शनिवार, 26 जुलाई 2014

नसीराबाद सीट के मामले में कांग्रेस हतोत्साहित नहीं

बेशक विधानसभा चुनाव में नसीराबाद सहित अजमेर जिले की सभी  सीटों पर हारने और अजमेर संसदीय क्षेत्र में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बुरी तरह से पराजित होने के बाद कांग्रेस हतोत्साहित है और उसे सदमे से बाहर निकलने में वक्त लगता दिखता है, मगर नसीराबाद में आगामी सितम्बर-अक्टूबर में होने जा रहे विधानसभा उप चुनाव को लेकर कांग्रेस हताशा में नहीं है। और यही वजह है कि जैसे ही जिला निर्वाचन कार्यालय ने चुनावी तैयारियों के लिए प्रशिक्षण कलैंडर जारी किया है, कांग्रेसियों में इसको लेकर तनिक उत्साह नजर आ रहा है। हालांकि यह नहीं माना जाता कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में चली मोदी लहर के धीमी हुई है, साथ ही केन्द्र व राज्य में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकारें हैं, इस कारण भाजपा का मनोबल अपेक्षाकृत मजबूत ही है, मगर कांग्रेसी कम से कम इस सीट को लेकर हार मान कर नहीं बैठे हैं। उन्हें लगता है कि यदि ठीक से चुनाव लड़ा जाए तो जीता भी जा सकता है।
दरअसल कांग्रेसी इस चुनाव को लेकर थोड़े से आश्वस्त इस वजह से हैं कि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन विधानसभा चुनाव से बेहतर रहा। वो ये कि वह सिर्फ 10 हजार 999 मतों से ही पिछड़ी, जबकि विधानसभा चुनाव में सांवर लाल जाट 28 हजार 900 मतों से जीते थे। अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जाट का पिछडऩा तनिक सोचने को विवश करता है, मगर इसकी वजह ये आंकी जाती है कि लोकसभा चुनाव में खुद सचिन पायलट के होने के कारण गुर्जर मत एकजुट हो गए थे। जो भी हो, मगर अंतर कम होना कांग्रेस की हताशा को कम तो करता है। एक और फैक्टर भी कांग्रेसी अपने पक्ष में गिन कर चल रहे हैं कि महंगाई का हल्ला मचा कर जिस प्रकार भाजपा केन्द्र व राज्य में सत्ता में आई और उसके बाद महंगाई और बढ़ गई है, इस कारण आम जनता में अंदर ही अंदर प्रतिक्रिया पनप रही है। राज्य में भाजपा सरकार का अब तक कोई खास परफोरमेंस भी नहीं रहा है, इस कारण कांग्रेसी मानते हैं कि आम जन का भाजपा से मोह भंग हुआ होगा।
बहरहाल, चुनाव के लिए प्रशासनिक तैयारियों का आगाज होते ही दोनों राजनीतिक दलों में भी हलचल तेज हो गई है। भाजपा में तो अटकलें तभी शुरू हो गई थीं, जब यहां से जीते प्रो. जाट ने लोकसभा चुनाव भी जीत लिया। सब जानते हैं कि वे लोकसभा का चुनाव लडऩा नहीं चाहते थे। उन्होंने अपने बेटे रामस्वरूप लांबा के लिए टिकट का प्रयास किया था। ऐसे में अब माना जा रहा है कि वे अपने बेटे के लिए ही नसीराबाद से टिकट मांगेगे।  हालांकि सांसद बनने के बाद भी जाट राज्य मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री बने हुए हैं, इससे एक संदेह होता है कि कहीं वे दुबारा विधायक बनने की संभावना तो नहीं तलाश रहे, लेकिन उनके फिर से इस विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव लडऩे की संभावना कम ही है। ज्ञातव्य है कि राज्य में मंत्री होते हुए भी लोकसभा चुनाव लडऩे को तैयार होने के पीछे यही गणित मानी जा रही थी कि वसुंधरा उन्हें केन्द्र में मंत्री बनवाएंगी, मगर ऐसा अब तो संभव हो नहीं पाया है।
भाजपा में टिकट को लेकर तगड़ी खींचतान हो सकती है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वंशवाद के खिलाफ अपना मन्तव्य जाहिर कर चुके हैं, इस कारण जाट के पुत्र को टिकट मिलने में संदेह जताया जा रहा है। ऐसे में चूंकि यह सीट गुर्जर, रावत व जाट बाहुल्य है, इस वजह से इन समाजों से जुड़े नेता प्रयास कर सकते हैं। उनमें प्रमुख नाम पूर्व में तीन बार स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर से हार चुके मदन सिंह रावत, जिला परिषद सदस्य ओमप्रकाश भडाणा, राजेंद्र सिंह रावत, केसरपुरा के पूर्व सरपंच शक्ति सिंह रावत के हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, भाजपा देहात जिला अध्यक्ष बी पी सारस्वत व अनिरुद्ध खंडेलवाल भी हाथ मारने की फिराक में हैं। जिले से बाहर के नेता भी नजरें गड़ाए हुए हैं, जिनमें पूर्व मंत्री दिगंबर सिंह, आरपीएससी के पूर्व सदस्य ब्रह्मदेव गुर्जर, गुर्जर नेता अतर सिंह भडाणा आदि शामिल हैं।
बात अगर कांग्रेस की करें तो यहीं से विधायक रहे और हाल के चुनाव में हारे महेंद्र सिंह गुर्जर, श्रीनगर प्रधान रामनारायण गुर्जर, सुनील गुर्जर, पूर्व संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, पार्षद नौरत गुर्जर, पूर्व मनोनीत पार्षद सुनील चौधरी लाइन में हैं। वैसे आपको बता दें कि कुछ नेताओं की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे नसीराबाद सीट से चुनाव लड़ें। ऐसा इसलिए कि वे अजमेर जिले की इस सीट से अच्छी तरह से वाकिफ हैं और यहां उनके सजातीय गुर्जर वोटों की बहुलता है। प्रदेश कांग्रेस के नेता सचिन पर विधानसभा चुनाव के लिए दबाव इस वजह से बना रहे हैं कि एक विधायक के रूप में विधानसभा में उनकी मौजूदगी से 21 सदस्यीय विधायक दल को संबल मिलेगा। विधायक रहते हुए वे कांग्रेस पक्ष दमदार तरीके से रख सकते हैं। साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते जर्जर हो चुकी कांग्रेस को मजबूत करने में भी सुविधा रहेगी।
आइये, लगे हाथ इस सीट का मिजाज भी जानते चलें:-
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर का लगातार छह बार कब्जा रहा और उनके निधन के बाद उनके ही भतीजे व श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर काबिज हुए। दरअसल यहां पूर्व में लगातार गुर्जर व रावतों के बीच मुकाबला होता था। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर महज 71 वोटों से हार गए। यानि की कांटे की टक्कर रही।
नसीराबाद यों तो एससी बहुल इलाका है, लेकिन किसी एक जाति की बात करें तो गुर्जर सबसे ज्यादा हैं। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक नसीराबाद में एससी के करीब 45 हजार, गुर्जर करीब 30 हजार, जाट करीब 25 हजार, मुसलमान करीब 15 हजार, वैश्य करीब 15 हजार, रावत करीब 17 हजार हैं। इनके अलावा ब्राह्मण, यादव मतदाता भी हैं। परंपरागत मतों के हिसाब से जोड़ कर देखें तो गुर्जर, एससी, मुसलमान कांग्रेस का वोट बैंक 90 हजार से अधिक हो जाता है। क्षेत्र में प्रत्याशी के जातिगत मतों और परंपरागत मतों को जोड़कर देखें तो भाजपा का वोट बैंक भी करीब 90 हजार के लगभग हो जाता है। शेष मतों को लेकर दोनों दलों में कांटे का मुकाबला होता है। वैसे भी हार जीत का अंतर इस सीट पर काफी कम रहता आया है। दरअसल इस सीट पर कांग्रेस का पूरा जोर एससी और गुर्जर मतों पर रहता आया है। गुर्जरों का मतदान प्रतिशत 70 से 90 प्रतिशत तक कराया जाता है। पहली बार जब प्रो. जाट यहां से लड़े तो वे अपने सजातीय वोटों का प्रतिशत 70 से ऊपर नहीं ले जा पाए, उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। कुल मिला कर लंबे अरसे तक यह कांग्रेस का गढ़ रहा, मगर दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते सारे जातीय समीकरण धराशायी हो गए और प्रो. जाट रिकार्ड 28 हजार 900 मतों से विजयी हुए। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। इसके बाद हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होना रेखांकित करने लायक तथ्य है। यानि कि यदि आगामी उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला संभव है। सचिन जैसे दिग्गज गुर्जर नेता के लिए यह मुकाबला जीत में तब्दील करना आसान हो सकता है। इसकी एक वजह ये भी है कि भाजपा के पास अब प्रो. जाट जैसा कोई दिग्गज नेता नहीं है।
-तेजवानी गिरधर