बुधवार, 12 जनवरी 2011

बोर्ड चेयरमैन ने उठाया दुस्साहसी कदम

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डॉ. सुभाष गर्ग ने बहुत ही दुस्साहसी कदम उठाया है। उन्होंने उन बोर्ड कर्मियों की नाक में नकेल कसने की ठानी है, जिन्हें आज तक न तो कोई बोर्ड चेयरमैन ठीक कर पाया और न ही कोई प्रशासक। उन्होंने लेटलतीफ कर्मचारियों की ढ़ेबरी टाइट करने के लिए हाजिरी रजिस्टर सुबह दस बज कर दस मिनट पर सील करने के आदेश जारी किए हैं। एक तरह से उन्होंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है।
असल में बोर्ड में लेटलतीफी एक आम समस्या रही है। कई छोटे-मोटे अफसरों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक किसी के कब्जे में नहीं रहते। हालत ये है कि लेटलतीफी के अतिरिक्त कई कर्मचारी काम के समय में कैंटीन अथवा बोर्ड भवन के बाहर चाय की थडिय़ों पर नजर आया करते हैं। उनको कोई भी चेयरमैन दुरुस्त नहीं कर पाया। कई बार यह बात अखबारों में छप कर रिकार्ड पर आ चुकी है कि बोर्ड में ओवरटाइम का खेल होता ही इस कारण था कि कर्मचारी काम के वक्त तो काम करते ही नहीं थे। इसको लेकर कई बार विवाद हो चुके हैं, जो कि सबको पता है। बोर्ड में चल रहा ब्याज का धंधा भी कई बार अखबारों की सुर्खियों का हिस्सा बन चुका है। एक कर्मचारी तो इसी चक्कर में फंस भी गया था। हालांकि यह सही है कि स्टाफ की भारी कमी के बावजूद बोर्ड कर्मचारी हर साल लाखों की तादाद वाले परीक्षार्थियों की परीक्षा को अंजाम देने का नायाब उदाहरण पेश करते रहे हैं, लेकिन साथ ही कामचोरी की समस्या भी बड़ी भारी रही है। यह एक विरोधाभास ही है कि एक ओर जहां इन्हीं बोर्ड कर्मचारियों की कार्य कुशलता की वजह से यह बोर्ड पूरे देश के सभी बोर्डों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, वहीं दूसरी ओर लेटलतीफी आम समस्या है, जिसको काफी दिन की वॉच के बाद डॉ. गर्ग ने निपटाने की सोची है।
सच्चाई तो ये है कि कर्मचारियों की यूनियन इतनी तगड़ी रही है कि अनेक बोर्ड चेयरमैनों को उनका मुकाबला करने में पसीने छूट जाते थे। पूर्व चेयरमैन पी. सी. व्यास की तो हालत ये थी कि उनके मुंह पर ही कर्मचारी नेता भद्दी-भद्दी गालियां बक कर जलील करते थे। और कोई होता तो ऐसी जलालत की बजाय पद छोड़ कर जाना पसंद करता। मगर कांग्रेसी कल्चर के व्यास इतने ढ़ीठ और मोटी चमड़ी वाले थे कि उनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। उनके अतिरिक्त अन्य चेयरमैनों का भी कर्मचारियों से टकराव का सामना करना पड़ता था। कुल मिला कर यहां वही चेयरमैन शांति से कार्यकाल पूरा कर पाया, जो कर्मचारी नेताओं को विश्वास में लेकर चला। ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ. गर्ग ने भी कर्मचारी नेताओं को नमस्ते करके राजी कर रखा है। तभी तो पिछले दिनों जब बोर्ड के विखंडन की दिशा में एक कदम उठाया गया तो कोई कुछ नहीं बोला। विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी भौंकते ही रह गए और बोर्ड का जयपुर में बोर्ड के एक भवन का शिलान्यास मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर दिया। यह कर्मचारियों का दबाव ही था कि उन्हें बोर्ड विखंडन की बात से कहीं कर्मचारी न भडक़ जाएं, पहले ही साफ कर दिया था कि यहां से कोई भी शाखा और कोई भी कर्मचारी स्थानांतरित किया जा रहा है। इस कदम से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले कर्मचारी वर्ग ने जब चुप्पी साधी तो यही कयास लगाया गया कि बोर्ड चेयरमैन ने संघ के नेताओं को सैट कर लिया है। सवाल ये है कि क्या लेटलतीफी पर सख्ती के मामले में भी उन्होंने कर्मचारी नेताओं को सैट किया है। थर्ड आई को तो यही लगता है, वरना इतना दुस्साहसी कदम उठाना कत्तई असंभव था। बहरहाल, देखना ये है कि डॉ. गर्ग को अपने मकसद में कामयाबी मिलती है या नहीं।
अमोलक छाबड़ा की कमी पूरी कर रहे हैं सत्यावना
