सोमवार, 8 दिसंबर 2014

अजमेर के मित्तल हॉस्पीटल के पास दिखा शेर?

सोशल मीडिया का किस प्रकार दुरुपयोग हो रहा है, इसका ताजा उदाहरण देखिए। 8 फरवरी 2014 की रात वाट्स एप पर एक वीडियो यह कह कर अनेक ग्रुप्स में चलता रहा कि अजमेर के मित्तल हॉस्पीटल के पास यह शेर घूम रहा था। स्वाभाविक सी बात है कि वीडियो को देख कर लोगों के मन में दहशत फैली। जानकारी मिलते ही मीडिया कर्मी भी ड्यूटी पर लग गए और कोशिश ये रही कि उसकी फोटो खींची जा सके। लाख कोशिश के बाद भी ऐसा संभव न हो पाया। वन महकमे को भी कहीं से पता लगा, मगर वे निश्चिंत थे क्योंकि उनकी जानकारी के अनुसार प्रदेश में एक भी शेर खुला हुआ नहीं है। वैसे बताते हैं कि यही वीडियो इससे पहले भी वायरल हुआ है, जिसमें बताया गया था कि यह जोधपुर में धूमता पाया गया है। जो कुछ भी हो, वाट्स एप पर इस प्रकार की हरकतें लोग मजे लेने की खातिर करते हैं, मगर वे यह नहीं सोचते कि इसके परिणाम क्या होंगे। अब देखना ये है कि प्रशासन इस प्रकार की हरकत पर कोई कार्यवाही करता है या यूं ही मजाक समझ कर छोड़ देता है।
वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए
http://youtu.be/J093e04ttEw 

रलावता के प्रदेश सचिव बनते ही शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद की भागदौड़ तेज

अजमेर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के प्रदेश कार्यकारिणी के गठन के साथ ही प्रदेश सचिन बनने के तुरंत बाद खाली होने वाले पद को लेकर स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की भागदौड़ तेज हो गई है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि नई नियुक्ति कब हो पाएगी, मगर चूंकि यह पद रिक्त होना अब सुनिश्चित हो गया है, इस कारण दावेदार नेताओं के मुंह में लार आना स्वाभाविक है।
ज्ञातव्य है कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद यह तय सा माना जा रहा था कि रलावता की इस पद से मुक्ति होगी ही, मगर चूंकि रद्दोबदल की थोड़ी सी भी सुगबुगाह नहीं थी, इस कारण सारे दावेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। रलावता भी यही कहते सुने जाते थे कि आगामी नगर निगम चुनाव भी उनकी ही देखरेख में होंगे।
जहां तक दावेदारी का सवाल है, हालांकि अजमेर दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुके प्रमुख समाजसेवी हेमंत भाटी ने अपनी ओर से कोई दावेदारी नहीं की है, मगर जिस तरह से पुराने स्थापित नेताओं को नजरअंदाज कर उन्हें टिकट दिया गया और लोकसभा चुनाव में भाटी ने जी-जान से सेवा की, आम धारणा यही है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की पहली पसंद वे ही हैं। इसके पीछे तर्क उनकी साधन संपन्नता व खुद की सशक्त टीम होने का दिया जाता है। जानकारी ये है कि उन्हें शहर अध्यक्ष पद संभालने का फौरी प्रस्ताव भी मिल चुका है, मगर फिलवक्त उन्होंने अपना मानस स्पष्ट नहीं किया है। कदाचित सचिन के जोर देने पर वे राजी भी हो जाएं। दूसरे प्रमुख दावेदार मौजूदा शहर उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल माने जाते हैं। उन्हें सचिन की कृपा से ही यह पद हासिल हुआ था। वे कांग्रेस से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और खांटी नेता माने जाते हैं। पायलट लॉबी के ही विजय जैन की भी खासी चर्चा है। इसी प्रकार भूतपूर्व शहर अध्यक्ष स्वर्गीय माणक चंद सोगानी के जमाने से महत्वपूर्ण पदों पर रहे प्रताप यादव की भी सशक्त दावेदारी मानी जा रही है। मगर सचिन के लिए समस्या ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने की है, जिसके प्रति सर्वस्वीकार्यता हो, सभी को साथ लेकर चल सके और साधन संपन्न हो। और सबसे बड़ी बात ये कि आगामी नगर निगम चुनाव में पार्टी की प्रतिष्ठा को फिर से कायम रख पाने में सक्षम हो। यूं तो कांग्रेस के सारे धड़ों को एकजुट करना सचिन के आसान नहीं होगा, मगर समझा जाता है कि वे भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के धड़ों को एक जाजम पर बैठा कर ऐसा संगठन बनाने की जुगत में हैं, जिसका कोई विरोध न कर सके।
-तेजवानी गिरधर

वसुंधरा से प्रो. जाट की दूरी के क्या मायने निकाले जाएं?

