रविवार, 30 मार्च 2014

हम इसलिए ताकते हैं बाहरी नेताओं की राह

यह अजमेर का दुर्भाग्य है कि चुनाव के दौरान कांग्रेस व भाजपा में स्थानीय दावेदारों के होते हुए भी बाहरी नेताओं के आने की चर्चा होती है।  स्थानीय दावेदार भी यही मानस बना कर रखते हैं कि उन्हें तो मौका मिलने वाला है नहीं, सो बाहर से जो भी प्रत्याशी आएगा, उसका पार्टी के प्रति निष्ठा के नाम पर स्वागत करना ही है।
असल में राजनीति के लिहाज से अजमेर को चरागाह माना जाता है। पार्टियों के हाईकमान जानते हैं कि यहां से किसी की दमदार दावेदारी है नहीं, सो जिस किसी को भी एडजस्मेंट के लिए यहां भेजा जाएगा, उसे यहां के दावेदार व जनता शिरोधार्य करेगी।
बाहर के नेताओं के अजमेर में पनपने का एक लंबा सिलसिला है। रोचक तथ्य है कि वर्षों से यहां बसे अनेक नेता भी कभी बाहर से ही यहां आए और आज अपना वजूद रखते हैं। वे भले ही अब स्थानीय कहे जाएं और यहीं रच-बस गए हैं, मगर वास्तविकता से कैसे नकारा जा सकता है कि वे बाहर से आ कर ही यहां पनपे हैं। मौजूदा भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का उदाहरण तो सबको पता है। कुछ नेताओं का जिक्र करें तो आप भी चौंक जाएंगे। यथा सर्वश्री औंकार सिंह लखावत, धर्मेश जैन, पूर्णाशंकर दशोरा, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, भंवर सिंह पलाड़ा आदि आदि। तत्कालीन अजमेर नगर परिषद के सभापति स्वर्गीय वीर कुमार भी बाहर से ही यहां आए थे। विष्णु मोदी भी बाहर से आ कर कांग्रेस के सांसद बने और बाद में भाजपा के टिकट पर मसूदा विधायक चुने गए। यहां जन्मे नेता भी स्थापित हुए हैं, मगर उनकी संख्या कम ही है।
वस्तुत: स्थानीय नेताओं के स्थापित न होने का मूल कारण ये है कि वे कभी अपना जनाधार नहीं बना पाए। चुनाव के वक्त उनकी दावेदारी होती जरूर है, मगर जनाधार न होने के कारण पार्टियां उनको तवज्जो नहीं देतीं। आपको याद होगा कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हाईकमान ने स्थानीय इकाई की ओर से डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का नाम प्रस्तावित करने के बाद भी सचिन पायलट को प्रत्याशी बनाया। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि जरूर डॉ. बाहेती के जनाधार में कोई कमी रही होगी, जो पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर दिया। भाजपा ने भी हाई प्रोफाइल सचिन से मुकाबला करने के लिए स्थानीय दावेदार प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व मंत्री प्रो.सांवरलाल जाट, धर्मेन्द्र गहलोत, सरिता गेना, पुखराज पहाडिय़ा, मदनसिंह रावत, भंवरसिंह पलाड़ा, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, डॉ. भगवती प्रसाद सारस्वत, डॉ. कमला गोखरू आदि को साइड में रख कर उदयपुर की श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतार दिया। स्थानीय एक भी दावेदार में इतनी कुव्वत नहीं थी कि वह पार्टी नेताओं को चुनौती दे सके। स्पष्ट है कि उनका जनाधार नहीं था। इसी प्रकार जब पहली बार प्रो. देवनानी अजमेर लाए गए तो यहां हरीश झामनानी, तुलसी सोनी, जगदीश वच्छानी सरीखे दावेदार थे, मगर भाजपा हाईकमान ने उन्हें उपयुक्त नहीं माना।
अब बात करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि स्थानीय नेताओं का जनाधार बन नहीं पाता। इसकी एक मात्र वजह यही समझ में आती है कि ये नेता ग्राउंड पर ठीक से काम नहीं करते और मात्र पार्टी में सक्रियता के नाते टिकट मांगते हैं। जनता में उनकी पकड़ तो होती नहीं है, केवल पार्टी सिंबल के दम पर चुनाव लडऩा चाहते हैं। यदि यही नेता पहले जनता की सेवा करें व अपनी लोकप्रियता स्थापित करें और उसके बाद टिकट की दावेदारी करें तो पार्टी हाईकमान उसे नजर अंदाज नहीं कर सकता। हाईकमान जानता है कि अगर इनको टिकट नहीं दिया गया तो जनता उसका साथ देने को तैयार नहीं होगी। यदि कोई वास्तविक जननेता हो तो उसे दरकिनार करने से पहले हाईकमान को भी दस बार सोचना होगा।
रहा जनाधार का सवाल तो वह बनता इसलिए नहीं है कि स्थानीय नेता ठेठ जमीन पर जनसमस्याओं के लिए तो काम करते नहीं हैं। छिटपुट उदाहरणों को छोड़ दिया जाए तो यह याद नहीं आता कि किसी नेता ने स्थानीय किसी समस्या के लिए जन आंदोलन खड़ा किया हो। शहर की सबसे बड़ी समस्या यातायात व पार्किंग की है, मगर आज तक कोई ऐसा आंदोलन नहीं हुआ कि प्रशासन को मजबूर हो कर इसका समाधान करना पड़ा हो। जिन दिनों पानी की विकट समस्या थी, तब भी कोई बड़ा जन आंदोलन नहीं हुआ। दैनिक नवज्योति के संपादक श्री दीनबंधु चौधरी व युवा भाजपा नेता श्री भंवर सिंह पलाड़ा ने आईआईटी के लिए एक आंदोलन खड़ा किया, मगर उसे पूरा जनसमर्थन नहीं मिला। परिणाम स्वरूप सरकार पर दबाव नहीं बनाया जा सका। यूं आंदोलन हुए हैं, मगर केवल पार्टी बैनर पर। उसमें किसी नेता विशेष की निजी भूमिका नहीं रही। नतीजा ये है कि आज अजमेर एक भी नेता ऐसा नहीं है, जिसकी एक आवाज पर पूरी जनता साथ खड़ी हो जाए। यानि कि जब तक स्थानीय नेता जनता पर अपनी पकड़ नहीं बनाएंगे, पार्टी हाईकमान इसी प्रकार बाहरी नेताओं को पेराटूपर की तरह उतारते रहेंगे।

शनिवार, 29 मार्च 2014

विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण पहले से नाराज थे शक्तावत

केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधान भूपेंद्र सिंह शक्तावत का कांग्रेस में शामिल होना भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल के लिए एक बड़ा झटका है। उनका सावर सताईसा क्षेत्र में खासा प्रभाव है और इससे राजपूत वोटों का धु्रवीकरण कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट की ओर हो सकता है। उल्लेखनीय बात ये है कि वे अकेले नहीं बल्कि दल-बल के साथ आए हैं। भाजपा की जिला मंत्री आशा कंवर राठौड़, केकड़ी देहात महिला मोर्चा अध्यक्ष सज्जन कंवर राठौड़, सरपंच सावर पुष्पेंन्द्र सिंह शक्तावत, पूर्व पंचायत समिति सदस्य गोपी लोधा, पूर्व पंचायत समिति सदस्य मांगी लाल धोबी, पंचायत समिति सदस्य नारायण मीणा आदि भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
आपको बता दें कि शक्तावत भाजपा से पहले ही नाराज चल रहे थे। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में वे टिकट के प्रबल दावेदार थे, मगर भाजपा ने ऐन वक्त पर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए शत्रुघ्र गौत्तम को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया था। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में हुई वसुन्धरा राजे की सभा में मंच पर दिखाई दिये थे, मगर चर्चाएं यही थीं कि उनकी सक्रिय भागीदारी के अभाव रहा।
इससे पहले 2008 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा से बगावत कर चुके हैं। पार्टी ने श्रीमती रिंकू कंवर को प्रत्याशी बनाया, इस पर उन्होंने बगावत कर दी। उन्हें 17 हजार 801 वोट मिले थे। रिंकू हार गईं और कांग्रेस के रघु शर्मा जीत गए थे।

यानि कि भाजपा से हुई थी आप के सोमानी की डील

अजमेर संसदीय क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अजय सोमानी ने किससे डील करके मैदान से हटने निर्णय किया, इसका खुलासा हो पाता, उससे पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता व नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन ने खुद खुलासा कर दिया कि उन्होंने ही सोमानी को समझाया था कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा को समर्थन दें। इससे यह साफ हो गया है कि सोमानी भाजपा नेताओं के दबाव में थे। डील में क्या हुआ, कितने में हुई, आगे क्या फायदा देना तय हुआ, ये तो पता नहीं, मगर समझा जा सकता है कि इस आर्थिक युग में भला कौन केवल समझाइश से मान जाता है। जो कुछ भी हो जैन ने अंदर की बात का खुलासा करके सोमानी को मैदान से हटवाने का श्रेय तो ले लिया है। अब ये पता नहीं कि मुंह पर स्याही पुतवाने की एवज में जैन ने उनको भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट से कुछ दिलवाने का तय करवाया है या नहीं।
इसी सिलसिले में एक कानाफूसी पर भी जरा गौर करें। वो ये कि जिस आखिरी बैठक में सोमानी ने मैदान से हटने का निर्णय सुनाया, उसमें कहा बताया कि चूंकि वे खुद तो जीत नहीं पाएंगे, इस कारण बेहतर ये है कि वे हट जाएं ओर मोदी को रोकने के लिए कांगे्रेस का समर्थन करें। इस पर बैठक में मौजूद कार्यकर्ता भड़क गए थे।
अब बात करें ये कि क्या वाकई सोमानी के हटने से भाजपा को लाभ होगा? कुछ लोग मानते हैं कि माहेश्वरी समाज में उनका अच्छा नेटवर्क है, मगर वे इतने बड़े नेता भी नहीं कि उनके कहने से माहेश्वरी समाज के लोग वोट डालने के बारे में निर्णय करने जा रहे थे या अब करेंगे। सच तो ये है कि उन्हें आप के कार्यकर्ता ही ठीक से नहीं जानते। उलटा कार्यकर्ताओं को एक बड़ा गुट उनके खिलाफ था। सोमानी से मैदान से हटने का एक कारण ये भी था। वे नामांकन भरने वाले दिन से ही कुछ निराश से थे। वे मैदान से हट न जाएं, इस बात की आशंका कार्यकर्ताओं को पहले से ही हो गई थी। समझा जा सकता है कि वरना पहले से स्याही का इंतजाम कैसे हो गया?
हां, इतना जरूर है कि बैलेट पर चूंकि अब आम आदमी पार्टी का सिंबल नहीं होगा, इस कारण जो कांग्रेस विरोधी वोट पहले सोमानी को मिलने की संभावना थी, वह अब भाजपा की ओर जा सकता है। मगर इसमें सोमानी का कोई लेना-देना नहीं होगा। एक बात और। सोमानी के हटने के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा और किंकर्तव्यविमूढ़ है कि अब वह क्या करे? संभव है पार्टी की ओर से निर्देश आएं कि वे नोटा का बटन दबाने की अपील करें।
-तेजवानी गिरधर

यानि कि पार्षद चंद्रकांता पारलेचा का भाजपा टिकट तो पक्का समझें

लोकसभा चुनाव की रेलमपेल में अजमेर नगर निगम की पार्षद चंद्रकांता पारलेचा ने भाजपा में शामिल हो कर अपना अगला टिकट पक्का कर लिया है। ज्ञातव्य है कि चंद्रकांता के पति विमल पारलेचा भाजपा के पार्षद रह चुके हैं। निगम चुनाव में उन्होंने पिछली बार अपनी पत्नी के लिए भाजपा से टिकट मांगा था और पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर चंद्रकांता चुनाव में निर्दलीय खड़ी हुई थीं। जीत के बाद कांग्रेस में शामिल हो गईं। वे उप महापौर के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी भी थीं। इसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। कानाफूसी है कि अब जब कि उन्होंने पाला बदल लिया है तो उन्होंने तकरीबन एक साल बाद होने वाले नगर निगम चुनाव में अपना टिकट पक्का कर लिया है। जाहिर सी बात है कि वे आगामी पांच साल राज्य में भाजपा सरकार का तो लुत्फु लेंगी ही, दुबार पार्षद बनने का चांस भी हासिल करेंगी।

किस डील के तहत नाम वापस लिया आप के सोमानी ने



अजमेर में अन्ना हजारे के आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी की स्थापना से जारी कलह लोकसभा चुनाव में आखिर इस कदर फूटी कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी अजय सोमानी ने मैदान ही छोड़ दिया। जाहिर तौर पर इससे कार्यकर्ताओं में गुस्सा फूट पड़ा और इस हरकत पर टिकट की एक दावेदार श्रीमती किरण शेखावत ने सोमानी के मुंह पर कालिख पोत दी। इस सनसनीखेज वारदात के बाद एक बड़ा सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि आखिर ऐसी क्या डील हुई कि सोमानी ने टिकट मिलने के बाद नामंाकन पत्र भी दाखिल किया, मगर रणछोड़दास बनने को मजबूर हो गए। कार्यकर्ता इस बात का पता लगाने में जुटे हुए हैं कि उनकी डील किसी पार्टी से हुई।
जहां तक उनके नाम वापस लेने का सवाल है कि अपुन ने पहले ही बता दिया था कि नामांकन दाखिल करने के बाद अपेक्षित उत्साह व सक्रियता नहीं दिखाये जाने से कार्यकर्ता हतप्रभ और सशंकित हैं। उन्हें आशंका थी कि कहीं सोमानी नाम वापस न ले लें। और हुआ भी यही। सोमानी ने गुपचुप तरीके से नाम वापस ले लिया, मगर गुस्साए कार्यकर्ता उनके पीछे लगे हुए थे। उन्होंने सोमानी के खिलाफ जम कर नारे लगाए और टिकट की ही एक दावेदार श्रीमती किरण शेखावत ने स्याही डाल कर उनका मुंह काला कर दिया।
कहने की जरूरत नहीं है कि सोमानी को लेकर आरंभ से आम सहमति नहीं थी। उनके टिकट के दावे को रिजेक्ट कर दिया गया था और आखिरी विकल्प के रूप में एनजीओ चलाने वाले प्रिंस सलीम का नाम फाइनल कर दिया गया था। मगर आखिरी क्षणों में आनाकानी करने पर जल्दबाजी में सोमानी का नंबर आ गया। पार्टी हाईकमान के इस निर्णय से नाराज नील शर्मा उर्फ श्याम सुंदर शर्मा, सरस्वती चौहान व मौंटी राठौड़ उर्फ पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़ सरीके कर्मठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

