मंगलवार, 25 जनवरी 2011

क्या पायलट की नहीं है बजाड़ में रुचि?

अजमेर जिला परिषद सदस्य के लिए आगामी 28 जनवरी को होने जा रहे चुनाव में प्रत्यक्षत: यही नजर आता है कि कांग्रेस के प्रत्याशी सौरभ बजाड़ को केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का आशीर्वाद हासिल है, पार्टी के नाते भी यही माना जा रहा है, मगर कांग्रेस के अंदरखाने में चर्चा है कि असलियत कुछ और है। बताते हैं कि हालांकि शुुरआत में जब पायलट अजमेर आए तो बजाड़ उनके काफी करीब आ गए थे। असल में बजाड़ को जाना ही तब से जाने लगा था। उनकी चवन्नी अठन्नी में चलने लगी। लेकिन बाद में बताते हैं कि स्थितियों में परिवर्तन आया है। असल में पायलट के नाम से अनेक स्थानीय नेताओं ने जब अपना सिक्का चलाना शुरू कर दिया तो उन्होंने सावधानी बरतना शुरू कर दिया, क्यों कि उनकी किसी भी करतूत का खामियाजा तो पायटल को ही भुगतना पड़ता। लिहाजा पायलट ने उनकी फ्रंैचाइजी ले कर घूमने वालों से दूरी बनाना शुरू कर दिया। असल बात तो ये है कि स्थानीय किसी भी नेता की पायलट से सीधी बात नहीं होती। हद से उनके पीए अथवा बॉडी गार्ड से ही संपर्क कर पाते हैं। बजाड़ के मामले में भी ऐसा ही बताया जा रहा है कि जितना वरदहस्त माना जा रहा है, उतना है नहीं। कांग्रेस में एक चर्चा और है, वो ये कि बजाड़ को टिकट पायलट की नहीं, बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सी. पी. जोशी की सिफारिश पर मिला है। सच्चाई क्या है, अपुन को नहीं पता, मगर कांग्रेसी आपस में ऐसी चर्चा कर रहे हैं तो हो सकता है सच हो।
आखिर कब बंद होगा टे्रन की छत पर सफर?
ग्वालियर-उदयपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस की छत पर सफर कर रहे कांस्टेबल भर्ती परीक्षा देने आए तीन अभ्यर्थियों की मौत से एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर टे्रन की छत पर सफर कब बंद होगा?
हालांकि यह बात सौ फीसदी सच है कि जिन युवकों की मौत हुई, वे अनुशासित कहे जाने वाले बेड़े में शामिल होने को आए थे, मगर उन सहित अन्य सभी युवकों का अनुशासन से कोई ताल्लुक नहीं था, इस कारण हादसा हुआ, मगर रेलवे अधिकारियों का रवैया भी पूरी तरह से गैर जिम्मेदारी भरा है। उनका कहना है कि परीक्षार्थियों को ट्रेन की छत से नीचे उतरने को कहा गया, तो वे जीआरपी सिपाहियों पर बोतलें व अन्य सामान फैंकने लगे। यदि जबरदस्ती की जाती तो वे उत्पात करते। बस इसी डर से टे्रन को रवाना कर दिया गया। इस जवाब से यह साफ जाहिर है कि रेलवे अधिकारियों ने समझते-बूझते हुए भी लापरवाही बरती। रहा सवाल उत्पात मचाने का तो यह भी स्पष्ट है कि अगर ट्रेन के अंदर जगह नहीं होगी तो यात्री मजबूरी में आखिर छत पर ही बैठेगा, क्योंकि उसे यह पता है कि इसके तुरंत बाद दूसरी टे्रन नहीं है। और दूसरी व्यवस्था किए बिना नीचे उतारा जाएगा तो उत्पात मचाएंगे ही। होना तो यह चाहिए था कि रेलवे अधिकारी पूर्व के अनुभवों से सबक लेते हुए परीक्षार्थियों की भीड़ के मद्देनजर अतिरिक्त ट्रेनों की व्यवस्था पहले से करते और पुलिस का भी अतिरिक्त जाप्ता तैनात करते। मगर ये दोनों ही उपाय नहीं किए गए और नतीजतन हादसा हो गया।