बुधवार, 30 मई 2012

शुक्रिया रासासिंह जी, बंद टाल कर अच्छा किया

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की पहल पर दी प्रदेश आलाकमान ने दी अनुमति
पेट्रोल के दाम में भारी बढ़ोत्तरी के विरोध में भाजपा नीत एनडीए के राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत अजमेर शहर जिला भाजपा की ओर से 31 मई को आहूत अजमेर बंद कराने के ऐलान को प्रदेश भाजपा ने जायरीन की धार्मिक भावनाओं में मद्देनजर वापस लेने की अनुमति दे दी। यहां उल्लेखनीय है कि शहर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष सैयद इब्राहिम फखर व शहर जिला अध्यक्ष शफी बक्श सहित अनेक अल्पसंख्यकों व व्यापारियों ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी से आग्रह किया था कि दरगाह शरीफ में बड़े कुल की रस्म अदा होने के सबब देश-विदेश से शरीक होने आये जायरीन की परेशानी को ध्यान में रखते हुए अजमेर को बंद से मुक्त रखा जाए। इस विषय पर शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने भी कोर कमेटी के सदस्यों से सलाह मश्विरा किया और सभी का यही कहना था कि बंद का आह्वान वापस लिया जाना चाहिये। स्वयं रासासिंह जी ने भी इस लेखक को फोन कर बताया कि आपका सुझाव बिलकुल ठीक है और हमने शहर के हित में उसे स्वीकार कर लिया है।>
ज्ञातव्य है कि अजमेरनामा के इसी कालम के अंतर्गत शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत से अपेक्षा की गई थी कि जायरीन व व्यापारियों की परेशानी के मद्देनजर बंद पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। जाहिर सी बात है कि अगर बंद किया जाता तो जायरीन को तो भारी परेशानी होती ही, व्यापारियों की भी एक दिन की कमाई मारी जाती। बंद को कामयाब करना भी कठिन ही होता, क्योंकि व्यापारी, विशेष रूप से मेला क्षेत्र के व्यापारी तो असहयोग की मुद्रा में खड़े हो जाते। इसका संकेत व्यापार महासंघ के अध्यक्ष मोहन लाल शर्मा ने यह कह कर दे दिया था कि उर्स मेला क्षेत्र को बंद से मुक्त रखा जाना चाहिए। हालांकि यह भी एक विकल्प था, मगर यह आसान नहीं था। वह पूरी तरह से अव्यावहारिक था। वजह साफ है। विश्राम स्थलियों पर ठहरे जायरीन आखिर किस प्रकार दरगाह में बड़े कुल की रस्म में जाते और लौटने वाले जायरीन किस साधन से बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पहुंचते।
बहरहाल, अब जब कि भाजपा ने बंद नहीं करने का निर्णय किया है तो दरगाह बाजार, नला बाजार, देहली गेट बाहर, मदार गेट, पड़ाव व कवंडसपुरा के दुकानदारों को भारी राहत मिली है, वरना उनकी एक दिन की कमाई मारी जाती। वस्तुत: इन इलाकों की होटल वाले व दुकानदार उर्स मेले के दौरान ही अच्छी खासी कमाई करते हैं, फिर भले ही पूरा साल मंदी रहे। बंद होता तो सबसे ज्यादा मार उन दुकानदारों पर पड़ती, जिन्होंने भारी किराया एडवांस में देकर अस्थाई दुकानें खोल रखी हैं। आटो रिक्शा वाले भी तकलीफ पाते, क्योंकि विश्राम स्थलियों से दरगाह तक जायरीन को लाने ले जाने में उनको अच्छी खासी कमाई होती है। उनकी भी एक दिन की कमाई मारी जाती, जायरीन परेशान होगा, सो अलग।
बंद का आह्वान वापस लेने से प्रशासन ने भी राहत की सांस ली है। जिला कलेक्टर मंजू राजपाल ने तो बाकायदा मजिस्टे्रट भी तैनात कर दिए थे। दरअसल प्रशासन के लिए बंद के दौरान कानून व्यवस्था को बनाए रखना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण होता। अजमेर पहले से ही संवेदनशील शहर की श्रेणी में आता है, उर्स में विशेष रूप से, और अगर कोई बंद समर्थक उत्साह में आ कर या कोई असमाजिक तत्व किसी जायरीन के साथ खुदानखास्ता बदसलूकी कर देता व मामला बिगड़ जाता तो उसे संभलना बेहद कठिन होता। यह स्थिति स्वयं भाजपा के लिए भी सुखद नहीं होती।
कुल मिला कर अजमेर में बंद का आह्वान लिया जाना शहर के हित में है। वैसे बेहतर ये होता कि इसमें पहल रासासिंह जी करते तो भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के पदाधिकारियों को सीधे प्रदेश अध्यक्ष से आग्रह न करना पड़ता और न ही प्रेस कांफ्रेंस की नौबत नहीं आती। खैर, अंत भला सो भला।>
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

