गुरुवार, 26 जुलाई 2012

दीवान साहब के बयान से फिल्म जगत तो सहमा ही


बीते दिनों महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान और ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जेनुअल आबेदीन व खुद्दाम हजरात के बीच हुए विवाद का कोई निष्कर्ष निकला हो या नहीं, जो कि निकलना भी नहीं है, मगर फिल्म जगत तो सहम ही गया। और साथ ही अधिकतर फिल्मी हस्तियों को जियारत कराने वाले सैयद कुतुबुद्दीन सकी के नजराने पर भी मार पडऩे का अंदेशा हो गया। इसकी वजह ये है कि अजमेर में खादिमों के ताकतवर होने के कारण फिल्मी हस्तियों को भले ही कोई खतरा नहीं है, मगर जिस तरह से इस विवाद ने तूल पकड़ा और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरीके से उछाला, उससे फिल्म जगत पर तो भारी असर पड़ा ही होगा।
असल में हुआ ये था कि दरगाह दीवान ने यह बयान जारी कर कहा कि फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगना शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और नाकाबिले बर्दाश्त है। उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी को चिंताजनक बताया। अजमेर में खादिम भले ही उनके धुर विरोधी हों  अथवा आम मुसलमानों पर दीवान साहब की कोई खास पकड़ नहीं हो, मगर देश-दुनिया में तो उन्हें ख्वाजा साहब के वंशज के रूप में काफी गंभीरता से लिया जाता है। यही वजह रही कि उनके बयान को राष्ट्रीय मीडिया ने खासी तवज्जो दी। अनेक चैनलों पर तो ब्रेकिंग न्यूज के रूप में यह सवालिया टैग बारबार दिखाया जाता रहा कि दरगाह शरीफ में फिल्मी हस्तियों की जियारत पर रोक? ऐसा अमूमन होता है कि दिल्ली में बैठे पत्रकार धरातल की सच्चाई तो जानते नहीं और दूसरा जैसा ये कि उनकी किसी भी खबर को उछाल कर मारने की आदत है, सो इस खबर को भी उन्होंने इतना तूल दिया कि पूरा फिल्म जगत सहम ही गया होगा।
हालांकि अजमेर में ऐसा कुछ हुआ नहीं है और न ही होने की संभावना प्रतीत होती है, मगर फिल्मी हस्तियों में तो संशय उत्पन्न हो ही गया। जाहिर सी बात है कि ऐसे में वे अजमेर आने से पहले दस बार सोचेंगी कि कहीं वहां उन्हें जियारत करने से रोक तो नहीं दिया जाएगा अथवा उनके साथ बदतमीजी तो नहीं होगी। ऐसे में यदि अच्छा खासा नजराना देने वाली फिल्मी हस्तियों की आवक बंद होगी अथवा कम होगी तो स्वाभाविक रूप से यह खुद्दाम हजरात को नागवार गुजरेगा। खासकर फिल्म जगत के अघोषित रजिस्टर्ड खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चश्ती पर तो बड़ा भारी असर पड़ेगा।
हालांकि जिस मुद्दे को दीवान साहब ने उठाया था, उस पर तो खास चर्चा हुई नहीं, बल्कि उनके ख्वाजा साहब के वश्ंाज होने न होने पर आ कर अटक गई, मगर मुंबई में फिल्म जगत में तो यही संदेश गया ना कि अजमेर में उनको लेकर बड़ा भारी विवाद है। उन्हें क्या पता कि यहां दीवान साहब कितने ताकतवर हैं या उनके समर्थक उनके साथ क्या बर्ताव करेंगे?
यूं मूल मुद्दे पर नजर डाली जाए तो जहां दीवान साहब का बयान तार्किक रूप से ठीक प्रतीत होता है तो खुद्दाम हजरात की दलील भी परंपरागत रूप से सही प्रतीत होती है, मगर झगड़ा इस बात पर आ कर ठहर गया कि इस बयान के जरिए दीवान साहब कहीं अपने आप को दरगाह शरीफ का हैड न प्रचारित करवा लें। सो खादिमों ने तुरंत ऐतराज किया। खादिमों का पूरा जोर इस बात पर रहा कि दीवान को जियारत के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे कोई दरगाह के मुखिया नहीं है, महज दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं। दूसरा ये कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं।
ऐसा करके वे दीवान साहब के बयान की धार को भोंटी तो कर पाए हैं, मगर यदि फिल्म जगत तक सारी बात ठीक से न पहुंच पाई तो वह तो सहमा ही रहेगा। साथ ही जनाब कुतुबुद्दीन साहब का नजराना भी तो मारा जाएगा। कदाचित इसी वजह से खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चिश्ती ने कहा कि ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है। खादिमों की रजिस्टर्ड संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने भी कहा कि दीवान का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

दरगाह में भारतीय मुद्रा को रौंदे जाने पर छिड़ी बहस


दैनिक भास्कर में प्रकाशित फोटो

दैनिक भास्कर के 25 जुलाई के अंक छपी एक फोटो, जिसमें दरगाह शरीफ में भारतीय मुद्रा को पैरों तले रोंदा जा रहा था, पर आम पाठकों की क्या प्रतिक्रिया रही यह तो पता नहीं, मगर फेसबुक पर इस मुद्दे को लेकर जम कर गरमा-गरम बहस हुई। कुछ लोग जरूर संयत बन कर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे, मगर कुछ ने मर्यादाओं को ताक पर रख कर अभिव्यक्ति की आजादी का मजा उठाया। फेसबुक पर कुछ भी कहने की छूट जो है। आपको याद होगा कि पिछले दिनों ख्वाजा साहब के उर्स के दौरान सेंट्रल गल्र्स स्कूल में पाकिस्तानी जायरीन द्वारा भारतीय मुद्रा को रोंदे जाने पर बड़ा बवाल हुआ था, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला।
ताजा मसला है कुछ इस प्रकार है। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बीते मंगलवार को हजरत खातून ए जन्नत बीबी फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के यौम-ए-वफात के मौके पर अहाता ए नूर में महफिल के दौरान शाही कव्वाल पर नोट उसारने के दौरान भारतीय मुद्रा पैरों तले रौंदे जा रहे थे। इसकी फोटो भास्कर ने प्रकाशित की तो उसे N A Real Story ने फेसबुक पर शाया कर दिया। इस पर अनेक प्रतिक्रियाएं आईं। इस बहस से जहां खादिमों के प्रति कायम हो रही आम राय का संकेत मिला तो वहीं दूसरी ओर एक खादिम Kashif Chishty Kashifchishty ने दंभ से भरी टिप्पणी की। आइये देखते हैं, बहस में किस ने क्या कहा-
Lokesh Tailor- desh sabse bada hota hai.isme rahne vala har admi aam admi hota hai nki khadim
Jitu Rangwani- People they forget everything once they r in Mandir or masjid they think god or Allah doing all once they r entered in dt area.... Nonsense log
N A Real Story- Jitu Rangwani पैसों को जान बूझ कर उछालना फिर पैरों के निचे रोंदना, इन सब का धर्म से क्या लेना देना है, इस्लाम में इतने बड़े वाली की महफ़िल में पैसों को उछालना तो खुद बहुत बड़ी तौहीन है ये एक वाली का आस्ताना है, पब डिस्को या फिर तवायफ का कोठा नहीं जहाँ पैसों को उछाला जाए। मेने जो शब्द इस्तेमाल किये हैं उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ पर इसके बिना शायद में समझा नहीं पता.
Jasmine Singhaniya- ye to vha ka roj ka kaam h
Jitu Rangwani- n a Wht m trying to say ki yeh log jab b kaisi darmik place par pahuchtey hai toh pane app ki hi khufu ya Bhagwan samaj bethtey hai and jo kartey hai Inge San sahi Lagta hai nd dey think ki San god ki Marji se Jo raha hai... So m saying they r totally nonsense
