मंगलवार, 11 जून 2013

सचिन से परहेज, पिताश्री स्व. राजेश पायलट के गुणगान?

सबको पता है कि किसी जमाने में जसराज जयपाल व ललित भाटी खेमे में बंटी रहने वाली अजमेर शहर कांग्रेस अब यहां के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के पक्ष और विपक्ष में बंटी हुई है। जहां शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, निगम मेयर कमल बाकोलिया व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत को सचिन के खेमे में गिना जाता है तो वहीं पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व डॉ. श्रीगोपाल बाहेती सहित मनोनीत पार्षद सैयद गुलाम मुस्तफा, पूर्व शहर उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग आदि विरोधी खेमे में। इस विरोधी खेमे ने विभिन्न जयंतियों व पुण्यतिथियों पर आम कांग्रेसजन के बैनर पर आयोजन भी शुरू कर दिए हैं। अर्थात लगभग समानांतर कांग्रेस चल रही है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री व किसान नेता स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथी पर भी ऐसा ही हुआ। शहर कांग्रेस ने अलग श्रद्धांजलि सभा की तो आम कांग्रेसजन से अलग से संगोष्ठी। यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि स्वर्गीय राजेश पायलट कांग्रेस के दिग्गज नेता थे, मगर अजमेर के कांग्रेसियों ने सचिन के यहां से सांसद बनने के बाद ही उनकी जयंती व पुण्यतिथी मनाना शुरू किया है।
खैर, आम कांग्रेसजन के कार्यक्रम ने सभी को चौंका दिया। भले ही इसके नेता यह कह कि स्व. राजेश पायलट कांग्रेस के बड़े नेता थे, इस कारण उन्होंने पुण्यतिथी मनाई, अपना बचाव करें, मगर हैं तो वे सचिन के पिताश्री ही। यानि कि सचिन से परहेज और उनके पिताश्री का गुणगान। अगर उनमेें राजेश पायलट के प्रति इतनी ही श्रद्धा थी तो शहर कांग्रेस की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शरीक क्यों नहीं हुए? कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसा करके वे ये जताना चाहते हैं कि उन्हें असल में सचिन नहीं, बल्कि उनके शागिर्द शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता से परेशानी है। यानि कि वे अब भी सचिन के साथ आने को तैयार हो सकते हैं, बशर्ते वे रलावता को दूर कर दें। यह कार्यक्रम इस बात का भी संकेत है कि कहीं न कहीं कथित रूप से विरोधी नेता भी सचिन से नजदीक हासिल करना चाहते हैं।
आखिर में ये बताते चलें कि आम कांग्रेसजन के कार्यक्रम में वे ही नेता शामिल हुए, जो कि शहर कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। यथा पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, मनोनीत पार्षद गुलाम मुस्तफा, डॉ. सुरेश गर्ग, श्रीमती तरा मीणा, इन्टक अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह शेखावत, प्रकाश गदिया, छात्र नेता सुनील लारा, विजय यादव, यासिर चिश्ती, शक्तिप्रताप सिंह, दीपक पराशर, लोकेश शर्मा, रूपसिंह नायक, अजीत सिंह छाबड़ा, काजी अनवर अली, रमेश सेनानी, फखरे मोइन आदि।
डॉ. सुरेश गर्ग ने तो बाकायदा फेसबुक पर भी स्व. राजेश पायलट को श्रद्धांजलि दी है।
-तेजवानी गिरधर

भगत हटे नहीं कि शुरू हो गई जोड़-बाकी-गुणा-भाग

लैंड फोर लैंड के मामले में रिश्वतखोरी की साजिश के मामले में एडीबी की जांच अभी सिरे चढ़ी नहीं है, नगर सुधार न्यास के सदर नरेन शहाणी भगत का इस्तीफा अभी हुआ नहीं है कि अभी से उनके आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से कांग्रेस का दावेदार न होने पर शहर की राजनीति क्या होगी, इसका गणित शुरू हो गया है। एक ओर जहां भगत के धुर विरोधी और सिंधी समाज के अन्य दावेदारों के चेहरे खिले हुए हैं, वहीं गैर कांग्रेसी दावेदारों के मुंह में भी पानी आने लगा है। जाहिर सी बात है कि भाजपाई खेमे में भी संभावित राजनीतिक समीकरण के तहत माथापच्ची आरंभ हो गई है।
आइये, अपुन भी उस संभावित स्थिति पर एक नजर डाल लें, जिसमें भगत को इस्तीफा देना पड़ेगा व उनका दावा समाप्त सा हो जाएगा। यह बात सही है कि भगत ही अकेले सबसे दमदार दावेदार थे, इस कारण अगर कांग्रेस को पिछली हार से सबक लेते हुए किसी सिंधी को ही टिकट देने का फार्मूला बनाना पड़ा तो उसे बड़ी मशक्कत करनी होगी। फिर से कोई नानकराम खोजना होगा। वजह ये कि सिंधी समाज में एक अनार सौ बीमार की स्थिति हो जाने वाली है। डॉ. लाल थदानी, नरेश राघानी, हरीश हिंगोरानी, रमेश सेनानी, हरीश मोतियानी, राजकुमारी गुलबानी, रश्मि हिंगोरानी इत्यादि-इत्यादि की लंबी फेहरिश्त है। फिलहाल जयपुर रह रहे शशांक कोरानी, जो कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. डी. कोरानी के पुत्र हैं, वे भी मन कर सकते हैं। जो वर्षों तक टिकट मांगते-मांगते थक-हार कर बैठ गए, वे भी अब फिर से जाग जाएंगे। इतना ही नहीं संभव है, कुछ नए नवेले भी खादी का कुर्ता-पायजामा पहन कर लाइन में लग जाएं। रहा सवाल गैर सिंधियों का तो उनमें प्रमुख रूप से पुष्कर के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व शहर कांग्रेस के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता अब पहले से ज्यादा दमदार तरीके से दावा ठोकेंगे।
राजनीतिक ठल्लेबाजी करने वालों ने एक नए समीकरण का भी जोड़-बाकी-गुणा-भाग शुरू कर दिया है। वो ये कि बिखरी हुई कांग्रेस को नए सिरे से फोरमेट किया जाएगा। यानि कि ताश नए सिरे फैंटी जाएगी। भगत की जगह रलावता को दी जाएगी, रलावता की जगह पर जसराज जयपाल या डॉ. राजकुमार जयपाल को काबिज करवाया जाएगा और टिकट बड़ी आसानी से डॉ. बाहेती को दे दिया जाएगा। यानि की सब राजी। मगर उसमें समस्या ये आएगी कि सिंधी नेतृत्व का क्या किया जाए? क्या सिंधी मतदाताओं को एन ब्लॉक भाजपा की थाली में परोस दिया जाए? या फिर कोई और तोड़ निकाला जाए?
चलो, अब बात करें भाजपा की। मोटे तौर पर यही माना जाता है कि भाजपा कांग्रेस के पिछली बार की तरह गैर सिंधी के प्रयोग को करने का साहस शायद ही दिखाए, क्योंकि इससे उसकी दक्षिण की सीट भी खतरे में पड़ सकती है। यदि कांग्रेस ने भगत के अतिरिक्त किसी और सिंधी को टिकट दे दिया तो उसे भाजपा के संभावित सिंधी प्रत्याशी से कड़ी टक्कर लेनी होगी।  और कांग्रेस ने अगर गैर सिंधी उतरा तो संभव है पिछली बार ही तरह फिर सिंधी-वैश्यवाद सिर चढ़ कर बोले।
जो कुछ भी हो, भगत के खतरे में आते ही अजमेर में राजनीतिक चर्चाएं जोर पकडऩे लगी हैं।
-तेजवानी गिरधर