मंगलवार, 29 मई 2012

अब जगी ब्यावर को जिला बनाने की उम्मीद

प्रदेश में नए जिलों के गठन पर सरकार को सुझाव देने के लिए सेवानिवृत्त हाल ही आईएएस अधिकारी जी एस संधू की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है, जो कि 30 सितंबर तक सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। ज्ञातव्य है कि नए प्रस्तावित जिलों में ब्यावर का नाम भी है। इसकी मांग बहुत पुरानी है और कांग्रेस व भाजपा, दोनों के ही नेताओं ने चुनाव के दौरान वोट हासिल करने के लिए सरकार बनने पर इसे पूरा करने का आश्वासन दिया, मगर हुआ कुछ नहीं। अब जबकि इसके लिए समिति का गठन हो गया है, एक बार फिर उम्मीद जगी है कि ब्यावर वासियों का सपना साकार हो सकेगा। यहां ज्ञातव्य है कि समिति को जिला बनाने की मांग की पृष्ठभूमि या प्रस्तावना, पुनर्गठन का औचित्य या आवश्यकता, भौगोलिक विवरण, जनसंख्या संबंधी घटक, वर्तमान में उपलब्ध आधारभूत सुविधाएं और संसाधन, प्रशासनिक दृष्टि से जरूरत, प्रस्तावित जिले का प्रशासनिक ढांचा, जनता की मांग, जनप्रतिनिधियों का मत, आम लोगों से आपत्तियां, सुझाव, ज्ञापन और प्रस्ताव लेना, वित्तीय भार और स्थान विशेष की आवश्यकता और विशेषताओं को देखते हुए अन्य तथ्य, मूल जिले व प्रस्तावित जिले में समग्र रूप से संतुलन आदि पर रिपोर्ट बनानी है।
इस रिपोर्ट में मांगी गई जानकारियां ब्यावर निवासी जागरूक नागरिक सेवानिवृत्त बैंक कर्मी श्री वासुदेव मंगल ने बहुत पहले की अपनी वेब साइट www.beawarhistory.com में दे दी थीं। वे इस वक्त बहुत प्रासंगिक हैं।
प्रस्तुत है उनकी रिपोर्ट:-
1. स्थापना से ही ब्यावर - मेरवाड़ा स्टेट रहा 100 वर्ष तक।
2. ब्यावर भारत में अंगे्रजी राज में केन्द्र शासित प्रदेश रहा।
3. स्वतन्त्र भारत का भी केन्द्रशासित प्रदेश रहा।
4. 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक से श्रेणी का भारतवर्ष का अजमेर के साथ मेरवाड़ा नाम से अजमेर मेरवाड़ा स श्रेणी का स्वतन्त्र राज्य रहा।
5. 1 नवम्बर 1956 को राजस्थान प्रदेश का सबसे बड़ा उपखण्ड बना जिसमें दो पंचायत समिति, 71 ग्राम पंचायतें व 360 राजस्व गांव रहे।
6. स्थापना से ही ऊन, रूई, सर्राफा व्यापार वायदा व हाजिर अनाज की राष्ट्रीय स्तर की मण्डी रही।
7. सूती कपड़े की तीन मिलों के कारण राजपूताना का मेनचेस्टर रहा। साथ ही 15-20 कॉटन जिनिंग व पे्रसिंग फैक्ट्रिज भी थी।
8. राजस्थान के मध्य में स्थित होने के कारण यह यातायात रेल व सड़क मार्ग और दूर संचार का प्रमुख केन्द्र है।
9. भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में ब्यावर के महत्वपूर्ण योगदान के साथ अग्रणी स्थान रहा है।
10. ब्यावर से कांगे्रस का सक्रिय आन्दोलन 1920 से आरम्भ हुआ।
11. ट्रेड यूनियन गतिविधियों का जनक रहा है।
12. सूचना के अधिकार के सफल संचालन का श्रेय ब्यावर को ही प्राप्त है।
13. जग प्रसिद्ध स्वादिष्ट व्यन्जन तिल पपड़ी का शहर।
14. धार्मिक सहिष्णुता का प्रमुख शहर।
15.दो राज्य स्तरीय प्रसिद्ध मेलों का शहर-लोक देवता तेजाजी महाराज व गुलाल का मन भावन बादशाह मेला।
16. आस-पास के क्षेत्र रायपुर, जैतारण, बदनोर सहित लगभग आठ लाख निवासियों का क्षेत्र।
17.बहमूल्य अनेक प्रकार की खनिज सम्पदा वाली क्षेत्र।
18. नैसर्गिक रावली अभ्यारण्य का समीवर्ती शहर कामली घाट व जारम घाट के साथ-साथ।
19.समीपवर्ती 3075 फीट ऊंचाई वाली ऐतिहासिक टाटगढ़ पर्वत की पीक चोटी।
20. समीपवर्ती मांगलियावास के कल्पवृक्ष अजमेर, पुष्कर, जोधपुर, जयपुर, रणकपुर, उदयपुर, चित्तौड़ पर्यटन स्थानों का केन्द्रीय स्थल।
21. शिक्षा और चिकित्सा का प्रमुख केन्द्र।
22. यहा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 14 आरम्भ होकर काण्डला बन्दरगाह चार सौ किलोमीटर जाता है।
23. ब्यावर में नगर सुधार न्यास की स्थापना 1975 में की गई, जिसे 1978 में हटा दिया गया।
24. ब्यावर में ए.डी.एम. सहायक कलक्टर का पद सन 2002 में सृजित किया गया, परन्तु एक बार नियुक्ति के पश्चात सात साल से यह पद भी रिक्त चला आ रहा है।
25.ब्यावर में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का कार्यालय 1 नवम्बर 1956 को स्थापित किया गया था, जिसे बिना कारण के 50 वर्षों बाद सन् 2006 में अचानक हटा दिया गया, जबकि ब्यावर आस-पास के लगभग 400 गांवों का एक्सीडेन्ट जोन है, जहां पर सन 1954 स अ श्रेणी का अमृतकोर चिकित्सालय कार्यरत है।
26.सनातन धर्म राजकीय महाविद्यालय, ब्यावर सन 1932 से राजपूताना का सबसे पुराना कामर्स कालेज है, जहां से विधि स्नातक की पढ़ाई हटा दी गई। अत: ला क्लासेज पुन: लगाई जानी चाहिये।
27. ब्यावर को जिला बनाने पर लगभग पांच पंचायत समिति, छह उपखण्ड, एक सौ पच्चीस ग्राम पंचायतें, पांच सौ से ज्यादा राजस्व गांव आयेंगे, जिससे इस प्रस्तावित जिले के चारों ओर के लगभग आठ लाख क्षेत्रिय निवासी लाभान्वित होंगे।
28.राज्य सरकार व कन्द्रीय सरकार के राजस्व प्राप्ति का भरपूर क्षेत्र। लगभग हजार आठ सौ करोड़ प्रति वर्ष एक्साइज व अन्य राजस्व।
29. उप-निदेशक जिला कृषि कार्यालय
30. रोजगार कार्यालय
31. उद्योग कार्यालय
32. सहायक जनसम्पर्क कार्यालय
33. जिला उपकारागृह
34.जिला कोष कार्यालय
35. चुनाव कार्यालय
36.प्रावधिक बीमा पेंशन कार्यालय
37. श्रम विभाग कार्यालय
38. क्षय निवारण केन्द्र
39. नर्सेज प्रशिक्षण केन्द्र
40. अ श्रेणी अमृतकौर हॉस्पिटल एवं चालिस निजी क्लिनिक
41. अ श्रेणी चांदमल मोदी आयुवेर्दिक औषधालय एवं छोटे बड़े दस ओषधालय
42. स्नात्तकोत्तर सं. ध. राजकीय महाविद्यालय
43. संस्कृत महाविद्यालय
44. स्नातक एस एम एस शैषणिक प्रशिक्षण महाविद्यालय
45. वर्धमान महिला महाविद्यालय
46. डी ए वी बालिका महाविद्यालय एवं लगभग एक सौ पचास छोटी-बड़ी स्कूलें सरकारी एवं निजी
47. केन्द्रीय विद्यालय एवं आई. टी. आई. कॉलेज
48. डाक अधीक्षक कार्यालय
49.अतिरिक्त पुलिस उप अधीक्षक कार्यालय
50. अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय
51. उपखण्ड अधिकारी कार्यालय
52. दिल्ली-अहमदाबाद ब्रोडगेज केन्द्रीय रेलवे स्टेशन
53. रोडवेज बस स्टैंड एवं कार्यशाला
54. कृषि उपज मंडी कार्यालय एवं सब्जी-मण्डी प्रांगण
55. नारकोटिक्स जिला आबकारी कार्यालय
56. केंद्रीय एक्साइज कार्यालय
57. वाणिज्य कर कार्यालय
58. आर. एफ. सी. कार्यालय
59. सैनिक विश्राम गृह
60. पशु अस्पताल
61. तोल, माप बाट कार्यालय
62. आठ न्यायालय
63. रीको के छ सेक्टर, लगभग तीन सौ छोटे-बड़े उद्योग एवं सीमेण्ट के तीन बड़े कारखाने
64. पी. एच. ई. डी. कार्यालय
65. विद्युत विभाग कार्यालय
66. रजिस्ट्रार कार्यालय
67. तहसील कार्यालय
68. जीवन बीमा निगम कार्यालय
69. जनरल इन्श्योरेन्स के चार कार्यालय
70. डाक तार विभाग
71. लगभग बीस सरकारी व निजी बैंक एवं लगभग तीन-चार हजार दुकानें, लगभग तीस कॉम्पलेक्स
72. मोबाइल फोन के 6 कम्पनी कार्यालय
73. सार्वजनिक निर्माण विभाग कार्यालय
74. सिचांई विभाग कार्यालय
75. ई. एस. आई. डिस्पेन्सरी
76. आस पास के क्षेत्रों के लगभग 400 गांवों की मंडी ब्यावर ही लगती है, जहां ग्रामीण अपने उत्पाद को बेचते हैं तथा उपभोग की वस्तुएं खरीदते हैं।
77. पहले सैनिकों की भर्ती का केन्द्र ब्यावर था, जिसको कि अजमेर कर दिया, फिर बाद में जयपुर कर दिया। पुन: ब्यावर किया जाये, क्योंकि मगरा सैनिकों की जन्मस्थली है।
78. ब्यावर मगरा मेरवाड़ा स्टेट को कोस्मोपोलिटिन-कल्चर सप्तरंगी इन्द्रधनुशी पुराने मिश्रित संस्कृति के लिये दुनिया भर में पहचाना जाता है, जहां पर चैईस मिश्रित किलो, नो दर्रों, बारह कोस की गोलाकार घाटी की सांस्कृतिक धरोहर आज भी विद्यमान है।
79. पुराना ब्यावर शहर परकोटे तक ही सीमित था। जब यह मेरवाड़ा स्टेट का मुख्यालय होता था, लेकिन आज का ब्यावर शहर चवदा किलोमीटर परिधि मे लगभग 150-200 कोलोनियो के साथ लगभग दो लाख से ऊपर जनसंख्या के साथ और इसके चारों ओर आसपास के 300-400 गांवों की मण्डी है तथा इस क्षेत्र की आबादी लगभग 7-8 लाख है।
80. ब्यावर क्षेत्र चूंकि अंग्रेजीकाल में मेरवाड़ा स्टेट हुआ करता था। स्वतन्त्रता के बाद यह क्षेत्र विशाल भू-सम्पदा का क्षेत्र है, जहां आज भी जमीनी व्यवस्था के लिये कोई सरकारी संस्थान कार्यरत नहीं है, जैसे नगर सुधार न्यास। अंग्रेज तो यहां से चले गए लेकिन गण और तन्त्र की बन्दरवाट से तन्त्र का कोई भी मुलाजिम यहां पर आने के बाद जाने की इच्छा नहीं करता और यहीं पर बस कर सदा के लिये यहीं का हो जाता है। अत: जमीन के लिये जो सरकारी होनी चाहिये, कोई व्यवस्था नहीं है। खनिज सम्पदा, वनसम्पदा व भू-सम्पदा तीनों सम्पदाओं की, मिलीभगती से पिछले पचपन सालों से, बन्दरवाट हो रही है और प्रजा जो जनतंत्र में राजा होती है, वह तो तत्काल से निरन्तर शेषित हो रही है और तन्त्र जो सेवक होना चाहिये, वह जनता का शोषण कर रहा है। अत: इसे तुरन्त प्रभाव से जिला घोषित किया जाना अति आवश्यक है। यहां पर न खनिज कार्यालय है, न वन कार्यालय है और न ही भू-सम्पदा निस्तारण कार्यालय है। अंगे्रजी काल में यही ब्यावर मेरवाडा स्टेट भारत वर्ष में सब क्षेत्रों में पहीले नम्बर का विकसित क्षेत्र था, जिसकी स्वतन्त्रता के बाद क्या दुर्दशा हुई, यह तो आने वाली पीढियों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। अत: समय की पुकार और तार्किक तथ्यों को मद्देनजर इसे जिला घोषित किया जाना चाहिये।
श्री वासुदेव मंगल का संपर्क सूत्र इस प्रकार है:-गीता कुंज, रामगढिय़ा शेखावाटी-नोहरा, गोपालजी मोहल्ला, ब्यावर, फोन: 01462-252597 मोबाइल: 9772222882, ई-मेल:vasudevmangal@geetavision.com, बेव साइट: www.beawarhistory.com
श्री मंगल ने जब यह रिपोर्ट बनाई, उसमें संभव है अब कुछ परिवर्तन हो गया हो, मगर स्थानीय राजनेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए यह एक सशक्त मार्गदर्शिका के रूप में काम में आ सकती है। उन्हें इसे आधार बना कर सरकार पर दबाव बनाना होगा, तभी सफलता हाथ लगेगी।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

