शनिवार, 13 अप्रैल 2013

क्या नाजिम और दरगाह कमेटी की गैर माजूदगी में ही होगा उर्स?


एक ओर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हुए बम विस्फोट के बाद यह अति अति संवेदनशील धर्मस्थलों में शुमार है, दूसरी ओर हालत ये है कि आगामी 7 मई से ख्वाजा साहब का उर्स शुरू होने जा रहा है, मगर अजमेर में न तो नाजिम की नियुक्ति हो पाई है और न ही दरगाह कमेटी का गठन किया गया है। यह संभवत: पहला मौका है, जबकि दरगाह के अंदरूनी इंतजामात के लिए बनी दरगाह कमेटी का सात माह से पुनर्गठन नहीं हुआ है और कमेटी के पदेन सचिव नाजिम का पद खाली पड़ा हुआ है। यह केन्द्र सरकार की घोर लापरवाही की इंतहा है। ऐसे में जाहिर है इस क्षेत्र के लोगों में गुस्सा होना लाजिमी है। वह फूट भी पड़ा और नेशनल यूथ कौमी एकता कमेटी के अध्यक्ष उस्मान घडिय़ाली के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने दरगाह गेस्ट हाउस के सामने मंत्री के. रहमान का पुतला फूंक दिया।
यहां ज्ञातव्य है कि दरगाह कमेटी भारत सरकार के अधीन एक संवैधानिक संस्था है, जिसका गठन संसद द्वारा पारित दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 के तहत किया जाता है और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोग इसके सदस्य नियुक्त किए जाते हैं। इस कमेटी का कार्यकाल पिछली 24 जुलाई को समाप्त हो गया, मगर नए सदस्यों की नियुक्ति अब तक अटकी हुई है। उल्लेखनीय है कि कमेटी सदस्यों का मनोनयन केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सलमान खुर्शीद को करना था। मगर केंद्र सरकार के कोयला ब्लॉक घोटाला प्रकरण में उलझे होने के कारण मामला लंबित पड़ा रहा। इसके बाद खुर्शीद विदेश मंत्री बना दिए गए, जब कि उनकी जगह मंत्रालय का जिम्मा के. रहमान को दिया गया, मगर उन्होंने भी इस बाबत कोई रुचि नहीं ली। इतना ही नहीं दरगाह कमेटी का प्रशासनिक इंतजाम करने वाले नाजिम का पद भी फरवरी 2011 से रिक्त है। तत्कालीन नाजिम अहमद रजा के बाद कुछ समय के लिए अब्दुल मजीद खान इस पद पर रहे, लेकिन उनके रिटायरमेंट के बाद से कोई नाजिम नहीं आया। वर्तमान में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय में उपसचिव मोहम्मद अफजल को ही अतिरिक्त चार्ज नाजिम का दिया हुआ है, जो कि दिल्ली में रहते हैं। मंत्रालय ने नाजिम पद के लिए एक बार पूरी भर्ती प्रक्रिया कर ली थी। नाजिम के पद पर सैन्य अफसर राशिद अब्बास अंसारी की नियुक्ति हो चुकी थी, लेकिन वे ज्वाइन करने ही नहीं पहुंचे। इस पद दूसरी बार प्रक्रिया शुरू की गई, उसका भी परिणाम नहीं आया।
स्वाभाविक सी बात है कि दरगाह कमेटी व नाजिम के अभाव में दरगाह विकास के कार्य अटके हुए हैं। जायरीन की सुविधा के लिए किए जाने वाले विभिन्न कार्य भी अधूरे पड़े हैं। दरगाह कमेटी के अमले को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। छोटे-छोटे से बिल को पास कराने के लिए कमेटी के प्रतिनिधि को दिल्ली जाना पड़ता है। इन सबसे ज्यादा गंभीर बात ये है कि उर्स सामने है, मगर दरगाह के अंदरूनी इंतजामात को अमली जामा पहनाने वाली संस्था और उसके प्रतिनिधि की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है। इससे साबित होता है कि अति संवेदनशील मानी जाने वाली दरगाह के प्रति सरकार गंभीर नहीं है। उसकी लापरवाही का ही सबूत है कि दरगाह क्षेत्र विकास के लिए तीस सौ करोड़ की योजना बनी मगर, उसे गाय खा गई। अब जब कि लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा फूट पड़ा है, देखते हैं कि क्या सरकार कानों पर जूं रेंगती है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर