मंगलवार, 8 मार्च 2011

तीन के नंबर से अजमेर का काफी पुराना नाता रहा है

शुरू से ही तीन के आंकड़े का अजमेर से काफी पुराना रिश्ता-नाता रहा है। आइएं इसको देखते हैं:-पृथ्वीराज चौहान के नाना महाराजा अजयपाल द्वारा बसाई गई और भोगौलिक रूप से राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन, तीनों ही दृष्टियों से बहुत ही अहम है। मुगलों के समय से ही यहां तीन के अंक का बड़ा महत्व रहा है। उस समय यहां तीन प्रसिद्ध स्थान थे, 1. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, 2. ढ़ाई दिन का झौंपड़ा और 3. अकबर का किला, जिसे आजकल मेगजीन के नाम से जाना जाता है। यही वह ऐतिहासिक स्थान है जहां ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर टॉमस रो ने मुगल सम्राट जहांगीर को अपने प्रमाण-पत्र सौंप कर हिन्दुस्तान में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी।
अजमेर की भौगोलिक बसावट तिकोनी है, जो तीन तरफ पहाड़ों 1. नाग पहाड़, 2. मदार पहाड़ और 3. तारागढ से घिरा हुआ है। यहां तीन ही झीलें हैं- 1. आनासागर, 2. फॉयसागर और पुष्कर। जहांगीर-शाहजहां के समय ही यहां आनासागर के किनारे बारहदरी एवं खामखा के तीन दरवाजों का निर्माण हुआ। यह तीन दरवाजे ख्वामख्वाह ही बनाये गये हैं या किसी खामेखां नामक मुगल सरदार के नाम पर बने हैं, यह खोज का विषय है, परन्तु दरवाजे तीन ही हैं, कोई भी देख सकता है। जिले के ब्यावर के पास ही खरवा नामक जगह है। वहां के ठाकुर गोपाल सिंहजी प्रसिद्ध क्रंातिकारी थे। उन्ही के राज में मोरसिंह नामक डाकू हुआ, जिनके लिए प्रसिद्ध था कि वह भी सिर्फ तीन कौमों 1. बनिया, 2.सुनार और 3.कलाल को ही लूटता था।
अजमेर को इस बात का गौरव है कि ब्रिटिश समय में यहां तीन प्रसिद्ध क्रंातिकारी 1.स्वामी कुमारानन्द 2.विजयसिंह पथिक, बिजौलिया किसान आन्दोलन के नेता एवं 3.अर्जुनलाल सेठी हुए, जिन्होंने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया था।
यूं तो हिंदी पत्रकारिता के लिए अजमेर राजस्थान का अग्रणी स्थान है, लेकिन शुरू में मुख्य रूप से तीन साप्ताहिक थे, 1. पं. विश्वदेव शर्मा का न्याय 2. कैलाश वर्णवाल का राष्ट्रवाणी और गोपाल भैया का भभक। बाद में न्याय दैनिक हो गया और साप्ताहिक में घीसूलाल जी का आजाद जुड़ गया। उस समय यहां हिन्दी के तीन ही प्रमुख दैनिक पढे जाते थे, 1. कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरीजी का दैनिक नवज्योति 2. न्याय और 3. हजारीलाल शर्मा, जयपुर का राष्ट्दूत।
आजादी के बाद पहले राजपुताना एवं फिर राजस्थान के निर्माण के समय अजमेर को सी स्टेट यानि तीसरी श्रेणी का राज्य बनाया गया, जिसके प्रथम कमिश्नर ए.डी. पंडित थे। प्रथम आम चुनाव, 1952 के समय यहां तीन प्रमुख राजनीतिक दल 1. कांग्रेस, 2. हिन्दू महासभा और 3. साम्यवादी थे। चुनाव के बाद इस राज्य के प्रथम कांग्रेसी मंत्रीमंडल में तीन ही मंत्री थे, 1. मुख्यमंत्री श्री हरीभाऊ उपाध्याय 2. गृहमंत्री श्री बालकृष्ण कौल एवं 3. शिक्षा मंत्री बृजमोहन लाल शर्मा। उस समय इस राज्य में तीन ही मुख्य शहर थे, 1. अजमेर 2. ब्यावर एवं 3. किशनगढ। नसीराबाद तो छावनी, बिजयनगर कस्बा और पुष्कर धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता था। नवम्बर 1956 में राजस्थान में विलय के समय ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनीतिक तीनों की महत्वता थी, लेकिन फिर भी इसे राजस्थान की राजधानी नहीं बनाया गया और मजे की बात देखिये कि उस समय भी इसे तीन संस्थान 1.रेवन्यू बोर्ड, 2.राजस्थान लोक सेवा आयोग एवं 3. शिक्षा बोर्ड देकर बहला दिया गया। यहां से तीन तरफ रेलवे लाइनें जाती थीं, जो पहले बीबी एंड सीआई एवं बाद में पश्चिम रेलवे के अंर्तगत होती थी। यहां रेलवे के तीन बड़े कारखाने 1. लोको 2. कैरिज तथा 3. सिगनल्स हुआ करते थे। दिलचस्प बात यह है कि उस समय यहां से तीन ओर ही मुख्य मुख्य सडक़ें जाती थी, 1.जयपुर-दिल्ली, 2.ब्यावर-अहमदाबाद और 3.नसीराबाद-रतलाम-इंदौर। उस समय अजमेर में तीन मुख्य कॉलेज थे, 1. मेयो कॉलेज 2. गर्वनमेंट कॉलेज और 3. डीएवी कॉलेज। शहर में मुख्य रूप से तीन व्यापारिक स्थल थे, 1. नयाबाजार 2. मदारगेट और 3. केसरगंज और नगर में तीन जगहों से पानी आता था, 1. गनाहेड़ा 2. फॉयसागर और 3. भांवता। मजे की बात देखिये कि शहर में तीन ही सिनेमा हॉल थे, 1. न्यू मैजिस्टिक 2. प्लाजा और 3. प्रभात और तीन ही नाटक-थियेटर इत्यादि के स्थल थे, 1. रेलवे बिसिट 2. रेलवे का ही कैरिज स्पोर्ट्स क्लब और 3. डिग्गी बाजार में रामायण मंडल। अजमेर शहर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां हिन्दुओं, मुसलमानों एवं जैनियों के पूजनीय स्थल तो हैं ही इसके अतिरिक्त पारसियों, सिक्खों एवं ईसाइयों के पूजा स्थल भी हैं। हिन्दुओं के देवी- देवताओं के पहाडिय़ों पर तीन प्रमुख मन्दिर 1. चामुन्डा माता, 2. बजरंगगढ एवं 3. बाबूगढ हैं। उस जमाने में यहां तीन ही चिकित्सालय, 1. विक्टोरिया अस्पताल, 2. कस्तूरबा अस्पताल और 3. लौंगिया अस्पताल थे। तीन ही सब्जी मंडियां, 1. ईदगाह 2. रामगंज और 3. आगरागेट थीं। अजमेर शहर का दिलचस्प इतिहास सबसे पहले हमें उर्दू में लिखित मीर मुश्ताक अली की डायरी, जिसे फुलेरा के मनसब ने हिन्दी में अनुवाद किया और जिसका कुछ अंश राजस्थान पत्रिका ने छापा था, में मिलता है। लेकिन अजमेर पर ही एक ऐतिहासिक पुस्तक कर्नल टॉड ने लिखी, दूसरी श्री हरविलास शारदा ने और अब तीसरी पुस्तक ‘अजमेर एट ए ग्लांस’ नाम से अजमेर के ही तीन व्यक्तियों, प्रसिद्ध पत्रकार श्री गिरधर तेजवानी एवं अन्य दो विद्वानों डा. सुरेश गर्ग एवं कंवल प्रकाश ने लिखी है। इससे स्पष्ट है कि राजस्थान की राजधानी का मामला हो, कमजोर राजनीतिक नेतृत्व का मसला हो या रेलवे का इतना महत्वपूर्ण कार्यस्थल होने के बावजूद उसको पीछे ढकेल दिया गया हो, यहां जनता का कोई वर्ग तीन तेरह नहीं करता और जैसा मिला, जितना मिला है, सन्तुष्ट रहता है।
यह लेख जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियंता ई. शिव शंकर गोयल ने लिखा है। वे मूलत: व्यंग्य लेखक हैं, लेकिन हाल ही उन्होंने यह लेख लिख कर मुझे भेजा है। आशा है आपको पसंद आएगा।
वे आजकल दिल्ली में रहते हैं। उनका संपर्क सूत्र है:- फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली-75.
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