मांगते रहे कांग्रेस से टिकट, न मिला तो भाजपा में आ गए दुष्यंत सिंह

कांग्रेस के पूर्व मंत्री राव मसूदा नारायण सिंह के पुत्र एवं पूर्व पीसीसी सदस्य दुष्यंत सिंह आखिरकार कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। असल में पिछले चार-पांच विधानसभा चुनावों में हर बार कांग्रेस टिकट मांगते रहे हैं। इसके लिए अपने जयपुर-दिल्ली के अपने तगड़े संपर्कों का भी इस्तेमाल करते रहे, मगर टिकट की जुगाड़ कभी बैठा ही नहीं। जिले की सभी विधानसभा सीटों के जातीय समीकरणों में उलझे होने के कारण उनके लिए कभी गुंजाइश बनी ही नहीं। वैचारिक रूप से भाजपा की ओर तनिक अधिक झुकाव रखने वाले राजपूत समाज का होने के कारण भी उन्हें कई बार कांग्रेस में घुटन महसूस होती थी। संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते हाई प्रोफाइल जिंदगी जीने के कारण भी उन्हें रफटफ कांग्रेसी राजनीतिज्ञों के बीच दिक्कत महसूस होती थी। कानाफूसी है कि धरातल का सच समझते हुए ही उन्होंने भाजपा में शामिल होने का निर्णय किया है। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अगली बार पूरी ताकत से भाजपा का टिकट हासिल करने की कोशिश करेंगे।
आपको बता दें कि उनके पिता राव नारायण सिंह मसूदा 1952 में अजमेर विधानसभा में निर्दलीय निर्वाचित हुए और विपक्षी नेता की भूमिका अदा की। 1956 में कांग्रेस के सदस्य बने और 1962 में मसूदा से राजस्थान विधानसभा के उपाध्यक्ष बने। 1967 से 73 तक अनेक विभागों के मंत्री रहे। उन्होंने 1958 में लघु उद्योगों का अध्ययन करने, 1960 में कॉमन वैल्थ पार्लियामेंट्री कांफ्रेंस में भाग लेने, 1962 में एशियन सोलीडेरिटी की ओर से, 1965 में विश्व शांति सम्मेेलन और कॉमन वैल्थ कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए क्रमश: लंदन, रूस, फिनलैंड व विलिंग्टन का दौरा किया। 

गुरुवार, 27 मार्च 2014

क्या चौधरी को भाजपा ने लेने से इंकार कर दिया?

देखो कैसे दबंग नेता चौधरी वसुंधरा राजे के सामने खीसें निपोर रहे हैं?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार सचिन पायलट से नाइत्तफाकी के चलते भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवर लाल जाट का साथ देने वाले अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को क्या भाजपा नेताओं ने पार्टी में शामिल होने से इंकार कर दिया? ये सवाल उठता है, किशनगढ़ के पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया के उस बयान के कारण जिसमें उन्होंने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का समर्थन तो ले लिया लेकिन उन्हें भाजपा में प्रवेश नहीं दिया। ऐसा करके भाजपा ने चतुराई दिखाई है। इस बारे में सिनोदिया ने मन्तव्य है कि भाजपा यह जानती है चौधरी को भाजपा में प्रवेश देते ही वह अपना हिस्सा मांगेंगे। पार्टी में प्रवेश कर लिया तो वही उठापटक और अनुशासनहीनता भाजपा में करेंगे। सिनोदिया की चुटकी में अंतर्निहित आशंका कितनी सही है, ये तो पता नहीं, मगर ये बात सही है कि तकरीबन पैंतीस साल कांग्रेस में रहने के बाद बुढ़ापे में आ कर भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करने की घोषणा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मंच पर करना भाजपामय होना ही तो है। भाजपा में शामिल होने में बाकी रह भी क्या गया?
जो कुछ भी हो सिनोदिया का मुद्दा वाकई गौर करने लायक है। इससे सवाल ये उठता है कि क्या चौधरी भाजपा ज्वाइन करना चाहते थे? क्या भाजपा नेताओं ने उन्हें पार्टी में लेने से इंकार कर दिया? क्या जिस कांग्रेस को भाजपाई पानी पी पी कर कोसने हैं, उसके कट्टर नेता को गले लगाने के आरोप से बचना चाहते हैं? क्या चौधरी केवल पायलट का विरोध करने मात्र के लिए प्रो. जाट का समर्थन करना चाहते हैं और बुढ़ापे में विचारधारा बदल लेने के आरोप से बचना चाहते हैं? क्या खुद को तनिक बचा कर रखने पर उन्हें भविष्य में फिर कांग्रेस में लौटने की उम्मीद है, जबकि अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष स्वयं सचिन पायलट हैं?
असल में चौधरी की ये हालत इस कारण हुई है कि उनकी ऊपर की लॉबी अब कमजोर हो गई है। एक जमाने में वे दिग्गज जाट नेता स्वर्गीय परसराम मदेरणा के खासमखास हुआ करते थे। इसी के चलते वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक से भिड़ लेते थे। जिन दिनों मदेरणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे, तब हुए विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश के टिकट के दावेदारों को चौधरी की टांग के नीचे से गुजरना पड़ा था। यानि उनकी चवन्नी रुपए में चलती थी। मदेरणा रहे नहीं और उनके पुत्र महिपाल मदेरणा जेल में हैं। महिपाल मदेरणा की धर्मपत्नी लीला मदेरणा विधानसभा चुनाव में अपना गढ़ तक नहीं बचा पाईं। चौधरी स्वर्गीय रामनिवास मिर्धा और हरेन्द्र मिर्धा के भी खास रहे हैं, मगर अब हरेन्द्र मिर्धा खुद ही हाशिये पर हैं। विधानसभा चुनाव में नागौर से निर्दलीय चुनाव लड़ कर हार जाने के बाद वे खुद ही अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
कयास ये भी है कि चूंकि अब कांग्रेस में एंट्री की गुंजाइश रही नहीं और पूरे पांच साल भाजपा की सरकार रहनी है, ऐसे में सुकून की जिंदगी बिताने के लिए चौधरी ने जाट का समर्थन करने का निर्णय किया है।
यूं चौधरी स्वयं भी दमदार नेता रहे हैं। वे 1974 से डेयरी आंदोलन से जुड़े हुए हैं और दस साल तक देहात कांग्रेस के अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे हैं। उनका डेयरी नेटवर्क इतना तगड़ा है कि देहात कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद भी उन्होंने अजमेर डेयरी पर कब्जा बरकरार रख दिखाया। उनका पूरा राजनीतिक जीवन उखाड़-पछाड़ वाला रहा है। वे अकेले अपने दम पर कई बार भीड़ जुटा कर दिखा चुके हैं। अब ये पता नहीं कि उनके जाट का समर्थन करने से कितना विशेष फर्क पड़ेगा, क्योंकि अधिसंख्य जाट मतदाता तो वैसे भी सांवरलाल को वोट देने वाले हैं।
-तेजवानी गिरधर

जारी है आम आदमी पार्टी में कलह

अजमेर में अन्ना हजारे के आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी की स्थापना से जारी कलह लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में अजय सोमानी की घोषणा के बाद भी जारी है। कई कार्यकर्ता पार्टी हाईकमान के इस निर्णय से नाराज हैं। कुछ खुल कर बोल रहे हैं तो कुछ अंदर ही अंदर कुढ़ रहे हैं। अनेक कार्यकर्ता असहयोग का रुख अपनाए हुए हैं। वे अपने घरों से ही बाहर नहीं निकल रहे। नील शर्मा उर्फ श्याम सुंदर शर्मा, सरस्वती चौहान व मौंटी राठौड़ उर्फ  पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़ सरीके कर्मठ कार्यकर्ताओं ने तो पार्टी छोडऩे का ही ऐलान कर दिया है। उन्होंने अपने त्याग पत्र में लिखा है कि पार्टी अपने सिद्धांतों से भटक गई और पार्टी संविधान का प्रतिदिन उल्लंघन हो रहा है। केजरीवाल की नीतियों को उन्होंने अराजकतावादी करार दिया है। वे खुद ही संविधान बनाते हैं और खुद की उसका उल्लंघन करते हैं।
समझा जा सकता है कि पार्टी की इस हालत का सोमानी को नुकसान उठाना पड़ेगा। बहरहाल, इन हालात के चलते सोमानी के मन में निराशा का भाव आ सकता है। नामांकन पत्र भरने के बाद अपेक्षित उत्साह व सक्रियता नहीं दिखाये जाने से कार्यकर्ता हतप्रभ और सशंकित हैं।
कहने की जरूरत नहीं है कि सोमानी को लेकर आरंभ से आम सहमति नहीं थी। उनको रिजेक्ट कर दिया गया था और आखिरी विकल्प के रूप में एनजीओ चलाने वाले प्रिंस सलीम का नाम फाइनल कर दिया गया था। अगर वे आखिरी क्षणों में आनाकानी नहीं करते तो सोमानी का नंबर आता ही नहीं।

ललित भाटी के मान जाने के मायने?

पूर्व उपमंत्री ललित भाटी आखिरकार मान गए। उनका सम्मान करते हुए स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट उनके घर गए। अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि भले ही भाटी ने सचिन के नामांकन के दौरान अनुपस्थित हो कर अपनी नाराजगी दर्शायी हो, मगर उनकी प्रमुख सहयोगी महिला कांग्रेस नेत्री प्रमिला कौशिक की मौजूदगी इसका अहसास कराती है कि रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं।
असल में ललित भाटी साथ तो सचिन के ही थे, मगर अपेक्षित सम्मान न मिलने के कारण आखिरी दौर में छिटक गए। जाहिर तौर पर उनके भाई हेमंत भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट दिलवाए जाने के बाद उनकी दूरी और बढऩी ही थी। आपको याद होगा कि अजमेर जिले में कांग्रेस की हार के लिए उन्होंने सीधे तौर पर सचिन को ही जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद सुलह की संभावनाएं लगभग शून्य हो गई थीं। एक संभावना महज इस कारण बाकी रह गई थी कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपने भाई हेमंत का खुल कर कोई विरोध नहीं किया था।
ज्ञातव्य है कि 208 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले ललित भाटी को पिछले लोकसभा चुनाव में सचिन काफी मान-मनुहार से वापस लाए थे। उसका सकारात्मक परिणाम ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 वोटों से भाजपा और पिछड़ गई। रेखांकित की जाने वाली यह उपलब्धि कदाचित सचिन के ख्याल में रही। हालांकि हेमंत भाटी को कांग्रेस में लाए जाने के बाद कांग्रेस की कोली वोटों पर पकड़ बरकरार रही, मगर ललित भाटी के भी मान जाने से कांग्रेस को और मजबूती मिलेगी।
अब सवाल सिर्फ यही उठ रहा है कि सचिन ललित भाटी को मनाने में कामयाब कैसे हुए? स्वाभाविक सी बात है कि उन्हें उनके कद के अनुरूप अपेक्षित सम्मान फिर से दिए जाने के वादे पर सुलह हुई होगी। भाटी के लिए भी बेहतर यही था कि मुख्य धारा में ही बने रहें। भाजपा का साथ देने पर उनकी वहां कोई खास कद्र नहीं होती, क्योंकि वहां पहले से अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार जीती श्रीमती अनिता भदेल पहले से कब्जा जमाए बैठी हुई हैं। और कांग्रेस के समान विधारधारा वाली बसपा व सपा का राजस्थान में कोई वजूद बन नहीं पाया है। खैर, कांग्रेस के लिहाज से वे बेशक शाबाशी के पात्र हैं कि दलबदल के प्रचंड दौर में अन्य बड़े कांग्रेसी नेताओं की तरह उन्होंने धुर विरोधी विचारधारा वाली भाजपा में शामिल होने का निर्णय नहीं लिया। कुल मिला कर अजमेर डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी को छोड़ कर लगभग सभी प्रमुख नाराज कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं को राजी कर लेना सचिन की उपलब्धि है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही नाराज नेताओं को संगठन में कहीं न कहीं एडजस्ट कर लिया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 26 मार्च 2014

