मंगलवार, 21 अगस्त 2012

लाइलाज है बांग्लादेशियों की घुसपैठ?

असम में हुई हिंसा और उसके बाद देश के कई भागों से असमियों के पलायन के साथ ही बांग्लोदेशियों की घुसपैठ की समस्या का मुद्दा फिर ज्वलंत हो उठा है। भाजपा ने तो बाकायदा इस मुद्दे पर अभियान तक छेड़ दिया है। ऐसे में एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि आखिर इस घुसपैठ का अंत कब होगा?
हालांकि यहां अवैध रूप से आए बांग्लादेशी यदा-कदा गिरफ्तार होते रहे हैं और पिछले पांच साल में ही तकरीबन ढ़ाई सौ पकड़े जा चुके है, मगर आज तक न तो इनकी आवाजाही बंद हुई है। और जो वर्षों पहले यहां आ कर बस गए, वे तो लाइलाज हैं ही। अब तो हालत ये हो गई है कि जब भी कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया पकड़ा जाता है तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता। अखबारों में भी इस खबर को उतना ही स्थान मिलता है, जितना किसी छोटी-मोटी दुर्घटना को।
असल में बांग्लादेशी दरगाह जियारत के बहाने यहां आते हंै और यहीं बसने की फिराक में रहते हैं। दरगाह जियारत के सिलसिले में देशभर के लोगों की रोजाना की आवाजाही और दरगाह इलाके की बसावट का फायदा उठा कर वे यहां आसानी से घुल-मिल जाते हैं। हालांकि अधिसंख्य मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं, मगर कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। बांग्लादेशी घुसपैठिये नकली नोटों के साथ भी पकड़े जा चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि वे मादक पदार्थों के ट्रांजिट सेंटर बन चुके अजमेर में तस्करों के संपर्क में आते हैं और उनके लिए संदेश वाहक का काम करते हैं। दरगाह इलाके में अंडरवल्र्ड की गतिविधियां भी जारी हैं और शातिर अपराधी यहां फरारी काटने चले आते हैं।
देश के किसी और इलाके में घूमने का वीजा बनवा कर अचानक दरगाह जियारत के बहाने अजमेर आने वालों की तो लंबी फेहरिश्त है, लेकिन आज तक पता नहीं लगा कि आखिर ऐसा संभव कैसे हो गया? सीमा पर भी इतनी लापरवाही बरती जाती है कि ऐसे लोगों को खदेडऩे के बाद वे फिर वे आ जाते हैं। कानून की स्थिति ये है कि देश निकाला देने और आइंदा भारत न आने देने के लिए पाबंद करने के अलावा उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो पाती। साफ जाहिर है कि पाकिस्तान व बांग्लादेश से आने वाले लोगों को पता है कि उन्हें भविष्य में भारत न आने देने के लिए सिर्फ पाबंद भर किया जाएगा। इसी कारण भारतीय कानून के प्रति वे कितने पूरी तरह से लापरवाह हैं। पिछले तीस साल में बांग्लादेशियों की पहचान कर इन्हें खदेडऩे की कार्यवाही पर अनेक बार विचार किया गया, गिरफ्तारियां भी हुईं, लेकिन आज तक उस पर ठीक से अमल नहीं किया गया। प्रशासन और पुलिस की लापरवाही किस हद को पार कर गई है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकतर बांग्लादेशियों ने राशनकार्ड बनवा लिए हैं। उन्होंने अपने मकानों की रजिस्ट्रियां तक करवा ली हैं। कई ने यहीं शादी कर ली और उनके बच्चे भी हैं। यहां तक कि राजनीति में भी सक्रिय हो गए हैं।
जब भी कोई आतंकी वारदात होती है तो पूरा प्रशासनिक तंत्र वर्षों से यहां जमे बांग्लादेशी घुसपैठियों की धरपकड़ करने में लग जाता है। तब बड़ा हल्ला होता है कि बांग्लादेशियों को खदेड़ा जाना चाहिए। प्रशासन तो सक्रिय होता ही है, हिंदूवादी संगठन भी सिर पर आसमान उठा लेते हैं। कुछ दिन मीडिया भी बारीक से बारीक बातों को उजागर करता है, मगर आखिर होता वही है, ढ़ाक के तीन पात। वजह स्पष्ट है यह समस्या जितनी प्रशासनिक नहीं, उससे कहीं अधिक राजनीतिक है। एक मात्र यही वजह है जिस कारण आज तक बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से निजात नहीं मिल पाई है।  इसका एक उदाहरण देखिए। जब एक संदिग्ध बांग्लादेशी घुसपैठिया यूसुफ पकड़ा गया तो पता लगा कि उसकी बीवी श्रीमती जीनत बानो कांग्रेस में सक्रिय है। वह भी शहर महिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष पद पर। हालांकि शहर महिला कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सुरजीत कपूर ने पल्ला झाड़ते हुए साफ कर दिया कि उसे अनैतिक गतिविधियों के कारण डेढ़ माह पहले ही पार्टी से निकाला जा चुका है। हो सकता है उनका दावा सही हो, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या किसी को पार्टी में शामिल करते वक्त और कोई महत्वपूर्ण पद देते समय इस बात का ध्यान रखा ही नहीं जाता कि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या चरित्र कैसा है? एक बांग्लादेशी घुसपैठिये की बीवी पार्टी में घुसपैठ कर जाए और संगठन चलाने वालों को हवा तक न लगे, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा? बांग्लादेशी घुसपैठियों के राजनीतिक संबंधों का यह अकेला मामला नहीं है। कुछ साल पहले जब शहर युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सैयद गुलाम मुस्तफा ने गरीबों के राशन कार्ड बनवाने का अभियान चलाया था, तब भी यह उजागर हुआ था कि कुछ बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अभियान का लाभ उठाने की कोशिश की है। ऐसे में संगठन को अपना दामन बचाने के लिए अभियान को समेटना पड़ा था। इन दो घटनाओं से स्पष्ट है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये पनप ही इस कारण रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है। और यह भी साफ है कि जब तक इस प्रकार के संरक्षण को खत्म नहीं किया जाता, घुसपैठ की समस्या से निजात नहीं मिल पाएगी।
-तेजवानी गिरधर