जैसी कि आशंका थी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा हाल ही में घोषित शहर जिला कांग्रेस कार्यकारिणी को लेकर विरोध के स्वर उठने लगे हैं, जिसमें वरिष्ठ लोगों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया गया है। मुख्य रूप से आरोप लगाने वाले शहर युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि कमेटी में फेरबदल नहीं किया गया तो वे अजमेर, जयपुर व दिल्ली में पार्टी दफ्तर के सामने उपवास करेंगे। विरोध करने वालों में कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष राम बाबू शुभम, पूर्व पार्षद चंदर पहलवान, अशोक शर्मा समेत कोई दो दर्जन लोग शामिल हैं।
शर्मा का कहना है कि कमेटी में नए चेहरे शामिल कर दिए हैं, जिन्हें संगठन के लोग जानते तक नहीं हैं। एक ही परिवार से दो-दो लोगों को शामिल कर लिया गया। शहर अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता खुद रूपनगढ़ से पीसीसी सदस्य हैं और शहर में राजनीति कर रहे हैं। शर्मा ने कहा कि अध्यक्ष स्पष्ट करें कि कमेटी में कितने मनोनीत सदस्य हैं और कितने क्रियाशील सदस्य हैं। जिन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया है, उनका राजनीतिक अनुभव क्या है?
इसके जवाब में रलावता का कहना है कि कमेटी में सचिव को छोड़ सभी महत्वपूर्ण पद उन्हें दिए जा सकते हैं, जो ब्लॉक में शामिल हैं, लेकिन उन्होंने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि क्या ग्रामीण क्षेत्र से पीसीसी सदस्य का शहर अध्यक्ष बनना पार्टी संविधान के अनुकूल है। उन्होंने तर्क के ढांचे में बैठा कर नए पदाधिकारियों चंद्रभान शर्मा, राज नारायण आसोपा, राजेंद्र वर्मा, राजेंद्र नरचल, वाजिद खान चीता की नियुक्ति को जायज तो ठहरा दिया है, मगर पार्टी के वरिष्ठजन में फैले असंतोष का कोई उपाय नहीं बताया है। देखते हैं, यह असंतोष आगे क्या गुल खिलाता है। बहरहाल, संगठन प्रमुख के पास सर्वाधिकार सुरक्षित होते हैं और साथ ही यह भी सही है कि राजनीति में ऐसी खींचतान होती रहती है। घाघ राजनीतिज्ञ इसकी परवाह भी नहीं करते।
इस प्रकरण एक बात जरूर रोचक रही। मीडिया वालों ने कार्यकारिणी पर ऐतराज करने वालों को ही निशाने पर ले लिया। कदाचित रलावता से बात करने के बाद। मीडिया का आकलन है कि जो लोग कमेटी का विरोध कर रहे हैं, वे बरसों तक पार्टी के पदों पर रहे हैं। दिनेश शर्मा एनएसयूआई के शहर अध्यक्ष रहे बाद में उपभोक्ता प्रकोष्ठ में रहे प्रकोष्ठ भंग कर दिया गया, उसके बावजूद इनके क्रियाकलाप जारी रहे। रामबाबू शुभम बरसों तक कमेटी में उपाध्यक्ष रहे, दो बार विधानसभा टिकट मिला, लेकिन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। चंदर पहलवान कांग्रेस के पार्षद रहे, बाद में निगम चुनाव में बगावत कर कांग्रेस उम्मीदवार को हराने में अहम भूमिका निभाई। उसके बाद सदस्यता का कोई पता नहीं है। खैर, राजनीति वह अबला है, जिसका चीर हरण करना बेहद आसान काम है।