बुधवार, 30 मई 2012

शुक्रिया रासासिंह जी, बंद टाल कर अच्छा किया

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की पहल पर दी प्रदेश आलाकमान ने दी अनुमति
पेट्रोल के दाम में भारी बढ़ोत्तरी के विरोध में भाजपा नीत एनडीए के राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत अजमेर शहर जिला भाजपा की ओर से 31 मई को आहूत अजमेर बंद कराने के ऐलान को प्रदेश भाजपा ने जायरीन की धार्मिक भावनाओं में मद्देनजर वापस लेने की अनुमति दे दी। यहां उल्लेखनीय है कि शहर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष सैयद इब्राहिम फखर व शहर जिला अध्यक्ष शफी बक्श सहित अनेक अल्पसंख्यकों व व्यापारियों ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी से आग्रह किया था कि दरगाह शरीफ में बड़े कुल की रस्म अदा होने के सबब देश-विदेश से शरीक होने आये जायरीन की परेशानी को ध्यान में रखते हुए अजमेर को बंद से मुक्त रखा जाए। इस विषय पर शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने भी कोर कमेटी के सदस्यों से सलाह मश्विरा किया और सभी का यही कहना था कि बंद का आह्वान वापस लिया जाना चाहिये। स्वयं रासासिंह जी ने भी इस लेखक को फोन कर बताया कि आपका सुझाव बिलकुल ठीक है और हमने शहर के हित में उसे स्वीकार कर लिया है।>
ज्ञातव्य है कि अजमेरनामा के इसी कालम के अंतर्गत शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत से अपेक्षा की गई थी कि जायरीन व व्यापारियों की परेशानी के मद्देनजर बंद पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। जाहिर सी बात है कि अगर बंद किया जाता तो जायरीन को तो भारी परेशानी होती ही, व्यापारियों की भी एक दिन की कमाई मारी जाती। बंद को कामयाब करना भी कठिन ही होता, क्योंकि व्यापारी, विशेष रूप से मेला क्षेत्र के व्यापारी तो असहयोग की मुद्रा में खड़े हो जाते। इसका संकेत व्यापार महासंघ के अध्यक्ष मोहन लाल शर्मा ने यह कह कर दे दिया था कि उर्स मेला क्षेत्र को बंद से मुक्त रखा जाना चाहिए। हालांकि यह भी एक विकल्प था, मगर यह आसान नहीं था। वह पूरी तरह से अव्यावहारिक था। वजह साफ है। विश्राम स्थलियों पर ठहरे जायरीन आखिर किस प्रकार दरगाह में बड़े कुल की रस्म में जाते और लौटने वाले जायरीन किस साधन से बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पहुंचते।
बहरहाल, अब जब कि भाजपा ने बंद नहीं करने का निर्णय किया है तो दरगाह बाजार, नला बाजार, देहली गेट बाहर, मदार गेट, पड़ाव व कवंडसपुरा के दुकानदारों को भारी राहत मिली है, वरना उनकी एक दिन की कमाई मारी जाती। वस्तुत: इन इलाकों की होटल वाले व दुकानदार उर्स मेले के दौरान ही अच्छी खासी कमाई करते हैं, फिर भले ही पूरा साल मंदी रहे। बंद होता तो सबसे ज्यादा मार उन दुकानदारों पर पड़ती, जिन्होंने भारी किराया एडवांस में देकर अस्थाई दुकानें खोल रखी हैं। आटो रिक्शा वाले भी तकलीफ पाते, क्योंकि विश्राम स्थलियों से दरगाह तक जायरीन को लाने ले जाने में उनको अच्छी खासी कमाई होती है। उनकी भी एक दिन की कमाई मारी जाती, जायरीन परेशान होगा, सो अलग।
बंद का आह्वान वापस लेने से प्रशासन ने भी राहत की सांस ली है। जिला कलेक्टर मंजू राजपाल ने तो बाकायदा मजिस्टे्रट भी तैनात कर दिए थे। दरअसल प्रशासन के लिए बंद के दौरान कानून व्यवस्था को बनाए रखना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण होता। अजमेर पहले से ही संवेदनशील शहर की श्रेणी में आता है, उर्स में विशेष रूप से, और अगर कोई बंद समर्थक उत्साह में आ कर या कोई असमाजिक तत्व किसी जायरीन के साथ खुदानखास्ता बदसलूकी कर देता व मामला बिगड़ जाता तो उसे संभलना बेहद कठिन होता। यह स्थिति स्वयं भाजपा के लिए भी सुखद नहीं होती।
कुल मिला कर अजमेर में बंद का आह्वान लिया जाना शहर के हित में है। वैसे बेहतर ये होता कि इसमें पहल रासासिंह जी करते तो भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के पदाधिकारियों को सीधे प्रदेश अध्यक्ष से आग्रह न करना पड़ता और न ही प्रेस कांफ्रेंस की नौबत नहीं आती। खैर, अंत भला सो भला।>
-तेजवानी गिरधर
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