बाकोलिया अब बन गए हैं असली नेता

कल तक राजनीति के नौसीखिया कहलाने वाले अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया असली नेता हो गए प्रतीत होते हैं। सब जानते हैं कि असली नेता वही होता है, जिसकी चमड़ी मोटी होती है, अर्थात छोटी-मोटी आलोचनाओं का तो उस पर असर ही नहीं होता। बाकोलिया पर भी अब असर होना बंद हो गया है। ऐसे में उन्हें असली नेता कहा जाना चाहिए।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों जब कांग्रेस की संदेश यात्रा और भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान आपसी होड़ा-होड़ी में नेताओं ने  सारे कानून-कायदे ताक पर रख कर शहर भर को बैनर और होर्डिंगों से पाट दिया था तो अखबारों ने खूब शोर मचाया। मगर बाकोलिया के कान में जूं तक नहीं रेंगी। वे इस कान से सुर पर उस कान से निकालते रहे। बेशक अखबार वालों ने अपना जो फर्ज था, वह पूरी तरह से निभाया, उससे अधिक वे कर भी क्या सकते हैं, मगर यही जान कर वे कुछ कर नहीं सकते, केवल छाप ही सकते हैं, बाकोलिया ने भी कोई परवाह नहीं की। आखिर दोनों यात्राएं जब समाप्त हो गईं और नेताओं का मकसद पूरा हो गया, तब जा कर बैनर होर्डिंग्स हटाए गए।
असल में इस मामले में विल पॉवर की जरूरत होती है। वह बाकोलिया में कहीं नजर नहीं आई। आती भी कहां से? हुआ ये कि पहले कांग्रेस की संदेश यात्रा थी, इस कारण कांग्रेसी होने के नाते उन्हें कांग्रेसी नेताओं के होर्डिंग्स नजर ही नहीं आए। जानबूझ कर नजरअंदाज करना उनकी मजबूरी भी थी। भला अशोक गहलोत की फोटो वाले होर्डिंग्स हटा कर वे अपने हाईकमान की नाराजगी क्यों मोल लेते? इस कारण चुप बैठे रहे। अपुन ने तब भी ये बात लिखी थी।
इसके बाद जब भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा आई तो भाजपा नेताओं ने भी कांग्रेस से भी ज्यादा होर्डिंग्स चस्पा कर दिए। वे जानते थे कि बाकोलिया उनके होर्डिंग्स हटाने की हिम्मत नहीं दिखा पाएंगे। वैसे भी वे कांग्रेसी पार्षदों की तुलना में भाजपाइयों से मिलजुल कर ज्यादा चलते हैं। इस पर भी अपनु ने साफ लिख दिया था कि सुराज संकल्प यात्रा के स्वागत के लिए शहर भर में लगाए हॉर्डिंग्स और बैनर पर मीडिया ने बड़ा हल्ला मचा रखा है, मगर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया में इतनी हिम्मत कहां कि वे इन्हें हटा पाएं। हुआ भी वही। अखबार वाले चिल्लाते रहे, मगर बाकोलिया की पहले से चुकी हुई विल पॉवर नहीं जाग पाई। यहां तक निगम की सीईओ विनिता श्रीवास्तव ने महज औपचारिकता निभाते हुए होर्डिंग्स हटाने के कागजी आदेश जारी किए, मगर न उन पर अमल होना था और न हुआ।  अब जा कर जब कानून तोडऩे वाले नेताओं का मकसद पूरा हो गया है तो उन पर अमल हुआ है। ऐसे में बाकोलिया के इस कथन पर अफसोस ही होता है कि राजनेताओं को खुद शहर के हित को देखते हुए ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने नसीहत दी कि नेताओं को खुद नियमों का ध्यान रखना चाहिए। यानि वे तो कम से कम नियमों की पालना के जो अधिकार मिले हुए हैं, जनता ने उन्हें चुन कर दिए हैं, उन्हें वे इस्तेमाल नहीं करेंगे। ऐसे में भला सारे नेता भी काहे को नियमों का ध्यान रखेंगे। यानि कि सब कुछ यूं ही चलता रहेगा। ऐसे में राजस्थानी कहावत याद आती है- रांडा रोवती रेई, पांवणा जीमता रेई।
-तेजवानी गिरधर