सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

हुं... तो वे हबीब खान गोरान ही थे

dr. habib khan goran 2मंथली मामले में गिरफ्तार अजमेर के एसपी राजेश मीणा ने आखिर उस नाम को उजागर कर दिया, जिसके यहां भी दलाल रामदेव ठठेरा थैला लेकर गया था। और वो है राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गोरान। अपुन ने पहले ही सवाल उठाया था कि मीणा की गिरफ्तारी को दस दिन बीत जाने के बाद भी एसीबी ने यह तथ्य क्यों उजागर नहीं किया कि ठठेरा थैला लेकर आखिर राजस्थान लोक सेवा आयोग के किस उच्चाधिकारी के घर पर कुछ वक्त रुका था? उसने वहां क्या किया? क्या वहां आयोग से जुड़े किसी मसले की दलाली की गई? या फिर वह यूं ही मिलने चला गया, क्योंकि वह उनका पूर्व परिचित था? जाहिर सी बात है कि हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर वह उच्चाधिकारी कौन है और दलाल ने उसके घर पर जा कर क्या किया? इस बारे में मीडिया ने खबरों के फॉलो अप में उसका जिक्र तो कई बार किया है, मगर अपनी ओर से नाम उजागर करने से बचा, क्योंकि बिना सबूत के संवैधानिक पद पर बैठे उच्चाधिकारी का नाम घसीटना दिक्कत कर सकता था। यहां तक कि मीडिया ने इशारा तक नहीं किया, जबकि ऐसे मामलों में अमूमन वह इशारा तो कर ही देता है, भले ही नाम उजागर न करे।
अपुन ने तभी इस कॉलम में लिख दिया था कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये रही कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शामिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी पुख्ता जानकारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए।
इशारा तो अपुन को भी था, मगर ऑन द रिकार्ड सूचना न होने के कारण नाम का खुलासा नहीं किया, अलबत्ता यह जरूर बता दिया था कि सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबूत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता है तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाएगा। ऐसे में संभावना कम ही है कि उस अधिकारी का नाम सामने आ पाए।
खैर, एसीबी व सरकार ने जरूर गोरान का नाम अपनी ओर से उजागर नहीं किया, मगर मीणा ने अपनी जमानत अर्जी में इसका हवाला दे कर उस रहस्य से पर्दा उठा दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि एसीबी की प्राथमिकी में जिक्र है कि उन्हें ट्रेप करने वाले दिन ठठेरा गोरान के बंगले पर भी थैला लेकर गया था। मीणा ने इस पर ऐतराज जताया है कि गोरान को नामजद क्यों नहीं किया गया। हालांकि सवाल ये भी कि क्या मीणा को इस तरह किसी और के खिलाफ कार्यवाही न करने पर सवाल उठाने का अधिकार है या नहीं, या कोर्ट उस पर प्रसंज्ञान लेगा या नहीं। वैसे भी एसीबी जब अपनी कार्यवाही को एसपी के खिलाफ अंजाम दे रही थी तो इसी बीच किसी काम से ठठेरा के गोरान के बंगले पर जाने से ही तो यह आरोप नहीं बन जाता कि वे उन्हें भी रिश्वत की राशि देने गया था। हां, इतना जरूर है कि चूंकि गोरान भी आपीएस रहे हैं, इस कारण उसके ठठेरा के संबंध होना स्वाभाविक लगता है। खैर, जहां तक कानूनी पृष्ठभूमि का सवाल है ये तो एसीबी ही अच्छी तरह से बता सकती है कि गोरान के खिलाफ मामला बनता है या नहीं, मगर ठठेरा के गोरान के घर पर भी जाने से वे भी संदेह के घेरे में तो आ ही गए हैं। अब देखने वाली बात ये है कि सरकार इस खुलासे के बाद क्या करती है? वैसे गोरान पर हाथ डालना थोड़ा कठिन इस कारण है कि वे संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए राज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। जहां तक राजनीति का सवाल है, सरकार ने गोपालगढ़ कांड की वजह से नाराज मुस्लिमों को खुश करने के लिए उनकी नियुक्ति करवाई है, इस कारण भी सरकार चाहेगी कि जहां तक संभव हो उन्हें न लपेटा जाए।
-तेजवानी गिरधर

भाजपा का अग्रिम संगठन है राष्ट्र उत्थान मंच?

rashtra-uthan-01-450x288इन दिनों अजमेर की बहबूदी के लिए सक्रिय राष्ट्र उत्थान मंच का वजूद भले ही स्वतंत्र है, मगर इसमें अधिसंख्य कार्यकर्ता भाजपा के होने के कारण यदि इसे भाजपा का ही अग्रिम संगठन कहा जाए या घोषित कर दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, उलटे ज्यादा बेहतर होगा। इससे जहां मंच की क्रेडिट बढ़ेगी, वहीं मंच की ओर से किए जा रहे जनहित के कार्यों को भाजपा अपने खाते में दर्ज करवा सकेगी।
ज्ञातव्य है कि आजकल मंच ने कच्ची बस्ती में रहने वाले गरीब लोगों को पट्टे दिलवाने के लिए कमर कस रखी है और उसके लिए मंच के नरेन्द्र सिंह शेखावत, अशोक राठी, पृथ्वीराज सांखला, संजीव नागर सहित कई कार्यकर्ता कच्ची बस्ती और वन भूमि पर बसे गरीब लोगों के साथ जयपुर विधानसभा पर धरना देने के लिए कूच कर चुके हैं। मंच की ताकत का प्रदर्शन इससे पहले भी हो चुका है, जब उसने सरहद पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दो भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के विरोध में नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के सहयोग से आधे दिन अजमेर बंद करवाया था। तब इन संगठनों के नाम यह क्रेडिट गई थी कि उन्होंने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के सोये होने पर उसकी भूमिका अदा की थी। बहरहाल, अब जब कि मंच ने कच्ची बस्ती वासियों की खैर-खबर ली है तो यह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर क्या वजह है कि मंच के कर्ताधर्ता भाजपा के होने के बाद भी भाजपा के बैनर पर काम करने की बजाय मंच को आगे बढ़ा रहे हैं? वैसे एक बात जरूर है, मंच के कर्ताधर्ता चतुर तो हैं क्योंकि समानांतर काम करने के बाद भी उन को युवा मोर्चा के दूसरे धड़े की तरह सामानांतर होने की संज्ञा नहीं दी जा पा रही, क्योंकि वे भाजपा शब्द का कहीं भी इस्तेमाल नहीं कर रहे।
-तेजवानी गिरधर