शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

क्या बीमारियां यकायक कम हो गई हैं?

लॉक डाउन की वजह से अजमेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय सहित अन्य सरकारी डिस्पेंसरियों में विभिन्न छोटी-मोदी बीमारियों के मरीजों की संख्या कम हो गई है। इससे ऐसा आभास होता है कि क्या कोराना की वजह से अन्य सामान्य या असामान्य बीमारियों का प्रकोप समाप्त प्राय: हो गया है। यह विषय सोचने को तो मजबूर करता ही ही है, आखिर वजह क्या है?
कहते हैं न, मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना। जितनी खोपडिय़ां, उतने ही विचार। इस विषय पर भी लोगों के भिन्न मत हैं। एक बुद्धिजीवी ने इस स्थिति को कुछ इस प्रकार बयां किया है:-
क्या वाकई इंसान बार-बार बीमार होता है?
सभी अस्पतालों की बन्द हैं। आपातकालीन वार्ड में कोई भीड़ नहीं है। कोरोना के मरीजों के अलावा कोई नए मरीज नही आ रहे। सड़कों पर वाहन न होने से दुर्घटनाएं नहीं हैं। हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, ब्रेन हैमरेज के मामले अचानक बहुत कम हो गए हैं। अचानक ऐसा क्या हुआ है कि बीमारियों के केसेस में इतनी गिरावट आ गई? यहां तक कि श्मशान में आने वाले मृतकों की संख्या भी घट गई है। क्या कोरोना ने सभी अन्य रोगों को नियंत्रित या नष्ट कर दिया है? नहीं, बिल्कुल नहीं। दरअसल अब यह वास्तविकता सामने आ रही है कि जहां गंभीर रोग न हो, वहां पर भी डॉक्टर उसे जानबूझ कर गंभीर स्वरूप दे रहे थे। जब से भारत में कॉर्पोरेट हॉस्पिटल्स, टेस्टिंग लैब्स की बाढ़ आई, तभी से यह संकट गहराने लगा था। मामूली सर्दी, जुकाम और खांसी में भी हजारों रुपये के टैस्ट के लिए लोगों को मजबूर किया जा रहा था। छोटी सी तकलीफ में भी धड़ल्ले से ऑपरेशंस किये जा रहे थे। मरीजों को यूं ही आईसीयू में रखा जा रहा था। अब कोरोना आने के बाद यह सब अचानक कैसे बन्द हो गया? इसके अलावा एक और सकारात्मक बदलाव आया है। लॉक डाउन की वजह से रेस्टोरेंट व ठेले बंद हो गए हैं। केवल घर का ही खाना मिल रहा है। कदाचित इसका भी असर हो कि छोटी बीमारियां नहीं हो रहीं। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, लेकिन साथ ही रिपोर्ट भी हो रही है। मेडिकल से जुड़े लोगों को यह स्वाभाविक रूप से बुरी लगती होगी कि उनकी पोल खुल रही है या उनकी छवि खराब की जा रही है।
इस पोस्ट में मौलिक रूप से कुछ बातें तो सही हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता। इस बारे में मैने एक मेडिकल स्टोर मालिक से बात की तो उन्होंने दो बातें बताईं। एक तो ये कि सिरदर्द, पेट दर्द, फोड़ा-फुंसी जैसे रोगों के मरीजों की संख्या कम हुई है। वजह ये कि घर से दुकान तक आने के फासले में पुलिस की स्क्रीनिंग से बचने के लिए लोग घर पर ही देसी इलाज कर रहे हैं। खासकर सर्दी-जुकाम-बुखार के मरीज अस्पताल जाने से ही घबरा रहे हैं और मेडिकल की दुकान से ही दवाई ले जा रहे हैं। दूसरा ये कि जो लोग पहले हर छोटी-मोटी बीमारी के लिए डॉक्टर के पास जा कर मेडिकल टेस्टिंग से गुजरते थे, वे उससे बचने के लिए मेडिकल की दुकानों से ही दवाई ले कर जा रहे हैं। जिन को कुछ गंभीर बीमारी आरंभ हुई है तो लॉक डाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि बाद में ठीक से इलाज करवाया जा सके।
एक डॉक्टर से पूछने पर उन्होंने बताया कि पहले हर छोटी-मोटी बीमारी का मरीज सीधे सरकारी अस्पताल या डिस्पेंसरी का रुख करता था, चूंकि उसे नि:शुल्क दवा योजना का लाभ मिल रहा था। अब अव्वल तो वह घर पर ही नुस्खे आजमा रहा है। ज्यादा तकलीफ है तो अस्पताल तक जाने की परेशानी व साधन के अभाव के कारण आसपास के ही किसी डॉक्टर से दवाई ले रहा है। इससे ऐसा प्रतीत होने लगा है कि बीमारियां कम हो गई हैं।  हां, उन्होंने यह आशंका जरूर जताई कि लॉक डाउन खुलने पर मानसिक अवसाद के बीमारों की संख्या बढ़ सकती है। जो लोग तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, शराब आदि के आदी हैं, वे फिलहाल दुगुने-तिगुने दाम को भुगत  कर सीमित नशा कर रहे हैं, लेकिन नशे की सामग्री कम मिलने के कारण कुछ तो सुधर जाएंगे ओर कुछ अवसाद से ग्रस्त हो जाएंगे। उनमें कई विकृतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
ये पंक्तियां लिखते समय एक लेखक की राय याद आ गई। उन्होंने लिखा था कि सरकार को शराब की दुकानें खोलने पर विचार नहीं करना चाहिए। जब लोग 21 दिन लॉक डाउन के कारण बिना शराब पीये जी सकते हैं तो आगे भी जी ही लेंगे। जबकि धरातल का सच ये है कि पीने के आदी लोग कहीं न कहीं से महंगा जुगाड़ करके गला तर कर रहे हैं। पीना किसी ने बंद नहीं किया है। प्रसंगवश, मुझे यह हास्य करने का जी कर रहा है कि जब अस्पतालों के खुले बिना भी आदमी जी सकता है, तो क्यों न उनको बंद हीक कर दिया जाए।
रहा सवाल श्मशानों में अंत्येष्टि की संख्या कम होने का तो बात तो चौंकाने वाली है। शायद मरणासन्न लोग लॉक डाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। वैसे सामान्य रूप से मरने वालों की संख्या कम जरूर हुई है, मगर मरने वाले मर रहे हैं। पता इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि उठावने के विज्ञापन कम छप रहे हैं। लॉक डाउन के कारण उठावने किए ही नहीं जा रहे।

-तेजवानी गिरधर
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