हम रोजाना मुद्रा का अपमान करते हैं, उसका क्या?

ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में शिरकत करने आए पाकिस्तानी जायरीन द्वारा स्थानीय सेन्ट्रल गल्र्स स्कूल में कव्वाली के कार्यक्रम के दौरान भारतीय मुद्रा को पैरों तले दबाकर अपमानित करने की घटना वाकई संगीन है। भाजपा की स्थानीय इकाई ने तो इसकी तगड़ी मजम्मत की है। असल में यह मामला इतना गंभीर है कि इसके लिए न केवल पाक जायरीन को माफी मांगनी चाहिए, अपितु वहां मौजूद अधिकारियों से भी जवाब-तलब किया जाना चाहिए कि वे वहां नौकरी को अंजाम दे रहे थे या कव्वालियों में मशगूल हो कर भारतीय मुद्रा का अपमान होते देख कर उसे नजरअंदाज कर रहे थे?
यह मुद्दा उठाने का श्रेय बेशक राजस्थान पत्रिका को जाता है, जिसके फोटोग्राफर ने पैनी नजर रखते हुए मौके की फोटो खींच ली। भाजपा का उस पर प्रतिक्रिया करना भी जायज है, मगर इस मामले में कांग्रेस की चुप्पी अफसोसनाक है। क्या पाक जायरीन द्वारा भारतीय मुद्रा का अपमान करने पर केवल भाजपा की ही बोलने की जिम्मेदारी है, कांग्रेस की नहीं? ये तो कोई सत्ता या विपक्षा का मसला नहीं है कि कांग्रेस चुप बैठी रहे। पाक जायरीन ने अपमान किया है तो उससे कांग्रेसियों को भी तकलीफ होनी चाहिए। इस वाकये की निंदा करना कोई अपनी सरकार के खिलाफ बोलना तो नहीं है। गलती वहां मौजूद अफसरान की है, उनकी खिंचाई होनी ही चाहिए। वे किसी पार्टी के तो है नहीं, जो उनके बारे में न बोला जाए। कांग्रेस की इस चुप्पी से तो लगता है कि देशभक्ति की जिम्मेदारी केवल भाजपा के पास ही रह गई है।
बहरहाल, यह मुद्दा वाकई संगीन है, मगर बात चली है तो हमें इस पर गौर करना चाहिए कि हम भी तो आए दिन भारतीय मुद्रा का अपमान करते रहते हैं। कव्वालियों व मुशायरों में हमारे यहां कव्वाल व शायद पर नोट उछालने की हमारे यहां परंपरा रही है। तब भी नोट हवा में उड़ कर पैरों के तले आ जाते हैं, कोई हवा से सीधे तिजोरी में तो नहीं चले जाते। अव्वल तो इस प्रकार भारतीय मुद्रा को उछालना भी अपने आप में उसका अपमान है। अलबत्ता दरगाह शरीफ के महफिलखाने में जरूर नोट की शक्ल में जो नजराना दिया जाता है, वह बड़े ही अदब के साथ दीवान तक पेश होता है।
इसी प्रकार हमारे यहां किसी बुजुर्ग की शवयात्रा के दौरान सिक्के उछालने की भी परंपरा है। उसमें भी सिक्के पैरों तले रोंदे जाते हैं, मगर हमें कत्तई भान नहीं होता कि भारतीय मुद्रा का अपमान हो रहा है। इसके अतिरिक्त दूल्हे को नोटों की माला पहनाने का भी चलन है, वह भी एक प्रकार से अपमान की श्रेणी में आता है। एक ओर जहां रिजर्व बैंक के निर्देश हैं कि नोटों पर कुछ नहीं लिखा जाना चाहिए और उन्हें पिनअप करने की भी मनाही है, मगर हम नोटों को कभी ध्यान नहीं देते। हो ये रहा है कि हमें खुद की अपने देश की मुद्रा के मान-अपमान की चिंता नहीं। इसी मनोवृत्ति का परिणाम है कि जब पाक जायरीन ने नोटों को रोंदा तो अफसरान को कुछ अटपटा नहीं लगा। मगर है ये अफसोसनाक।
आज के वाकये के बहाने से ही सही, पत्रिका की पहल के बहाने से ही सही और भाजपा की जागरूकता के बहाने से ही सही, हमें अपनी मुद्रा के सम्मान की फिक्र करने पर ध्यान देना चाहिए।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

