मंगलवार, 7 अगस्त 2012

महज वाहवाही के लिए शुरू किया ट्रोमा सेंटर?


ट्रोमा वार्ड के शुभारंभ का फाइल फोटो
लंबी प्रतीक्षा के बाद हालांकि जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में ट्रोमा सेंटर का औपाचारिक शुभारंभ दिग्गज मंत्रियों व नेताओं की फौज की मौजूदगी में हो तो गया, मगर ऐसा लगता है कि यह केवल एक रस्म अदायगी थी और सरकार ने फोकट वाहवाही लूटने के मकसद से किया। वरना क्या वजह है कि शुभारंभ के एक हफ्ते बाद भी ट्रोमा सेंटर स्टाफ के अभाव में काम नहीं कर पा रहा है?
ज्ञातव्य है कि एक हफ्ते पहले ही केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री एमामुद्दीन अहमद दुर्रु मियां व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ ने विभिन्न जनप्रतिनिधियों के साथ जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय में नवनिर्मित ट्रोमा यूनिट का लोकार्पण किया था। पायलट व दुर्रु मियां ने मीडिया कर्मियों को बताया कि इससे जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय की सुपर स्पेशलिटी सेवाओं में वृद्धि हुई है और इसका लाभ अजमेर संभाग व राज्य के अन्य स्थानों के मरीजों व बच्चों को मिलेगा। पायलट, दुर्रु मियां व श्रीमती इंसाफ ने संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर, नाथूराम सिनोदिया, श्रीमती अनिता भदेल, महापौर कमल बाकोलिया, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत की मौजूदगी में ट्रोमा वार्ड परिसर का निरीक्षण कर यहां की सुविधाओं की तारीफ करते हुए कहा कि इसका लाभ मरीजों को मिलेगा।
इस मौके पर यह भी बताया गया कि ट्रोमा सेन्टर के संचालन हेतु राज्य सरकार द्वारा पैरा मेडिकल के 34 नये पदों का सर्जन किया गया है, जिसकी प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति जारी हो चुकी है। इस सेन्टर की स्थापना से हाईवे पर अजमेर संभाग में होने वाली दुर्घटनाओं से ग्रसित घायलों को तुरन्त राहत व उपचार उपलब्ध हो पायेगा। भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय द्वारा इस हेतु एक एम्बुलेंस भी उपलब्ध कराई गई है। मगर धरातल का सच ये है कि स्टाफ की कमी के चलते अस्पताल अधीक्षक डॉ. ब्रिजेश माथुर को सर्जरी, आर्थोपेडिक व मेडिसन विभाग के विभागाध्यक्षों की बैठक लेकर यह तय करना पड़ा कि ट्रोमा सेंटर की जिम्मेदारी रेजीडेंट डॉक्टर्स संभालेंगे।  संबंधित विभागों के वरिष्ठ चिकित्सक ऑन कॉल सेवाएं देंगे। डॉ. माथुर ने बताया कि केंद्र सरकार ने सेवानिवृत्त चिकित्सक लगाए जाने के निर्देश दिए थे। जो वेतन तय किया गया है, उस पर कोई भी चिकित्सक सेवाएं देने को राजी नहीं है। ऐसी स्थिति में व्यवस्थाओं को बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जानकारी तो यहां तक भी मिली है कि जिन लोगों की ड्यूटी लगाने पर विचार किया जा रहा है, वे अपने रसूखातों से ड्यूटी निरस्त करवाने में भी लग गए हैं। ऐसे में व्यवस्थाओं को बनाने में जवाहरलाल नेहरू अस्पताल प्रशासन को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक ओर तो सरकार के जिम्मेदार नुमाइंदों ने चंद रोज पहले इसका लोकार्पण कर अखबारों के बड़े-बड़े फोटो खिंचवा कर वाहवाही लूटी और दूसरी ओर सरकार को यह परवाह ही नहीं है कि इसका संचालन आखिर बिना पर्याप्त स्टाफ के होगा कैसे?
-तेजवानी गिरधर