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के अजमेर दौरे के दौरान हाल तक राज्य के जलदाय मंत्री रहे व अब केन्द्र के मौजूदा जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट की गैर मौजूदगी के भाजपा नेता भले ही कोई जायज कारण गिनाएं, मगर राजनीतिक हलकों में यह जुगाली के सुपुर्द हो गया है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि प्रो. जाट ने वसुंधरा ने उनके केन्द्र में मंत्री बनने के बाद इस पहले दौरे में क्यों कन्नी काटी? चाहे कैसी भी मजबूरी रही हो, मगर जब केन्द्र ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है, और उसके बाद मुख्यमंत्री पहली बार अजमेर आई हैं व जाहिर तौर पर इस मौके पर अजमेर के सभी प्रमुख नेता व प्रशासन का पूरा लवाजमा मौजूद रहेगा तो क्या उनका यहां उपस्थित रहना जरूरी नहीं था, ताकि उस पर कोई ठोस चर्चा हो जाती? सवाल उठ रहे हैं कि क्या केन्द्र में मंत्री बनने के लिए ऐन वक्त पर पाला बदलने की कानाफूसियों व उनकी इस दूरी के बीच कोई अंतर्संबंध है? गर भाजपा वसुंधरा व प्रो. जाट के बीच हाल ही बनी दूरी को कोरी कपोल कल्पित चर्चा मानती है तो क्या यह जरूरी नहीं था कि उस कथित भ्रांति को ही दूर करने के लिए ही प्रो. जाट को यहां आना चाहिए था? क्या भाजपा के थिंक टैंकरों को इस बात की कत्तई परवाह नहीं कि प्रो. जाट की इस अनुपस्थिति से आम जन में गलत संदेश जाएगा? क्या उन्हें इसकी चिंता भी नहीं कि इससे भाजपा कार्यकर्ताओं में भी मतभेदों का कौतूहल जागेगा? कौतुहल ही क्यों गुटबाजी को भी बढ़ावा मिल सकता है।
यहां आपको बता दें कि पिछले दिनों जब काफी जद्दोजहद के बाद प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला था तो राजनीतिक हलकों यह चर्चा आम थी कि उन्हें इसके लिए ऐन वक्त पर पाला ही बदलना पड़ा। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रो. जाट वसुंधरा के खासमखास माने जाते रहे हैं और उन्हीं कहने पर उन्होंने राज्य में केबीनेट मंत्री पद का मोह त्याग कर लोकसभा चुनाव लड़ा। स्वाभाविक रूप से इस वादे के बाद कि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें जरूर मंत्री बनवाएंगी। मगर सूत्र लगातार ये ही बताते रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व वसुंधरा के बीच जो ट्यूनिंग बिगड़ी है, उसके चलते प्रो. जाट का मंत्री बनना बेहद कठिन हो गया है। इसी दौरान प्रो. जाट ने जिस प्रकार मोदी के खासमखास कथित हनुमान पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर से मेलजोल बढ़ा दिया और प्रो. जाट के मंत्री बनने के पीछे माथुर की पैरवी को ही अहम माना जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट की अनुपस्थिति कोई यूं ही चर्चा का विषय नहीं बनी है। उन्हें कोई वसुंधरा की लटकन के रूप में थोड़े ही घूमना था, उन्हें बाकायदा जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में आईसीयू यूनिट के लोकार्पण और  तोपदड़ा स्थित आदर्श आंगनबाड़ी केन्द्र के शुभारंभ समारोहों में विधिवत निमंत्रण मिला हुआ था। यहां तक कि दोनों कार्यक्रमों के बोर्डों पर भी उनका नाम लिखा था। जानकारी के अनुसार प्रशासन के स्तर पर भी उनका निमंत्रण दिया गया था। वसुंधरा के दौरे से एक दिन पहले जब प्रो. जाट अजमेर आए तो यही माना गया कि वे उनके साथ रहने के लिए ही अजमेर आए हैं, मगर वे दौरे के दिन केकड़ी होते हुए फागी की ओर चले गए। संभव है उनकी गैर मौजूदगी की टीका करने को बाल की खाल निकालना माना जाए, मगर राजनीतिक हलकों में हो रही फुसफुसाहट को भला कौन रोक पाएगा?
-तेजवानी गिरधर