बुधवार, 2 मई 2012

कल के अछूत बाबो सा अब पूजनीय कैसे हो गए?

संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते बाबोसा के दोहित्र अभिमन्यू सिहं
ये दुनिया भी अजीब है। कई बार जीते जी किसी शख्स की दो कौड़ी की इज्जत कर देती है और मरने के बाद पूजने लग जाती है। कभी राजस्थान के एक मात्र सिंह के नाम से अलंकृत पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत जब उपराष्ट्रपति पद से निवृत्त हो कर प्रदेश में लौटे तो भाजपा में ऐसा माहौल बना दिया गया था, मानो वे कोई अनजान प्राणी हैं, जिनके लिए इस प्रदेश में कोई जगह ही नहीं है। इसे यूं भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक वक्त ऐसा भी आया, जब राजस्थान का यह शेर अपने ही प्रदेश में बेगाना करार दे दिया गया था।
अजमेर वासी भलीभांति जानते हैं कि जब वे दिल्ली से लौट कर दो बार अजमेर आए तो उनकी अगुवानी करने को चंद दिलेर भाजपा नेता ही साहस जुटा पाए थे। शेखावत जी की भतीजी संतोष कंवर शेखावत, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा और पूर्व मनोनीत पार्षद सत्यनारायण गर्ग सहित चंद नेता ही उनका स्वागत करने पहुंचे। अधिसंख्य भाजपा नेता और दोनों तत्कालीन विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने उनसे दूरी ही बनाए रखी। वजह थी मात्र ये कि अगर वे शेखावत से मिलने गए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नाराज हो जाएंगी। पूरे प्रदेश के भाजपाइयों में खौफ था कि वर्षों तक पार्टी की सेवा करने वाले वरिष्ठ नेताओं को खंडहर करार दे कर हाशिये पर धकेल देने वाली वसु मैडम अगर खफा हो गईं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। असल में वे नहीं चाहतीं थीं कि शेखावत जी की परिवार शृंखला राजनीति में वजूद कायम कर पाए। इसी कारण शेखावत जी के जवांई नरपत सिंह राजवी को भी पीछे धकेलने की उन्होंने भरसक कोशिश की।
मगर अब समय बदल गया है। स्व. शेखावत की द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर आगामी मंगलवार दिनांक 15 मई 2012 को प्रात: 10.00 बजे उनके पैतृक गांव खाचरियावास जिला सीकर में उनकी आदमकद प्रतिमा लगाने के समारोह में न केवल पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा भाग लेंगी, अपितु प्रदेश सहित अजमेर के विधायक, पदाधिकारी व कार्यकर्ता भी शिरकत करेंगे। इसकी जानकारी स्वर्गीय शेखावत के दोहित्र अभिमन्यु सिंह राजवी ने एक संवाददाता सम्मेलन में दी, वह भी भाजपा नेताओं रासासिंह रावत, अजित सिंह राठौड़, सलावत खान, अरविन्द यादव, विधायक अनिता भदेल आदि की मौजूदगी में दी।
यह पहला मौका नहीं कि स्वर्गीय शेखावत को मरणोपरांत सम्मान दिया जा रहा है। पिछले साल 15 मई को भारतीय जनता पार्टी शहर जिला अजमेर ने स्वर्गीय शेखावत को पहली पुण्यतिथि पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। उसमें भी अधिसंख्य भाजपा नेता शरीक हुए थे। प्रवक्ता व वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरविंद यादव की ओर से जारी भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति में बाबो सा शेखावत जी के नाम के साथ भारतीय जनसंघ और भाजपा के संस्थापक सदस्य अलंकार भी जोड़े गए थे।
बेशक स्वर्गीय शेखावत न केवल भाजपाइयों के लिए अपितु पूरे प्रदेश के लिए सम्मानीय हैं। मगर सवाल ये है कि क्या आज श्रद्धा के पात्र ये वही शेखावत जी हैं, जिन्हें उनके जीते जी अजमेर आने पर किसी ने भाव नहीं दिया था। कैसी विडंबना। कल के अछूत बाबो सा आज अचानक पूजनीय कैसे हो गए? साफ है कि जीते जी उनसे वसुंधरा को खतरा था, मगर अब नहीं। उलटे अब तो उन्हें पूजने पर पूरे एक समुदाय के वोट हासिल होंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

