गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

महाशिवरात्री पर रुद्र के साथ हो गया लखावत का भी अभिषेक

पौराणिक तीर्थ बूढ़ा पुष्कर तकरीबन पांच साल बाद फिर आबाद हो गया। मौका था महाशिवरात्री का। इस शुभ अवसर पर अनेक संत-महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी में रुद्राभिषेक किया गया। कार्यक्रम को और आकर्षक बनाने के लिए प्रसिद्ध भजन गायक कुमार विशु को आमंत्रित किया गया, जिनकी भजन लहरियों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टि से तो इस आयोजन का महत्व रहा ही, इसके राजनीतिक निहितार्थ भी रहे। इस मौके पर रुद्र के साथ-साथ राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्रधिकरण के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद औंकार सिंह लखावत का भी अभिषेक हो गया।
बताने की जरूरत नहीं है कि बूढ़ा पुष्कर का जीर्णोद्धार लखावत ने प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर रहते हुए पिछली भाजपा सरकार के दौरान करवाया था। उसके बाद कांग्रेस सरकार के दौरान पुष्कर की विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अखतर इंसाफ ने कहने मात्र को खैर-खबर ली, मगर सच्चाई ये है कि जितना विकास लखावत ने करवाया, उससे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा गया था।
आपको याद होगा कि जैसे ही भाजपा सत्ता में आई, चंद दिन बाद ही जिला प्रशासन ने सुध ली। प्रशासनिक अधिकारी जानते थे कि अगर उन्होंने सुध नहीं ली तो लखावत उनकी सुध ले लेेंगे। जिला कलेक्टर वैभव गालरिया के निर्देशानुसार जिले के आला अधिकारियों ने बूढ़ा पुष्कर का दौरा किया तथा तीर्थ को धार्मिक व पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने व सरोवर के संरक्षण की कवायद शुरू कर दी। बूढ़ा पुष्कर सरोवर में बरसाती पानी की आवक के रास्तों में पक्के फीडर बनाने, घाटों का जीर्णोद्धार व नए घाटों के निर्माण, क्षतिग्रस्त सीढिय़ों व कुंडों की मरम्मत, नए विकास कार्य, रंग-रोगन, देख-रेख व नियमित सफाई, स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति, एडीए की ओर से बिजली व्यवस्था, रेलवे का ढ़ांचा हटाने, सुलभ कॉम्पलैक्स बनाने व संग्रहालय के उद्घाटन पर विचार किया गया। ज्ञातव्य है कि पांच साल पूर्व तत्कालीन सांसद रासासिंह रावत के कोष से संग्रहालय का निर्माण कराया गया था, मगर उद्घाटन नहीं हो पाया। संग्रहालय में स्थापित की जाने वाली ब्रह्मा व गायत्री की प्रतिमाएं कपड़े में लिपटी पड़ी रहीं।
बहरहाल, महाशिवरात्री के मौके पर इस तीर्थ को फिर से आबाद करने के लिए लखावत ने पहल कर दी है। उनकी ये खासियत है कि उनके प्रयासों से निर्मित स्मारकों को आबाद करने के लिए वे सतत प्रयासरत रहते हैं। पिछले पांच साल से भाजपा सरकार नहीं थी, मगर न्यास अध्यक्ष रहते बनवाए गए पृथ्वीराज स्मारक व दाहरसेन स्मारक पर उनके निर्देशन में हर साल कार्यक्रम होते हैं। अब उन्होंने बूढ़ा पुष्कर की भी सुध ली है। उम्मीद है इस तीर्थ के विकास में अब वे कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेंगे। हालांकि प्रत्क्षत: तो यही नजर आया कि यहां रुद्राभिषेक हुआ, मगर राजनीति की समझ रखने वाले जानते हैं कि इसी बहाने लखावत का भी अभिषेक हो गया है। और इस कार्य में अन्य स्मारकों की देखभाल करने वाले पार्षद संपत सांखला, भाजपा शहर जिला प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी व भामसं नेता महेन्द्र तीर्थानी सरीखों ने अहम भूमिका निभाई।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

सचिन पायलट पर राजेश टंडन के दावे का सच क्या है?