प्रिंस सलीम की आनाकानी के बाद मिला सोमानी को आप का टिकट

अजय सोमानी
अजमेर लोकसभा क्षेत्र के लिए आम आदमी पार्टी ने एलजीओ चलाने वाले प्रिंस सलीम का टिकट फाइनल कर दिया था, मगर आखिरी वक्त में आनाकानी की वजह से उनके नाम की घोषणा रोकी गई और आनन-फानन में पूर्व दावेदारी कर चुके अजय सोमानी को टिकट दे दिया गया। दिलचस्प बात ये है कि पहले पार्टी उन्हें टिकट नहीं देना चाहती थी।
आपको याद होगा कि अपुन ने इसी कॉलम में पांच दिन पहले बता दिया था कि पार्टी की नजर प्रिंस सलीम पर है। उन्हें टिकट का दावा करने वाले आठ दावेदारों की तुलना श्रेष्ठ माना गया था। उसके पीछे नजरिया था कि वे कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध मार सकते थे। उनकी छवि भी पार्टी को सूट कर रही थी। कानाफूसी है कि ऐन वक्त पर ये बात सामने आई कि पार्टी उनका चुनावी खर्चा वहन करने को तैयार नहीं है और नामांकन के 25 हजार सहित सारा चुनावी खर्चा अपने स्तर पर चंदा एकत्रित करने को कहा जा रहा है तो बात बिगड़ गई। उनके नाम की घोषणा रोक दी गई। एक बार तो यह मानस बना कि अजमेर में प्रत्याशी खड़ा ही नहीं किया जाए, मगर चूंकि प्रदेश अध्यक्ष राज्य की सभी 25 सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुके थे, इस कारण तुरत-फुरत में अजय सोमानी का नाम तय कर दिया गया।
ज्ञातव्य है कि पहले सबसे प्रबल दावेदार अन्ना आंदोलन का नेतृत्व कर चुकी और बाद में पार्टी में अजमेर प्रभारी बनीं श्रीमती कीर्ति पाठक थीं, मगर उनका विरोध हो गया। इसी प्रकार पार्टी की राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य शहनाज हिंदुस्तानी का नाम तो काफी दिन पहले तय हो गया, मगर उनका भी विरोध हो गया। नतीजतन फेसबुक पर ही कार्यकर्ता भिड़ गए। दावा श्रीमती शेखावत अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की महिला इकाई की राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष, राजपूत एकता मंच व महिला मोर्चा में पुष्कर विधानसभा क्षेत्र की अध्यक्ष और सामाजिक परिवर्तन फाउंडेशन की राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष ने भी किया था। पार्टी की नजर अजमेर की पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता पर भी थी, मगर उन्होंने आनाकानी कर दी। कुल मिला कर सोमानी को आखिरी विकल्प के रूप में मैदान में उतारा गया है। कानाफूसी ये भी है कि फिलवक्त पार्टी के कई कार्यकर्ता उनके नाम पर सहमत नहीं हैं।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 25 मार्च 2014

रूठे हुए अधिसंख्य कांग्रेसी नेता आए मुख्य धारा में

इसमें कोई दोराय नहीं कि महेन्द्र सिंह रलावता को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कुछ वरिष्ठ नेताओं का एक गुट नाराज चल रहा था, मगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सचिन पायलट के दुबारा अजमेर से ही चुनाव लडऩे पर उसमें से अधिसंख्य नेता उनके साथ आ गए हैं। बेशक इसके लिए सचिन के चुनाव मैनेजरों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है।
सचिन के नामांकन पत्र भरने के दौरान पूर्व शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल, डॉ. राजकुमार जयपाल, डॉ. श्रीगोपाल बोहती, कुलदीप कपूर, डॉ. सुरेश गर्ग आदि की मौजूदगी दर्शाती है कि वे फिर मुख्य धारा में लौट आए हैं। बताया ये भी जाता रहा है कि पूर्व विधायक त्रय श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ, महेन्द्र सिंह गुर्जर व नाथूराम सिनोदिया की भी कुछ नाइत्तफाकी रही है, मगर वे भी इस दौरान मौजूद रहे। इतना ही नहीं पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी ने भी आ कर मोर्चा संभाल लिया है। मजे की बात ये है कि हाल ही विधानसभा चुनाव में केकड़ी में डॉ. रघु शर्मा को हराने की प्रमुख वजह बने पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी सचिन के साथ नजर आए। सनद रहे कि 2008 के विधानसभा चुनाव में भी सिंगारियां बागी बन गए थे, मगर सचिन के प्रयासों से उन्हें फिर कांग्रेस में जगह मिल गई। 2008 के विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा 12 हजार 659 वोटों से जीते थे। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में सिंगारियां की बदोलत कांग्रेस की बढ़त 22 हजार 180 हो गई। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा को 62 हजार 425 मत मिले, जबकि भाजपा के शत्रुघ्न गौतम को 71 हजार 292 मत। बाबू लाल सिंगारियां 17 हजार 35 मत ले गए, जबकि रघु शर्मा की हार हुई 8 हजार 867 मतों से। यदि सिंगारिया चुनाव मैदान में न होते तो रघु जीत सकते थे।
खैर, सचिन के नामांकन के दौरान अनुपस्थित रहे तो मौटे तौर पर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी,पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां व अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी। इनमें चौधरी तो पहले ही मसूदा में विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ कर कट चुके हैं। इसके अतिरिक्त सचिन की खिलाफत करते हुए उन्होंने भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट का साथ देने का ऐलान कर दिया है। आपको जानकारी होगी कि 1998 की कांग्रेस लहर में सिंगारिया ने केकड़ी सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हारे। जब 2008 में केकड़ी सीट सामान्य हो गई तो कांग्रेस ने रघु शर्मा को टिकट दे दिया। इस पर सिंगारिया बागी बन कर खड़े हो गए, मगर शर्मा फिर भी जीत गए। उस चुनाव में सिंगारियां ने 22 हजार 123 वोट हासिल कर यह जता दिया कि उनकी इलाके में व्यक्तिगत पकड़ है। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा फिर से मैदान में आए तो सिंगारिया एनसीपी के टिकट पर खड़े हो गए और 17 हजार 500 मत हासिल शर्मा की हार का कारण प्रमुख कारण बने। बात अगर ललित भाटी की करें तो वे साथ तो सचिन के ही थे, मगर आखिरी दौर में कुछ कारणों से छिटक गए। उनके भाई हेमंत भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट दिलवाए जाने के बाद उनकी दूरी और बढ़ गई। हालांकि नामांकन के दौरान उनकी प्रमुख सहयोगी महिला कांग्रेस नेत्री प्रमिला कौशिक की मौजूदगी इसका अहसास कराती है कि रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं।
आपको याद होगा कि 208 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले ललित भाटी को पिछले लोकसभा चुनाव में सचिन काफी मान-मनुहार से वापस लाए थे। उसका सकारात्मक परिणाम ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 वोटों से भाजपा और पिछड़ गई। भाटी लंबे समय से सचिन के नजदीक ही माने जाते रहे, मगर आखिरी दिनों दूर हो गए।
-तेजवानी गिरधर

रावत वोटों में सेंध मारी सचिन पायलट ने

अजमेर संसदीय क्षेत्र में हालांकि रावतों को परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता का माना जाता है, मगर इस चुनाव में यह साफ नजर आया कि इसमें कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट ने सेंध मार दी है। इस सिलसिले में नामांकन पत्र भरने के दौरान पूर्व जिला परिषद सदस्य श्रवण सिंह रावत एवं पुष्कर से भाजपा विधायक सुरेश रावत के भाई पूर्व जिला परिषद सदस्य कुंदन सिंह रावत की मौजूदगी को रेखांकित किया जा रहा है। श्रवण सिंह रावत वहीं हैं, जो 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर पुष्कर क्षेत्र से निर्दलीय खड़े हुए और 27 हजार 612 वोट हासिल किए, जिसकी वजह से भाजपा के भंवर सिंह पलाड़ा हार गए थे। कुंदन सिंह रावत हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में पुष्कर से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे। रावत मतदाता पिछले चुनाव में भी भाजपा से नाराज थे, क्योंकि उनकी पुष्कर का टिकट देने की मांग को दरकिनार किया गया। इस बार हालांकि भाजपा ने सबक लेते हुए सुरेश सिंह रावत को टिकट दिया और वे जीते भी, मगर बावजूद इसके सचिन के साथ श्रवण सिंह रावत व कुंदन सिंह रावत हैं तो इसका अर्थ यही लगाया जा रहा है कि वे रावत वोट बैंक में सेंध मारने में कामयाब हो गए हैं।
असल में रावत परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता के इस कारण माने जाने लगे क्योंकि उन्होंने छह लोकसभा चुनावों में अपनी ही जाति के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के लिए वोट किया। रावतों के तनिक कांग्रेस की ओर झुकाव की वजह पिछली बार की तरह इस बार भी अजमेर के पांच बार सांसद रहे व मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत को टिकट न देना माना जा रहा है। पिछली बार तो उन्हें राजसमंद भेज कर तुष्ट करने की भी कोशिश की गई, मगर इस बार उन्हें तवज्जो नहीं मिली। उन्हें न तो विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया और न ही लोकसभा चुनाव में। ऐसे में कितना उत्साह से पार्टी के लिए काम करते हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी। आपको बता दें कि परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में रावतों की संख्या कम हुई है, फिर भी इनकी संख्या सवा लाख तो है ही। कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस के वोट बैंक गुर्जर, अनुसूचित जाति व मुसलमानों में कुछ रावत भी जुड़ते हैं तो यह सचिन के लिए काफी संतोषप्रद होगा।
-तेजवानी गिरधर

ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर तोल ठोकी सचिन ने

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने अजमेर संसदीय क्षेत्र से दुबारा नामांकन पत्र भरने के दौरान ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर यह जता दिया कि वे पूरे जोश-खरोश के साथ मैदान में आए हैं। भीड़ को देख कर भाजपाइयों ने स्वीकार किया कि उन्हें भी मुकाबले को कड़ा करने के लिए पूरी ताकत झोंकनी होगी। अकेले मोदी लहर के भरोसे नहीं रहा जा सकता। चूंकि भीड़ देहात से बड़ी तादात में आई थी, इस कारण गुटबाजी से निराश शहरी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह देखा गया। जो कार्यकर्ता व्यक्तिगत अथवा सांगठनिक कारणों से नाराज हैं, उन्हें भी लगा कि अकेले उनके निष्क्रिय अथवा तटस्थ रहने से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। अजमेर शहर में सर्वाधिक भीड़ विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी की थी। सचिन के मैनेजर भी इस शो से संतुष्ट नजर आए।

मंत्री बनने के इच्छुक विधायक लगाएंगे जाट को जितवाने का पूरा जोर

राज्य सरकार के जलदाय मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट को अजमेर संसदीय क्षेत्र का भाजपा प्रत्याशी घोषित किए जाने के कारण यहां के वे विधायक, जो मंत्री बनने की पात्रता रखते हैं, जितवाने में पूरा जोर लगा देंगे। चाहे वे व्यक्तिगत रूप से जाट को पसंद करते हों या नहीं, मगर उनकी कोशिश रहेगी कि जाट जीत कर सांसद बन जाएं, ताकि मंत्री बनने में उनका नंबर आ सके।
 समझा जाता है कि पहली बार जीते विधायक पुष्कर के सुरेश रावत, मसूदा की श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, केकड़ी के शत्रुघ्न गौतम व दूदू के प्रेमचंद को सीधे केबीनेट मंत्री नहीं बनाया जाएगा, अलबत्ता उन्हें राज्य मंत्री या उप मंत्री जरूर बनाया जा सकता है। इस लिहाज से लगातार तीन बार विधायक बने अजमेर उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की श्रीमती अनिता भदेल और दो बार विधायक बने किशनगढ़ के भागीरथ चौधरी को उम्मीद है कि अगर जाट जीत कर सांसद बनते हैं तो अजमेर कोटे जिले के में उनका नंबर आ सकता है। इस कारण उनकी कोशिश ये रहेगी कि बेहतर से बेहतर परफोरमेंस दिखाई जाए। इनमें भी बात अगर करें वरिष्ठता की तो चूंकि देवनानी राज्य मंत्री रह चुके हैं, इस कारण केबीनेट मंत्री बनने का उनका दावा सबसे मजबूत होता है। उनका दावा तो जाट के रहते हुए भी सिंधी कोटे में मंत्री बनने का पहले से है। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो जाट की जगह पर किसी जाट को ही मंत्री बनाना है तो भागीरथ चौधरी का नंबर आ सकता है। यदि अनुसूचित जाति व महिला कोटे का ख्याल रखा जाए तो श्रीमती अनिता भदेल का नंबर आता है। यूं जिला प्रमुख रह चुकी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा भी दावा कर सकती हैं। यदि जिले के राजपूतों को संतुष्ट करने की बात आई तो उनका नंबर आ भी सकता है। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि जाट जीतते हैं या नहीं, मगर उम्मीद की जाती है कि वसुंधरा की नजर में नंबर बढ़ाने के लिए विधायक अपनी ओर से पूरा जोर लगाएंगे। इसी प्रकार बोर्ड-आयोग इत्यादि में स्थान पाने के इच्छुक नेता भी अपना रिपोर्ट कार्ड बेहतर करने की कोशिश करेंगे।

सोमवार, 24 मार्च 2014

चुनाव लडऩे के लिए कैसे मान गए सांवर लाल जाट?

अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे प्रो. सांवर लाल जाट किन हालात में चुनाव लडऩे को राजी हुए, ये सवाल राजनीतिक हलके में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह सवाल उठना स्वाभाविक भी है क्योंकि वे वर्तमान में राज्य सरकार में जलदाय मंत्री हैं और उन्होंने लोकसभा टिकट की इच्छा जताई भी नहीं थी। अलबत्ता उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा की दावेदारी जरूर सामने आई थी। जाहिर सी बात है कि जो नेता अभी काबिना मंत्री हो, वह क्यों कर सांसद बनना चाहेगा। प्रसंगवश आपको बता दें कि परिसीमन के बाद जाटों के वोट दो लाख से ज्यादा हो जाने के बाद उनकी दावेदारी पिछली बार भी काफी प्रबल मानी गई थी, मगर या तो उन्होंने रुचि नहीं दिखाई या फिर पार्टी ने उन्हें उपुयुक्त नहीं माना और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव लड़वाया गया था।
कानाफूसी है कि प्रो. जाट ने चुनाव लडऩा इसी शर्त पर मंजूर किया है कि अगर वे जीतते हैं तो उनकी नसीराबाद सीट पर उनके ही पुत्र लांबा को टिकट दिया जाएगा। शर्त ये भी हो सकती है कि अगर केन्द्र में भाजपा नीत सरकार बनी तो उन्हें भी मंत्री बनने का मौका दिया जाएगा।

27 मार्च को नहीं है अजमेर का स्थापना दिवस

हालांकि आगामी 27 मार्च को नव संवत्सर की प्रतिपदा के दिन सरकारी स्तर पर अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से अजमेर का 902वां स्थापना दिवस समारोह मनाया जा रहा है, मगर इसके अब तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना 902 वर्ष पहले नव संवत्सर की प्रतिपदा को ही हुई थी। आपको याद होगा कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज इंटेक के महेंद्र विक्रम सिंह की ओर से आज दो साल पहले यह बताते हुए कि अजमेर की स्थापना चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन 1112 को अजयराज चौहान ने की थी, तत्कालीन कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल व अन्य अधिकारियों को मैनेज कर लिया और स्थापना दिवस मनाने की क्रम शुरू हुआ था, तब भी मैने यह मुद्दा उठाया था कि पुख्ता सबूत के बिना स्थापना दिवस का दिन घोषित नहीं किया जाना चाहिए। एक बार फिर उसी मुद्दे को जिंदा करते हुए सुझाव है कि इतिहास के जानकारों की आमराय व सबूतों के आधार पर ही अजमेर का स्थापना दिवस मनाया जाना चाहिए।
इस सिलसिले में उल्लेखनीय है कि जब मैंने यह मुद्दा उठाया था तब राजकीय संग्रहालय के तत्कालीन अधीक्षक मरहूम जनाब सैयद आजम हुसैन ने भी माना था कि यह स्थापना दिवस की शुरुआत मात्र है, अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की जा रही है। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अजमेर की स्थापना का दिवस अब तक ज्ञात नहीं है और यूं ही अनुमान के आधार पर यह तिथि तय की गई है।
मैने पहले भी इस कॉलम में लिखा था कि अजमेर की स्थापना दिवस का कुछ अता-पता नहीं है। अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के इच्छुक भाजपा नेता व नगर निगम के उप महापौर सोमरत्न आर्य व पूर्व उप मंत्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। इतिहासकार शिव शर्मा का मानना है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है।
मैने तब भी सवाल उठाए थे कि क्या इस मामले में जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता।
जिला कलेक्टर की घोषणा के वक्त ही शहर के बुद्धिजीवियों में चर्चा हो गई थी कि आखिर उन्होंने किस आधार पर यह मान लिया कि अजमेर की स्थापना नव संवत्सर की प्रतिपदा को हुई थी। मैने इसी कॉलम में सवाल उठाये थे कि क्या जिला कलैक्टर ने संस्था और सिंह के प्रस्ताव पर इतिहासकारों की राय ली है? यदि नहीं तो उन्होंने अकेले यह तय कैसे कर दिया? क्या ऐतिहासिक तिथि के बारे में महज एक संस्था के प्रस्ताव को इस प्रकार मान लेना जायज है? संस्था के प्रस्ताव आने के बाद संबंधित पक्षों के विचार आमंत्रित क्यों नहीं किए गए, ताकि सर्वसम्मति से फैसला किया जाता।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 23 मार्च 2014

सचिन से क्यों नाराज हैं रामचंद्र चौधरी?

अजमेर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट से अदावत के चलते अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी ने भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट का साथ देने की घोषणा कर दी। जाहिर है ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर वे इतना नाराज हैं क्यों?
आपको याद होगा कि जब विधानसभा चुनाव में निर्दलीय ब्रह्मदेव कुमावत की वजह से चौधरी मसूदा में हारे थे, मगर चूंकि अशोक गहलोत को सरकार बनाने के लिए कुमावत की जरूरत हुई तो उन्होंने उन्हें संसदीय सचिव बना कर सेट किया। यह चौधरी को नागवार गुजरा। हालत ये हुई कि सचिन के केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री बनने के बाद बिजयनगर कृषि उपज मंडी में आयोजित स्वागत समारोह में तत्कालीन मसूदा विधायक व राज्य के संसदीय सचिव ब्रह्मदेव की चौधरी समर्थकों द्वारा की गई पिटाई कर दी। हुआ यूं कि चौधरी की ओर से आयोजित समारोह में कुमावत बिना बुलाए केवल सचिन के कहने पर वहां चले आए थे। तब यह विवादित मामला काफी गर्म हो गया था। सचिन के साथ धर्मसंकट ये था कि अगर कुमावत का पक्ष लेते हैं तो जाट नाराज होते हैं और चौधरी का साथ देते हैं तो गहलोत रुष्ट हो सकते हैं। कदाचित उनका झुकाव कुमावत की ओर ही रहा।
पिछले दिनों विधानसभा चुनाव हुए तो मसूदा से कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने आरोप लगाया था कि पायलट ने ही उनका टिकट कटवाया। चौधरी को इस बात की भी शिकायत थी कि सचिन उनके साथ अपेक्षित सम्मान के साथ बात नहीं करते थे, जबकि वे सचिन के पिता स्वर्गीय श्री राजेश पायलट के करीबी थे। चौधरी को इस बात की भी नाराजगी रही कि सचिन की वजह से ही संगठन में उनको कोई तवज्जो नहीं दी गई। मसूदा विधानसभा क्षेत्र में उनकी लॉबी का एक भी नेता पदाधिकारी नहीं बनाया गया। यही नाराजगी जयपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुरुदास कामत की मौजूदगी में ही सचिन के साथ मुंहजोरी के रूप में फूटी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो वे लोकसभा चुनाव में सचिन के खिलाफ मैदान में उतर जाएंगे। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भी उन्होंने सचिन का विरोध किया। चौधरी के इस रवैये पर स्थानीय कांग्रेसियों ने एकजुट हो कर चौधरी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की मांग कर डाली। हालांकि अधिसंख्य लोगों का मानना है कि चौधरी का यह विरोध सचिन के कहने से ही हुआ, लेकिन कुछ जानकार मानते हैं कि सचिन से नंबर लेने के चक्कर में स्थानीय कांग्रेसियों ने अपने स्तर पर ही निर्णय ले कर चौधरी के कपड़े फाडऩे शुरू किए थे। जानकारी के अनुसार सचिन ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से चौधरी के मामले चुप ही रहने की हिदायत दी, ताकि पिछली नाराजगी कम की जा सके, मगर ऐसा हो नहीं पाया।

जाट के आते ही चौधरी के लडऩे की संभावना खत्म हो गई थी

जिस बात की संभावना थी, वही हुआ। विधानसभा चुनाव में मसूदा क्षेत्र से कांग्रेस के बागी के रूप में चुनाव लड़ कर हार चुके अजमेर डेयरी के अध्यक्ष  रामचंद्र चौधरी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के सामने डंके की चोट पर चुनाव लडऩे के ऐलान से पलट गए। संभावना तभी उत्पन्न हो गई थी, जब भाजपा ने प्रो. सांवरलाल जाट को मैदान में उतारा। भला जाट के होते हुए दूसरा जाट कैसे लड़ सकता था। वो भी तब जब कि सचिन को निपटाने का लक्ष्य हो तो। अगर अपने ऐलान पर कायम रहते तो एक तो जाट समाज नाराज होता। अव्वल तो एक दमदार जाट के रहते उन्हें जाटों के वोट मिलते नहीं, जिनके दम पर वे चुनाव मैदान में उतरने वाले थे, दूसरा जाटों के जितने भी वोट काटते उसका नुकसान प्रो. जाट को ही होता। यानि कि प्रत्यक्षत: तो सचिन के खिलाफ लडऩा कहलाता, मगर अप्रत्यक्ष रूप से होता सचिन को फायदा। ऐसे में यह साफ था कि वे अब चुनाव मैदान में नहीं आएंगे। प्रो. जाट के होते हुए चुनाव लडऩे की संभावना इस कारण भी कम थी क्योंकि उनके ही परोक्ष समर्थन की वजह से अजमेर डेयरी पर काबिज हैं। 
अब बात ये कि उनके प्रो. जाट के पक्ष में काम करने से होगा क्या? जाहिर रूप से इससे जाटों के वोटों का बंटवारा रुक जाएगा। वैसे भी जाट वोटों का धु्रवीकरण होता, चौधरी के होने से संभव है कांग्रेस के कट्टर जाट वोटों का भी नुकसान पहुंचाएं। जहां तक अजमेर डेयरी नेटवर्क और निजी संबंधों की वजह से गुर्जरों के भी कुछ वोट काटने की संभावना थी, वह कम हो जाएगी। बावजूद इसके चौधरी की बगावत को कम करके नहीं आंका जा सकता है। कारण ये कि हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय होते हुए भी 28 हजार 477 वोट हासिल किए। इसके अतिरिक्त बिना कांग्रेस की मदद के अकेले दम पर पिछले 25 वर्ष से अजमेर डेयरी पर काबिज हैं। उल्लेखनीय है उनका संसदीय क्षेत्र की 1200 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों पर असर है। 
आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने आरोप भी लगाया कि पायलट ने ही उनका टिकट कटवाया। जयपुर में पिछले वर्ष कार्यकर्ताओं से राहुल गांधी के सीधे संवाद के दौरान चौधरी ने पायलट के खिलाफ जम कर बोला था। चौधरी ने स्थानीय की वकालत करते हुए चेताया कि अगर पायलट को दुबारा टिकट दिया तो वे उनके खिलाफ लड़ेंगे। उनका दावा था कि सचिन दो वोटों से हारेंगे। अब यह आंकड़ा बढ़ा कर उन्होंने तीन लाख कर दिया है।

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

वरिष्ठ पत्रकार अनिल लोढ़ा का नाम भी चर्चा में आया था

हालांकि इस बात पर सहज विश्वास नहीं होता, मगर ये सच है कि वरिष्ठ पत्रकार व सुनहरा राजस्थान के संपादक अनिल लोढ़ा का नाम भी अजमेर संसदीय क्षेत्र के लिए भाजपा प्रत्याशी के रूप में चर्चा में आया था। बताया जाता है कि काफी माथापच्ची के बाद भी जब भाजपा हाईकमान को सचिन पायलट के सामने प्रत्याशी को तय करने में दिक्कत आ रही थी तो मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की ओर से उनका नाम वैकल्पिक रूप में प्रस्तावित किया गया। यह बात अलग है कि उस पर गंभीरता से चर्चा हुई या नहीं हुई, मगर राजनीति के जानकारों को इसकी जानकारी हो गई थी। आपको यहां बता दें कि लोढ़ा को वसुंधरा का करीबी माना जाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि विधानसभा में जब भी अभिभाषण अथवा कोई विशेष वक्तव्य देने की बात आती है तो वे लोढ़ा से चर्चा जरूर करती हैं। माना ये भी जाता है कि पत्रकारिता के आरंभ से लोढ़ा में राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है। पिछले कुछ चुनावों में भी उनके नाम की चर्चा होती रही है।

प्रो. जाट से बेहतर स्थानीय प्रत्याशी था भी नहीं भाजपा के पास

भाजपा ने अजमेर संसदीय क्षेत्र में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष व स्थानीय सांसद और केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के सामने राज्य सरकार में जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतार कर सटीक दाव चला है। प्रो. जाट से बेहतर स्थानीय प्रत्याशी उसके पास था भी नहीं। जाट ने आखिरी दौर में किस आधार और शर्त पर चुनाव लडऩे को स्वीकार किया है, इसका तो पता नहीं, मगर अब कम से कम ये तो नहीं कहा जाएगा कि भाजपा ने सचिन के आगे थाली परोस दी है। हालांकि जब दावेदारों के लिए पार्टी ने पदाधिकारियों से वोटिंग करवाई थी, तब जाट का नाम कहीं नहीं था, अलबत्ता उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा का नाम जरूर सामने आया। इससे यह स्पष्ट हो गया था कि मंत्री पद का सुख भोग रहे जाट ने लोकसभा चुनाव में फालतू माथा लगाना उचित नहीं समझा और अपने बेटे को आगे कर दिया।
ज्ञातव्य है कि इस बार किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत, शहर भाजपा अध्यक्ष रासा सिंह रावत, देहात भाजपा अध्यक्ष भगवती प्रसाद सारस्वत, पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व श्रीमती सरिता गैना, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.आर. चौधरी, पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा, पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत, नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, जिला प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी, डॉ. कमला गोखरू, डॉ. दीपक भाकर, सतीश बंसल, ओमप्रकाश भडाणा, गजवीर सिंह चूड़ावत, सरोज कुमारी (दूदू), नगर निगम के उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ व डीटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी रीतू चौहान के नाम दावेदारी में उभरे थे। चूंकि इनमें प्रो. सारस्वत ने सबसे ज्यादा वोट हासिल किए, इस कारण उनका नाम आखिर तक चलता रहा। उनके अतिरिक्त राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी का नाम भी उभरा, मगर उन्हें नागौर से उतार दिया गया। शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत, अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का नाम भी आखिर तक चलता रहा। इतना ही नहीं, भाजपा के शीर्ष नेता पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की भी चर्चा हुई, मगर वह कोरी अफवाह ही साबित हुई। जब कांग्रेस ने सचिन का नाम घोषित कर दिया तो हर किसी की नजर इसी बात पर थी कि अब भाजपा क्या करती है। माना यही जा रहा था कि सचिन के मुकाबले भाजपा किसी स्थानीय दावेदार को शायद ही उतारे। बाहरी नेताओं में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पुत्रवधु श्रीमती निहारिका का नाम चर्चा में रहा। कुल मिला कर आखिर तक असमंजस बना रहा। मगर जैसे ही प्रो. जाट का नाम आया, हर एक भाजपाई की जुबान पर यही बात सुनाई दी कि अब होगा कांटे का मुकाबला।
यहां आपको बता दें कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में भी जल संसाधन मंत्री रहे प्रो. सांवरलाल जाट का नाम पिछली बार भी सचिन के सामने दमदार प्रत्याशी के रूप में था, मगर न जाने उनकी खुद की अनिच्छा के चलते या फिर उन्हें कमजोर मानते हुए पार्टी ने भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्ववरी को उदयपुर से ला कर भिड़ा दिया। उसका यह प्रयोग फेल हो गया। वजहें तो अनेक थीं, मगर एक प्रमुख वजह ये मानी गई कि श्रीमती माहेश्वरी के साथ जातीय समीकरण नहीं था। चूंकि परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में जाटों के मतों की संख्या दो लाख से ज्यादा हो गई थी, इस कारण भाजपा के लिए कोई जाट नेता ही कारगर होता, मगर यह बात पार्टी को इस बार समझ में आई है। वह भी काफी माथापच्ची के बाद, वरना प्रो. जाट तो पहले से उपलब्ध थे।
खैर, भाजपा ने हर दृष्टि से, यथा जातीय समीकरण, साधन संपन्नता और कद आदि के लिहाज से उपयुक्त प्रत्याशी मैदान में उतारा है। अब देखना ये है कि ये मुकाबला कैसा रहता है? बारीक विश्लेषण बाद में करेंगे।
-तेजवानी गिरधर

