सोमवार, 6 अप्रैल 2015

बहुत पुराना है सज्जादानशीन का विवाद

दरगाह दीवान
महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से जुड़ा सज्जादानशीन का विवाद, जो एक बार फिर उभरा है, वह कोई नया नहीं है, काफी पुराना है। जब-जब भी दरगाह के खुद्दाम साहेबान अपने आपको सज्जादानशीन बताते हैं, दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान उस पर ऐतराज करते रहे हैं। असल में उनका दावा है कि ख्वाजा साहेब के सज्जादानशीन तो वे हैं। इसकी पुष्टि के लिए वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी देते हैं। उनका कहना होता है कि खादिम तो ख्वाजा साहेब की दरगाह के खिदमत करने वाले हैं, उनका अपने आप को ख्वाजा साहेब का सज्जादानशीन कहना बिलकुल गैर वाजिब है।
ज्ञातव्य है कि हाल ही मुस्लिमों का एक प्रतिनिधिमंडल जब दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिला तो उसमें अजमेर के सैयद सुल्तान उल हसन भी शामिल थे। उन्होंने खुद को सज्जादानशीन बताया या नहीं, ये तो पता नहीं, मगर खबरों में जब उन्हें सज्जादानशीन बताया गया तो दरगाह दीवान ने उस पर कड़ा ऐतराज किया। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति प्रधानमंत्री से अजमेर के सज्जदानशीन के रूप में मिला है, वह अजमेर का सज्जदानशीन नहीं है। खुद सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान सोमवार को अजमेर में ही थे, उनके नाम या पद का इस्तेमाल करके कोई व्यक्ति अगर प्रधानमंत्री से मिला है तो उसने न सिर्फ प्रधानमंत्री को धोखे में रखा है, बल्कि देश की सर्वोच्च सुरक्षा एजेंसी में सेंध लगा कर प्रधानमंत्री की सुरक्षा कवच को भी भेद दिया है। समझा जा सकता है कि इस मसले पर दीवान कितने तलख हैं।
असल में यदि सज्जादानशीन शब्द पर गौर करें तो इसका मतलब औलाद व वश्ंाज से होता है। और जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दीवान ख्वाजा साहब के निकटतम उत्तराधिकारी घोषित किए जा चुके हैं तो जाहिर है जब भी कोई अपने आपको ख्वाजा साहब का सज्जादानशीन बताने की कोशिश करेगा तो उस पर दरगाह दीवान का ऐतराज आएगा ही।
हां, बेशक दरगाह के खुद्दाम साहेबान भी सज्जादानशीन हैं, मगर वे अपने पुरखों के हैं, जो कि वंशानुगत रूप से दरगाह शरीफ में खिदमत करते हैं। अनेक खादिम अपने विजिटिंग कार्ड और नेम प्लेट पर सज्जादानशीन लिखते हैं। उनका ऐसा लिखना जायज है, चूंकि वे वंश परंपरा के अनुसार खादिम ही हैं। मगर इससे कई बार भ्रम होता है। कुछ लोग ऐसा समझ लेते हैं कि खुद्दाम साहेबान भी ख्वाजा साहेब के सज्जादानशीन हैं। दिक्कत सिर्फ ये है कि इस बारीक बात को कोई समझ नहीं पाता, इस कारण विवाद उत्पन्न होता है। अफसोस कि आज तक दोनों पक्षों ने इस पर कभी सुलह का रास्ता नहीं तलाशा है।
-तेजवानी गिरधर

