सोमवार, 15 सितंबर 2014

फिर सुर्खियों में आ गई किरण शेखावत

ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की कार्यकर्ता श्रीमती किरण शेखावत को सुर्खियों में रहने की आदत हो गई है। वे अखबारों व टीवी चैनलों में छाने के लिए कोई न कोई ने बहाना तलाश ही लेती हैं। हालांकि जहां तक उनके नजरिये का सवाल है, वे अपनी ओर से तो किसी भी रूप अन्याय के खिलाफ संघर्ष करती दिखाई देना चाहती हैं। मगर चूंकि उनका तरीका आक्रामक ही होता है, इस कारण खबर का हिस्सा बन ही जाती हैं। 
आम आदमी पार्टी के मिशन विस्तार कार्यक्रम के तहत इंडोर स्टेडियम में आयोजित सम्मेलन में भी उन्होंने जम कर हंगामा किया कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। आयोजकों ने चूंकि उनकी उपेक्षा की थी, इस कारण आशंकित भी थे कि कहीं सम्मेलन स्थल पर आ कर हंगामा न कर दें, इस कारण पहले से ही पुलिस सुरक्षा मांग ली थी। आप के सदस्य राजेश कुमार राजोरिया ने तो किरण का नाम लिए बिना कह दिया कि पिछले दिनों पार्टी हेल्पलाइन नंबर पर एक महिला ने फोन करके अभद्रता की थी। इस घटना के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को आशंका थी कि कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान कुछ असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ सकते हैं। इसी आशंका के चलते प्रदेश कार्यकारिणी के दिशा-निर्देश पर एसपी से शिकायत की गई थी। एसपी के आदेशों पर कार्यकर्ता सम्मेलन में कोतवाली थाना पुलिस का जाप्ता तैनात किया गया। किरण को ये भी ऐतराज था कि उनका नाम पुलिस के पास क्यों था, इस कारण पुलिस से भी भिड़ गईं। 
बताया जाता है कि पार्टी ने उन्हें इस करतूत पर स्थानीय स्तर पर अनुशासन हीनता के आरोप में पार्टी से बाहर कर दिया है, मगर बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर अनुमति नहीं ली गई है।
आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी अजय सोमानी के ऐन वक्त पर नाम वापस ले लेने पर उन्होंने उत्तेजित हो कर उनका मुंह काला कर दिया था। इसी प्रकार उन्होंने पुष्कर के एक दवाई विक्रेता द्वारा प्रतिबंधित दवा बेचने का स्टिंग ऑपरेशन कर सुर्खियां पाई थीं। कुल मिला कर किरण की छवि एक हंगामाई नेता की बनती जा रही है।

कांग्रेस-भाजपा के जीत के अपने-अपने दावे

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा के जीत के अपने-अपने दावे हैं। भाजपा को जहां अपने पूरे तंत्र के चप्पे-चप्पे पर छा जाने का भरोसा है तो वहीं कांग्रेस कुछ अहम समीकरणों के चलते हुए जीत का आशा पाले हुए है।
असल में इस चुनाव को चूंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने यह कह कर कि ये चुनाव रामनारायण गुर्जर व सरिता गेना के बीच नहीं, बल्कि स्वयं उनके और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच है, प्रतिष्ठा का प्रश्र बना लिया और इस पर वसुंधरा राजे ने भी पूरी ताकत झोंक दी, इस कारण एक-एक वोट के लिए जबरदस्त रस्साकशी हुई। भाजपा के विधायकों ने डेरा डाल कर घर-घर जनसंपर्क किया। वसुंधरा ने जोर दे कर कह दिया था कि इस चुनाव में किसी तरह की कोर कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए। इस कारण भाजपा नेताओं ने इनाम की लालच में पूरी ताकत झोंक दी।  भाजपा को मिलने वाले वोटों की इतनी बारीक छंटनी की गई कि उस तक कांग्रेस सोच भी नहीं सकती थी। वैसे भी भाजपा को उम्मीद है कि वह चूंकि पहले से ही अच्छी खासी बढ़त में है और केन्द्र व राज्य में उनकी सरकार है, इसका पूरा फायदा मिलेगा। हालांकि खुद भाजपा प्रत्याशी श्रीमती सरिता गेना की हालत तो ये रही कि उन्हें कुद पता ही नहीं रहा कि आखिर चुनाव लड़ा कैसे जा रहा है, मगर पार्टी की एकजुटता अच्छे परिणाम की उम्मीद पैदा कर रही है।
दूसरी ओर सचिन ने भी पूरी ताकत झोंक रखी थी। वे चाहते हैं कि अपने संसदीय क्षेत्र की गुर्जर बहुल इस सीट पर किसी भी स्थिति में जीत हासिल की जाए, ताकि उनका राजनीतिक कद स्थापित हो। कांग्रेसी मानते हैं कि उनके प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को स्थानीय होने का पूरा लाभ मिलेगा। उन्हें नसीराबाद का बच्चा-बच्चा जानता है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के छह बार के विधायक काल के दौरान उन्होंने न जाने कितने लोगों के निजी काम किए हैं, इस कारण वे मानते हैं कि वे इतने तो अहसान फरामोश तो नहीं होंगे। यूं भी आम लोगों में यह धारणा देखी गई कि गुर्जर तो उन्हें सहज सुलभ हैं, जबकि सरिता गेना को तलाशने अजमेर जाना होगा।  कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि मतदान प्रतिशत का गिरना और मोदी लहर का असर कम होने का उन्हें लाभ मिलेगा। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, आंकड़े यही बताते हैं कि जाटों की तुलना में गुर्जरों ने ज्यादा लामबंद हो कर मतदान किया।
कुल मिला कर दोनों पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। अब किसकी बाजुओं में कितना दम रहा, ये तो 16 सितंबर की सुबह उगने वाला सूरज ही बता पाएगा।