रविवार, 9 जून 2013

यानि कि पुष्कर सीट पर अड़ा रहेगा रावत समाज

हाल ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे के सुराज संकल्प यात्रा के दौरान पुष्कर पड़ाव के दौरान जिस प्रकार रावत समाज ने एक बार फिर पुष्कर विधानसभा सीट पर अपना दमदार दावा ठोका है, उससे लगता है कि समाज अब पीछे हटने वाला नहीं है। समाज ने जोर दे कर कहा है कि पुष्कर विधानसभा रावत बाहुल्य क्षेत्र है तथा चुनाव में प्रत्याशी की हार-जीत का फैसला रावत समाज ही तय करता है। दावेदार समुंद्र सिंह ने तो बाकायदा बायो-डाटा देते हुए टिकट की मांग की। उनके अतिरिक्त दावेदारी करने वालों में मुख्य रूप से भाजपा युवामोर्चा के प्रदेश मंत्री व श्रीनगर मंडल अध्यक्ष सुरेश सिंह रावत, एडवोकेट अशोक सिंह रावत, राजेंद्र सिंह रावत आदि भी शामिल हैं। अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत भी एक दावेदार माने जाते हैं।
रावत समाज की इस दावेदारी के संदर्भ में आपको बता दें कि कुछ दिन पहले तो समाज की ओर से चेतावनी तक दी गई थी कि अगर कांग्रेस व भाजपा ने टिकट नहीं दी तो समाज तीसरे मोर्चे का समर्थन कर किया जाएगा। बूढ़ा पुष्कर में मत्स्य जयंती पर आयोजित समारोह में राजस्थान रावत महासभा नवयुवक मंडल के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट अशोक सिंह रावत गोवलिया सहित मंडल के प्रदेश महामंत्री सुरेशसिंह मोहमी, प्रदेश संयोजक एडवोकेट महेन्द्र सिंह कानस, महासभा के प्रदेश मंत्री व जिला परिषद सदस्य राजेंद्र सिंह रावत, फूलसिंह, सेवा सिंह, शक्ति सिंह, ओमप्रकाश रावत, उप जिला प्रमुख ताराचंद रावत आदि ने इस बारे में एकजुटता दिखाई। ज्ञातव्य है कि इससे पहले भी पुष्कर स्थित रावत समाज के मंदिर में रावत महासभा राजस्थान की आमसभा में प्रदेश के 15 रावत बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों से टिकट की दावेदारी का फैसला किया गया था। रावत नेताओं के रुख से यह साफ है कि वे ब्यावर सहित पुष्कर में भी समाज के किसी व्यक्ति को टिकट देने पर अड़ेंगे।
उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में ब्यावर से टिकट मिलने के बावजूद ज्यादा टिकटों की मांग कर रहे रावतों ने भाजपा को बड़ा झटका दिया था। रावतों की बगावत के कारण भाजपा को पुष्कर, नसीराबाद और मसूदा सीट से हाथ धोना पड़ा था। पुष्कर में भाजपा के बागी श्रवण सिंह रावत के मैदान में आ डटने के कारण भाजपा के भंवर सिंह पलाड़ा को हार का सामना करना पड़ा। मसूदा में ग्यारसीलाल रावत के निर्दलीय रूप में मैदान में उतरने के कारण भाजपा के नवीन शर्मा हार गए थे। नसीराबाद में रावत समाज के शक्तिसिंह की वजह से प्रो. सांवरलाल जाट हार गए। स्पष्ट है कि पिछले चुनाव में जो झटका रावत समाज ने दिया, उसी के प्लेटफार्म पर खड़े हो कर अब फिर दावेदारी की हुंकार भरी जा रही है। समाज अजमेर जिले में कम से कम दो सीटों पर तो कब्जा करना चाहेगा ही। ऐसे में पहले से कब्जे वाली ब्यावर सीट पर टिकट की प्रबल दावेदारी तो होगी ही, पुष्कर पर भी वे दमदार तरीके से दावा करेंगे।
-तेजवानी गिरधर

न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी पहले ही भांप गई थीं?