नगर निगम के मौजूदा बोर्ड में सबको पूर्व पार्षद अमोलक छाबड़ा की कमी खल रही है, मगर संतोष की बात ये है कि पार्षद नरेश सत्यावना उनकी कमी पूरी करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। जैसे जहां छाबड़ा होते थे, वहां हंगामा सुनिश्चित माना जाता था, वैसे ही अब ये आशंका सत्यावना को देखने पर भी होती है। जैसे निगम के अधिकारी छाबड़ा से कांपते थे, कमोबेश सत्यावना से भी कांपते हैं। ये तो गनीमत है कि वे कांग्रेस के हैं और मेयर भी कांग्रेस के, वरना उनसे बेहतर विपक्षी नेता की भूमिका कोई अदा नहीं कर सकता। सत्यावना जब तक निगम में रहते हैं, अफसरों व कर्मचारियों में धुकधुकी रहती है कि कब किस मुद्दे पर वे बिफर न जाएं। उनके साथी पार्षदों की टोली भी धाडफ़ाड़ है, जिसे काबू में करना किसी के बस की बात नहीं। चंद लफ्जों में कहा जाए तो यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि निगम में जितनी सक्रियता मेयर कमल बाकोलिया की मौजूदगी से नहीं होती, उससे कहीं अधिक सत्यावना के निगम परिसर में रहने पर होती है।
निगम ही क्यों, शहर में जहां कहीं भी कोई समारोह या सभा हो, और अगर वहां सत्यावना एंड कंपनी भी है तो समझिये कोई न कोई फफूंद हो कर रहेगी। पिछले दिनों अजमेर के प्रभारी मंत्री महिपाल मदेरणा की ओर से की जा रही जनसुनवाई में भी ऐसा ही हुआ। वहां ढ़ेर सारे नेता जुटे और अपनी-अपनी समस्या ले कर आए। किसी को कुछ मिला तो कोई लॉलीपॉप ले कर चुपचाप चलता बना, मगर सत्यावना ने दिखा दिया कि वे अजमेरीलाल नहीं हैं। भले ही अपनी ही पार्टी की सरकार के मंत्री हों, मगर यदि उनकी ओर से लाई गई जन समस्या का समाधान नहीं होता वे चुप बैठने वाले नहीं हैं। उन्होंने जैसी खरी-खोटी सुनाई, वैसी सुनाने का माद्दा फिलहाल तो किसी भी नेता में नहीं है। पहले तो उन्होंने प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि उन्हें हल्के में लिया जा रहा है तो वे बिफर गए। बिफरे भी ऐसे कि अपनी ही सरकार के मंत्री को चेता दिया कि टालमटाले का रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कल यदि वे हजारों की भीड़ ले कर आएंगे तो संभालना भारी पड़ जाएगा। जोधपुर के खुर्रांट जाट नेता मदेरणा तो हक्के-बक्के ही रह गए। उन्हें भी लगा होगा कि अजमेर के सारे नेता लल्लो-चप्पो करने वाले अजमेरीलाल नहीं हैं। सत्यावना ने जो रोल अदा किया, उससे एकबारगी तो लगा कि उन्होंने अपनी पार्टी की सारी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है, मगर उसका दूसरा पक्ष ये नजर आया कि अजमेर को ऐसे ही नेताओं की जरूरत है, जो जनता के अधिकार प्रशासन से छीनने का माद्दा रखते हों। ऐसे अगर दो-चार सत्यावना और पैदा हो जाएं तो शहर का उद्धार हो जाए, बस भगवान से एक ही प्रार्थना है कि उनकी एनर्जी पॉजिटीव डायरेक्शन में काम आए।

बिना वीजा के कैसे चले आते हैं पाकिस्तानी?

अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की जियारत के नाम पर बिना वीजा के पाकिस्तानियों के आने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। गत रविवार की देर रात एक और पाकिस्तानी उन्नीस वर्षीय रजमान खां पकड़ा गया और जैसा कि उसने बताया है उसका एक साथी बिलाल आया तो उसके साथ था, लेकिन जयपुर आ कर उनका साथ छूट गया। हालांकि अभी वह पुलिस को तरह-तरह की कहानियां बता कर घुमा रहा है और जांच के बाद ही साफ हो पाएगा कि असलियत क्या है, मगर यह तो साफ ही है कि लाख कोशिशों के बाद भी घुसपैठियों को रोका नहीं जा पा रहा है। पाकिस्तान को ही हम सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं और उसी से लगती सीमा को पार करके घुसपैठिये भारत आ रहे हैं। इतना ही नहीं, वे लंबा रास्ता पार कर दरगाह जियारत के बहाने अजमेर तक आ जाते हैं और खुफिया एजेंसियों को हवा तक नहीं लगती।
