्रीमती नसीम अख्तर व उनके पति इंसाफ अली और पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया से तालमेल बैठा कर नियुक्ति के बाद पहली परीक्षा पास कर ली है, लिहाजा उन लोगों के मुंह बंद हो गए हैं, जो कि राठौड़ की नियुक्ति से असहमत थे। स्वाभाविक रूप से राठौड़ अब पायलट के और करीब हो जाएंगे।
कुल मिला कर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगमन से चंद दिन पहले भाजपा नेताओं के चेहरे बुझ गए हैं और कांग्रेसी बहुत उत्साहित हैं व इसे आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की किरण के रूप में देख रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

राजेश टंडन ने क्यों खोला अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा?

राजेश टंडन
सदैव किसी न किसी बहाने सुर्खियों में रहने वाले वरिष्ठ एडवोकेट व कांग्रेस नेता राजेश टंडन ने अचानक पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को बाकायदा पत्र लिख कर गहलोत को राजस्थान की राजनीति से हटाने की मांग तक कर डाली है, ताकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को काम करने में सुविधा रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने मौजूदा मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से गहलोत की तुलना करते हुए उनके बीच हाथ मिलाने का रिश्ता होने तक जिक्र किया है, जो कि गहलोत पर एक गंभीर आरोप के समान है। इसे अगर एक राजनीतिक फलझड़ी न समझा जाए तो बेहद विस्फोटक बम के समान है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी का अपनी ही पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाना कोई सामान्य बात तो नहीं। उन्होंने अपने पत्र की कॉपी फेसबुक व वाट्स ऐप पर भी शाया की है। हालांकि पत्र में लिखी गईं बातें तर्कसंगत प्रतीत होती हैं, मगर साथ ही इसके पीछे उनके किसी साइलेंट एजेंडे की भी गंध आती है। जाहिर तौर पर इससे शांत से प्रतीत होते तालाब में पत्थर फैंकने से उठने वाली तरंगों की माफिक कुछ तो खलबली होगी ही।
दरअसल टंडन कभी कोई काम बेमकसद नहीं करते। कदाचित पायलट में राजस्थान का भविष्य तलाशते हुए उनसे नजदीकी हासिल करना चाहते हों। या फिर खुद को सुर्खियों में रखने का पुराना शगल। इसके लिए गहलोत को ही निशाना बना डाला। अब ये फैंका गया पत्थर दूर तक जाएगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। मगर लोगों को तो जुगाली करने का मौका मिल ही जाएगा। हालांकि हमले का टारगेट गहलोत हैं, मगर एक ही तीर से दूसरा निशाना वसुंधरा पर भी लग ही रहा है। टंडन की नजर इतनी तेज है कि वे हॉट केक को तलाश ही लेते हैं। मौजूदा मुद्दा भी सुर्खियों वाला ही है। हाल ही गहलोत अजमेर से गुजरे हैं। उनकी आवभगत के लिए पायलट खेमे के कम ही लोगों के पहुंचने की खासी चर्चा है। गहलोत व पायलट के बीच कितना फासला है, कुछ कह नहीं सकते, मगर मीडिया और विशेष रूप से गहलोत के समर्थकों ने ऐसा माहौल बना रखा है कि मानो कांग्रेस इन दोनों नेताओं के बीच विभाजित है। स्वाभाविक रूप से कुछ कट्टर समर्थक हैं तो कई को सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस से मतलब है। उनके लिए दोनों ही नेता स्वीकार्य हैं। एक ओर जहां गहलोत के दो बार मुख्यमंत्री रह चुकने के कारण उनके साथ अनेक उपकृत लोगों की जमात है तो दूसरी ओर पायलट के ऊर्जावान और तेज-तर्रार होने के कारण लोग उनमें कांग्रेस का भविष्य देखते हैं। अब यह तो कांग्रेस आलाकमान पर निर्भर करता है कि वह क्या सोचता है? क्या करता है?
-तेजवानी गिरधर
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8094767000




सोमवार, 1 अगस्त 2016

क्या जिला कलेक्टर गोयल यूं ही काम करते रहेंगे?