रासासिंह जी, ये अजमेर बंद तो ठीक नहीं लगता

पेट्रोल के दाम में भारी बढ़ोत्तरी के विरोध में भाजपा नीत एनडीए के राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत अजमेर शहर जिला भाजपा ने भी 31 मई को अजमेर बंद कराने का ऐलान किया है, मगर शहर में चर्चा है कि उर्स के मद्देनजर इस बंद को कामयाब करना आसान काम नहीं होगा और यह जायरीन व व्यापारियों के लिए बेहद तकलीफदेह होगा।
असल में बंद वाले दिन ही दरगाह में बड़े कुल की रस्म है, जिसमें बड़ी तादाद में बाहर से आने वाले जायरीन शिरकत करेंगे। यूं तो अधिसंख्य जायरीन छोटे कुल की रस्म के बाद यहां से लौट चुके हैं, मगर अब भी उर्स मेला क्षेत्र में खासी तादाद में जायरीन मौजूद हैं। विशेष रूप से बड़े कुल के दिन भी काफी जायरीन यहां होंगे। यहां तक कि आगामी एक सप्ताह में जायरीन की चहल-पहल बरकरार रहेगी। जाहिर सी बात है कि यदि बंद करवाया जाता है तो जायरीन को तो परेशानी होगी ही, उससे भी ज्यादा दरगाह बाजार, नलाबाजार, देहली गेट बाहर, मदार गेट, पड़ाव व कवंडसपुरा के दुकानदारों इस कारण मलाल रहेगा कि मेले के दौरान उनकी एक दिन की कमाई मारी जाएगी। उसे वे शायद ही बर्दाश्त करें। वस्तुत: इन इलाकों की होटल वाले व दुकानदार उर्स मेले के दौरान ही अच्छी खासी कमाई करते हैं, फिर भले ही पूरा साल मंदी रहे। सबसे ज्यादा मार पड़ेगी उन दुकानदारों पर, जिन्होंने भारी किराया एडवांस में देकर अस्थाई दुकानें खोल रखी हैं। वे भी विरोध कर सकते हैं। बंद होने पर आटो रिक्शा वाले भी कसमासाएंगे, क्योंकि विश्राम स्थलियों से दरगाह तक जायरीन को लाने ले जाने में उनको अच्छी खासी कमाई होती है। उनकी भी एक दिन की कमाई मारी जाएगी, जायरीन परेशान होगा, सो अलग। सवाल ये भी है कि बंद के दौरान विश्राम स्थलियों में ठहरे जायरीन का क्या होगा? उन्हें खाने-पीने की वस्तुएं कहां से मिलेंगी? एक विचार ये भी उभरा है कि उर्स मेला क्षेत्र को बंद से मुक्त रखा जाए, मगर एक तो यह व्यावहारिक नहीं है और ऐसे में बंद की सफलता के कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे।
जहां तक प्रशासन का सवाल है, उसके लिए बंद के दौरान कानून व्यवस्था को बनाए रखना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। अजमेर पहले से ही संवेदनशील शहर की श्रेणी में आता है, उर्स में विशेष रूप से, और अगर किसी बंद समर्थक ने किसी जायरीन के साथ बदसलूकी कर दी व मामला बिगड़ा तो उसे संभलना कितना कठिन होगा? यह स्थिति स्वयं भाजपा के लिए भी सुखद नहीं होगी। कुल मिला कर कम से कम अजमेर में बंद का आह्वान न तो शहर के हित में है और न ही व्यावहारिक। बेहतर तो यह होता कि भाजपा की स्थानीय इकाई अजमेर के विशेष हालात के मद्देनजर यहां बंद न करवाने की अनुमति हाईकमान से लेता। इसके अतिरिक्त उर्स के मद्देनजर जायरीन व व्यापारियों की सुविधा के आधार पर बंद करने के निर्णय पर पुनर्विचार किया जाता है तो जायरीन में भी अच्छा संदेश जाएगा और उर्स मेला क्षेत्र के व्यापारी तबके के दिल में भी भाजपा का सम्मान बढ़ेगा कि वह उनकी परेशानी को समझती है। रहा सवाल भाजपा का विरोध दर्ज करवाने का तो उसका कोई और तरीका भी निकाला जा सकता है। कलेक्ट्रेट पर एक दिन का धरना अथवा मेला क्षेत्र से इतर रैली भी निकाली जा सकती है।
बहरहाल, अब देखना ये है भाजपा हालात के मद्देनजर कुछ रद्दोबदल करती है या फिर शहर बंद करवाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकती है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 26 मई 2012