लैंड फॉर लैंड के मामले में प्लॉट और रुपए मांगने के मामले में नगर सुधार न्यास की जिन पूर्व सचिव श्रीमती पुष्पा सत्यानी के लिए भी एक प्लॉट मांगने का टेलीफोनिक वार्ता में जिक्र एसीबी की जांच में आ रहा है, वे वहीं हैं, जो चंद माह में ही अजमेर से रुखसत हो गई थीं। तब इस पर आश्चर्य भी जताया गया था।
अपुन ने तो इस बारे में पहले ही लिख दिया था। असल में उन्हें न्यास सदर नरेन शहाणी भगत अपनी सुविधा के लिए यहां ले कर आए थे। चंद माह में ही जब वे विवादित होने लगीं तो उनका तबादला हो गया। तब दो बातें उभरी थीं। एक ये कि क्या वे विवाद की वजह से हटाईं गईं और दूसरा ये कि खुद उन्होंने ही यहां से जाने की इच्छा जताई थी।
जहां तक विवाद का सवाल है, वे नियमन के एक मामले में भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल के निशाने पर आ गई थीं। उन्हें मजबूरी में नियमन रद्द करना पड़ा था। वस्तुत: श्रीमती भदेल ने भगवान गंज स्थित 2421 वर्ग गज जमीन का मामला उठाया था। मामला ये था कि जयपुर के रामनगर, सोडाला निवासी मीरा छतवानी ने भगवान गंज स्थित खसरा संख्या 5237 की 2421 वर्ग जमीन का नियमन करने के लिए आवेदन किया था। यूआईटी ने 18 जुलाई को आवेदन मंजूर कर नियमन आदेश जारी कर दिए। यहां तक कि नियमन राशि जमा कर पट्टा भी जारी कर दिया गया और सब रजिस्ट्रार के यहां से रजिस्टर्ड हो गया। इस पर विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने इस नियमन में भारी अनियमितता बताते हुए यूआईटी पर भू माफियाओं को उपकृत करने का आरोप लगाया। इस पर न्यास सदर नरेन शहानी भगत ने तुरंत जांच के आदेश दिए और स्वयं सचिव श्रीमती सत्यानी को ही नियमन रद्द करने के आदेश जारी करने पड़े। इस मामले में न्यास की बड़ी भारी फजीहत हुई। इस प्रकरण के साथ ही पुष्पा सत्यानी संदेह के घेरे में आ गई हैं और आशंका व्यक्त की जा रही थी कि अगर वे यहीं जमी रहीं तो भगत के कार्यकाल का सत्यानाश कर देंगी। ऐसे में सरकार ने उन्हें यहां से हटाना ही बेहतर समझा।
प्रकरण का दूसरा पहलु ये है कि असल में वे भांप गई थीं कि अजमेर नगर सुधार न्यास में काम करना बहुत कठिन है। कार्यभार संभाले दो-तीन माह ही हुए थे कि मीडिया की तीखी नजर के चलते परेशान हो गईं। उन्होंने कहना शुरू कर दिया था कि अजमेर में तो काम करना संभव ही नहीं है। यहां के लोग कुछ करने ही नहीं देना चाहते। केवल हर काम में घोचा करते हैं।
आपको याद होगा कि मीडिया के दबाव की वजह से ही स्वायत्त शासन विभाग व नगरीय विकास विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव जी. एस. संधु ने श्रीमती पुष्पा सत्यानी को नसीहत दी कि वे आवासीय योजनाओं में मकानों के व्यावसायिक भू उपयोग परिवर्तन नहीं करें। नतीजतन कमाई का एक जरिया बंद हो गया। इसी प्रकार पत्रकार संजय माथुर की रिपोर्ट पर भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने अफोर्डेबल स्कीम के तहत आवास बनाने की योजना में की जा रही नियमों की अनदेखी का मसला सरकार के सामने उठाया और उसे बंद करने के आदेश हो गए। इसमें भी अच्छी खासी आमदमी होने की उम्मीद थी, जिस पर पानी फिर गया।
बहरहाल, पुष्पा सत्यानी के जल्द यहां से रुखसत होने की जो भी वजह हो, मगर इतना तो तय सा लगता है कि वे यहां के हालात को अच्छी तरह से भांप गई थीं। अब ये संयोग ही है कि उनके जाने के बाद ही न्यास में चल रहे गोरखधंधे का भांडा फूटा है, जिसमें जिक्र आ रहा है कि उन्हें भी एक प्लाट दिया जाना था।
-तेजवानी गिरधर