जश्नेमिलादुन्नबी में मंच पर पायलट की मौजूदगी पर सवाल

अजमेर। पुष्कर रोड स्थित विश्राम स्थली पर गत दिवस आयोजित जश्ने मिलादुन्नबी में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के शिरकत कर मंच पर मौजूद होने पर दबे स्वर में सवाल उठाए जा रहे हैं। हालांकि खुल कर कोई नहीं बोल रहा है, मगर भीतर ही भीतर इसकी आलोचना हो रही है।
असल में जश्ने मिलादुन्नबी की आयोजन समिति को 2009 में इसके गठन के समय मुस्लिम कांग्रेसी नेताओं के इसमें शामिल होने से यह आभास हो गया था कि भविष्य में इस धार्मिक कार्यक्रम में किसी तरह की सियासत हो सकती है, लिहाजा उसी समय सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि इस धार्मिक आयोजन में किसी भी तरह की सियासत से परहेज रखा जाएगा और आयोजनकर्ता कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के लिए जारी अपने पोस्टर बेनरों में लगातार इस सूचना को प्रकाशित कर अपनी इस प्रतिबद्धता पर कायम रहेंगे और जश्न को किसी भी राजनीतिक गतिविधि से दूर ही रखा जाएगा।
हुआ यूं कि गत शुक्रवार को विश्राम स्थली पर जश्न मिलादुन्नबी का शानदार आयोजन हो रहा था और जिलेभर से लगभग 15 हजार मुसलमानों का मजमा इस धार्मिक आयोजन में शिरकत के लिये यहां मौजूद था। विश्राम स्थल पर माहौल पूरी तरह धार्मिक रंग में सराबोर था। नातिया कलामों से फिजाओं में रूहानियत की खुशबू की महक मे आशिके रसूल झूम रहे थे कि अचानक सायरन बजाते हुई पुलिस की जीप के साथ लाल बत्तियों की गाडिय़ों की लम्बी कतार ने विश्राम स्थल में प्रवेश किया और मंच के पास जाकर रुक गई। वहां मौजूद लोग और आयोजन समिति के कार्यकर्ता माजरा समझ पाते कि पायलट पूरे लवाजमे के साथ मंच पर पहुंच गए। उनके साथ मेयर कमल बाकोलिया, यू.आई.टी. चेयरमेन नरेन शाहनी भगत, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष हाजी इंसाफ अली सहित कई कांग्रेसी नेता मंच पर चढ़ गए। बताया जाता है कि लवाजमे के साथ आईं शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ भी मंच पर जा रही थीं, मगर वहां मौजूद कमेटी कार्यकर्ताओं ने उन्हें मंच पर जाने से रोक दिया। उनका तर्क था कि मुसलमानों के धार्मिक कार्यक्रमों में मर्दों के बीच औरतों के बैठने की कोई परंपरा नहीं है। वहां मौजूद गंज थाना प्रभारी रविन्द्र यादव ने मामले में हस्तक्षेप की कोशिश की मगर आयोजकों ने कार्यक्रम धार्मिक होने का हवाला देकर उन्हें चुप कर दिया। काफी बहस और जद्दोजहद के बाद आयोजन समिति के कार्यकर्ता इस बात पर राजी हुए कि नसीम अख्तर का स्वागत मंच के नीचे होगा। आखिरकार शिक्षा राज्यमंत्री का मंच के नीचे कार्यक्रम के संयोजक मोहम्मद शाकिर और जुल्फिकार चिश्ती ने स्वागत किया। मंच पर अंजुमन के सदर सैयद हसामुद्दीन नियाजी ने पायलट को शाल उढ़ाया।
इस पूरे घटनाक्रम से वहां मौजूद लोगों में नाराजगी देखी गई। मुस्लिम धर्मावलम्बी इस बात के लिये खफा थे कि सियासी लोगों को मजहबी प्रोग्राम में लाकर मंच पर बैठाना किसी ऐतबार से सही नहीं है। यह आलिमे दीन और इस्लामी विद्वानों का अपमान है, क्योंकि इस तरह के आयोजनों में मंच पर बैठना सिर्फ उनका अधिकार है।
इस सिलसिले में लोगों का मानना है कि पायलट सहित अन्य नेताओं को भले ही मजहबी रवायतों का पता न हो, मगर कम से कम इंसाफ अली तो पता था ही। उन्हें ध्यान रखना चाहिए था कि जलसे को सियासत का रंग न हासिल हो जाए। आयोजन समिति के कार्यकर्ताओं में इस बात की भी कानाफूसी है कि आयोजन समिति को विश्वास लिए बिना ही पायलट को मंच पर ले आया गया।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com