सोमवार, 28 जनवरी 2013

अजमेर के लिए यह दौड़ जारी रहनी चाहिए


टायर्ड और रिटायर्ड लोगों के रूप में पहचान रखने वाला अजमेर शहर ने बीते दिन एक ऐसे ऐतिहासिक मंजर का गवाह बन गया, जिसने यह जता दिया कि यह जिंदा दिल लोगों की नगरी है, बस उन्हें हनुमान की तरह उनकी शक्तियों की याद दिलानी पड़ती है।
अजमेर की बहबूदी और रचनात्मक सोच की खातिर जब छोटे बच्चे से लेकर 115 साल के बुजुर्ग ने कदम से कदम मिला कर कदमताल की तो उस जोश को देख कर हर अजमेरवासी का मन मयूर नाच उठा। हर अजमेराइट ने उस जज्बे को दिल से सलाम किया। दौड़ में शामिल धावकों का जगह-जगह पुष्प वर्षा कर किया गया इस्तकबाल इसका जीता जागता प्रमाण है।  बेशक यह आयोजन तारीफ-ए-काबिल रहा, जिसकी तारीफ को शब्दों की परिधि में बांधना बेहद मुश्किल है। यूं तो हर धावक इसके लिए बधाई का पात्र है, मगर आयोजन की परिकल्पना करने और उसे साकार करने के लिए दिन-रात एक कर देने वाले अजमेर फोरम, इंडोर स्टेडियम और राजस्थान एथलेटिक एसोसिएशन को जितनी मुबारकबाद दी जाए, कम है। उन्होंने जो लौ प्रज्ज्वलित की है, वह हमारे दिलों में सदैव कायम रहे, यही शुभेच्छा है।
वस्तुत: शिक्षा की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रहे अजमेर में विरोधाभासी रूप में राजनीतिक जागरूकता की कमी के चलते ही यहां का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। हम अपने समकक्ष शहरों से काफी रह गए हैं। बीसलपुर के पानी का हक मारने का मसला हो या आईआईटी की स्थापना का, रेलवे कारखानों के वजूद के साथ छेडख़ानी की करतूत हो या विभिन्न दफ्तरों को यहां से अन्यत्र भेज देने की चालें, हम हर मामले में ठगे गए हैं।  आजादी के बाद सचिन पायलट के रूप में सौभाग्य से पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व मिलने के बाद भी हवाई अड्डे का सपना साकार होने में अड़चनें आ रही हैं, जबकि एमओयू पर हस्ताक्षर हुए चार साल हो चुके हैं। एलीवेटेड रोड के सर्वे के आदेश तक भी बमुश्किल हो पाए हैं। ऐसे में मेराथन दौड़ के जरिए अजमेर को जगाने का प्रयास बेहद लाजिमी था।  यह दौड़ महज रस्म अदायगी बन कर न रह जाए। चंद घंटों की इस दौड़ का भौतिक रूप से भले ही कोई महत्व न हो, मगर इसके बहाने रगों में दौड़ा खून, दिलों में जागा जज्बा सार्थक होना चाहिए। यह दौड़ अब थमनी नहीं चाहिए। असल में दौड़ के आयोजन की सफलता उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितनी की अजमेर के हित की खातिर सदैव दौडऩे तैयार रहना। उम्मीद है हर अजमेरवासी इसे सार्थक करने को तत्पर रहेगा।
-तेजवानी गिरधर
दौड़ के स्वामी न्यूज चैनल की ओर से किए गए कवरेज को देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:-

http://www.youtube.com/watch?v=DVTeTItu3ng&feature=share&list=UUGwyV4mM4L_5_SL_ubvYnqg

डॉ. सुरेश गर्ग ने फिर छेड़ी चुनाव की तान


अजमेर वासियों के लिए सुपरिचित नगर पालिका सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी व शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग ने एक बार फिर अग्रवाल समाज को राजनीतिक रूप से जगाने की कोशिश की है। इसे आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
श्रीराम धर्मशाला में सेवारत अग्रवाल कल्याण परिषद की चतुर्थ सदस्य विवरणिका के विमोचन समारोह में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमारी राजनीति में भागीदारी बढऩी चाहिए, ताकि धीरे-धीरे राजनीतिक कारणों से पिछड़ते जा रहे अग्र बंधु अग्र ही बने रहें। उन्होंने कहा कि वोट के समय जाति के प्रत्याशी को प्राथमिकता देते हुए अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए। अपने दर्द का इजहार करते हुए डॉ. गर्ग ने कहा कि हम अन्य जातियों के मुकाबले राजनीतिक पार्टियों को अधिक चन्दा देते हैं, सर्वाधिक आयकर देकर देश के विकास में भागीदार बनते हैं, लेकिन उसका लाभ हमें तब मिलेगा जब हम राजनीतिक सौदेबाजी में भी माहिर होंगे। उनका यह उद्बोधन आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के संदर्भ में जोड़ कर देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि अजमेर उत्तर सीट, जो कि पहले अजमेर पश्चिम के रूप में जानी जाती थी, पर परंपरागत रूप से कांग्रेस व भाजपा दोनों सिंधी को ही प्रत्याशी बनाते आए हैं। पिछली बार वैश्य महासभा के दबाव में कांग्रेस ने गैर सिंधी के रूप में डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को चुनाव मैदान में उतारा, मगर वह प्रयोग विफल हो गया और भाजपा के प्रो. वासुदेव देवनानी जीत गए। जाहिर सी बात है कि पिछले चुनाव की कसक अब भी बाकी है, जिसे डॉ. गर्ग ने एक बार फिर हवा देने की कोशिश की है। कहने की जरूरत नहीं है कि स्वयं डॉ. गर्ग भी टिकट के दावेदार हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस का टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया था, मगर बाद में हाईकमान के दबाव में नाम वापस ले लिया। हालांकि अभी चुनाव दूर हैं, मगर यह सुगबुगाहट कुछ संकेत तो दे ही रही है। देखना ये है कि इस बार चुनाव में क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर