गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

सरकारी शिक्षकों को सौंप दें समित शर्मा के हवाले


जयपुर में शिक्षा पर तैयार आरएफडी पर पैनल डिस्कशन में यह बात खुल कर सामने आई है कि सरकारी स्कूलों में दोयम दर्जे की पढ़ाई होती है और व्यवस्थाओं में गंभीर खामियां हैं। इस डिस्कशन में मुफ्त दवा योजना को सफलतापूर्वक लागू कर देशभर में नाम कमाने वाले राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के एमडी डॉ. समित शर्मा ने तो यहां तक कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आज सबसे बड़ी समस्या है। हम सरकारी स्कूलों में दोयम दर्जे की शिक्षा देकर बच्चों को निकाल रहे हैं। आज मजबूरी में ही कोई अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजता है। यह स्थिति क्यों पैदा हुई? निजी स्कूल में महीने के तीन से चार हजार रुपए लेने वाला शिक्षक कमिटमेंट से पढ़ाता है, वहीं सरकारी शिक्षक 20 से 25 हजार रु. लेता है, लेकिन पढ़ाता नहीं है। कहीं न कहीं हमारे सिस्टम में गंभीर खामी है, जिसे दूर करना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि जब वे नागौर में कलेक्टर था तो देखा कि जिले में शिक्षकों के वेतन पर ही 110 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। इतना पैसा मुझे दे दो तो ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड जैसी पढ़ाई करवा दूंगा।
इसी मौके पर अल्पसंख्यक मामलों के विभाग के प्रमुख सचिव सियाराम मीणा ने कहा कि हम 50 साल से शिक्षा की ही बात कर करते आ रहे हैं, लेकिन हुआ क्या? स्थिति सबके सामने है। शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) वीणा प्रधान ने कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति सबसे चिंता की बात है।
कुल मिला कर इस डिस्कशन से यह पूरी तरह से साफ हो चुका है कि हमारा स्कूली शिक्षा का ढ़ांचा पूरी तरह से सड़ चुका है। हो सकता है कि सरकारी स्कूलों के जाल के पक्ष में भी अनेक तर्क हों, मगर जितना पैसा इस पर खर्च हो रहा है, उसकी तुलना में परिणाम का प्रतिशत काफी कम है। और इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि सरकार स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाना पसंद करते हैं।
बहरहाल, डॉ. समित शर्मा के प्रस्ताव पर सरकार को गौर करना चाहिए। कम से कम एक बार उन्हें स्कूली शिक्षा सिस्टम को दुरुस्त करने का जिम्मा सौंप दिया जाना चाहिए। संभव है मुफ्त दवा योजना की तरह इस क्षेत्र में भी उनका फार्मूला कामयाब हो जाए। हालांकि ऐसा करना है कठिन क्योंकि पूरे राज्य में सबसे बड़ा सरकारी ढ़ांचा स्कूली शिक्षा का है, जिससे जुड़े शिक्षक संगठनों के माध्यम से सरकार पर हर वक्त दबाव बनाए रखते हैं। उनसे निपटना आसान काम नहीं है। आपको याद होगा कि भूतपूर्व मुख्यमंत्री बरकतुल्ला खां उन्हीं की हाय हाय में हार्ट अटैक से शहीद हो गए थे। पिछली अशोक गहलोत सरकार बेहतरीन काम करने के बावजूद शिक्षकों व राज्य कर्मचारियों के कारण निपट गई थी। गहलोत दुबारा शिक्षकों को छेडऩे की हिम्मत दिखा पाएंगे, इसकी संभावना कम ही है, मगर उन्हें पहले प्रयोग के तौर पर सुधार करने के लिए डॉ. समित शर्मा को प्रोजेक्ट बनाने को कहना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

मोहन नेता को नहीं करने दी अंदरकोट में नेतागिरी


मोहन नेता के नाम चर्चित मोहन लाल शर्मा ने कच्ची बस्ती फैडरेशन के अध्यक्ष के नाते अंदरकोट में भी कच्ची बस्ती पर संकट को लेकर बैठक की, मगर वहां के स्थानीय नेताओं ने उनकी दुकान नहीं चलने दी।
असल में जिला प्रशासन के निर्देश पर वन विभाग की 700 बीघा जमीन तलाशी के लिए किए जा रहे संयुक्त सर्वे के दूरगामी परिणामों पर विचार-विमर्श के लिए शर्मा ने अंदरकोट में बैठक आयोजित की। अंदरकोट में किसी बाहरी की नेतागिरी चलने नहीं दी जाती, सो मोहन नेता ने कुछ स्थानीय लोगों, जिनमें कि पूर्व पार्षद मुख्तयार अहमद नवाब का भाई व फैडरेशन का उपाध्यक्ष कदीर अहमद शामिल थे, की मदद से लोगों का इकट्ठा किया। जैसे ही इस बात की खबर पंचायत अंदरकोटियान को पता लगा, उसके पदाधिकारियोंं ने मौके पर आ कर आपत्ति जताई। पंचायत पदाधिकारियों का कहना था कि शर्मा कच्ची बस्ती के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। पंचायत सदर मंसूर खां, सचिव निसार शेख, वाहिद मोहम्मद, फकरुद्दीन, जाहिद खां, फिरोज खां, ऑडिटर एस एम अकबर आदि ने आरोप लगाया कि शर्मा लोगो को गुमराह कर रहे हैं। सदर मंसूर का कहना था कि अंदरकोट में कोई कच्ची बस्ती है ही नहीं। अंदरकोट में वन विभाग की जमीन तलाशने के लिए किए जा रहे सर्वे पर पंचायत की प्रशासन से बात हो चुकी है। लोगों को समझा दिया गया है कि यहां कोई मकान टूटने वाला नहीं है। इसके बावजूद काहे को फटे में टांग फंसा रहे हो।
ज्ञातव्य है कि इस मामले में पहले से ही शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने पहल करके प्रशासन से बात की और समस्या का ऐसा समाधान निकालने की कोशिश की, जिससे लोगों के मकान टूटने की नौबत न आए। प्रशासन भी स्थिति को समझते हुए नए सिरे से विचार कर रहा था कि मोहन नेता बीच में टपक पड़े। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि इन दिनों रलावता व मोहन नेता के बीच कैसे संंबंध हैं। वैसे भी अंदरकोटियान किसी निहित उद्देश्य के लिए किसी को वहां की नेतागिरी करने देना बर्दाश्त नहीं किया करते। उन्हें अपनी ताकत और कांग्रेस की सरपरस्ती का गुमान है, सो जैसे ही मोहन नेता ने बीच में पडऩे की कोशिश की तो उन्हें रोक दिया गया। मोहन नेता को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा। मोहन नेता लाख कहें कि वे फेडरेशन के अध्यक्ष के नाते वहां पहुंचे, मगर जब इलाके के लोगों को उनके सहारे की जरूरत ही नहीं है तो वे क्यों उन्हें वहां घुसपैठ करने देने वाले थे। ये तो वही बात हुई, कोई माने न माने जबरन लाडे की भुआ बनना।
-तेजवानी गिरधर