अजमेर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश टंडन का दावा है कि वे अजमेर के राजनीतिक व प्रशासनिक पंडित हैं। इसका इजहार उन्होंने हाल ही फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए किया है। उनका कहना है कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट, जो कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं, इस बार अजमेर से चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनका कहना है कि उनका दावा कभी बेबुनियाद नहीं होता। इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि भवानी सिंह देथा अजमेर के जिला कलेक्टर होंगे और वैसा ही हुआ।
उनके नए दावे में कितना दम है, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर इतना जरूर तय है कि अजमेर रहते हुए भी उनके जयपुर कनैक्शन काफी तगड़े हैं।   अकेले इसी गुण की बदौलत राजनीति में उन्होंने अपनी पकड़ बना रखी है। बेबाकी उनका दूसरा गुण है, जिसके चलते उनका व्यक्तित्व बिंदास कहलाता है, मगर इसी वजह से कई बार विवाद में भी आ जाते हैं। सचिन पायलट के मामले में किया गया उनका यह दावा भी कुछ इसी प्रकार का है। सच तो ये है कि आज एक भी कांग्रेसी ऐसा नहीं है कि जो इतनी हिमाकत कर सके। हां, इतना जरूर है कि सचिन यहीं से चुनाव लड़ें, इस पर जोर देने वाले अनेक मिल जाएंगे। भूख हड़ताल करने वाले भी तैयार हैं? ऐसे में जाहिर है टंडन का यह दावा विवाद पैदा करने वाला है। इस पर स्थानीय कांग्रेसियों में खासी चर्चा है। सवाल ये उठ रहा है कि आखिर वे किस आधार पर ये दावा कर रहे हैं? दूसरा ये कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर दावा करने की वजह और जरूरत क्या है, जब कि खुद सचिन इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे? तीसरा ये कि उनकी जानकारी व दावे का सूत्र क्या है? उनका यह दावा सचिन के अनुकूल है या प्रतिकूल ये भी पता नहीं लग रहा। हालांकि वाट्स एप पर उनकी एक टिप्पणी का इससे कोई लेना-देना है या नहीं, मगर उसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। टिप्पणी ये है:-
FOR COMING LOK  SAHBA ELETION
Ajmer ka sansad ajmer ka jaya hona chahiye ajmer mai aya nahi hona chahiye. 
Humhe buppi lehri , rajya vardhan singh , jadeep dhankad and c.r chouhdary sweekar nahi hai .
Kya aap ko sky lab neta(sansad) sweekar hai ajmer ke interest mai ya nahi pls comment..
समझा जा सकता है कि उनकी ये टिप्पणी क्या इशारा कर रही है? दूसरी ओर पिछले दिनों उनकी पहल पर आयोजित कांग्रेसियों की बैठक में  सचिन के पक्ष में पारित प्रस्ताव असमंजस पैदा करता है। लोग समझ ही नहीं पा रहे कि टंडन के दिमाग में आखिर है क्या? जो कुछ भी हो, उनकी इस प्रकार की गतिविधियों से वे कम से कम चर्चा में तो हैं?

