शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

आम आदमी को नहीं खींच पाया गुलशा बेगम का जलवा


डिवाइन अबोड संस्था की ओर से आयोजित इंटरनेशल सूफी फेस्टिवल कहने को यूं तो कामयाब रहा, मगर मिस मैनेजमेंट अथवा कदाचित दरगाही राजनीति के कारण यह दर्शकों को तरस गया। नतीजतन इसकी कर्ताधर्ता गुलशा बेगम के खाते में तो एक बड़ा आयोजन करने की उपलब्धि दर्ज हो गई, मगर आज जनता इसका लाभ नहीं उठा पाई। हिंदलवली के नाम से विख्यात महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के शहर में इसका जो हश्र हुआ, वह बेहद अफसोसनाक ही कहा जाएगा।
बेशक आज जिस दौर से दुनिया और भारत गुजर रहे हैं, उसमें सूफीज्म बेहद जरूरी है। संस्था का भी यही मकसद था कि ख्वाजा साहब की शिक्षा और सूफीज्म का संदेश आमजन तक पहुंचे। अफसोस कि वह हो न सका। ऐसा प्रतीत होता है कि इस फेस्टिवल का ठीक से प्रचार-प्रसार ही नहीं किया गया और न ही बड़े पैमाने पर लोगों को जोडऩे की कोशिश हुई, इस कारण आम आदमी इससे जुड़ नहीं पाया। इन्विटेशन कार्ड जितना खूबसूरत था और जितनी मेहनत उसको बनाने पर हुई, उतनी मेहनत भी इसके ठीक से वितरण पर नहीं की गई। आयोजन को लेकर हवाई बातें ज्यादा हुईं, मगर धरातल पर कुछ ठोस प्रयास हुए ही नहीं। शहर के गिने-चुने लोगों ने ही इसका आनंद लिया। आम आदमी महरूम रह गया। अखबारों में जरूर खबरें छपीं, मगर उसके पीछे था केवल मीडिया मैनेजमेंट। यानि कि जितना कामयाब नहीं था, उससे कहीं ज्यादा कवरेज हासिल कर लिया। इस लिहाज से भले ही कागजों में इसे कामयाब करार दे दिया जाए, मगर सच ये है कि आम आदमी इसके प्रति कत्तई आकर्षित नहीं हुआ। ऐसे में अगर कहा जाए कि जिस सूफीज्म को आम जन तक पहुंचाने के मकसद से यह अर्थ साध्य व श्रम साध्य कार्यक्रम हुआ, वह तो कत्तई पूरा नहीं हुआ। कार्यक्रम की गुणवत्ता पर नजर डालें तो शिड्यूल के हिसाब से इसमें भरपूर विविधता थी, मगर यह वह ऊंचाइयां नहीं छू पाया, जिसकी कि उम्मीद थी। कलाकार अपने पूरे फन को नहीं खोल पाए। संभव इसकी वजह ये रही हो कि उन्हें देखने वाले इतने कम थे कि वे किसके सामने पूरे दिल से प्रस्तुति देते। अलबत्ता तेज तर्रार आयोजिका गुलशा बेगम ने शहर के लगभग सारे वीआईपी को कार्यक्रम में ला कर जता दिया कि उनके व्यक्तित्व में कुछ तो खास है। इससे उनके हाई प्रोफाइल होने का भी सबूत मिलता है, जिसकी चमक से हर वीआईपी, राजनेता हो या अफसर, की आंखें चुंधिया गई।
एक बड़ी और रेखांकित करने वाली बात ये भी नजर आई कि दरगाह शरीफ से गहरे जुड़ा खुद्दाम साहेबान का तबका इस आयोजन से लगभग कटा ही रहा। अजमेर शरीफ में सूफीज्म पर कोई जलसा हो और उसमें ख्वाजा साहब के खिदमतगार गैर मौजूद रहें, तो चौंकना स्वाभाविक ही है। ऐसा लगता है कि आयोजकों का दरगाह दीवान जेनुअल आबेदीन से जुड़ाव होना इसकी प्रमुख वजह रही है। दीवान व खुद्दाम हजरात के बीच कैसे ताल्लुक हैं, इसे सब जानते हैं। यानि कि दरगाही सियासत के चलते एक शानदार सूफी जलसा अपने उरोज पर नहीं आ पाया। यह न केवल सूफीज्म के मिशन के लिए अफसोसनाक है, अपितु अजमेर वासियों के लिए भी दुखद। उम्मीद है कि आयोजन की समीक्षा करने पर बहुमुखी प्रतिभा की धनी गुलशा बेगम भविष्य में इस बात पर पूरा ध्यान देंगी कि कार्यक्रम जिस मकसद से हो रहा है, कम से कम से वह तो पूरा होना ही चाहिए। कार्यक्रम महज एक उपलब्धि का तमगा बन कर न रह जाए। और इसके लिए उन्हें अपने जैसे करंट वाली टीम भी बनानी होगी।
-तेजवानी गिरधर

