
अपुन ने तभी इस कॉलम में लिख दिया था कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये रही कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शामिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी पुख्ता जानकारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए।
इशारा तो अपुन को भी था, मगर ऑन द रिकार्ड सूचना न होने के कारण नाम का खुलासा नहीं किया, अलबत्ता यह जरूर बता दिया था कि सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबूत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता है तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाएगा। ऐसे में संभावना कम ही है कि उस अधिकारी का नाम सामने आ पाए।
खैर, एसीबी व सरकार ने जरूर गोरान का नाम अपनी ओर से उजागर नहीं किया, मगर मीणा ने अपनी जमानत अर्जी में इसका हवाला दे कर उस रहस्य से पर्दा उठा दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि एसीबी की प्राथमिकी में जिक्र है कि उन्हें ट्रेप करने वाले दिन ठठेरा गोरान के बंगले पर भी थैला लेकर गया था। मीणा ने इस पर ऐतराज जताया है कि गोरान को नामजद क्यों नहीं किया गया। हालांकि सवाल ये भी कि क्या मीणा को इस तरह किसी और के खिलाफ कार्यवाही न करने पर सवाल उठाने का अधिकार है या नहीं, या कोर्ट उस पर प्रसंज्ञान लेगा या नहीं। वैसे भी एसीबी जब अपनी कार्यवाही को एसपी के खिलाफ अंजाम दे रही थी तो इसी बीच किसी काम से ठठेरा के गोरान के बंगले पर जाने से ही तो यह आरोप नहीं बन जाता कि वे उन्हें भी रिश्वत की राशि देने गया था। हां, इतना जरूर है कि चूंकि गोरान भी आपीएस रहे हैं, इस कारण उसके ठठेरा के संबंध होना स्वाभाविक लगता है। खैर, जहां तक कानूनी पृष्ठभूमि का सवाल है ये तो एसीबी ही अच्छी तरह से बता सकती है कि गोरान के खिलाफ मामला बनता है या नहीं, मगर ठठेरा के गोरान के घर पर भी जाने से वे भी संदेह के घेरे में तो आ ही गए हैं। अब देखने वाली बात ये है कि सरकार इस खुलासे के बाद क्या करती है? वैसे गोरान पर हाथ डालना थोड़ा कठिन इस कारण है कि वे संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए राज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। जहां तक राजनीति का सवाल है, सरकार ने गोपालगढ़ कांड की वजह से नाराज मुस्लिमों को खुश करने के लिए उनकी नियुक्ति करवाई है, इस कारण भी सरकार चाहेगी कि जहां तक संभव हो उन्हें न लपेटा जाए।
-तेजवानी गिरधर