सोनम के बारे में अजमेरनामा की बात सही निकली

पिछले दिनों अजमेरनामा में हमने लिखा था कि शहर कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता सोनम किन्नर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कोई बड़ा आश्वासन ले आईं हैं। इस पर सभी चौंके थे। यहां तक कि खुद सोनम ने भी यही कहा था कि आपको क्या पता? आपको कैसे पता लग गया कि मेरी अखिलेश यादव से क्या बात हुई है? कदाचित वे इस समयपूर्व रहस्योद्घाटन से असहज हो गई थीं, मगर अजमेरनामा का बात आखिर सही निकली। वे समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य बन गई हैं। हालांकि इसकी उन्होंने स्वयं अथवा पार्टी की ओर से कोई विधिवत घोषणा नहीं की है, मगर उर्स मेले के दौरान जायरीन के इस्तकबाल में उनकी पार्टी की ओर से शहरभर में लगाए गए होर्डिंग्स में उनकी फोटो के नीचे उनका पद साफ तौर पर लिखा हुआ है।
आपको ख्याल होगा कि अपुन ने लिखा था कि वे अपने किन्हीं संपर्क सूत्रों के जरिए पिछले कुछ दिन लखनऊ में रहीं। समाजवादी पार्टी के उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ होने पर उन्हें लगा कि वहां कोई बड़ा पर हासिल हो सकता है। बताया जाता है कि उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने का भी सौभाग्य हासिल हो गया। अपनी वाकपटुता के दम पर उन्होंने पर अखिलेश को प्रभावित भी किया और बताया जाता है कि उन्हें उचित मौके पर कोई ढंग का पद देने का आश्वासन दिया गया है। जैसे ही उन्हें कुछ यकीन हुआ, उन्होंने कांग्रेस को छोडऩे की मन बना लिया और जयपुर में समाजवादी पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल कांग्रेस से टा टा बाय बाय कर ली।
आपको याद होगा कि अपुन ने पिछले आइटम में लिखा था कि सोनम को कांग्रेस ने उनके कद के मुताबिक मनोनीत पार्षद के पद से नवाजा है, यदि वे इसके बाद भी असंतुष्ट हैं तो इसका मतलब ये है कि उन्हें किसी और बड़े पद की उम्मीद रही होगी। इस पर सोनम ने ऐतराज जाहिर किया कि आपने ऐसा कैसे लिख दिया? कद का सवाल कहां से उठ गया? कद का आकलन आपने कैसे कर लिया? कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता से कितने भी ऊंचे पद पर पहुंच सकता है। अपुन ने तो उनका कद एक पार्षद जितना की आंका, मगर खुद उनका जो अपने बारे में आकलन था, वह वाकई सही साबित हो गया। एक राष्ट्रीय पार्टी, जिसकी कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में सरकार हो, उसकी कार्यसमिति का सदस्य होना वाकई उल्लेखनीय है। कम से कम सोनम के लिए तो यह बेशक गौरव की बात है। बेशक, बिंदास व्यक्तित्व की वजह से अति महत्वाकांक्षी सोनम छोटे-मोटे पड़ाव पर ठहरने वाली थी भी नहीं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

गुरुवार, 24 मई 2012

केजरीवाल से भी एक कदम आगे निकल गई कीर्ति पाठक

ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चादर के दौरान प्रशासन व पुलिस की लापवाही से हुई स्थानीय जनप्रतिधियों के साथ हुई बदसलूकी के बाद उनके गुस्सा होने पर भले ही जिला कलेक्टर मंजू राजपाल को बुरा न लगा हो, मगर टीम अन्ना की अजमेर की नेता कीर्ति पाठक को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी सारी भड़ास फेसबुक पर ही निकाल दी। फेसबुक से उनके कमेंट को हूबहू कापी कर यहां प्रस्तुत है। जरा देखिए उनका मिजाज सातवें आसमान पर कैसे पहुंच गया? साफ नजर आ जाएगा कि या तो उनके अंदर टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल की आत्मा आ गई है या फिर वे उनसे भी एक कदम आगे निकल रही हैं:-
ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का समय आता है तो प्रशासन के सर मानो आफत आ जाती है......
जायरीन को सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ साथ उन्हें स्थानीय नेताओं की केन्द्रीय नेताओं की जी हुजूरी को भी भुगतना पड़ता है। जनता के नुमाइंदे जनता को हो रही परेशानी की ओर ध्यान न देते हुए अपनी अपनी रोटियां सेकने में लग जाते हैं.....
अब प्रोटोकोल ने 6 वाहनों की इजाजत दी थी, आप यदि सातवें में थे, तो प्रशासन इस गलती के लिए जिम्मेदार कैसे???
भाई उस गलत वाहन का पता लगाइए और उस में सवार व्यक्तियों पर अपना गुस्सा निकालिए, उन्होंने आप की जगह हड़पी है और आगे भी ऐसा कर सकते हैं.......अभी से सावधान हो जाइए .......अपनी ड्यूटी कर रहे अधिकारियों पे हावी क्यों होते हैं???
समाचार पत्र की एक लाइन है-जिला प्रशासन को जनप्रतिनिधियों का कोप भजन बनना पड़ा........
भाई जनप्रतिनिधियों की बात तो समझ में आती है, परन्तु आपे से बाहर तो राज्यसभा मेम्बर हुईं ......वे कौन सी जनप्रतिनिधि हैं????
हम जनता ने तो उन्हें निर्वाचित नहीं किया ओर न ही उन्होंने कहीं भी ऐसा काम किया है कि वे जनप्रतिनिधि होने का दावा कर सकें।
आज स्थानीय नेताओं ने एएसपी राम मूर्ति जोशी और एसएचओ के खिलाफ कार्यवाही करने कि मांग की है.....
जनता पूछती है कि किस आधार पर???
क्या अपनी ड्यूटी को निष्पक्ष रूप से सम्पादित करना गलत है???
क्या जनसेवकों का काम सिर्फ नेताओं को सुरक्षा प्रदान करना और उन की जीहुजूरी करना रह गया है???
राज्य सभा मेम्बर कलेक्टर साहिबा से बेहद गलत ढंग से पेश आयीं, जो की एक जनसेवक का अपमान है.....अगर वे सोचती हैं की किसी का अपमान कर के वे ऊंची सिद्ध हो जायेंगी तो उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि जनता अब सब नेताओं की हरकतों पर गौर कर रही है.....जनप्रतिनिधि तो वे हैं नहीं....अपने आप को इस प्रकार से पेश करना अब नजरों में आ चुका है...... प्रभा जी किस प्रकार कि कार्यवाही की मांग कर रही हैं???
स्थानान्तरण????
बस इस से ज्यादा बस कहां है नेताओं का......पैसा ले कर स्थानान्तरण करवाते हैं, नाजायज मांगें पूरी न होने पर स्थानान्तरण करवाते हैं......बस एक ही हथियार का डर दिखाते हैं.....इस से ज्यादा कुछ कर पाने दम नहीं है नेताओं में.......जब अजमेर की शक्ल बदलने का काम हो तो गलत, स्वार्थी लोगों की तरफदारी कर अजमेर का चेहरा बिगाडऩे में जरूर आगे रहते हैं स्थानीय नेता परन्तु अजमेर की शक्ल संवारने का बीड़ा उठाने से कतराते हैं.........इच्छाशक्ति ही नहीं है सार्थक कार्य करने की.......
नसीम अख्तर जी ने कहा है कि 27 तारीख को प्रधान मंत्री की चादर प्रशासन अपने स्तर पर चढ़ा ले ......स्थानीय प्रशासन से अपील है कि वे जनता के कुछ लोगों को आगे आने को कहें और उनके द्वारा चादर चढ़वा दें...... जनता अपने प्रधानमंत्री की चादर, बिना प्रशासन और जनता को कष्ट दिए, ये रस्म भी पूरी कर देगी........ अब जिला प्रशासन से उम्मीद भी की जाती है कि वे एक रिपोर्ट तैयार कर के अपने आप को वीआईपी लोग समझने वाले लोगों को, उर्स में अतिरिक्त बोझ कह कर, जनता की ओर से न आने देने की अनुशंसा करे ........
यदि प्रशासन चाहेगा तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन एक हस्ताक्षर अभियान चला कर इस की पुष्टि करा कर आप के हाथ में यह सौंप सकता है........जनसेवक जनता की सुविधा का ध्यान रहेंगे या अपने आप को तुर्रम खान समझने वाले नेताओं की सेवा करेंगे......अब समय आ गया है जन सेवकों को भी अपनी श्चह्म्द्बशह्म्द्बह्लद्बद्गह्य ह्यद्गह्ल करने का........
वे जनता का काम करना चाहते हैं या नेताओं का......अब स्थानांतरण के खौफ से निकलिए और जनता का काम कीजिये...........जनता हर अनुचित दबाव पर आप के साथ खड़ी होगी........
बोलिए, अब क्या कहते हैं?
लगता है कि न कि कीर्ति पाठक में भी अरविंद केजरीवाल की छाया आ गई है। वे सांसदों को चोर-हत्यारा कहते हैं तो कीर्ति प्रभा ठाकुर के बारे में कह रही हैं कि वे कौन सी जनप्रतिनिधि हैं???? हम जनता ने तो उन्हें निर्वाचित नहीं किया और न ही उन्होंने कहीं भी ऐसा काम किया है कि वे जनप्रतिनिधि होने का दावा कर सकें।
केजरीवाल भले ही सांसदों को कुछ भी कह रहे हों, मगर कम से कम उनके सांसद होने अथवा उनके जनप्रतिनिधि होने से तो इंकार नहीं करते, मगर कीर्ति पाठक तो उनसे भी एक कदम आगे निकल गईं। वे तो प्रभा ठाकुर को जनप्रतिनिधि होने से ही इंकार कर रही हैं। कैसी विडंबना है?
कीर्ति पाठक ने सवाल किया है कि अब प्रोटोकोल ने 6 वाहनों की इजाजत दी थी, आप यदि सातवें में थे, तो प्रशासन इस गलती के लिए जिम्मेदार कैसे??? भाई उस गलत वाहन का पता लगाइए और उस में सवार व्यक्तियों पर अपना गुस्सा निकालिए, उन्होंने आप की जगह हड़पी है और आगे भी ऐसा कर सकते हैं.......अभी से सावधान हो जाइए .......अपनी ड्यूटी कर रहे अधिकारियों पे हावी क्यों होते हैं???
है न बिलकुल बेहूदा तर्क। सातवां वाहन किस का घुस गया, ये पता करना अजमेर के जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी थी या फिर इसके लिए पुलिस दोषी थी, जिसे पता ही नहीं लगा कि सातवां वाहन कारकेड में किसका और कैसे घुस गया? अर्थात वह तो केवल गाडियों की ही गिनती कर रही थी। उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं था कि छह वाहनों में किन-किन का वाहन होना चाहिए? साफ है कि यह सुरक्षा की एक बड़ी चूक थी, न कि ड्यूटी की मुस्तैदी। यह कैसी मुस्तैदी कि उन्हें पता ही नहीं कि सातवां वाहन पहले छह वाहनों में कैसे शामिल हो गया?
केजरीवाल की तरह अराजकतापूर्ण रवैया देखिए कि कीर्ति पाठक किस हद तक चली गई हैं, यह कहते हुए कि जनता अपने प्रधानमंत्री की चादर, बिना प्रशासन और जनता को कष्ट दिए, ये रस्म भी पूरी कर देगी........।
भई वाह, यानि कि टीम अन्ना सिस्टम को दुरुस्त करने के नाम पर सिस्टम को ही अपने हाथ में लेना चाहती है। यदि यह ठीक है और देश इससे सुरक्षित और विकसित होता है, जरूर सौंप दीजिए इन लोगों के हाथ में देश की लगाम।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