अनुपम श्रीवास्तव ने हासिल की बडी उपलब्धि

हाल ही में अजमेर बीएसएनएल के सीनियर जनरल मैनेजर अनुपम श्रीवास्तव का चयन बीएसएनएल मुख्यालय ने नेशनल डायरेक्टर मोबाइल के पद पर किया है। श्रीवास्तव के लिए ही नहीं बल्कि अजमेर के लिए भी यह एक बड़ी उपलब्धि है। वे इसके लिए बेशक हकदार भी हैं। अजमेर बीएसएनएल की तस्वीर बदलने में इनका जो योगदान रहा है, वह बीएसएनएल स्टाफ ही नहीं बल्कि शहर के जनप्रतिनिधियों एवं आम उपभोक्ताओं के लिए भी अकल्पनीय रहा। यहां तक की शहर की मीडिया ने भी उनके सकारात्मक कार्यों में उनका साथ दिया। श्रीवास्तव का मीडिया के प्रति भी हमेशा दोस्ताना व्यवहार रहा।
आज के डेढ़ साल पहले जब बीएसएनएल के तत्कालीन जीएम महेंद्र कुमार वाधवा का यहां से तबादला हुआ तो यहां के स्टाफ ने भगवान का शुक्र मनाया, क्योंकि वाधवा के अडयिल रवैये के कारण स्टाफ और शहर के हजारों उपभोक्ता भी हमेशा परेशान रहते थे। मीडिया से तो उनका 36 का आंकड़ा रहा। इस बीच केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट भी यहां से सांसद का चुनाव जीत चुके थे। माना जाता है कि उन्होंने ही वाधवा को अजमेर से रुखसत कर अजमेर में योग्य अफसर की तैनाती की। पायलट ने अजमेर के बीएसएनएल तंत्र को मजबूत बनाने के लिए श्रीवास्तव को अजमेर में लगाया। कारण भी साफ था, क्योंकि पायलट अपने संसदीय क्षेत्र से कई ऐसी योजनाओं की शुरुआत करने वाले थे, जो देश में पहली दफा अजमेर से ही शुरू की गई। ऑप्टिकल फाइबर केबल का जाल बिछाना, नेशनल ऑप्टिकल फाइबर केबल का अरांई में पूरा किया गया पायलट प्रोजेक्ट, नेटवर्क सुधार में किए गए नए प्रयोग और अन्य कई ऐसे कार्य, जो श्रीवास्तव और उनकी टीम ने अजमेर में पूरी दक्षता के साथ पूरे किए। यह वे ही श्रीवास्तव हैं, जिन्होंने पूरे प्रदेश में बीएसएनएल मोबाइल सेवाओं की शुरुआत जोधपुर में जीएम पद पर रहते हुए करवाई।
जब आईटीएस अफसरों के रिलीव होने की बारी आई तो प्रदेश में महज श्रीवास्तव ही ऐसे अधिकारी बचे, जो 2005 में ही बीएसएनएल में अपनी सेवाओं को मर्ज करवा चुके थे। माना जा रहा था कि वे अपनी योग्यता के बूते पर प्रदेश बीएसएनएल में सीजीएम के पद पर आसाीन होंगे। मगर इस अंदाजे से भी दो कदम आगे निकले श्रीवास्तव। हाल ही में ही बीएसएनएल मुख्यालय दिल्ली ने उन्हें नेशनल मोबाइल डायरेक्टर पद के लिए चयन कर लिया। यह चयन आसान नहीं था। देशभर के 20 अनुभवी अफसर इसके लिए कतार में थे। मगर इन पर श्रीवास्तव का अनुभव और योग्यता भारी पड़ी।
अजमेर बीएसएनएल के इतिहास में संभवतय यह पहला मौका है, जब अजमेर जीएम पद से कोई अफसर सीधे नेशनल मोबाइल डायरेक्टर के पद पर देशभर की मोबाइल सेवाओं और व्यवस्थाओं की कमान को संभालेंगे।
-तेजवानी गिरधर