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

भाजपा टिकट के लिए कई पुराने तो कुछ नए दावेदार

आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के संभावित प्रत्याशी के लिए कराई गई वोटिंग में जिन कुल 23 नेताओं के नाम सामने आए हैं, उनमें से कई पिछले चुनाव में भी दावेदार थे, मगर कांग्रेस के सचिन पायलट से सामना करने के लिए उन्हें छोड़ कर श्रीमती किरण माहेश्वरी को उतारा गया। इस बार उन्होंने फिर से दावेदारी कर दी है। इस बार चुनाव कुछ आसान जान कर कुछ नए नाम भी सामने आए हैं। जहां दावेदारों की संख्या का सवाल है, उसमें कुछ खास अंतर नहीं आया है। पिछली बार 22 नेताओं ने दावेदारी की थी।
इस बार ये नेता हैं दावेदार
कैबिनेट मंत्री सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा, किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत, शहर भाजपा अध्यक्ष रासा सिंह रावत, देहात भाजपा अध्यक्ष भगवती प्रसाद सारस्वत, पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिया व श्रीमती सरिता गैना, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.आर. चौधरी, पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा, पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत, नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, जिला प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश, डॉ. कमला गोखरू, डॉ. दीपक भाकर, सतीश बंसल, ओमप्रकाश भडाणा, गजवीर सिंह चूड़ावत, सरोज कुमारी (दूदू), नगर निगम के उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ व डीटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी रीतू चौहान।
पिछली बार ये थे दावेदार
प्रो. रासासिंह रावत, प्रो.सांवरलाल जाट, नाथूसिंह गुर्जर, सरोज कुमारी, धर्मेन्द्र गहलोत, सरिता गेना, पुखराज पहाडिय़ा, मगरा विकास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मदनसिंह, पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा, पूर्व विधायक जगजीत सिंह, भागीरथ चौधरी, किशनगोपाल कोगटा, भंवरसिंह पलाड़ा, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, रिंकू कंवर, डॉ. भगवती प्रसाद सारस्वत, डॉ. एम. एस. चौधरी, डॉ. कमला गोखरू, पूर्व पार्षद सतीश बंसल, सुकुमार, नारायण सिंह रावत, शांतिलाल ढ़ाबरिया।
इस बार किरण माहेश्वरी का नाम गायब
पिछली बार सचिन पायलट से तकरीबन 75 हजार वोटों से हारने के बाद राजसमंद विधायक बनने के बावजूद जिस प्रकार श्रीमती किरण माहेश्वरी ने अजमेर में अपनी सक्रियता बनाए रखी, उससे यही आभास हो रहा था कि वे दुबारा यहीं से भाग्य आजमाना चाहेंगी, मगर इस बार पसंदीदा प्रत्याशियों के लिए हुई वोटिंग में किसी ने उनका नाम नहीं लिया। जाहिर है इस बार उन्होंने इसके लिए लॉबिंग नहीं की। वस्तुत: उनका नाम इस बार इस कारण चर्चा में था क्योंकि वे स्थानीय अन्य दावेदारों की तुलना में कुछ भारी हैं और इस बार चुनाव भाजपा के लिए आसान माना जा रहा है। राज्य मंत्रीमंडल में मौका नहीं मिलने के बाद यही कयास रहा कि वे मात्र विधायक रहने की बजाय केन्द्र की राजनीति में जाना चाहेंगी। वे पहले भी केन्द्रीय राजनीति में रह चुकी हैं। खैर...बात अगर अन्य वैश्य दावेदारों की करें तो पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा, डॉ. कमला गोखरू, सतीश बंसल के नाम सामने आए हैं।
प्रो. जाट ने आगे किया अपने बेटे को
कैबिनेट मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट की गिनती पिछली बार प्रमुख दावेदारों में थी, मगर इस बार फिर मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे कर दिया है। एक ही परिवार से एक मंत्री के बाद दूसरे को लोकसभा चुनाव के मौका दिया जाएगा या नहीं, ये जरूर विचारणीय हो सकता है।
इसलिए आगे आए किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी
किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी का नाम इस कारण आगे आया प्रतीत होता है कि दो बार विधायक बनने के बाद भी उन्हें मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाएगा, क्योंकि अजमेर जिले एक जाट विधायक प्रो. जाट पहले से मंत्री हैं। ऐसे में उन्हें बेहतर ये लगा होगा कि मात्र विधायक रहने की बजाय सांसद बनने की कोशिश की जाए।
जाट वोटों की बहुलता के आधार पर है सरिता गैना की दावेदारी
पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना ने अजमेर संसदीय क्षेत्र में दो लाख से ज्यादा जाट वोटों के आधार पर दावेदारी की है। आधार ये है कि जाटों के अतिरिक्त भाजपा मानसिकता के दो लाख वैश्य, सवा लाख रावत, एक लाख सिंधी व एक लाख राजपूत मतदाता जाट प्रत्याशी को जितवा सकते हैं। इसी संभावना के मद्देनजर कुछ रिटायर्ड जाट अधिकारी भाग्य आजमाने की सोच रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी का नाम सामने आया है। सरिता गैना के ससुर सी. बी. गैना और अजमेर में कलेक्टर रह चुके महावीर सिंह का नाम भी चर्चा में रहा, मगर ताजा लिस्ट में उनका नाम नहीं है।एक अन्य जाट सज्जन भी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई बताई।
विधायक रावत हैं महत्वाकांक्षी
पुष्कर से पहली बार विधायक बने सुरेश सिंह रावत काफी महत्वाकांक्षी नजर आते हैं। पूर्व सांसद व मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष रासा सिंह रावत की चुनावी राजनीति तकरीबन अवसान की ओर जाते देख सुरेश सिंह रावत की जिला स्तरीय नेता बनने के लिए मंशा उभरी प्रतीत होती है। जिले में रावतों के पर्याप्त वोट होने के बावजूद मंत्री न बन पाने की वजह से शायद उन्हें ये बेहतर लगा होगा कि क्यों न लोकसभा चुनाव के लिए आगे आया जाए।
रासासिंह रावत की इच्छा भी है बलवती
अजमेर से पांच बार सांसद रह चुके व वर्तमान में शहर भाजपा की कमान संभाल रहे प्रो. रासासिंह रावत की एक बार और सांसद बनने की इच्छा बलवती है। परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में रावतों के वोट कम होने के कारण उन्हें पिछली बार यहां से मौका नहीं दिया गया। बाद में उनका सम्मान रखने के लिए शहर भाजपा अध्यक्ष बनाया गया, मगर वे पुष्कर से विधानसभा का टिकट चाहते थे। वह भी नहीं मिला तो फिर लोकसभा का टिकट चाहते हैं। कदाचित उनका तर्क ये हो कि रावतों के वोट कम होने के बाद भी तकरीबन सवा लाख रावत तो हैं ही। इसके अतिरिक्त यहां से पांच बार सांसद रहे हैं, इस कारण उनकी पकड़ अच्छी है।
सबसे ज्यादा उछल रहे हैं सारस्वत
अमूमन टिकट की चाह रख कर भी सीधे-सीधे टिकट नहीं मांगने वाले देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत इस बार खुल कर दावेदारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने भरपूर कोशिश भी की है। हाल ही देहात जिला कार्यकारिणी में उन्होंने जिन नेताओं को मौका दिया है, जाहिर तौर पर उनसे ये उम्मीद की होगी कि वे उनके लिए वोटिंग करेंगे। मनमुताबिक टीम का चयन करने का भी चुनाव में फायदा मिलने का तर्क देंगे। कदाचित उन्हें उम्मीद हो कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से नजदीकी का उन्हें लाभ मिलेगा।
पलाड़ा भी हैं मजबूत दावेदार
पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा ने तो पिछले दिनों पंचायतीराज सशक्तिकरण सम्मेलन के जरिए अपनी दावेदारी का डंका बजा दिया था। असल में इसकी तैयारी उन्होंने अपनी जिला प्रमुख पत्नी के कार्यकाल में बेहतरीन कार्य करवा कर कर ली थी। जहां तक टिकट लाने का सवाल है, उनके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से संबंध जगजाहिर हैं, इस कारण ज्यादा दिक्कत नहीं आनी चाहिए। सचिन के मुकाबले साधन-संपन्नता के मामले में भी वे कमजोर नहीं पड़ेंगे। राजपूतों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, गजवीर सिंह चूड़ावत, नगर निगम के उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ व डीटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी रीतू चौहान की दावेदारी भी सामने आई है।
सिंधी दावेदार के रूप में उभरे कंवल प्रकाश
तकरीबन एक लाख सिंधी वोटों के दम पर स्वामी समूह के सीएमडी व शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी का दावा सामने आया है। वे अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के भी प्रमुख दावेदार रहे हैं। ज्ञातव्य है कि अजमेर से एक बार कांग्रेस के आचार्य भगवान देव सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस ने भूतपूर्व मंत्री स्व. किशन मोटवानी पर भी दाव खेला था। उनका परफोरमेंस भी ठीकठाक रहा, वो भी तब जबकि सिंधियों का रुझान भाजपा की ओर माना जाता है। ऐसे में अगर प्रदेश की 25 में एक सीट पर भाजपा सिंधी पर प्रयोग करे तो वह कारगर भी हो सकता है।
लब्बोलुआब, केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की संभावित उम्मीदवारी के मद्देनजर भाजपा उन्हीं के जोड़ के नेता को मैदान में उतारेगी। केवल स्थानीयता के नाम पर सीट पर कब्जा करने का अवसर नहीं चूकेगी। बताया तो ये जाता है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो नाम का पैनल तय कर रखा है, यह कवायद केवल स्थानीय स्तर पर पार्टी को सक्रिय करने और नेताओं व पदाधिकारियों का पक्ष भी जानने के नाम पर की है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