जिला कलेक्टर गौरव गोयल का आगाज अच्छा था। जैसे ही अजमेर आए, तुरंत जरूरी मसलों पर त्वरित निर्णय करने लगे। अभी कुछ और करते इतने में राज्य स्तरीय स्वाधीनता समारोह की तैयारी में जुट गए। बेशक वे जिस तरीके से अजमेर को संवारने में लगे हैं, वह तारीफ ए काबिल है, मगर अभी से अजमेर वासियों में मन में एक सवाल उठने लगा है कि क्या 15 अगस्त के बाद भी इसी गति को बरकरार रखेंगे?
असल में यह सवाल इस कारण कौंधता है क्योंकि अजमेर के नागरिकों एक लंबे अरसे बाद ऐसा जिला कलेक्टर मिला है, जिसमें ऊर्जा के साथ काम करने का जज्बा भी है। उनकी पहली झलक के साथ ही सभी में उनसे अत्यधिक आशाएं जाग गई हैं। ऐसा सामान्य मानव व्यवहार है। जो मनुष्य लंबे समय से भूखा हो, उसे अगर रोटी नसीब हो जाए तो फिर वह अच्छी रोटी की भी उम्मीद भी पाल लेता है। इसी के चलते जहां कुछ लोगों को अजमेर का कायाकल्प होने की आशा है तो कुछ लोगों को संदेह है कि जैसी अजमेर की राजनीति है, उसके चलते क्या स्थानीय राजनीतिज्ञ उन्हें फ्री हैंड काम करने देंगे? क्या वे उनके काम में टांग तो नहीं अड़ाएंगे?
इन सवालों से हट कर बात करें तो सच्चाई ये है कि कलेक्टर गोयल ने आते ही अजमेर को स्मार्ट सिटी के रूप में चयनित करवाने के लिए जो खाका तैयार किया था, उसमें फिलहाल रुकावट आई है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्र्माट सिटी की दिशा में कदम उठाने के लिए अजमेर शहर को स्लग देने की जो प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं, उनके परिणाम अभी तक नहीं आए हैं। इसके अतिरिक्त भी जो काम वे करना चाहते थे, उनसे ध्यान हटा कर पूरा ध्यान आगामी 15 अगस्त को होने वाले राज्य स्तरीय स्वाधीनता दिवस समारोह की तैयारी में लगा दिया है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा के इस दौरान दो या तीन दिन अजमेर में रहने के कार्यक्रम के कारण स्वाभाविक रूप से पूरा कंसन्ट्रेशन उन्हीं को लेकर है। कोई और जिला कलेक्टर भी होता तो मुख्यमंत्री की शाबाशी पाने के लिए ऐसा ही करता। जिला प्रशासन ने वसुंधरा के आगमन की तैयारी का अभियान आनन फानन में तोबड़तोड तरीके आरंभ किया है। जिन मार्गों से मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को गुजरना है, उनको दुरुस्त करने का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि मुख्यमंत्री के अजमेर आने के बहाने मार्गों को पोल लेस करने, जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के सामने वर्षों से हो रखे स्थाई अतिक्रमण को हटाने, सड़कों के नए सिरे से डामरीकरण करने का काम बेहद सराहनीय है। इसमें जिला कलेक्टर गौरव गोयल पूरी लगन से कर रहे हैं, मगर निर्णय करने की जितनी उनकी रफ्तार है, उस रफ्तार से काम होना मुश्किल है। विशेष रूप से बारिश के मौसम में कितनी कठिनाई आ रही है, ये तो इस काम में जुटे लोग ही बेहतर जानते हैं। धरातल की सच्चाई यही है, मगर मुख्यमंत्री के डर से सारे विभाग मजबूरी में जी जान से जुटे हुए हैं। अब तो जिला कलेक्टर भी समझ चुके होंगे कि समय कम है और जिस तरह से काम किया जा रहा है, वह ज्यादा टिकने वाला नहीं है। ऐसे में यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि कहीं पिछले राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह की तरह इस बार भी लीपापोती की कलई जल्द ही खुल न जाए। एक सवाल ये भी कि मुख्यमंत्री के अजमेर को गंदा कहने के बाद जिस तरह से सफाई अभियान शुरू हुआ है, आवारा पशुओं को पकडऩे  पर जोर दिया जा रहा है, क्या वह बाद में भी इसी गति से जारी रहेगा। या फिर यह मुख्यमंत्री को मुंह दिखाई रस्म की तरह रह जाएगा।
कुल मिला कर उत्साह से लबरेज कलेक्टर गोयल पर सभी की नजरें हैं कि क्या 15 अगस्त के बाद भी वे इसी उत्साह से काम करेंगे और पूरे अजमेर को सुधारने पर ध्यान देंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000