Brajesh Samaria- VOTE SE BADA DESH NAHEE HOTA BECAUSE VOTE SE HEE LOKTANTRA CHALTA H...HHHAAAA....YE KAAM SABHEE DHARMO KE LOG SHADIYO ME KARTE HAIN BECAUSE INDIA IS NOT A RASTRA,,,ONLY A NATION
Vikas Ojha- bcoz.1 they are not hindu 2nd our govt.discriminates us from community abhi aajkal hi dekh lijiye ,,, jaha pure rajasthan me vidyut katuati lagu hain.. kal se .. ajmer ke muslim ilako ko katuati se mukt rakha gya hain... aur hamare sabse bade tyohar diwali ke time .. jan bujhkar light ki katauti ki jati hain ... agar light nai hain to sab ke liye nai honi chaiye na ,. phir discrimination kyu .. on basis of community or caste..
Mukul Mishra- Desh ki gandi rajnitik vayvastha ne kuchh suwaro ko aisa ahsaas kara diya hai k is desh or sanvidhan se bhi bade hai,jab ki satya ye hai k desh se bade na to ye hai or na hi inke rajnitik baap.Jarurat sirf itni hai k muze ya mere jaise kisi aadmi k haath me sanvadhanik shakti aa jaye,yakin maniye dargah pe kam or bajrangarh pe jute saaf karte jyada nazar aayenge,suabah alla k naam ki jagah vandematrum gate nazar aayenge.Shariyat k bajaye i p c k samne haath jode nazar aayenge.Jai hindu rashtra.
Tolaram Siyag- ya galat bat hai
Jassu Jasmin- kya kare ab. .congressi kutto ka jo raaz h..
Pandit Surendra Dhar Dwivedi- sahi kaha rahe ho desh se bada kon ho sakts hai
Kapil Sharma- jada hai na isliye bhai
Jagdish Jas- Sharma Des phle h
Shatrughan Meena- ajmer me ''khadim raaz'' abi cntrol kr lo to sai h..
Sher Mohammed Khan- Mukul g ap smajdar hokar kis jamane ki bat kar rhe muslimo ko thodi si rahat kya d di ap jal uthe kabi apne sarkar k neta afsro k kharche p dhyan dene ki kosis ki h kya
Kashif Chishty Kashifchishty- yuhi jal jal ke mar jana
Parvez Khan- maro salo ko bhjga do yaha s lutmar lagga rkhi h
Amit Ranka- chin lo raj path or bena do wapas sevadar
Ramesh Rawat- khuda ne shaayad inahe kuch jyaada hi de diya h.........kabhi hum pe bhi rehamat kar diya karo
Kashif Chishty Kashifchishty- Sevedar to hum log he hi khwaja ke tum log jab yaha aate ho na mannat mangne to hum hi log dua karte he samjhe or cheen ti duniya ki takat nahi sakti he
N A Real Story- ‎Kashif Chishty Kashifchishty dunya ki taqat chahe na cheen sakti ho, Par Khwaja Saehb Ki Taqat Aur Allah Ki Taqat Sab Kuch Cheen Sakti Hai......

टंडन-सिंह में ट्यूनिंग नहीं, कैसे चलेगी बार की गाडी?


अध्यक्ष राजेश टंडन 

ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर बार एसोसिएशन के इंजन में लगे दो पहिये रूपी अध्यक्ष राजेश टंडन व सचिव चंद्रभान सिंह अलग-अलग दिशाओं में जाने को आतुर में हैं। ऐसे में बार की गाडी क्या होगा, खुदा ही जाने। एक माह में दो बार ऐसी नौबत आई कि बार पूरी तरह से दो फाड़ सी हो गई। पहले ई कियोस्क मसले पर टंडन के जिला कलेक्टर वैभव गालरिया से वार्ता कर आने पर सिंह खेमे ने उनकी इज्जत उतार कर हाथ में दे दी तो अब सिंह ने अपने स्तर पर अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया तो टंडन खेमा पसर गया। ये तो गनीमत है कि दोनों ही बार सुलह हो गई, और दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में रख लीं।
यह एक सुविज्ञ तथ्य है कि कोई भी संगठन तभी कामयाब होता है, जबकि अध्यक्ष और सचिव की ट्यूनिंग ठीक होती है, वरना आए दिन मतभेद होते हैं। टंडन व सिंह के बीच भी ट्यूनिंग का अभाव प्रतीत होता है। इसी कारण दोनों एक-दूसरे की राय लिए बिना अपने स्तर पर ही काम निपटाने की कोशिश में लगे रहते हैं। पहले टंडन ने सिंह को विश्वास में लिए बिना ही कलेक्टर से समझौता वार्ता कर ली तो अब सिंह ने टंडन को जानकारी दिए बिना ही अन्ना को समर्थन देने का निर्णय कर लिया। सिंह ने अन्ना हजारे द्वारा दिल्ली में शुरू किए गए आंदोलन के समर्थन में बुधवार को कामकाज स्थगित रखने का पत्र अदालतों में भिजवा दिया। वकीलों को सचिव के स्तर पर की गई कार्रवाई की जानकारी दूसरे दिन सुबह अदालत पहुंचने पर मिली तो कांग्रेस विधि विभाग के अध्यक्ष वैभव जैन समेत अन्य वकीलों ने सचिव से इसका विरोध किया। उनका कहना था कि किसी के समर्थन में अदालतों का कामकाज स्थगित रखने का फैसला बार या साधारण सभा के द्वारा ही लिया जा सकता है। किसी को आंदोलन विशेष का समर्थन करना है तो वह व्यक्तिगत रूप से कर सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सिंह से यही गलती हो गई कि उन्होंने निजी तौर पर अन्नावाद के प्रभाव में आ कर अति उत्साह में पत्र जारी कर दिया। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें यह प्रतीत हुआ हो कि उनकी ही तरह अन्य वकील भी भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आंदोलन का साथ दे देंगे। बाद में विरोध हुआ तो उस पर खेद जता दिया। नतीजतन अन्ना के समर्थन का आंदोलन फुस्स हो गया। यहां तक कि पुतला तक नहीं फूंका जा सका। इस पूरे प्रकरण का अफसोसनाक पहलु ये रहा कि अध्यक्ष टंडन पूरी तरह से अंधेरे में थे। उन्होंने आंदोलन के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कह दिया वे जयपुर गए हुए थे। है न अजीबोगरीब विडंबना। इससे यह साबित हो गया है कि सचिव सिंह बार अध्यक्ष टंडन को कितना गांठते हैं और टंडन  सिंह को। प्रतिष्ठा व अहम की इस लड़ाई से दोनों को तो आए दिन नुकसान होगा ही, बार के साधारण सदस्य भी असमंजस में रहेंगे।
 -तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

टीम अन्ना का साथ देकर फिर चौंकाया देवनानी ने


कीर्ति पाठक से गुफ्तगू करते प्रो. देवनानी

एक ओर जहां शहर जिला भाजपा टीम अन्ना के आंदोलन से अधिकृत रूप से अपने आप को अलग रखे हुए हैं, वहीं अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी आंदोलन का न केवल खुल कर समर्थन कर रहे हैं, अपितु सक्रिय रूप से भाग भी ले रहे हैं। राजनीतिक हलकों में उनके इस कदम को कौतुहल की नजर से देखा जा रहा है।
 यज्ञ में आहुति देते प्रो. देवनानी
प्रो. वासुदेव देवनानी ने जन लोकपाल बिल के समर्थन में कलेक्ट्रेट पर आईएसी के कीर्ति पाठक वाले गुट की ओर से किये जा रहे अनशन पर पहुंच कर केन्द्र सरकार को सद्बुद्धि प्रदान किये जाने हेतु आयोजित हवन में आहूति भी दी। जाहिर सी बात है कि एक ओर जहां पूरी भाजपा इस मामले पर चुप्पी साधे बैठी है, वहीं अकेले देवनानी सक्रिय हैं तो सभी का चौंकाना स्वाभाविक है। ऐसा नहीं है कि देवनानी वहां बिना बुलाए पहुंचे हैं। बाकायदा उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्हें ही नहीं, कीर्ति पाठक ने तो अन्य सभी भाजपा नेताओं, यहां तक कि कांग्रेसी नेताओं को भी आमंत्रित किया, मगर पहुंचे केवल देवनानी।
ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भी देवनानी इंडिया अगेंस्ट करप्शन की ओर से अन्ना संदेश यात्रा के तहत जवाहर रंगमंच पर आयोजित कुमार विश्वास की सभा में प्रमुख श्रोताओं के रूप में विधायक वासुदेव देवनानी और साथ ही आरएसएस अजमेर महानगर संघ चालक सुनील दत्त मौजूद थे। तब भी सभी चौंके थे और विशेष रूप से भाजपा कार्यकर्ता असमंजस में पड़ गए थे कि उन्हें इस आंदोलन में शामिल होना चाहिए अथवा नहीं। तब तो चलो केवल एक भाषण कार्यक्रम था, इस कारण यह समझा गया कि देवनानी के पास यह तर्क होगा कि किसी का भाषण सुनने में क्या बुराई है, मगर अब जब अनशन स्थल पर जा कर यज्ञ में आहुतियां दीं तो मामला गंभीर नजर आया। राजनीतिक हलकों में उनके इस कदम पर कयास लगाए जा रहे हैं। सवाल ये उठाए जा रहे हैं कि ऐसा करके वे क्या जताना चाहते हैं? आखिर वे कौन सा गणित ले कर चल रहे हैं? क्या ऐसा वे किसी के इशारे पर कर रहे हैं? ऐसी क्या वजह है कि पूरी भाजपा एक ओर है और देवनानी एकला चालो रे की तर्ज पर दूसरी ओर?
बाबा रामदेव के समर्थन में निकाली रैली में देवनानी
प्रसंगवश बता दें कि देवनानी का अन्ना आंदोलन में शिरकत करना इसलिए भी चौंकाने वाला है कि पिछले दिनों कुमार विश्वास ने अजमेर प्रवास के दौरान सभा व प्रेस कांफ्रेंस में सरकार पर तो हमले किए ही, भाजपा को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा था कि भाजपा ने प्रतिपक्ष के रूप में कमजोर भूमिका निभाई है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा नेता एक राय नहीं हैं। संसद के बाहर भाजपा नेता सीबीआई को जन लोकपाल के दायरे में लाने की बात करते हैं तो सदन में इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। टीम अन्ना के भाजपा पर भी हमले के बावजूद उसका साथ देना वाकई चौंकाने वाला है।प्रो. देवनानी ने एक ही दिन में एक और चौंकाने वाली घटना को अंजाम दिया। वे स्वामी रामदेव द्वारा 9 अगस्त 2012 को दिल्ली के रामलीला मैदान में किए जा रहे आन्दोलन के समर्थन में पतंजलि योग समिति, भारत स्वाभिमान, युवा भारत, महिला पतंजलि एवं किसान पंचायत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रैली में भी पहुंच गए। यहां भी वही स्थिति रही। भाजपा के जाने-पहचाने चेहरे नदारद रहे, जबकि अकेले प्रो. देवनानी भाजपा का प्रतिनिधित्व करते नजर आए। भाजपाइयों ने प्रो. देवनानी की इन गतिविधियों पर सिर तो खूब धुना, मगर उन्हें समझ में नहीं आया कि आखिर देवनानी कौन सी चाल चल रहे हैं?
-तेजवानी गिरधर