आम आदमी पार्टी की नजर प्रिंस सलीम पर भी

अजमेर लोकसभा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी अपना उम्मीदवार उतारना तो चाहती है, मगर उसे फिलहाल कोई जंच ही नहीं रहा। हालांकि टिकट के लिए आठ दावेदारों ने साक्षात्कार दिए हैं, मगर अब तक उचित प्रत्याशी नहीं मिलने के कारण तलाश जारी है। सच तो ये है कि ढंग का प्रत्याशी नहीं मिलने के कारण किसी को भी मैदान में उतारने की स्थिति नहीं है, मगर चूंकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज्य की सभी पच्चीस सीटों पर चुनाव लड़ाने की घोषणा कर चुके हैं, इस कारण मशक्कत अब भी जारी है। इस बीच पता लगा है कि एनजीओ चलाने वाले प्रिंस सलीम पर भी विचार चल रहा है। उनका नाम पार्टी हाईकमान के पास प्रस्तावित हो चुका है। एक-दो दिन में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
असल में शुरू में अन्ना आंदोलन का नेतृत्व कर चुकी और बाद में पार्टी में अजमेर प्रभारी बनीं श्रीमती कीर्ति पाठक को ही प्रबल दावेदार माना जा रहा था, मगर कथित रूप से उनके व्यवहार के कारण एक धड़ा अलग हो गया और वह उन्हें प्रभारी पद से भी हटवाने में भी कामयाब हो गया। हांलाकि बावजूद इसके उन्होंने अपना दावा ठोक दिया।
उधर कीर्ति विरोधी धड़े का समर्थन हासिल  काफी ऊर्जावान कवि और पार्टी की राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य शहनाज हिंदुस्तानी  का नाम तो बताते हैं कि काफी दिन पहले तय सा माना जा रहा था, मगर उनकी भी कारसेवा हो गई। परिणाम स्वरूप फेसबुक पर छीछालेदर भी हुई।
हिंदुस्तानी ने लिखा कि सभी कार्यकर्ताओं से मेरा अनुरोध है जो भी प्रत्याशी आम आदमी पार्टी की ओर से अजमेर की धरती को मिले उसे निर्विरोध स्वीकार कर दिल से प्रचार में जुट जाएं और असामाजिक, स्वार्थी एवं महत्वाकांक्षी लोगों से सावधान रहें । किसी भी तरह की गुंडागर्दी या भू माफियाओं से डरने की जरूरत नहीं है । बस ये ध्यान रहे कि उनके लोग आप की टोपी पहन कर कोई गलत काम न कर पाएं, क्यूं कि कुछ ऐसे लोग हमारी आप अजमेर की टीम में शामिल हो गए हैं, जो हमारी हर खबर लीक कर पार्टी को बदनाम करने की तैयारी में है, भ्रष्टाचार पे दे झाड़ू, दे झाड़ू-दे झाड़ू, आम आदमी जिंदाबाद, - आप का शहनाज हिन्दुस्तानी.......जय हिन्द। जो भी व्यक्ति अगर किसी को ये बोल रहा है कि मैं टिकट दिलवा दूंगी या दूंगा, वो किसी भी तरह से पार्टी का कार्यकर्ता नहीं है। सभी उससे दूरी बनाए रखें । आजकल बहुत से फ्रॉड लोग इसी चक्कर में पैसे कमाने में लगे हैं । अपने आप को पार्टी का विशेष पदाधिकारी बताता है और पैसे ऐंठता है। ऐसी गन्दगी अजमेर ही नहीं अपितु कहीं भी दिख सकती है। जरूरी नहीं जिसके हाथ में झाड़ू है, वो गंदगी साफ करने आया हो, वो गंदगी फैला भी सकता है। सावधान ! जय हिन्द !
इस के बाद टिकट की ही एक दावेदार श्रीमती किरण माहेश्वरी ने लिखा कि आज मैने ये देखा की हमारी पार्टी में चमचों की तादाद ज्यादा हो गयी है, जहां जहां इन चमचों की संख्या है, वहा पार्टी का वजूद खत्म हो रहा है। हमने अजमेर में सबको जोडऩे की कोशिश जारी की है, पर कुछ लोग एक-एक करके पार्टी के पुराने लोगो को पार्टी से तोड़ते जा रहे हैं, पर हम ऐसा होने नहीं देंगे। क्या पार्टी अजमेर में उमीदवार उतारेगी या नहीं? आज अजमेर में आम आदमी पार्टी का आदर्श नगर का ऑफिस भी बंद करवा दिया, क्योंकि में सब पुराने और नये पार्टी कार्यकर्ताओं को बुला कर जो चुनावी रणनीति बनाना चाहा, पर पार्टी के कुछ लोगों ने पार्टी ऑफिस के ताला लगवा दिया और कहा की कोई मीटिंग नहीं होगी। ऐसे लोगों के कारण केजरीवाल जी को इतनी परेशानी हो रही है। अरविन्द तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। जयहिन्द।
ज्ञातव्य है कि श्रीमती शेखावत अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की महिला इकाई की राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष, राजपूत एकता मंच व महिला मोर्चा में पुष्कर विधानसभा क्षेत्र की अध्यक्ष और सामाजिक परिवर्तन फाउंडेशन की राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे पत्रकारिता से भी जुड़ी हुई हैं और वे भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार संघ की अजमेर जिला संयोजक व सर्च स्टोरी ब्यूरो की ब्यूरो प्रमुख हैं।
पार्टी की नजर अजमेर की पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता पर भी थी, मगर यह कॉलम लिखते समय तक उन्होंने आनाकानी कर रखी है। इसी प्रकार एक दावेदार अजय सोमानी हैं, उनकी भी शिकायतें ऊपर पहुंच चुकी हैं।
अब देखना ये है कि पार्टी किसे चुनाव मैदान में उतारती है?
तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 20 मार्च 2014

दो बार ध्वस्त हो चुका है अजमेर में भाजपा का गढ़

एक बार डॉ. श्रीमती प्रभा ठाकुर ने प्रो. रासासिंह रावत को 5772 मतों से और दूसरी बार सचिन ने किरण को 76 हजार 135 वोटों से हराया
-तेजवानी गिरधर- अजमेर संसदीय क्षेत्र को पूर्व सांसद व वर्तमान शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने रावत वोटों के दम पर भाजपा का गढ़ बना रखा था। वे यहां से पांच बार जीते। इस गढ़ को एक बार कांग्रेस की डॉ. प्रभा ठाकुर ने 5 हजार 772 मतों ध्वस्त किया तो दूसरी बार 2009 में अजमेर के मौजूदा सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को 76 हजार 135 वोटों से हराया।
इतिहास के आइने में देखें तो राजस्थान में शामिल होने से पहले अजमेर एक अलग राज्य था। सन् 1952 में हुए प्रथम लोकसभा चुनाव में अजमेर राज्य में दो संसदीय क्षेत्र थे-अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण। राजस्थान में विलय के बाद 1957 में यहां सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र हो गया।  सन् 1952 से 1977 तक इस इलाके में कांग्रेस का ही बोलबाला रहा। अत्यल्प जातीय आधार के बावजूद यहां से मुकुट बिहारी लाल भार्गव तीन बार, विश्वेश्वर नाथ भार्गव दो बार जीते, लेकिन इसके बाद कांग्रेस के खिलाफ चली देशव्यापी आंधी ने इस गढ़ को ढ़हा दिया और जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा ने बदलाव का परचम फहरा दिया। सन् 1980 में जैसे ही देश की राजनीति ने फिर करवट ली तो कांग्रेस के आचार्य भगवानदेव ने कब्जा कर लिया। भगवान देव ने जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा को 53 हजार 379 मतों से पराजित किया था। देव को 1 लाख 68 हजार 985 और शारदा को 1 लाख 25 हजार 606 मत मिले थे। सन् 1984 में पेराटूपर की तरह उतने विष्णु मोदी ने भी कांग्रेस की प्रतिष्ठा को बनाए रखा। मोदी ने भाजपा के कैलाश मेघवाल को 56 हजार 694 वोटों से पराजित किया था। मोदी को 2 लाख 16 हजार 173 और मेघवाल को 1 लाख 59 हजार 479 मत मिले थे।
लेकिन 1989 में कांग्रेस के देशव्यापी बिखराव के साथ डेढ़ लाख रावत वोटों को आधार बना कर रासासिंह को उतारा तो यहां का मिजाज ही बदल गया। उसके बाद के छह लोकसभा चुनावों में, 1998 को छोड़ कर, पांच में रासासिंह रावत ने विजय पताका फहराई। कांग्रेस ने भी बदल-बदल कर जातीय कार्ड खेले मगर वे कामयाब नहीं हो पाए। रावत के सामने सन् 1989 में सवा लाख गुर्जरों के दम उतरे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1 लाख 8 हजार 89 वोटों से हारे। धनखड़ को 1 लाख 86 हजार 333 व रावत को 2 लाख 11 हजार 676 वोट मिले थे। सन् 1991 में रावत ने डेढ़ लाख जाटों के दम पर उतरे जगदीप धनखड़ 25 हजार 343 वोटों से हराया। और सन् 1996 में एक लाख सिंधी मतदाताओं के मद्देनजर उतरे किशन मोटवानी 38 हजार 132 वोटों से पराजित हो गए। सन् 1998 के मध्यावधि चुनाव में सोनिया गांधी के राजनीति में सक्रिय होने के साथ चली हल्की लहर पर सवार हो कर सियासी शतरंज की नौसिखिया खिलाड़ी प्रभा ठाकुर ने रासासिंह को लगातार चौथी बार लोकसभा में जाने रोक दिया था। हालांकि इस जीत का अंतर सिर्फ 5 हजार 772 मतों का रहा, लेकिन 1999 में आए बदलाव के साथ रासासिंह ने प्रभा ठाकुर को 87 हजार 674 मतों से पछाड़ कर बदला चुका दिया। इसके बाद 2004 में रासासिंह ने कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी हाजी हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों के भारी अंतर से कुचल दिया। हबीबुर्रहमान को 1 लाख 86 हजार 812 व रावत को 3 लाख 14 हजार 788 वोट मिले थे। इसके बाद 2009 में चूंकि परिसीमन के कारण संसदीय क्षेत्र का रावत बहुल मगरा-ब्यावर इलाका कट कर राजसमंद में चला गया तो रावत का तिलिस्म टूट गया। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उनके स्थान पर श्रीमती किरण माहेश्वरी आईं, मगर वे कांग्रेस के सचिन पायलट से 76 हजार 135 वोटों से हार गईं। कुल 14 लाख 52 हजार 490 मतदाताओं वाले इस संसदीय क्षेत्र में पड़े 7 लाख 70 हजार 875 मतों में सचिन को 4 लाख 5 हजार 575 और किरण को 3 लाख 29 हजार 440  मत मिले।
आइये जरा देख लें कि तब किस को कितने वोट मिले थे-
कुल 7 लाख 71 हजार 160 वैध मतों में से बसपा के रोहितास को 9 हजार 180, जागो पार्टी के इन्द्रचन्द पालीवाला को 7 हजार 984 तथा निर्दलीय उम्मीदवार ऊषा किरण वर्मा को 4 हजार 670, नफीसुद्दीन मियां को 3 हजार 134, मुकेश जैन को 2 हजार 601 तथा शांति लाल ढाबरिया को 8 हजार 576 मत मिले। कुल 171 मत अवैध हुए, 34 टेण्डर मत गिरे और कुल मतदान 7 लाख 71 हजार 502 मतों का हुआ । पोस्टल बैलट पेपर 454 में 178 किरण माहेश्वरी को, 104 सचिन पायलट को व एक मत रोहितास को मिला। कुल 171 पोस्टल बैलट पेपर अवैध हुए।
विधानसभा वार स्थिति
अजमेर संसदीय क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न उम्मीदवारों को मिले मतों की स्थिति इस प्रकार है-
दूदू- इस विधानसभा क्षेत्र से सचिन पायलट को 57 हजार 653, भाजपा की किरण माहेश्वरी को 38 हजार, बसपा के रोहितास को 1613, जागो पार्टी के इन्द्रचन्द पालीवाला को 1174 तथा निर्दलीय ऊषा किरण वर्मा को 670, नफीसुद्दीन मियां को 455, मुकेश जैन को 409 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1257 मत मिले । वैध मतों की संख्या एक लाख एक हजार 231 है।
किशनगढ़- इस विधानसभा क्षेत्र से सचिन को 49 हजार 392, किरण को 51 हजार 831, रोहितास को 1214, इन्द्रचन्द पालीवाला को 945 तथा ऊषा किरण वर्मा को 701, नफीसुद्दीन मियां को 367, मुकेश जैन को 337 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1110 मत मिले । वैध मतों की संख्या एक लाख 5 हजार 897 है।
पुष्कर- सचिन पायलट को 53 हजार 7, किरण को 36 हजार 675, रोहितास को 1226, इन्द्रचन्द पालीवाला को 1110 तथा ऊषा किरण वर्मा को 654, नफीसुद्दीन मियां को 486, मुकेश जैन को 344 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1292 मत मिले । वैध मतों की संख्या 94 हजार 794 है।
अजमेर उत्तर- सचिन 39 हजार 241, किरण माहेश्वरी को 42 हजार 189, रोहितास को 457, इन्द्रचन्द पालीवाला को 557 तथा ऊषा किरण वर्मा को 183, नफीसुद्दीन मियां को 195, मुकेश जैन को 138 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 443 मत मिले । वैध मतों की संख्या 83 हजार 403 है।
अजमेर दक्षिण- सचिन को 39 हजार 656, किरण माहेश्वरी को 37 हजार 499, रोहितास को 510, इन्द्रचन्द पालीवाला को 484, ऊषा किरण वर्मा को 170, नफीसुद्दीन मियां को 158, मुकेश जैन को 89 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 375 मत मिले । वैध मतों की संख्या 78 हजार 941 है।
नसीराबाद- सचिन को 49 हजार 38, किरण को 43 हजार 501, रोहितास को 1497, इन्द्रचन्द पालीवाला को 1061, ऊषा किरण वर्मा को 555, नफीसुद्दीन मियां को 397, मुकेश जैन को 312 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1145 मत मिले । वैध मतों की संख्या 97 हजार 506 है।
मसूदा- सचिन को 59 हजार 996, किरण को 44 हजार 259, रोहितास को 1368, इन्द्रचन्द पालीवाला को 1408, ऊषा किरण वर्मा को 901, नफीसुद्दीन मियां को 599, मुकेश जैन को 513 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1587 मत मिले । वैध मतों की संख्या एक लाख 10 हजार 631 है।
केकड़ी- सचिन को 57 हजार 488, किरण को 35 हजार 308, रोहितास को 1294, इन्द्रचन्द पालीवाला को 1245, ऊषा किरण वर्मा को 836, नफीसुद्दीन मियां को 477, मुकेश जैन को 459 तथा शांतिलाल ढाबरिया को 1367 मत मिले । वैध मतों की संख्या 98 हजार 474 है।
आठ में से केवल दो विधानसभा क्षेत्रों में मिली भाजपा को बढ़त
संसदीय क्षेत्र के आठ में से छह विधानसभा क्षेत्रों अजमेर दक्षिण, मसूदा, पुष्कर, केकड़ी, नसीराबाद और दूदू में कांग्रेस को बढ़त हासिल हुई, जबकि भाजपा को केवल दो क्षेत्रों अजमेर उत्तर व किशनगढ़ में ही बढ़त मिल पाई। कांग्रेस को सर्वाधिक बढ़त केकड़ी में 22 हजार 180 मतों की मिली, जबकि सबसे कम बढ़त अजमेर दक्षिण में 2 हजार 157 मतों की रही। कांग्रेस को दूदू में 19 हजार 653, पुष्कर में 16 हजार 332, नसीराबाद में 5 हजार 537 और मसूदा में 15 हजार 737 मतों की बढ़त मिली। भाजपा को अजमेर उत्तर में 2 हजार 948 व किशनगढ़ में 2 हजार 539 मतों की बढ़त हासिल हुई।
न इतनी बड़ी हार का डर था, न इतनी बड़ी जीत की आशा
इस चुनाव सबसे चौंकाने वाला तथ्य ये रहा कि भाजपा को न इतनी बड़ी हार का डर था और न ही कांग्रेस को इतनी बड़ी जीत की आशा। दोनों पक्षों की ओर से हालांकि पचास हजार वोटों से जीतने का हवाई दावा किया जा रहा है, लेकिन पार्टियों का आकलन 15 से 20 हजार वोटों से जीतने का ही था। हालांकि इस आकलन में भी मन ही मन डर था कि कहीं हार न जाएं, लेकिन दोनों ही दलों के नेता इतना तो तय मान रहे थे कि हारे भी तो मतांतर ज्यादा नहीं होगा। हालांकि निष्पक्ष राजनीतिक पंडित सचिन का पलड़ा कुछ भारी मान रहे थे, लेकिन दोनों ओर के आकलन की वजह से वे भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहे।
तब सट्टा बाजार सही निकला
सट्टा बाजार शुरू से सचिन को जीता हुआ मान कर चल रहा था, लेकिन पूर्व के अनुभवों से सबक  लेते हुए राजनीतिक जानकार व राजनीतिक दल उस पर यकीन नहीं कर रहे थे और न ही गंभीरता से ले कर चल रहे थे। सट्टा बाजार में किरण की जीत पर चालीस पैसे, जबकि सचिन की जीत पर दो रुपए चालीस पैसे लगाए जा रहे थे। सट्टा बाजार की यह गणित वाकई सही साबित हुई और सचिन भारी मतों से जीत गए।
युवा मतदाता ने किया था चमत्कार
परिणाम आने के बाद यह स्पष्ट माना जा रहा है कि नए परिसीमित संसदीय क्षेत्र में बढ़े तकरीबन एक लाख युवा मतदाता ने यह चमत्कार किया है। हालांकि राजनीति के जानकार यह मान रहे थे कि सचिन को युवा होने का लाभ मिलेगा, लेकिन साथ यह भी मान कर चल रहे थे कि किरण को महिला होने का जो लाभ मिलेगा, उससे संतुलन हो जाएगा। परिणाम आने के बाद यह साफ हो गया है कि सचिन के युवा होने का पहलु ज्यादा कारगर साबित हुआ है।

बुधवार, 19 मार्च 2014

पिछली बार भी भाजपा असमंजस में थी, सचिन के सामने किसे उतारे?

पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा अजमेर में कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के सामने अपने प्रत्याशी को लेकर पसोपेश में नजर आई। असल में भाजपाई ये सोच रहे थे कि प्रदेश कांग्रेस की कमान का जिम्मा होने के कारण सचिन पायलट चुनाव मैदान में नहीं आएंगे। उनकी ये भी सोच थी कि चूंकि अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों पर कांग्रेस बुरी तरह से हार गई है, इस कारण इस बार सचिन यहां से चुनाव लडऩे का साहस नहीं जुटा पाएंगे। इसी वजह से कई स्थानीय दावेदार उछल-उछल कर दावा कर रहे थे। मगर उनका अनुमान गलत निकला। सचिन फिर से धमक गए। जाहिर तौर पर सचिन की वजह से भाजपा खेमे में खलबली है। और इसी कारण भाजपा को प्रत्याशी तय करने में देरी हुई है। मजेदार बात ये है कि यह स्थिति तब है, जबकि भाजपा ने अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों पर कब्जा करके करीब दो लाख वोटों की बढ़त बना रखी है। यानि कि सचिन हो या कोई और, भाजपा का कोई भी उम्मीदवार जीत सकता है। मगर धरातल का सच ऐसा है नहीं। वरना सचिन के नाम की घोषणा से पहले और नहीं तो घोषणा के तुरंत बाद प्रत्याशी घोषित कर दिया जाता।
आपको याद होगा कि पिछली बार भी भाजपा को प्रत्याशी तलाशने में देरी हुई थी। उसे स्थानीय दावेदारों में दम नहीं लग रहा था, इस कारण भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को उतारा था। ज्ञातव्य है कि पिछली सबसे दमदार स्थानीय प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट थे, मगर पार्टी उन पर दाव नहीं खेल पाई। इस बार तो जाट राज्य सरकार में केबीनेट मंत्री बन चुके हैं, ऐसे में वे काहे हो अदद सांसद बनना चाहते। इसी कारण उन्होंने अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे कर दिया। यहां आपको बता दें कि अजमेर में जाटों के वोट दो लाख से भी ज्यादा हैं, इस कारण भाजपा को जाट प्रत्याशी ही ज्यादा सूट कर सकता है। इसी कारण राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष छोटू राम चौधरी का नाम चला, मगर उन्हें नागौर से प्रत्याशी बना दिया गया है। इसी क्रम में किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना व उनके ससुर सी. बी. गैना और अजमेर में कलेक्टर रह चुके महावीर सिंह का नाम सामने आया। पिछली बार जाट फैक्टर के तहत फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की धर्मपत्नी फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी का भी नाम चर्चा में आया था। इस बार धर्मेन्द्र के पुत्र सन्नी देओल का नाम भी उछला।
कुल मिला कर प्रत्याशी घोषित होने से पहले तक भाजपाई यह समझ ही नहीं पा रहे कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मन में क्या है? कुछ का अनुमान रहा कि वे अपनी पुत्रवधू श्रीमती निहारिका को उतार सकती हैं। जो कुछ भी हो, आज-कल में भाजपा प्रत्याशी का नाम सामने आ ही जाएगा, मगर इतना तय है कि सचिन की वजह से भाजपा कुछ पसोपेश में जरूर पड़ी है।

मंगलवार, 18 मार्च 2014

बहुत दिलचस्प है अजमेर संसदीय क्षेत्र का चुनावी मिजाज

-तेजवानी गिरधर- अरावली पर्वत शृंखला के दामन में पल रहे अजमेर संसदीय क्षेत्र मेवाड़ और मारवाड़ की संस्कृतियों को मिलाजुला रूप है। नजर को और विहंगम करें तो इसकी तस्वीर में अनेक संस्कृतियों के रंग नजर आते हैं। और यही वजह है कि न तो इसकी कोई विशेष राजनीतिक संस्कृति हैं और न ही विशिष्ट राजनीतिक पहचान बन पाई। राजनीतिक लिहाज से यदि ये कहा जाए कि ये तीन लोक से मथुरा न्यारी है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
सन् 1952 से शुरू हुआ अजमेर का संसदीय सफर काफी रोचक रहा है। राजस्थान में शामिल होने से पहले अजमेर एक अलग राज्य था। सन् 1952 में हुए प्रथम लोकसभा चुनाव में अजमेर राज्य में दो संसदीय क्षेत्र थे-अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण। राजस्थान में विलय के बाद 1957 में यहां सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र हो गया।
चुनावी मिजाज की बात करें तो कभी यह राष्ट्रीय लहर में बह कर मुख्य धारा में एकाकार हो गया तो कभी स्थानीयतावाद में सिमट कर बौना बना रहा। और यही वजह है कि लंबे अरसे तक यहां कभी सशक्त राजनीतिक नेतृत्व उभर कर नहीं आया। जब कभी नेतृत्व की बात होती तो घूम-फिर कर बालकृष्ण कौल, पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा या मुकुट बिहारी लाल भार्गव जैसे ईन, बीन और तीन नामों पर आ कर ठहर जाती। नतीजतन आजादी के बाद राजस्थान की राजधानी बनने का दावा रखने वाला अजमेर राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा। हां, अलबत्ता सचिन पायलट के यहां से जीत कर केन्द्र में राज्य मंत्री बनने पर जरूर इसका कद बना है। एक बार फिर सचिन के यहां से चुनाव लडऩे के कारण इसका शुमार देश की उन सीटों में हो गया है, जिस पर पूरे देश की नजर रहेगी।
दो दलों का ही रहा वर्चस्व
जहां तक राजनीतिक विधारधारा का सवाल है तो यहां प्राय: दो राजनीतिक दलों का ही वर्चस्व रहा है। आजादी के बाद सन् 1952 से 1977 तक इस इलाके में कांग्रेस का ही बोलबाला रहा। लेकिन इसके बाद कांग्रेस के खिलाफ चली देशव्यापी आंधी ने इस गढ़ को ढ़हा दिया और जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा ने बदलाव का परचम फहरा दिया। सन् 1980 में जैसे ही देश की राजनीति ने फिर करवट ली तो कांग्रेस के आचार्य भगवानदेव ने कब्जा कर लिया। सन् 1984 में पेराटूपर की तरह उतने विष्णु मोदी ने भी कांग्रेस की प्रतिष्ठा को बनाए रखा, लेकिन 1989 में कांग्रेस के देशव्यापी बिखराव के साथ यह सीट भाजपा की झोली में चली गई। रावत वोटों के दम पर प्रो. रासासिंह रावत ने इस पर कब्जा कर लिया और पांच बार जीते। केवल एक बार 1998 में डॉ. प्रभा ठाकुर ने उन्हें हराया। पिछले चुनाव में करीब सवा लाख गुर्जर वोटों और सेलिब्रिटी सचिन के दम पर कांग्रेस ने बाजी मार ली।
जातिवाद के दम पर पांच बार कब्जा रहा भाजपा का
असल में राजनीति का प्रमुख कारण जातिवाद यहां 1984 तक अपना खास असर नहीं डाल पाया था। अत्यल्प जातीय आधार के बावजूद यहां से मुकुट बिहारी लाल भार्गव तीन बार, विश्वेश्वर नाथ भार्गव दो बार व श्रीकरण शारदा एक बार जीत चुके हैं। आचार्य भगवान देव की जीत में सिंधी समुदाय और विष्णु मोदी की विजय में वणिक वर्ग की भूमिका जरूर गिनी जा सकती है। लेकिन सन् 1989 में डेढ़ लाख रावत वोटों को आधार बना कर रासासिंह को उतारा तो यहां का मिजाज ही बदल गया। कांग्रेस ने भी बदल-बदल कर जातीय कार्ड खेले मगर वे कामयाब नहीं हो पाए। रावत के सामने सन् 1989 में सवा लाख गुर्जरों के दम उतरे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1 लाख 8 हजार 89 वोटों से, सन् 1991 में डेढ़ लाख जाटों के दम पर उतरे जगदीप धनखड़ 25 हजार 343 वोटों से और सन् 1996 में एक लाख सिंधी मतदाताओं के मद्देनजर उतरे किशन मोटवानी 38 हजार 132 वोटों से पराजित हो गए। इसके बाद एक अप्रत्याशित परिणाम आया। सन् 1998 के मध्यावधि चुनाव में सोनिया गांधी के राजनीति में सक्रिय होने के साथ चली हल्की लहर पर सवार हो कर सियासी शतरंज की नौसिखिया खिलाड़ी प्रभा ठाकुर ने रासासिंह को लगातार चौथी बार लोकसभा में जाने रोक दिया था। हालांकि इस जीत का अंतर सिर्फ 5 हजार 772 मतों का रहा, लेकिन 1999 में आए बदलाव के साथ रासासिंह ने प्रभा ठाकुर को 87 हजार 674 मतों से पछाड़ कर बदला चुका दिया। इसके बाद 2004 में रासासिंह ने कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी हाजी हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों के भारी अंतर से कुचल दिया। सन् 2009 के चुनाव में तस्वीर जातीय लिहाज से बदल गई। जहां रावत बहुल मगरा क्षेत्र की ब्यावर सीट राजसमंद में चली गई तो दौसा संसदीय क्षेत्र की अनुसूचित जाति बहुल दूदू सीट यहां जोड़ दी गई है। कुछ गांवों की घट-बढ़ के साथ पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, मसूदा व केकड़ी यथावत रहे, जबकि भिनाय सीट समाप्त हो गई। परिसीमन के साथ ही यहां का जातीय समीकरण बदल गया। रावत वोटों के कम होने के कारण समझें या फिर सचिन जैसे दिग्गज की वजह से, रासासिंह रावत का टिकट पिछली बार काट दिया गया और श्रीमती किरण माहेश्वरी को पटखनी दे कर सचिन जीते तो यहां कांग्रेस का कब्जा हो गया। हालांकि संसदीय क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों पर अब भाजपा का वर्चस्व है, बावजूद इसके इस बार कांग्रेस ने फिर सचिन पर ही भरोसा किया है।
रावत जीत-हार दोनों में अव्वल
मौजूदा सांसद रासासिंह रावत संसदीय इतिहास में ऐसे प्रत्याशी रहे हैं, जिन्होंने सर्वाधिक मतांतर से जीत दर्ज की है तो एक बार हारे भी तो सबसे कम मतांतर से। रावत ने सन् 2004 में कांग्रेस की हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों से हराया, जो कि एक रिकार्ड है। इसी प्रकार सन् 1998 में वे मात्र 5 हजार 772 मतों से ही हार गए, वह भी एक रिकार्ड है। सर्वाधिक मत हासिल करने का रिकार्ड भी रावत के खाते दर्ज है। सन् 1999 में उन्होंने 3 लाख 43 हजार 130 मत हासिल किए। सर्वाधिक बार जीतने का श्रेय भी रावत के पास है। वे यहां से कुल पांच बार जीते, जिनमें से एक बार हैट्रिक बनाई। यूं हैट्रिक मुकुट बिहारी लाल भार्गव ने भी बनाई थी। सर्वाधिक छह बार चुनाव लडऩे का रिकार्ड रावत के साथ निर्दलीय कन्हैयालाल आजाद के खाते में दर्ज है। चुनाव लडऩा आजाद का शगल था। वे डंके की चोट वोट मांगते थे और आनाकानी करने वालों को अपशब्द तक कहने से नहीं चूकते थे।
सबसे कम कार्यकाल प्रभा का
सबसे कम कार्यकाल प्रभा ठाकुर का रहा। वे फरवरी, 1998 के मध्यावधि चुनाव में जीतीं और डेढ़ साल बाद सितंबर, 1999 में फिर चुनाव हो गए। उनका कार्यकाल केवल 16 माह ही रहा, क्योंकि जून में लोकसभा भंग हो गई। 
सर्वाधिक प्रत्याशी 1991 में
अजमेर के संसदीय इतिहास में 1991 के चुनाव में सर्वाधिक 33 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया। सबसे कम 3 प्रत्याशी सन् 1952 के पहले चुनाव में अजमेर दक्षिण सीट पर उतरे थे।
मौजूदा राजनीतिक हालात
परिसीमन से पहले जिले के अजमेर पूर्व, अजमेर पश्चिम, किशनगढ़, भिनाय, ब्यावर, मसूदा व केकड़ी पर भाजपा का कब्जा था और कांग्रेस के पास केवल पुष्कर व नसीराबाद थे, जबकि परिसीमन के बाद भाजपा अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण व ब्यावर पर कब्जा बरकरार रखने में कामयाब रही। शेष में से नसीराबाद व पुष्कर पर तो कांग्रेस ने कब्जा बनाए ही रखा, किशनगढ़ व केकड़ी में तख्ता पलट दिया। मसूदा में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही, लेकिन यहां से जीते विधायक बागी कांग्रेसी ब्रह्मदेव कुमावत ने कांग्रेस को समर्थन दे कर कांग्रेस का आंकड़ा पांच कर दिया है। भाजपा की एक विधानसभा सीट ब्यावर छिन पर राजसमंद में शामिल हो गई है, जबकि कांग्रेस की दौसा संसदीय क्षेत्र की दूदू सीट अजमेर में शामिल हो गई। इस प्रकार यहां कांग्रेस के पास पांच अपने और एक निर्दलीय को मिला कर छह विधायक थे, जबकि भाजपा के दो ही विधायक रह गए। हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में चली कांग्रेस विरोधी लहर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस की राह कठिन है। 
विधानसभा क्षेत्रों में दलीय स्थिति
अजमेर उत्तर - प्रो. वासुदेव देवनानी, भाजपा
अजमेर दक्षिण - अनिता भदेल, भाजपा
नसीराबाद - प्रो. सांवरलाल जाट, भाजपा
पुष्कर - सुरेश रावत, भाजपा
किशनगढ़ - भागीरथ चौधरी, भाजपा
मसूदा - श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, भाजपा
केकड़ी - शत्रुघ्न गौतम, भाजपा
दूदू - प्रेमंचद, भाजपा