पुरस्कार ऐसे बांटे, जैसे चूरण

राजस्थान दिवस के मौके पर जवाहर रंगमंच पर आयोजित समारोह में प्रशासन ने चंद प्रमुख लोगों को हेरिटेज व स्मार्ट सिटी संबंधी विशेष पुरस्कार ऐसे बांटे, जैसे चूरण बांटा जाता है। इस सिलसिले में एक कहावत भी है- अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय। कमोबेश कुछ ऐसा ही नजारा था।
हालांकि यदि उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वाले किसी शख्स को सम्मानित किया जाता है, तो यह स्वाभाविक रूप से स्वागत योग्य व सराहनीय है, मगर प्रशासन ने जिस तरीके से सम्मान योग्य प्रतिष्ठित महानुभावों का चयन किया, उससे साफ झलकता है कि इसमें उन लोगों का ही प्राथमिकता दी गई, जो किसी न किसी रूप से प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बनाए हुए हैं। न तो पुरस्कार देने की कोई प्रक्रिया अपनाई गई है और न ही इसका कोई आधार है। बेशक पुरस्कार पाने वालों का अपने-अपने क्षेत्र में कोई न कोई योगदान रहा है, मगर उसका मौजूदा हेरिटेज व स्मार्ट सिटी से कोई लेना देना नहीं है।
अव्वल तो इन पुरस्कारों के औचित्य पर सवाल उठता है। हेरिटेज सिटी व स्मार्ट सिटी के नाम पर आपने अभी कुछ किया ही नहीं, कोरी मीटिंग्स ही कर पाए हैं। जो कुछ हुआ है, वह मात्र बैठकों व कागजों तक ही सीमित है। अभी तो ठीक से यह भी तय नहीं हुआ है कि आखिर प्रशासन को इसके लिए करना क्या है? हालांकि प्रशासन ने अब तक कई बैठकें की हैं, जिनसे यह लगता है कि बहुत बड़ा काम हो रहा है, मगर आज तक ये खुलासा नहीं किया गया है कि प्रशासन आखिर क्या-क्या करने वाला है। विभिन्न कारणों से अधिकारियों से नजदीकी हासिल चंद लोगों की राय तो ली गई है, मगर उन पर सहमति कितनी हुई है, इसका आज तक पता नहीं लग पाया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि प्रशासन ने क्या सोच कर कुछ लोगों को पुरस्कार के काबिल पाया है? उसका क्राइटेरिया क्या है? इसकी प्रविष्टियां कब आमंत्रित की गईं? या सिर्फ उन लोगों को खुश करने की कोशिश मात्र की गई है, जो कि अफसरों को भी खुश रखते हैं। लगता तो ये है कि अफसरों ने अपनी मर्जी से कुछ लोगों के नाम तय किये और उन्हें पुरस्कृत कर दिया गया। जो नाम सामने आए हैं, बेशक किसी न किसी क्षेत्र में अजमेर में उल्लेखनीय कार्य कर चुके हैं, मगर स्मार्ट व हेरिटेज सिटी के लिए उनका क्या योगदान है, इसका विवरण खुद अफसर ही देने की स्थिति में नहीं होंगे। अगर ऐसा ही है कि अफसरों ने अपने चहेतों को पुरस्कृत किया है, तो यह बेहद अफसोसनाक है। कितनी विडंबना है कि काम अभी कुछ हुआ नहीं है, योगदान अभी तक किसी का है नहीं, और अभी से पुरस्कार दे दिए। कितनी हास्यास्पद बात है ये। यदि आपको किसी को ऑब्लाइज ही करना था तो राजस्थान दिवस के नाम पर किसी और हिसाब से पुरस्कार दे देते। कम से कम हेरिटेज व स्मार्ट के लिए पुरस्कार देना नितांत गैर वाजिब है।
समारोह में खुद शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देववानी का वक्तव्य भी यह स्पष्ट करता है कि अजमेर को स्मार्ट व हेरिटेज सिटी बनाना है, जिसमें प्रत्येक नागरिक को जिम्मेदारी लेकर भूमिका निभानी होगी, तो सवाल ये उठता है कि जिम्मेदारी निभाए बिना ही पुरस्कार देने और उसके लिए बाकायदा चयन किस आधार पर और किन अफसरों ने तय किए हैं? कितनी खेदजनक बात है कि स्मार्ट व हेरिटेज पर एक धेला भी खर्च नहीं हुआ और पुरस्कार के नाम पर शॉल, स्मृति चिन्ह और श्रीफल आदि पर खर्च कर दिया गया।
लब्बोलुआब, यह लिखते हुए दुख होता है कि मौजूदा प्रशासन आज भी एक ढर्रे पर चल रहा है, जिसमें लीपापोती व चाटुकारिता शामिल है, उसमें खुद में ही स्मार्टनेस जैसी बात नजर नहीं आ रही। ऐसे में वह वाकई करोड़ों रुपए के बजट का ठीक से इस्तेमाल भी करेगा, इसमें तनिक संदेह होता है।
-तेजवानी गिरधर