कहां से कहां पहुंच गई सोनम किन्नर

इस चित्र को देख कर क्या आपको आश्चर्य नहीं होता? यह वही सोनम किन्नर है, जो कभी अजमेर में कांग्रेस के धरने-प्रदर्शनों में छायी रहती थीं। महज एक आम कार्यकर्ता के रूप में। बेबाक बयानी के लिए चर्चित और बिंदास व्यक्तित्व की सोनम की खासियत ये रही है कि वे बड़े से बड़े कांग्रेसी नेता के दफ्तर में बेधड़क घुस जाया करती थीं। यहां तक कि उन्होंने कांग्रेस आलाकमान तक भी पहुंच बना ली थी। इसी के दम पर वे अजमेर नगर निगम की मनोनीति पार्षद भी बनीं, मगर बाद में इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं कांगे्रस पार्टी भी छोड़ दी, यह कह कर कि पार्टी की निष्ठा से सेवा करने के बाद भी उनकी उपेक्षा हो रही है।
बहरहाल, इसके बाद वे अपने किन्हीं संपर्क सूत्रों के जरिए लखनऊ में भी रहीं। उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने का भी सौभाग्य हासिल हो गया। अपनी वाकपटुता के दम पर उन्होंने पर अखिलेश को प्रभावित भी किया और बताया जाता है कि उन्हें उचित मौके पर कोई ढंग का पद देने का आश्वासन दिया गया था। इसके बाद जयपुर में समाजवादी पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल कांग्रेस से टा टा बाय बाय कर ली।
आपको याद होगा कि इसी कॉलम में जब हमने अखिलेश से नजदीकी की खबर छापी तो सभी चौंके थे। यहां तक कि खुद सोनम ने भी यही कहा था कि आपको क्या पता? आपको कैसे पता लग गया कि मेरी अखिलेश यादव से क्या बात हुई है? कदाचित वे इस समयपूर्व रहस्योद्घाटन से असहज हो गई थीं, मगर अजमेरनामा का बात आखिर सही निकली। वे समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य बन गई। हालांकि इसकी उन्होंने स्वयं अथवा पार्टी की ओर से कोई विधिवत घोषणा नहीं की है, मगर उर्स मेले के दौरान जायरीन के इस्तकबाल में उनकी पार्टी की ओर से शहरभर में लगाए गए होर्डिंग्स में उनकी फोटो के नीचे उनका पद साफ तौर पर लिखा हुआ था। एक राष्ट्रीय पार्टी, जिसकी कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में सरकार हो, उसकी कार्यसमिति का सदस्य होना वाकई उल्लेखनीय उपलब्धि थी। इसके बाद पिछले दिनों विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें लाइव टीवी शो में आम आदमी पार्टी की पैरवी करते देखा गया तो समझ में आ गया कि उन्होंने समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ लिया है।
खैर, अब ऐसी चर्चा है कि वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव के खिलाफ कन्नौज में आम आदमी पार्टी के बैनर तले ताल ठोकेंगी। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से सचिवालय में हुई उनकी मुलाकात के बाद इस किस्म की चर्चा काफी गर्म है। आगरा के अमर उजाला इस खबर को उजागर किया है। जो कुछ भी हो, अजमेर की एक आम कांग्रेस कार्यकर्ता रही सोनम यदि देश की राजनीति में भूचाल ला रहे अरविंद केजरीवाल को आशीर्वाद देने की हैसियत में आ गई हैं तो यह उल्लेखनीय ही है।
-तेजवानी गिरधर