कितने अफसोस की बात है कि एक ओर बम विस्फोट के बाद दरगाह को और अधिक संवेदनशील माना जा रहा है और सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के दावे किए जा रहे हैं, दूसरी ओर पाकिस्तानी घुसपैठिये बड़ी आसानी से यहां चले आते हैं। रविवार की रात पकड़ा गया रमजान भी सीआईडी या पुलिस की मुस्तैदी की वजह नहीं, बल्कि लोगों के बताने पर ही शिकंजे में आया। कदाचित वह निजाम गेट पर दहाड़ मार कर नहीं रोता और लोग पुलिस को सूचित नहीं करते तो पता ही नहीं लगता कि वह बिना वीजा-पासपोर्ट के अजमेर चला आया है। यह घटना अपने आप में सबसे ज्वलंत उदाहरण है कि हमारी सीआईडी का तंत्र कितना मुस्तैद है। यह इस बात का भी सबूत है कि दावे चाहे जो किए जाएं, मगर न तो हमने दरगाह बम विस्फोट से सबक लिया है और न ही मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोप में अमेरिका में गिरफ्तार डेविड कॉलमेन हेडली के सीआईडी की आंख में सुरमा डालने से कुछ सीखा है। बिना वीजा-पासपोर्ट के अजमेर आने वालों का सिलसिला काफी लंबा है। अब तक अनेक पाकिस्तानी व बांग्लादेशी पकड़े जा चुके हैं, मगर इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला जा सका है। पकड़े गए घुसपैठिये तो रिकार्ड पर हैं, पर जो नहीं पकड़े जा सके हैं, उनका तो अनुमान ही लगाना कठिन है। ज्यादा चौंकाने वाली बात तो ये है कि अपराधी किस्म के या मकसद विशेष के लिए अजमेर आने वाले तो चलो शातिर हैं, मगर केवल जियारत के मकसद से भी यहां बड़ी आसानी से पहुंच रहे हैं। स्पष्ट है कि न तो सीमा पर पूरी चौकसी बरती जा रही है और न ही अजमेर जैसे संवेदनशील स्थान के बारे में पुलिस गंभीर है। रहा सवाल सरकार का तो वह भी सख्त नजर नहीं आती है। जरूर इस प्रकार बिना वीजा-पासपोर्ट के पाकिस्तान या बांग्लादेश से आने वालों पर अंकुश लगाने के लिए प्रावधान लचीले हैं, तभी तो घुसपैठियों में कोई खौफ नहीं है।
बहरहाल, इस प्रकार लगातार बढ़ती जा रही धुसपैठ की घटनाओं से अंदेशा यही है कि अजमेर में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। कोई आतंकी भी इस प्रकार बिना पासपोर्ट व वीजा के अजमेर या पुष्कर पहुंच जाएगा और वह कोई हरकत कर गायब हो जाएगा और पुलिस हाथ ही मलती रह जाएगी।
चरम पर पहुंच चुका है यूआईटी सदर का मामला
अजमेर यूआईटी सदर पद पर नियुक्ति का मामला पूरी तरह से गरमा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि चंद दिनों में ही नए सदर की नियुक्ति होने ही जा रही है। अनुमान है कि मकर संक्रांति पर मलमास की समाप्ति के साथ ही नए सदर को नियुक्त कर दिया जाएगा। यही वजह है कि जितने भी दावेदार पिछले दो साल से प्रयासरत थे, वे यकायक फिर से सक्रिय हो गए हैं और जयपुर, दिल्ली के सारे संपर्कों के दरवाजे खडख़ड़ा रहे हैं।
कांग्रेसी खेमे में यह चर्चा है कि संभवत: सरकार सिद्धांतत: यह तय कर चुकी है कि चाहे जो भी सदर बनाया जाए, मगर जातिगत दृष्टि से सिंधी समाज को खुश करने के लिए किसी सिंधी को ही मौका दिया जाएगा। अन्य समाजों के प्रमुख दावेदारों डॉ.श्रीगोपाल बाहेती, महेन्द्र सिंह रलावता, डॉ. सुरेश गर्ग आदि को स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकार विधानसभा चुनाव से नाराज चले आ रहे सिंधी समाज को पटाना चाहती है। जहां तक सिंधी दावेदारों का सवाल है, निश्चित रूप से नरेन शहाणी भगत पहले नंबर पर ही हैं। अर्थात यदि भगत की नियुक्ति होती है तो वह कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं कही जाएगी। आश्चर्यजनक घटना ये कही जाएगी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के दोस्त दीपक हासानी को सदर बना दिया जाए। बताया जाता है कि उन्होंने काफी कुछ मैनेज भी कर लिया है। यहां तक कि खुद की नियुक्ति न होने की संभावना के मद्देनजर और भगत को लंगी मारने के लिए डॉ. बाहेती ने हासानी के नाम पर सहमति दे दी है। उन्हें आईएएस लॉबी भी सपोर्ट कर रही है। हासानी का नाम तो फिर भी उजागर हो चुका है कि वे दावेदारी कर रहे हैं, मगर अब राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी का नाम भी उभर आया है। फिलहाल डॉ. थदानी के सदर बनने की संभावनाएं बहुत ज्यादा तो नहीं हैं, लेकिन जैसी की उनकी जलजला करने की फितरत है, वे मीडिया से दोस्ती के कारण अपना नाम चलाने में कामयाब तो हो ही गए हैं। तस्वीर बदले न बदले, हंगामा करना उनका मकसद होता है, सो वे करने में कामयाब हो गए हैं। इससे कम से कम भगत व हासानी की नींद तो हराम हो ही गई कि आखिर थदानी ने कौन सी गोटी फिट की है। बहरहाल, चंद दिनों में ही यह खुलासा हो जाएगा कि तकदीर की टोपी किसे मिलती है।