अब भी टांग ऊंची किए हुए हैं राजेश टंडन

अजमेर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश टंडन ने दावा किया था कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट, जो कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं, इस बार अजमेर से चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनका कहना है कि उनका दावा कभी बेबुनियाद नहीं होता। दावे को पुष्ट करने के लिए उन्होंने ये भी बताया कि इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि भवानी सिंह देथा अजमेर के जिला कलेक्टर होंगे और वैसा ही हुआ। फेसबुक के जरिए किए गए उनके इस दावे को सच इसलिए माना जा रहा था कि एक तो सचिन विरोधियों ने यह अफवाह फैला रखी थी कि अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा हो चुका है, सो सचिन की हिम्मत नहीं हो रही, दूसरा मीडिया में कभी लाल चंद कटारिया का तो कभी अजहरुद्दीन का नाम उछल रहा था। और सबसे बड़ा आधार ये था कि चूंकि सचिन पर प्रदेश कांग्रेस का भार है, इस कारण संभव है वे खुद चुनाव न लड़ें। मगर नामांकन दाखिल होने की प्रक्रिया शुरू होने से एक दिन पहले साफ हो गया कि सचिन अजमेर से ही चुनाव लड़ेंगे। और इसी के साथ टंडन के दावे की हवा निकल गई।
टंडन अजमेर के राजनीतिक पंडित माने जाते हैं। ऐसे में भला वे हार कैसे मान लेते, सो उन्होंने सचिन का नाम घोषित होते ही फेसबुक पर यह पोस्ट डाली कि सचिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीति का शिकार हुए हैं। वे अजमेर से चुनाव नहीं लडऩा चाहते थे और उनका नाम टोंक-सवाईमाधोपुर के लिए फाइनल हो चुका था, मगर गहलोत ने उनका नाम कटवा दिया। ऐसे में सचिन को नहीं चाहते हुए भी अजमेर से चुनाव लडऩा पड़ेगा। ऐसा तर्क देने के पीछे उनका मकसद ये था कि उनका दावा तो सच था, मगर गहलोत की वजह से गलत साबित हो गया। यानि कि चित होने के बाद भी उनकी टांग ऊंची रहनी चाहिए।
उनका दावा था कि गहलोत ने अपने बेटे वैभव गहलोत को टोंक-सवाईमाधोपुर से टिकट दिलवाने के लिए सचिन का वहां से टिकट कटवाया, मगर उनका ये दावा भी गलत हो गया क्योंकि वहां से क्रिकेटर अजहरुद्दीन को टिकट दिया गया है।

रविवार, 16 मार्च 2014

रामचंद्र चौधरी होंगे आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी

अजमेर डेयरी के अध्यक्ष व देहात जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को आम आदमी पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। असल में पार्टी काफी दिन से प्रत्याशी की तलाश कर रही थी, मगर कोई ढ़ंग का नेता मिल ही नहीं रहा था। सब जानते हैं कि यह पार्टी कहने मात्र को आम आदमी की है, मगर टिकट खास आदमियों को ही दे रही है। आम आदमी से थोड़ा सा ऊपर वाले नेता यथा श्रीमती कीर्ति पाठक व किरण शेखावत ने दावा किया, मगर पार्टी को तो खास आदमी चाहिए था। पहले तेजतर्रार कवि कहलाने वाले शहनाज हिंदुस्तानी को टिकट देने का निर्णय किया गया, मगर जमीन पर पकड़ न होने और पार्टी के ही कुछ कार्यकर्ताओं की नाराजगी के चलते किसी और नेता की तलाश थी। यह तलाश चौधरी पर आ कर टिक गई।
बताने की जरूरत नहीं है कि वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के धुर विरोधी हैं। वे पहले ही घोषित कर चुके हैं कि अगर सचिन अजमेर से लड़े तो वे उनके सामने खड़े होंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भी वे सचिन के प्रति अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं। हालांकि अभी सचिन का नाम घोषित नहीं हुआ है, मगर चौधरी ने तय कर लिया है कि वे सचिन की न सही, कांग्रेस की ही बारह बजा कर रहेंगे। वैसे भी सचिन के प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस में उनकी वापसी और कद्र होने वाली नहीं है। बेहतर यही है कि कांग्रेस को आइना दिखाया जाए। जातीय समीकरण भी उनको सूट करता है। संसदीय क्षेत्र में जाटों के दो लाख से ज्यादा वोट हैं। डेयरी अध्यक्ष के नाते उनकी पूरे क्षेत्र में अच्छी पकड़ भी है। अगर आम आदमी पार्टी का बैनर मिल गया तो उसका भी फायदा होगा। सो उन्होंने यह दाव चलने का निर्णय कर लिया। उधर आम आदमी पार्टी को भी अच्छे प्रत्याशी की तलाश थी। दोनों की ख्वाहिश पूरी हो गई।
बुरा न मानो होली है

हेमंत भाटी को हराने वाले कई नेता कांग्रेस से बाहर होंगे

विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण के कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत भाटी को हराने वाले कई कांग्रेसियों पर जल्द ही गाज गिरने वाली है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने अत्यंत गोपनीय तरीके से पता लगवाया है कि इस लगभग जीती हुई सीट पर भाटी कैसे हार गए। जानकारी के अनुसार भाटी को हराने वाले कांग्रेसियों में मुख्य: अनुसूचित जाति के ही नेताओं की भूमिका रही है, जिनमें कुछ पार्षद भी शामिल हैं, जिन्होंने भरपूर सेवा-पूजा लेने के बाद भी भाटी के लिए काम नहीं किया। नतीनजन अनुसूचित जाति बहुल वार्डों में भी कांग्रेस को वोट कम मिले। असल में वे नहीं चाहते थे कि भाटी स्थापित हों और उनके लिए आगे का रास्ता बंद हो जाए। सब जानते हैं कि भाटी को टिकट दिलवाने में पायलट की अहम भूमिका रही और उनका हारना उन्हें नागवार गुजरा है। स्वाभाविक रूप से इससे पायलट की किरकिरी हुई है, भले ही हारने की एक प्रमुख वजह ये रही हो कि कांग्रेस हाईकमान ने अजमेर उत्तर से किसी सिंधी को टिकट नहीं दिया और सिंधियों ने अजमेर  दक्षिण में कांग्रेस को निपटा दिया। चलो, सिंधियों ने वोट नहीं दिया, मगर कांग्रेस मानसिकता के अनुसूचित जाति के वोट भी भाटी को नहीं मिले, तो इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अनुसूचित जाति के नेताओं ने खुरापात की। इसे सचिन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकते, लिहाजा उन्होंने गोपनीय तरीके से पता लगवाया है कि वे कौन-कौन थे, माल भी खाया और कांग्रेस का माजना भी खराब करवा दिया। ये नेता सोच रहे थे कि पूरे प्रदेश में ही कांग्रेस विरोधी लहर थी, इस कारण उनकी बदमाशी छुप जाएगी, मगर सचिन ने सब कुछ पता लगवा लिया है। अब वे जल्द ही कांग्रेस की खा कर कांग्रेस की ही बारह बजाने वाले उन नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता निकालने का कदम उठाने वाले हैं। इतना ही नहीं निष्क्रिय रहे कुछ पार्षदों के लिए इस बार फिर से टिकट हासिल करना सपना मात्र रह जाएगा।
बुरा न मानो होली है

शनिवार, 15 मार्च 2014

देवनानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का निर्णय

काफी माथापच्ची के बाद भाजपा हाईकमान ने अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ाने का निर्णय किया है। बताते हैं कि भले ही ऊपर से देवनानी ने अपने चहेते नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को टिकट देने की पैरवी की, मगर अंदर ही अंदर वे खुद के टिकट के लिए ही प्रयासरत थे।
असल में देवनानी चाहते तो नहीं थे कि लोकसभा चुनाव में रुचि लें, मगर ताजा राजनीतिक हालात के चलते उन्हें बेहतर यही लगा कि मात्र विधायक रहने की बजाय सांसद बन लिया जाए। सबको पता है कि इस बार विधानसभा चुनाव में तीन सिंधी विधायक बने हैं, ऐसे में देवनानी का मंत्री बनना मुश्किल है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहली पसंद श्रीचंद कृपलानी हैं। हालांकि संघ अब भी देवनानी के लिए ही अड़ा हुआ है, मगर भाजपा के स्थानीय स्तर के कई नेता यही चाहते हैं कि देवनानी से किसी भी तरह से पिंड छूट जाए। बताने की जरूरत नहीं है कि भाजपा का बड़ा धड़ा उन्हें टिकट देने के ही पक्ष में नहीं था। कटवाने के पूरे जतन भी किए गए, मगर देवनानी शातिर निकले। टिकट ले आए तो इस धड़े ने उन्हें हराने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा दिया, मगर कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार हो कर देवनानी जीत गए। जीते भी इतने तगड़े वोटों से, जितने की उम्मीद खुद देवनानी को भी नहीं थी। जाहिर है ऐसे में देवनानी अपने विरोधी धड़े की जान को जर्मन हो गए हैं। वह जानता है कि अगर देवनानी मंत्री बन गए तो उनके लिए एक बड़ी परेशानी बन जाएंगे। सो यही कोशिश कर रहे हैं कि येन-केन-प्रकारेण देवनानी से मुक्ति मिल जाए। वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत के राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने के बाद इस धड़े के हौसले बुलंद हैं। उधर देवनानी को भी लग रहा है कि शायद इस बार मंत्री पद न मिले। ऐसे में कोरा विधायक रहने से बेहतर यही है कि लोकसभा सदस्य बना जाए। सो आखिरकार देवनानी ने लोकसभा का चुनाव लडऩा स्वीकार कर लिया है।
बुरा न मानो होली है

गुरुवार, 13 मार्च 2014

और अब कांग्रेस में अजहरुद्दीन का नाम

इसे अजमेर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि स्थानीय स्तर पर दमदार दावेदार न होने के कारण आए दिन बाहर के नए दावेदारों के नाम उछल रहे हैं। भाजपा की ओर से कभी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.आर. चौधरी का नाम सामने आता है तो कभी डॉ. दीपक भाकर का, और कभी पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी तो कभी सन्नी देओल का। कुछ इसी प्रकार कांग्रेस के खेमे से एक दिन पहले हवा आई कि केन्द्रीय राज्य मंत्री लालचंद कटारिया को अजमेर भेजा जा सकता है, तो गुरुवार को पूरे दिन यही चर्चा रही कि क्रिकेट स्टार अजहरुद्दीन के चुनाव लड़ाने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। पाठकों के लिए जरूर इस प्रकार की अफवाहें रुचिकर होती होंगी, मगर इस प्रकार रोज नए नाम उभरने पर उनका जिक्र करना भी शर्मिंदगी का अहसास कराता है। कम से कम इससे यह तो साबित होता ही है कि अजमेर एक ऐसी चरागाह है, जहां कोई भी बाहर से चरने को आ सकता है। जाहिर तौर पर इसके लिए अजमेर की धरती मां, जनता जनार्दन जिम्मेदार है, जो दमदार दावेदार पैदा नहीं कर पा रही।
बात अगर अजहरुद्दीन की करें तो जाहिर तौर पर वे सेलिब्रिटी तो हैं ही, साथ राज्य की पच्चीस में एक टिकट मुस्लिम को देने की मंशा पूरी करते हैं। यहां आपको बता दें कि कांग्रेस ने कुछ इसी प्रकार एक बार नागौर के भाजपा विधायक हाजी हबीबुर्रहमान को अजमेर भेजा था और वे बुरी तरह से पराजित हो कर लौटे थे। कहा तो ये तक जाता था कि वे आधे मन से ही अजमेर आए, इस कारण निपटे भी बुरी तरह से। बेशक अजहरुद्दीन हबीबुर्रहमान से बेहतर केंडीडेट हो सकते हैं, मगर क्या वाकई मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने के अतिरिक्त क्रिकेट स्टार होने के नाते क्रिकेट प्रेमियों को भी रिझाने में कामयाब होंगे, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे आपको बता दें कि गुरुवार को जारी कांग्रेस की दूसरी सूची में उनका नाम नहीं है। उन्हें मुरादाबाद से टिकट की उम्मीद थी, मगर उनकी जगह बेगम नूरबानो को उम्मीदवार बनाया गया है। बेगम नूरबानो रामपुर से बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी को हरा कर सांसद रही हैं।
वैसे जहां तक कटारिया की चर्चा का सवाल है, वे कांग्रेस के लिए एक दमदार केंडिडेट हो सकते हैं। उसकी वजह ये है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में दो लाख से कहीं अधिक जाट मतदाता हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि जाट मार्शल कौम है और इसके बारे में कहा जाता रहा है कि जाट की बेटी जाट को और जाट का वोट जाट को। यानि कि नसीराबाद विधायक व केबीनेट मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट भी किसी गैर जाट भाजपा प्रत्याशी के लिए कुछ खास नहीं कर पाएंगे। वैसे भी उनका एक बैल्ट में प्रभाव है, पूरे जिले में नहीं, जबकि कटारिया एक बड़ी जाट लॉबी को बिलॉंग करते हैं। अगर उन्हें मैदान में उतारा जाता है तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है। कम से कम स्थानीय किसी दावेदार में तो इतना दम नहीं कि वह उनका मुकाबला कर सके। ऐसे में भाजपा को बाहर से ही कोई दमदार नेता भेजना होगा।
जो कुछ भी हो, जहां कांग्रेस में केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की वजह से कोई और स्थानीय दावेदार उभर ही नहीं सकता तो भाजपा में स्थानीय दावेदारों की लंबी फेहरिश्त होने के बावजूद बाहर के नेताओं के नाम उभर रहे हैं। स्वाभाविक है कि भाजपा कांग्रेस के प्रत्याशी पता लगने के बाद ही अपने प्रत्याशी पर विचार करेगी। और उसकी एक मात्र वजह ये कि संसदीय क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों पर जीत के बाद वह किसी भी सूरत में अजहरुद्दीन सरीखे खिलाड़ी के सामने हल्की बॉल नहीं फेंकेगी।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 12 मार्च 2014

एडीए में कई पद खाली, चक्कर लगा रहे हैं सवाली

यह ठीक है कि सरकार ने अजमेर, किशनगढ़ व पुष्कर को समाहित करते हुए अजमेर विकास प्राधिकरण के नाम से पुनर्गठित अजमेर नगर सुधार न्यास में सीनियर आईएएस देवेंद्र भूषण गुप्ता को अध्यक्ष पद और मनीष चौहान को आयुक्त पद सौंप दिया गया है, मगर मात्र इतने भर से प्राधिकरण का कामकाज सुचारू हो जाएगा, इसकी उम्मीद करना इसलिए बेमानी है, क्योंकि प्राधिकरण के पास जितना काम है, उसके अनुरूप अपेक्षित पद आज भी खाली हैं। इसका परिणाम ये है कि न्यास के रहते अलबत्ता काम की रफ्तार जितनी थी, वह अब और भी कम हो गई है। बेशक बड़े अधिकारियों ने मास्टर प्लान सहित अन्य विकास योजनाओं पर चर्चा आरंभ कर दी है, मगर धरातल का सच ये है कि इनके क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त स्टाफ ही नहीं है। इस सिलसिले में स्थानीय अधिकारियों ने अनेक बार सरकार का ध्यान आकर्षित किया है, मगर नियुक्तियों की गति नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि प्राधिकरण के नए अध्यक्ष देवेन्द्र भूषण गुप्ता अजमेर के कलेक्टर रह चुके हैं, इस कारण उन्हें अजमेर के हालात की पूरी जानकारी है और यहां की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के अनुरूप विकास को गति देने की क्षमता रखते हैं, मगर उसे अमली जामा तभी पहना पाएंगे, जबकि उन्हें पूर्णकालिक जिम्मा सौंपा जाएगा।
नए नियुक्त आयुक्त मनीष चौहान ने जरूर आते ही जता दिया है कि वे प्राधिकरण में बिचौलियों पर नकेल कसेंगे, जिससे आम जनता को राहत मिलेगी, मगर सच्चाई ये है कि आज भी आपको प्राधिकरण के दफ्तर में दलालों का ही डेरा नजर आएगा।
उन्होंने कहा कि एडीए को मिले किशनगढ़़ व पुष्कर क्षेत्र के कई स्थानों पर आवासीय योजनाएं बनाई जाएंगी, जो कि मास्टर प्लान के तहत होंगी। साथ ही मास्टर प्लान भी जल्द ही लागू कर दिया जाएगा, मगर हकीकत ये है इसे लागू करने के लिए अपेक्षित स्टाफ ही नहीं है। नतीजा ये है कि एडीए में करीब 25 हजार से ज्यादा फाइलें लंबित हैं। लोगों को आए दिन एडीए के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। विभिन्न आवासीय योजनाओं में भी विकास कार्य अधूरे पड़े हैं। ऐसे में कोरी बातें करने से कुछ नहीं होने वाला है। उन्होंने एडीए की जमीनों पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है, मगर अब तक तो कहीं नजर नहीं आया कि क्या वाकई उनमें इसके लिए इच्छाशक्ति भी है। इच्छाशक्ति हो तो भी अतिक्रमण निरोधक दस्ते के लिए जितनी मेन पावर चाहिए, वह तो है ही नहीं।
प्राधिकरण के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती ये है कि 2002 से चल रही सीवरेज योजना आज तक शुरू नहीं हो पाई है। लाख कोशिशों के बाद भी उसकी गति कछुआ चाल वाली है। इसका नुकसान ये हो रहा है कि एक ओर तो इसकी लागत बढ़ती जा रही है और दूसरा करोड़ों रुपए लगने के बाद भी इसका लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा। इसमें सबसे बड़ी बाधा ये है कि कुछ तकनीकी कारणों के चलते नगर निगम इसका जिम्मा लेने को तैयार ही नहीं है। इस विवाद का हल निकालने के लिए आज कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए।
कुल मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण के गठन से आम जन में जो उम्मीद जगी थी, वह मात्र दिवा स्वप्र ही साबित हो रही है।

भाजपा को नहीं मिल रहा सचिन के मुकाबले का स्थानीय दावेदार

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही कवायद में बेशक भाजपा कांग्रेस से आगे चल रही है और उसने अजमेर संसदीय क्षेत्र के लिए दावेदारों के लिए वोटिंग भी करवा ली है, मगर लगता यही है कि भाजपा को मौजूदा कांग्रेस सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन के फिर से मैदान में आने पर उनके मुकाबले इनमें से एक भी उपयुक्त नजर नहीं आता। राजनीति के जानकार समझ रहे हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं के मोटिवेशन और पदाधिकारियों को सम्मान देने मात्र की खातिर वोटिंग करवाई गई, जबकि यह सीट कांग्रेस से छीनने के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे गुप्त रूप से किसी सेलिब्रिटी को उतारने की कवायद कर रही हैं। और इसी के चलते फिल्म अभिनेता सन्नी देओल व श्रीमती राजे की पुत्रवधू श्रीमती निहारिका जैसे नाम चर्चा में हैं।
दरअसल श्रीमती राजे जानती हैं कि चुनावी मैनेजमेंट में माहिर सचिन का मुकाबला करने की कुव्वत कम से कम मौजूदा स्थानीय दावेदारों में तो नहीं है। बेशक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी आठों सीटें हथिया लीं, बावजूद इसके सचिन मौजूदा ज्ञात दावेदारों से तगड़े साबित होंगे। ऐसे में वे नहीं चाहतीं कि स्थानीयवाद के नाम पर यह सीट यूं ही गंवा दी जाए।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों दावेदारों के लिए जयपुर में हुई पार्टी पदाधिकारियों की वोटिंग में कैबिनेट मंत्री सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा, किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत, शहर भाजपा अध्यक्ष रासा सिंह रावत, देहात भाजपा अध्यक्ष भगवती प्रसाद सारस्वत, पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिया व श्रीमती सरिता गैना, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.आर. चौधरी, पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा, पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत, नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, जिला प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश, डॉ. कमला गोखरू, डॉ. दीपक भाकर, सतीश बंसल, ओमप्रकाश भडाणा, गजवीर सिंह चूड़ावत, सरोज कुमारी (दूदू), नगर निगम के उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ व डीटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी रीतू चौहान के नाम सामने आए थे। पिछली बार सचिन पायलट से तकरीबन 75 हजार वोटों से हारने वाली श्रीमती किरण माहेश्वरी के बारे में चर्चा थी कि वे इस बार अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए दुबारा यहीं से भाग्य आजमाना चाहेंगी, मगर इस बार पसंदीदा प्रत्याशियों के लिए हुई वोटिंग में किसी ने उनका नाम नहीं लिया। वस्तुत: उनका नाम इस बार इस कारण चर्चा में था क्योंकि वे स्थानीय अन्य दावेदारों की तुलना में कुछ भारी हैं और इस बार चुनाव भाजपा के लिए आसान माना जा रहा है। राज्य मंत्रीमंडल में मौका नहीं मिलने के बाद यही कयास रहा कि वे मात्र विधायक रहने की बजाय केन्द्र की राजनीति में जाना चाहेंगी। वे पहले भी केन्द्रीय राजनीति में रह चुकी हैं, फिलवक्त उनका नाम नैपथ्य में है।
बात अगर स्थानीय दावेदारों की करें तो जिले में जाटों के वोट दो लाख से ज्यादा होने के कारण जाटों का दावा मजबूत है और इसी के चलते कैबिनेट मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट ने अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे कर दिया है, मगर एक ही परिवार से एक मंत्री बनने के बाद दूसरे को लोकसभा चुनाव के मौका दिया जाएगा या नहीं, इसमें संशय नजर आता है। बात अगर किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी की करें तो वे इस कारण दावेदारी करते नजर आ रहे हैं क्योंकि दो बार विधायक बनने के बाद भी उन्हें मंत्री बनने का मौका नहीं मिलना है, क्योंकि अजमेर जिले एक जाट विधायक प्रो. जाट पहले से मंत्री हैं। जाहिर है मात्र विधायक रहने की बजाय सांसद बनने की मंशा रख रहे हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना व उनके ससुर सी. बी. गैना व राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी का नाम चर्चा में है।
दावा अजमेर से पांच बार सांसद रह चुके व वर्तमान में शहर भाजपा की कमान संभाल रहे प्रो. रासासिंह रावत भी कर रहे हैं, मगर उनका नाम तो पिछली बार ही कट गया था, परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में रावतों के वोट कम होने के कारण। बताया जा रहा है कि वोटिंग में बाजी देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत ने मारी है, मगर जातीय समीकरण के तहत भाजपा उन पर दाव खेलेगी, इसमें तनिक संशय है। पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा जरूर साधन-संपन्नता के लिहाज से मुकाबला करने की स्थिति में हैं।
लब्बोलुआब, निष्कर्ष यही निकलता नजर आ रहा है कि सचिन पायलट की संभावित उम्मीदवारी के मद्देनजर भाजपा उन्हीं के जोड़ के नेता को मैदान में उतारेगी। बताया तो ये जा रहा है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो नाम का पैनल तय कर रखा है और सचिन का नाम फाइनल होते ही आखिरी क्षणों में तुरुप का पत्ता खोलेंगी।
-तेजवानी गिरधर