अखिलेश यादव की पत्नी से भिड़ेंगी सोनम किन्नर

ऐसी चर्चा है कि अजमेर की सोनम किन्नर उर्फ सोनम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव के खिलाफ कन्नौज में आम आदमी पार्टी के बैनर तले ताल ठोकेंगी। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से सचिवालय में हुई उनकी मुलाकात के बाद इस किस्म की चर्चा काफी गर्म है। आगरा के अमर उजाला इस खबर को उजागर किया है।
ज्ञातव्य है कि सोनम किन्नर अजमेर की हैं और यहां नगर निगम की मनोनीत पार्षद रही हैं, जिन्होंने बाद में इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद आगरा चली गईं और वहां समाजवादी पार्टी ज्वाइन की, लेकिन अब उन्होंने आम आदमी पार्टी का हाथ थाम लिया है।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

शहनाज हिंदुस्तानी होंगे आप के प्रत्याशी

आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य शहनाज हिंदुस्तानी आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं। पार्टी के अंदर चर्चा है कि उनका नाम लगभग तय है, जिसकी औपचारिक घोषणा मात्र होनी है।
जानकारी के अनुसार हिंदुस्तानी की पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल तक खासी पकड़ है। जब से अजमेर की प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक को अपदस्त किया गया है, वे यहां पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं। हाल ही जनलोकपाल बिल पास नहीं होने के विरोध और अरविंद केजरीवाल के त्यागपत्र के समर्थन में उनके नेतृत्व में रैली निकाली गई। असल में उन्हें कीर्ति पाठक विरोधी धड़े का पूरा समर्थन हासिल है। वे काफी ऊर्जावान कवि माने जाते हैं। 

