शनिवार, 16 सितंबर 2017

राजपूतों के बाद अब सिंधी भी सरकार से नाराज

कुख्यात आनंदपाल एनकाउंटर को लेकर राजपूत समाज की नाराजगी अभी थमी ही नहीं है कि अब जयपुर में हुए उपद्रव के दौरान कथित तौर पर मारे गए भरत कोडवानी के परिजन को उचित मुआवजा नहीं दिए जाने को लेकर सिंधी समुदाय भी प्रदेश की भाजपा सरकार से नाराज हो रहा है। हालांकि पुलिस का दावा है कि उसकी मौत उपद्रव के दौरान नहीं हुई, मगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मौत का कारण नहीं पता लग पाने के कारण संशय बना हुआ है। सिंधी समुदाय का मानना है कि भरत की मृत्यु उपद्रव के दौरान ही हुई, इस कारण उसके परिजन को भी उतना ही मुआवजा मिलना चाहिए, जितना एक मुस्लिम युवक के परिजन को। उसमें भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर जम कर आक्रोष नजर आ रहा है। ज्यादा गुस्सा इस कारण है कि उसकी मौत उपद्रव वाले दिन ही हुई, जबकि इसकी जानकारी दो दिन बाद सामने आई। इसे इस रूप में लिया जा रहा है कि यह जानबूझ कर किया गया, ताकि मामला दब जाए। गुस्से की वजह ये भी बन रही है कि पुलिस यह मानने को ही तैयार नहीं है कि उसकी मौत उपद्रव के दौरान हुई। डीसीपी सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि भरत की मौत का रामगंज में हुए उपद्रव से कोई लेना-देना नहीं है। उसका शव उसके ही ई-रिक्शा में घटनास्थल से बहुत दूर माणक चौक के पास मिला था। दूसरी ओर एसएमएस के अधीक्षक डॉ. डी एस मीणा ने कहा कि प्रारंभिक जांच में भरत के शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। जांच के लिए विसरा एफएसएल को भेजा है। मौत धारदार हथियार, चोट, गोली लगने या अन्य किसी कारण से होने के सवाल पर वे बोले- पुलिस कमिश्नर को रिपोर्ट भेज दी है। वे ही बताएंगे।
बहरहाल, इस मुद्दे को लेकर सिंधी समुदाय लामबंद होता जा रहा है।  बाकायदा अपीलें की जा रही हैं कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए जिला व उपखंड स्तर पर ज्ञापन दे कर विरोध दर्ज करवाया जाए। सिंधी समुदाय से भाजपा का बहिष्कार करने का आह्वान किया जा रहा है। कुछ लोग इस मसले को इस रूप में भी उठाने लगे हैं कि जो भाजपा अब तक कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है, आज वही तुष्टिकरण करते हुए हिंदू युवक के मामले में भेदभाव बरत रही है। तुष्टिकरण को इस रूप में भी पुष्ट किया जा रहा है कि जिन लोगों ने पुलिस के टकराव कर जयपुर को हिंसा में धकेल दिया, उनके ही युवक के उपद्रव के दौरान माने जाने पर सरकार उसके परिजन को मुआवजा देने को मजबूर हो रही है। स्वाभाविक रूप से यह मुद्दा राजनीतिक तो हो ही रहा है, मगर हिंदूवादी भी सरकार के रवैये को लेकर तंज कस रहे हैं। विरोध करने वालों की भाषा तो बहुत कड़वी है, जिसकी पुनरावृत्ति यहां करना उचित नहीं, मगर उसका सार यही है कि वे वसुंधरा सरकार का बोरिया बिस्तर गोल करने तक की अपील कर रहे हैं, जिससे तुष्टिकरण की उम्मीद नहीं थी।
खैर, वस्तुस्थिति जो भी हो, मगर सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई। जिस प्रकार सिंधी समुदाय एकजुट हो रहा है, उससे भाजपा को अपना वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है। विधानसभा चुनाव से सवा साल पहले  इस प्रकार किसी समुदाय विशेष का रुष्ठ होना चिंता का विषय है ही। इसका नुकसान अजमेर लोकसभा सीट के लिए आगामी नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित उपचुनाव में भी हो सकता है, क्योंकि विशेष रूप से इस संसदीय क्षेत्र का अजमेर शहर सिंधी बहुल है।
-तेजवानी गिरधर
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