बुधवार, 22 अगस्त 2012

प्रदेश अध्यक्ष ने बढ़ा दी कांग्रेस पार्षदों में फूट

 डॉ. चंद्रभान

हाल ही नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर कांग्रेस पार्षद दल एक बार फिर दो फाड़ दिखाई दिया। असल में कांग्रेस पार्षद दल शुरू से ही दो फाड़ है। एक धड़ा मेयर कमल बाकोलिया के साथ रहता है तो दूसरा हर वक्त फच्चर डालता रहता है। इस कारण आए दिन मेयर व कांग्रेस की किरकिरी होती रहती है, जिस पर न तो कभी मेयर ने ध्यान दिया और न ही संगठन ने। अब तो बाकायदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान ने ही नरेश सत्यावना को पार्षद दल का नेता बना कर इस दो फाड़ पर ठप्पा लगा दिया है।
असल में लगता ये है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को यहां के हालत की पूरी जानकारी दी ही नहीं गई। कम से कम यह तो खुलासा किया ही नहीं गया कि यदि सत्यावना को नेता बनाया तो दूसरा दल गैर अनुसूचित जाति के व्यक्ति को नेता बनाने के मुद्दे पर बिफर जाएगा। कदाचित कांगे्रस के स्थानीय मैनेजरों को भी इसका अंदाजा नहीं हो। उन्होंने सोचा कि जैसे ही हाईकमान से सत्यावना की नियुक्ति की घोषणा होगी, सभी नतमस्तक हो कर उसे मान लेंगे। मगर हुआ उलटा। जैसे ही सत्यावना का नाम घोषित हुआ, वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद मोहनलाल शर्मा उर्फ मोहन नेता के साथ लामबंद हो गए। उनका खुला आरोप है कि कांग्रेसजन की रायशुमारी के बिना पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया है। सत्यावना के विरोध में लामबंद हुए पार्षद एकत्रित भी बाकोलिया के धुर विरोधी पार्षद नौरत गुर्जर के निवास स्थान पर हुए, जिससे स्पष्ट है सत्यावना की नियुक्ति में बाकोलिया का ही हाथ है। विरोधी गुट में मोहन नेता सहित विजय नागौरा, मुबारक अली चीता, ललित गुर्जर शामिल हैं।
नेता बनने पर इस प्रकार स्वागत हुए नरेश सत्यावना का
यहां उल्लेखनीय है कि विरोधी गुट का आरोप है कि बिना रायशुमारी के सत्यावना की नियुक्ति की गई है, जबकि संगठन का तर्क है कि अजमेर के प्रभारी सलीम भाटी पिछले दिनों रायशुमारी करके गए है। रायशुमारी में नरेश सत्यावना, विजय नागौरा, मोहन लाल शर्मा, नौरत गुर्जर, आशा तुनवाल, सोनल मौर्य तथा शाहिदा परवीन के नाम आए थे। उन्होंने ही सत्यावना का नाम सुझा दिया, जिसे कि प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान ने घोषित कर दिया। जहां तक विरोध के पीछे तर्क का सवाल है, वह काफी ठोस है। जब पहले से ही मेयर अनुसूचित जाति आरक्षित वर्ग से है तो पार्षद दल का नेता सामान्य या अन्य पिछड़ा वर्ग से होना चाहिए था। इस तर्क को प्रदेश अध्यक्ष कितना तवज्जो देते हैं, पता नहीं, मगर प्रदेश अध्यक्ष की लापरवाही से ही कांग्रेस पार्षदों के बीच की खाई और बढ़ गई है, जिसे कि पाटना कठिन होगा। जाहिर सी बात है कि ऐसे में बाकोलिया को सामान्य कामकाम में भाजपा पार्षदों की मिजाजपुर्सी करनी होगी, जो कि उन पर पहले से ही करने के आरोप लगते रहे हैं। वैसे विरोधी दल के पार्षदों को खुश करके रखने की परंपरा बाकोलिया के दोस्त भूतपूर्व नगर परिषद सभापति स्वर्गीय वीर कुमार के जमाने से ही चली आ रही है। बाकोलिया भी उसी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। कदाचित इसी वजह से भाजपा पार्षद दल की धार उसकी ताकत के मुताबिक तेज नहीं है। पिछले दिनों कार्यकाल के दो साल पूरे होने पर जब बाकोलिया ने उपलब्धियां गिनाई तो विरोध में भाजपा की ओर से आयोजित सद्बुद्धि यज्ञ फौरी विरोध बन कर रह गया। विरोध होने पर बाकोलिया की पेशानी पर एक भी सलवट न पडऩा इसका प्रमाण है। उन्होंने यज्ञ को बड़े ही हल्के फुल्के अंदाज में लिया। और कोई निगम होता तो बाकोलिया का जीना हराम हो जाता।
-तेजवानी गिरधर