आयोग का विखंडन रुकना मुश्किल, बोर्ड मुख्यालय अजमेर में रह सकता है

हालांकि कांग्रेस के अग्रिम संगठन युवक कांग्रेस ने एडीसी को ज्ञापन दे कर राजस्थान लोक सेवा आयोग का विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड अलग से गठित करने का कड़ा विरोध जताया है, मगर जैसा की अजमेर जिले के सभी आठों भाजपा विधायकों का रुख है, लगता नहीं है कि यह विखंडन अब रुक पाएगा। युवक कांग्रेस ने आंदोलन की चेतावनी दी है, मगर लगता नहीं की अजमेर की जनता में इतनी जागरूकता है कि वह अजमेर की महत्ता से जुड़े इस मसले में अपनी भागीदारी निभाएगी।
असल में यह मसला इसलिए कमजोर प्रतीत होता है, क्योंकि जिस कांग्रेस पर विपक्ष की भूमिका निभाने का दायित्व है, वह विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बाद खुद को संभालने में जुटी हुई है। इसके अतिरिक्त लोकसभा चुनाव भी नजदीक हैं। उसकी सरगरमी शुरू भी हो चुकी है। रहा सवाल भाजपा विधायकों का तो उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि अपनी ही पार्टी की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा के फैसले का विरोध कर सकें। वे इसे विखंडन ही मानने को तैयार नहीं हैं। हां, अलबत्ता वे इतना जरूर कह रहे हैं कि सरकार पर दबाव बनाएंगे कि बोर्ड का मुख्यालय अजमेर में ही हो, ताकि अजमेर अहमियत बरकरार रहे। अजमेर दक्षिण की विधायक अनिता भदेल, अजमेर पश्चिम के विधायक वासुदेव देवनानी, मसूदा विधायक सुशील कंवर पलाड़ा और पुष्कर विधायक सुरेश रावत ने साफ तौर पर कहा है कि वे मुख्यमंत्री से आग्रह करेंगे कि मुख्यालय अजमेर में ही रखा जाए।
पूर्व कांग्रेसी विधायकों का ज्यादा जोर भी इसी बात है कि बोर्ड को अजमेर से बाहर न ले जाया जाए। पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर का कहना है कि देश में आयोग ने साख बनाई है। इसका विखंडन नहीं होना चाहिए था। सरकार को नए बोर्ड का मुख्यालय आयोग में ही रखना चाहिए। पूर्व मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने भी इसी बात पर जोर दिया है कि मुख्यालय अजमेर में ही हो। उनका कहना है कि यदि अधीनस्थ बोर्ड का मुख्यालय अजमेर से बाहर किया गया, तो विरोध करेंगे। इसी प्रकार नसीराबाद के पूर्व विधायक महेन्द्र गुर्जर का कहना है कि राव कमेटी के फैसले से आयोग अजमेर को मिला। अब आयोग का विखंडन कर इसे बाहर ले जाया जा रहा है। इसका विरोध करेंगे। यानि कि उन्हें ज्यादा ऐतराज इस बात पर रहेगा कि बोर्ड का मुख्यालय अजमेर को छोड़ कर कहीं और हो।
कुल मिला कर ऐसा प्रतीत होता है कि विखंडन तो हो कर रहेगा, बस बोर्ड का मुख्यालय अजमेर में ही रहने पर संतुष्ट रहना होगा। देखना ये होगा कि कहीं सरकार अभी लोकसभा चुनाव तक इस मामले में चुप रहे और बाद में बोर्ड का मुख्यालय कहीं और न ले जाए।
जहां तक तकनीकी पहलु का सवाल है, यह स्पष्ट है कि सरकार का कदम विखंडनकारी ही है। यह बात सही है कि आयोग का गठन राजपत्रित पदों के लिए किया गया था, मगर अस्सी के दशक में एक बार अराजपत्रित अर्थात लिपिक पदों पर भर्ती का काम आयोग से कराया गया। इसके लिए नियमों में संशोधन किए गए। पिछली भाजपा सरकार ने तो ग्रेड थर्ड शिक्षकों और पटवारियों की भर्ती का काम भी कराया। इनके लिए भी नियमों में बदलाव किया गया। मगर अब जिन पदों को कानून बदलकर आयोग के क्षेत्राधिकार में लाया गया अब उन्हें कानून बदल कर वापस छीना जा रहा है।
इस सिलसिले में आयोग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष दयानंद शर्मा के तर्क भी गौर करने योग्य हैं। वो ये कि आयोग सीमित संसाधन और स्टाफ की कमी के बाद भी चार महीने में 21 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा आयोजित कर चुका है। आयोग में कुछ और संसाधन बढ़ाए जाएं, तो अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड की आवश्यकता ही नहीं होगी। यदि मौजूदा स्टाफ का 50 प्रतिशत कार्मिक और उपलब्ध कराएं तो राजस्व हानि से बच सकती है।

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

अजमेर से ही चुनाव लड़ेंगे सचिन पायलट

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को सौंपने के बाद हालांकि कई लोग चर्चा कर रहे हैं कि वे अजमेर से चुनाव नहीं लड़ेंगे, मगर सुविज्ञ सूत्र बताते हैं कि वे अजमेर से ही चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा ग्राउंड लेवल पर काम भी शुरू कर दिया है। उनकी इस तैयारी के संकेत हाल ही उनके अजमेर प्रवास के दौरान भी मिले। वे कांग्रेस पार्षदों व पदाधिकारियों से तफसील से मिले और उनके गिले शिकवे दूर करने की कोशिश की।
असल में सचिन से नाइत्तफाकी रखने वाले स्थानीय कांग्रेस नेता यही अफवाह फैला रहे हैं कि सचिन अजमेर को छोड़ कर भीलवाड़ा अथवा जयपुर ग्रामीण या किसी और सीट से चुनाव लडऩे पर विचार कर रहे हैं। उनका तर्क ये है कि चूंकि कई स्थानीय नेता नाराज हैं, इस कारण उन्हें विधानसभा चुनाव में भाजपा से तकरीबन दो लाख वोटों से पिछड़ी कांग्रेस की नैया पार लगाना कठिन होगा, इस कारण वे अजमेर सीट छोडऩे को मजबूर हैं। सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले तो कई नेता खुल कर विरोध करने को उतारू थे, मगर प्रदेश की कमान सौंपे जाने के बाद अब उनके मुंह सिल गए हैं। अब वे बगावत करने से भी बचेंगे। जानते हैं कि अगर थोड़ी सी भी गड़बड़ की तो सचिन उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देंगे, जिसके लिए कि वे प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अधिकृत भी हैं। सचिन भी फिलहाल सभी को साथ लेकर चलने पर जोर दे रहे हैं। इस कारण संगठन में कोई बड़ा फेरबदल करने के मूड में नहीं हैं। अलबत्ता लोकसभा चुनाव के बाद जरूर परफोरमेंस के आधार पर नए सिरे से जाजम बिछाएंगे।
वैसे राजनीति के जानकारों का मानना है कि भले ही सचिन की तैयारी अजमेर से ही चुनाव लडऩे की है, मगर समीकरण अथवा हालात बदलने की स्थिति में ऐन वक्त पर सीट बदलने अथवा चुनाव ही नहीं लडऩे की संभावनाएं बरकरार हैं। समझा जाता है कि हाईकमान भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पूरी लिबर्टी देगी।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