अच्छा, टंडन की गहलोत से पुरानी खुन्नस है

हाल ही दैनिक भास्कर में छात्रसंघ चुनाव के सिलसिले में एक रोचक किस्सा छपा है। इसमें खुद अजमेर बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने खुलासा किया है कि मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके छात्र जीवनकाल में कैसे संबंध थे। इसमें उन्होंने बताया है कि वर्ष 1974 में उन्होंने जीसीए छात्र संघ अध्यक्ष चुनाव का चुनाव लड़ा था, लेकिन अशोक गहलोत ने हरवा दिया। उन्होंने बताया है कि उस जमाने में पूर्व विधायक स्वर्गीय केसरी चंद चौधरी की तूती बोलती थी, मगर तत्कालीन विधायक स्वर्गीय किशन मोटवानी से उनका छत्तीस का आंकड़ा था। चौधरीजी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से मुलाकात करवाई और जीत का आशीर्वाद दिलवाया। उधर मोटवानीजी ने शांतिराज सिंघवी को मैदान में उतार दिया। सिंघवी जोधपुर के रहने वाले थे और अशोक गहलोत के दोस्त थे। गहलोत उस समय एनएसयूआई के अध्यक्ष हुआ करते थे और टंडन यूथ काग्रेंस के शहर जिला अध्यक्ष। सिंघवी ने चुनाव प्रचार के लिए गहलोत को अजमेर बुलवा लिया। जब गहलोत से उन्होंने आग्रह किया कि मैं भी तो कांग्रेसी हूं, आप मेरा सहयोग नहीं करोगे क्या, इस पर गहलोत ने से कहा कि वे व्यक्तिगत संबंधों की वजह से यहां आए हैं और सिंघवी के पक्ष में ही चुनाव प्रचार करूंगा। आखिर उस चुनाव में टंडन को हार का सामना करना पड़ा था।
टंडन के इस खुलासे को राजनीतिक हलकों में टंडन व गहलोत के मौजूद संबंधों से जोड़ कर देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि टंडन वरिष्ठ और सक्रिय कांग्रेस नेता हैं, मगर गहलोत ने उन्हें किसी भी तरह से उपकृत नहीं किया है। समझा जाता है कि उनके तभी के संबंधों को अभी तक निभाया जा रहा है। ये तो गनीमत है कि टंडन ने अपने बलबूते बार अध्यक्ष पद फिर से हासिल कर लिया है, वरना कांग्रेस की ओर से तो उन्हें हाशिये पर ही डाला हुआ है।
टंडन के कथित सरकार विरोधी रवैये को भी गहलोत के पुराने संबंधों ेसे जोड़ कर देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों उर्स की बदइंतजामियों को लेकर टंडन ने कलेक्ट्रेट पर धरना दिया तो संगठन की ओर से यही कहा गया कि वे निजी तौर पर धरना दे रहे हैं, जिसका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है। टंडन के इस कदम को सरकार विरोधी भी करार दिया गया, हालांकि टंडन का यह कहना था कि वे आम जनता के हित में प्रशासनिक शिथिलता पर प्रहार कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि हाल ही जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने कांग्रेस मानसिकता के वकीलों पर टिप्पणी की तो उस पर टंडन ने कड़ा ऐतराज किया था। इस पर रलावता के समर्थकों ने टंडन पर आरोपों की झड़ी लगा दी। इस सिलसिले में उन्होंने गहलोत को पत्र लिख कर बताया कि उर्स के दौरान जिला प्रशासन ने व्यवस्थाएं नहीं की, लिहाजा उपवास किया। आनासागर के राम प्रसाद घाट पर जायरीन की हिफाजत के लिए गोताखोरों की तैनाती, तारागढ़ पर पेयजल की मांग की, इसे रलावता गहलोत सरकार विरोधी कदम बता रहे हैं। टंडन ने गहलोत से आग्रह किया है कि वे संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को यह जरूर समझाएं कि कार्यकर्ता प्रशासनिक खामी को उजागर करता है तो उसे गहलोत विरोधी करार देने से बाज आएं। टंडन ने मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में लिखा कि महेंद्रसिंह रलावता से यह पूछा जाना चाहिए कि व्यवस्थाओं के लिए मेरे द्वारा किए गए विरोध सरकार विरोधी कदम हैं तो मुख्यमंत्री के काफिले के साथ अपनी कार उर्स के दौरान दरगाह तक जाने की जिद, नहीं जाने देने पर महफिल खाने में सीढिय़ों पर धरना देकर प्रशासनिक खामियों का रोना रोने, पुलिस व प्रशासनिक अफसरों का सार्वजनिक घेराव, बदतमीजी करने, किशनगढ़ हवाई पट्टी पर महिला कलेक्टर को गाड़ी से उतार कर आवेश में दुव्र्यवहार करने को क्या कहा जाए? सरकार प्रेम! टंडन की बात में दम तो है, मगर हाल ही उन्होंने छात्रसंघ चुनाव को लेकर को खुलासा किया है, लोग उसे ताजा घटनाक्रम से जोड़ कर देख रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर