गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

पप्पू तो ऐसे ही पास होता रहा है

हर बार की तरह इस बार भी अजमेर नगर निगम का बजट हंगामे और वाहियात खींचतान के बीच पास हो गया। हां, इतना जरूर है कि इसे इस बार इसे पप्पू की संज्ञा दे दी गई, बाकी वह पहले भी इसी तरह से पास होता रहा है। भूतपूर्व नगर परिषद सभापति स्वर्गीय रतनलाल यादव के जमाने से ऐसा ही होता आया है। बड़े-बड़े हंगामे और मुकदमे तक हुए हैं। शायद ही कोई ऐसी साधारण सभा हुई हो, जिसमें मर्यादा की सीमाएं पार नहीं की गई हों। हर बार मीडिया सदन के अंदर बनाए जाने वाले माहौल का मुद्दा उठाता रहा है, मगर आज तक न तो कोई सभापति कंट्रोल कर पाया और न ही पार्षदों ने व्यवहार को संयमित करने पर विचार किया। आज जो भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल माहौल से खिन्न हो कर सदन छोड़ कर चली गईं, वे ही जब नगर परिषद सभापति थीं, तब पार्षदों का हंगामा देख कर रोने लगी थीं। अपनी पहली बैठक में मेयर कमल बाकोलिया को भी पीछे के दरवाजे से लगभग भागना पड़ गया था। इस बार चूंकि सभा खुले आसमान के नीचे हुई, इस कारण आजादी कुछ ज्यादा ही थी। हालत ये हो गई कि भाजपा के दोनों विधायकों वासुदेव देवनानी व अनिता भदेल को खुद की इज्जत बचाने की खातिर सभा का बहिष्कार करना पड़ गया।
इसे भले ही मेयर बाकोलिया की रणनीति जीत मान लिया जाए कि उन्होंने बिना चर्चा के ध्वनिमत से बजट पारित करवा लिया, मगर सच ये है कि हंगामा पहले से सुनिश्चित कर लिया गया था। दोनों ओर से। वरना क्या जरूरत थी कि सभा की शुरुआत ही सभा स्थल को लेकर की गई। पता था कि इस पर पलट कर कांग्रेसी भी सवाल करेंगे कि आपने भी तो नगर निगम से बाहर बैठक की थी, फिर भी श्रीगणेश इसी से किया गया। हालत ये हो गई कि नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना ने तो यह आरोप भी लगाया कि दिया कि भाजपा बोर्ड के दौरान तो जाम से जाम भी टकराए थे। स्वाभाविक रूप से इस पर टकराव होना था, वह हुआ और आखिर पूरी बजट बैठक हंगामे के हवाले ही हो गई। पार्षदों में हाथापाई इस कदर हुई कि मारपीट की नौबत आ गई। शायद यह पहला मौका था कि सदन में पुलिस को प्रवेश करना पड़ा। बेशक इससे सदन की अवमानना हुई, मगर इसके लिए जिम्मेदार भी तो पार्षद ही थे।
यानि ये नूरा कुश्ती थी
क्या पार्षदों के बीच हुई तू-तू मैं-मैं नूरा कुश्ती थी? बिलकुल। इसका साफ खुलासा विधायक श्रीमती भदेल ने किया और बनावटी लड़ाई व हंसी-मजाक बंद करने की अपील की। यह अपील उस वक्त तो काम नहीं आई, मगर जैसे ही सभा समाप्त हुई, झगड़ा करने वाले पार्षद गलबहियां करते नजर आए। अनिता द्वारा हंगामे को बनावटी लड़ाई की संज्ञा देना इस बात का भी इशारा है कि पार्षद भले ही सदन में पार्टी के नाते भिड़ रहे हैं, मगर सामान्य दिनों मिल-बांट कर काम करते हैं। सच तो ये है कि भाजपा पार्षदों की फूट व बाकोलिया से मिलीभगत के कारण ही उनका कार्यकाल बड़े ही सुकून से कट रहा है।
शहर से बड़ा खुद का हित
सभा स्थल के विवाद और बजट प्रस्तावों पर भले ही पार्षदों के बीच मतैक्य रहा, मगर जैसे ही पार्षदों के लिए कॉलोनी विकसित करने और निगम के खर्चे पर पार्षदों के मसूरी ट्रिप का प्रस्ताव आया तो सभी ने मौन स्वीकृति दे दी।
खुद ही अपने धोळों में डलवाई धूल
निगम में संभवत: सर्वाधिक वरिष्ठ पार्षद मोहनलाल शर्मा ने खुद ही अपने धोळों में धूल डलवाई। होना तो यह चाहिए था कि अनेक बोर्ड देख चुके शर्मा की मौजूदगी सदन को दिशा प्रदान करती, मगर अपने मिजाज की वजह से पहले कांग्रेसी कुनबे से बाहर हुए और जब बोलने लगे तो उनकी सुनने को कोई तैयार ही नहीं था। मौका देख कर बाकोलिया ने भी दंडित करने की चेतावनी का साहस जुटा लिया।
हाईलाइट होना चाहते थे गुलाम मुस्तफा?
कुछ दिन पहले मेयर बाकोलिया के खिलाफ मोर्चा खोल आरोपों की झड़ी लगाने वाले कांग्रेस के मनोनीत पार्षद सैयद गुलाम मुस्तफा चिश्ती साधारण सभा बैठक में मेयर का सुरक्षा कवच बने नजर आए तो सभी का चौंकना स्वाभाविक था। इसका संकेत उन्होंने सभा से पहले ही दिया था, जब उन्होंने बाकोलिया पर शब्द बाण चलाने के बाद भाजपा को भी निशाने पर लिया था। ऐसा प्रतीत हुआ कि वे इन दोनों ही प्रकरणों से हाईलाइट होना चाहते थे कि कम से कम शहर को यह तो ख्याल रहे कि वे भी निगम के पार्षद हैं।
-तेजवानी गिरधर