वसुंधरा ने फिर किया आरपीएससी को दोफाड़

राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड गठन
प्रदेश की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने एक बार फिर राजस्थान लोक सेवा आयोग को दोफाड़ करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। अब सभी प्रकार की अधीनस्थ व मिनिस्ट्रियल कर्मचारियों की भर्ती पुनर्गठित राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड के जरिये होगी। इसके लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। पिछली बार भी वसुंधरा राजे ने अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में चुनाव से ठीक पहले 2008 में इसका गठन किया था। बाद में कांग्रेस सरकार ने मामले को काफी दिन ठंडे बस्ते में रखा और अंतत: इसे भंग कर दिया था। वसुंधरा ने सत्तारूढ़ होते ही फिर से इसके गठन का नोटिफिकेशन जारी कर दिया।
सरकार के इस कदम का राजस्थान लोक सेवा आयोग कर्मचारी संघ ने विरोध शुरू कर दिया है। कर्मचारी संघ ने इसे आयोग के विखंडन की संज्ञा देते हुए इसे अजमेर की अस्मिता का सवाल बता कर जिले के जनप्रतिनिधियों से इस मामले में दखल की मांग की है। अजमेर के वजूद को बरकरार रखने के लिए कई बार आवाज उठाने वाले पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ही एक मात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने फिर सवाल उठाया है कि  अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के वक्त राव कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर स्थापित राज्य स्तरीय आयोग को क्यों दोफाड़ किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड के गठन के बाद आयोग के पास केवल 40% भर्तियों की जिम्मेदारी ही रहेगी। करीब 60% भर्तियां चयन बोर्ड को मिल सकती हैं। इसके पुनर्गठन के बाद 150 से 200 कर्मचारियों-अधिकारियों की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में आरपीएससी राजपत्रित, मेडिकल सेवा, इंजीनियरिंग सेवा, शिक्षक भर्ती, पीटीआई भर्ती, एलडीसी समेत विभिन्न भर्ती परीक्षाएं आयोजित कर रहा है। अधीनस्थ बोर्ड गठन होने के बाद आयोग के पास आधा ही काम रह जाएगा। सूत्रों के मुताबिक एलडीसी, थर्ड ग्रेड टीचर भर्ती, सेकंड ग्रेड टीचर्स भर्ती, पीटीआई समेत विभिन्न भर्तियां नए बोर्ड को मिल जाएंगी।
इस बारे में आयोग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष दयाकर शर्मा का कहना है कि आयोग में मात्र 250 ही कार्मिक स्वीकृत हैं, लेकिन हर साल 18 से 20 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा आयोजित की जाती है, जबकि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में 853 का स्टाफ स्वीकृत है और बोर्ड करीब 18 लाख विद्यार्थियों की परीक्षा आयोजित करता है। राज्य सरकार नया चयन बोर्ड गठित करने पर जो संसाधन जुटाएगा, उससे आधे संसाधन भी आयोग को मिल जाएं, तो सरकार का आर्थिक बोझ कम होगा। नया बोर्ड गठित होने पर नए भवन के साथ ही नया स्टाफ भी लगाना पड़ेगा। इससे आर्थिक भार और बढ़ेगा। आयोग कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष पूरण मीणा ने भी सरकार की इस कवायद का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि नए बोर्ड से अभ्यर्थियों को भी नुकसान होगा। आयोग की विश्वसनीयता अभ्यर्थियों में बनी हुई है।
ज्ञातव्य है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने कुछ नेताओं को एडजस्ट करने और एसी चैंबर्स में बैठ कर धरातल के निर्णय करने वाले अधिकारियों के षड्यंत्र के चलते बोर्ड का गठन कर दिया। जल्दबाजी में उप सचिव स्तर के अधिकारी राकेश राजोरिया को सचिव तो बना दिया, मगर उन्हें भवन और कर्मचारी नहीं दे पाई। अध्यक्ष के रूप में आयोग के सदस्य एच. एल. मीणा और सदस्यों के रूप में डॉ. सुभाष पुरोहित, भैरोंसिंह गुर्जर, उदयचंद बारूपाल व एच. सी. डामोर की नियुक्ति कर दी। बाद में मीणा की जगह भरतपुर के तत्कालीन सांसद विश्वेन्द्र सिंह को खुश करने के लिए उनकी पत्नी दिव्या सिंह को कार्यभार सौंपा गया। सरकार आगे कुछ कार्यवाही करती, इससे पहले चुनाव आ गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को विश्वास था कि वे फिर सत्ता में आएंगी और तब उसे विधिवत काम सौंपेंगीं। मगर दुर्भाग्य से चुनाव में तख्ता पलट गया और कांग्रेस सरकार काबिज हो गई। नतीजतन राजनीतिक लाभ के लिए गठित यह बोर्ड कांग्रेस सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया। न तो वह उगल पा रही थी और न ही निगल पा रही थी। ऐसी स्थिति में बोर्ड के सभी पदाधिकारी भी लटक गए। न तो उनको बैठने के लिए जगह दी गई और न ही उनकी उपस्थिति दर्ज करने की कोई व्यवस्था कायम की गई। वेतन मिलने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं था। उधर बोर्ड में सरकारी प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त राजेश राजोरिया की स्थिति भी अजीबोगरीब हो गई। उन्होंने बोर्ड को किराये के भवन में स्थापित करने के लिए दो बार विज्ञापन भी जारी किए, लेकिन किसी भी भवन मालिक ने रुचि नहीं दिखाई। दूसरी ओर अराजपत्रित पदों की भर्ती का जो काम बोर्ड को कराना था, वह आयोग करवाता जा रहा है। ऐसे में इस बोर्ड के वजूद पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ था।
 सरकार की उहापोह का चाहे जो कारण हो, मगर सरकार की इस किंकर्तव्यविमूढ़ता के चलते हाईकोर्ट में एक याचिका तक दायर कर दी गई, जिसमें सवाल खड़ा किया गया कि इस बोर्ड को अब तक काम और कर्मचारी क्यों नहीं दिए गए हैं। इस पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा। हालांकि यह पहले से ही लग रहा था कि सरकार इस बोर्ड को अस्तित्व में नहीं रखना चाहती, मगर जब हाईकोर्ट का डंडा पड़ा तो आखिर सरकार को निर्णय करना ही पड़ा।
बहरहाल, इस बार जैसे ही भाजपा की सरकार काबिज हुई है, उसने एक बार फिर बोर्ड के गठन का काम शुरू कर दिया है। इसका विरोध भी हो रहा है, मगर लगता यही है कि सरकार किसी दबाव में नहीं आएगी।
वस्तुत: भाजपा सरकार ने केन्द्र की तरह अखिल भारतीय सेवाओं और अन्य सेवाओं के लिए अलग-अलग भर्ती दफ्तर होने को आधार बना कर यह कदम उठाया है, जबकि इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी। सरकार चाहती तो मौजूदा आयोग में ही कुछ नए सदस्य नियुक्त कर देती और लंबे-चौड़े आयोग परिसर  में कुछ और भवन बनवा देती। यह सही है कि आयोग का जब गठन किया गया तो उसके पास गजटेड व फस्र्ट क्लास अधिकारियों की भर्ती का ही काम था, लेकिन बाद में जिस तरह अन्य सेवाओं की भी भर्तियां होने लगीं तो यहां के कर्मचारियों ने अपने आपको उसी के अनुरूप ढाल लिया। यहां तक कि तृतीय श्रेणी शिक्षकों की बड़ी भर्ती के काम को भी बखूबी अंजाम दिया।
पिछली बार सत्तारूढ़ दल के विधायक सरकार के साथ सुर में सुर मिला कर गीत गा रहे थे और इकलौते विपक्षी विधायक डॉ.श्रीगोपाल बाहेती की आवाज नक्कारखाने में तूती की माफिक दब कर रह गई। इस बार तो जिले के आठों विधायक भाजपा के हैं, फिर भी डॉ. बाहेती ने आवाज उठाई है। उनका कहना है कि यदि सरकार राव कमीशन की सिफारिशों को दरकिनार कर आयोग का विखंडन करना चाहती है तो उससे बेहतर है अजमेर को फिर से राज्य का दर्जा दे दिया जाए।
-तेजवानी गिरधर