बुधवार, 23 मई 2012

यानि कि टंडन को मंजू राजपाल से शिकायत वाजिब थी

श्रीमती मंजू राजपाल
ख्वाजा गरीब नवाज के आठ सौवें उर्स में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चादर चढ़ाए जाने के दौरान शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती नसीम अख्तर, सांसद डा. प्रभा ठाकुर, मेयर कमल बाकोलिया व कांग्रेस जिलाध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता को दरगाह पहुंचने से पहले बीच रास्ते रोकने को लेकर जो बवाल हुआ, उससे तो यही लगता है कि अजमेर बार एसोसिएशन व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजेश टंडन की जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को लेकर जो शिकायत थी, वह वाजिब थी।
ज्ञातव्य है कि टंडन बार-बार यही शिकायत करते रहे हैं कि मंजू राजपाल नेगेटिव लेडी और अकडू हैं। उनका यहां से तबादला कर देना चाहिए। अब अजमेर के सभी कांग्रेसी नेता भी एक सुर से मंजू राजपाल के रवैये को लेकर खफा हैं और उनके तबादले की बात कर रहे हैं। जो शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर उर्स के इंतजामात को लेकर प्रशासन के साथ खड़ी नजर आ रही थीं, वे भी जब प्रशासन के रवैये का शिकार हो गईं तो उन्हें भी समझ में आ गया है कि प्रशासन उनको कितना गांठ रहा है। लीजिए उनका बयान देखिए-प्रशासन के साथ दो दिन पहले हुई वार्ता में तय हुआ कि सभी स्थानीय नेता एक गाड़ी में जाएंगे ताकि बाधा उत्पन्न नहीं हो। हमने यहां तक कहा कि स्थानीय नेता महफिलखाने पर ही रुक जाएंगे, चादर पेश करने केवल वीवीआईपी ही जाएंगे। इसके बावजूद गाड़ी को रोक दिया गया। प्रशासन यदि ऐसा चाहता है तो फिर 27 को प्रधानमंत्री की चादर अपने ही स्तर पर चढ़ा ले। असल में इस पूरी घटना के लिए पूरी तरह से पुलिस प्रशासन की जिम्मेदार है, मगर जिला की सबसे बड़ी अफसर होने के नाते पूरा ठीकरा ं जिला कलेक्टर मंजू राजपाल पर ही फूटना था। भले इस घटना के लिए सीधे तौर पर वे जिम्मेदार न हों, मगर इससे यह तो साबित हो गया है कि पुलिस प्रशासन से उनका तालमेल कैसा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों जब उर्स की तैयारियों को लेकर राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू अजमेर आए थे, तो टंडन ने उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि अजमेर में प्रशासन व पुलिस के अफसरों के बीच मनमुटाव है और उर्स के मद्देनजर उसका कुछ उपाय करना चाहिए, मगर मैथ्यू ने उसे यह कह कर हवा में उड़ा दिया कि सब कुछ ठीक हो गया है। उनकी यही लापरवाही ही सोनिया गांधी की चादर के दौरान इतने बड़े हंगामे का कारण बन गई।
इस सिलसिले में कलेक्टर मंजू राजपाल की सफाई देखिए। वे कह रही हैं कि प्रोटोकाल के कारण समस्या उत्पन्न हुई है। एसपी के वायरलेस से लगातार 6 गाडयों के काफिले की जानकारी मिली थी, जबकि हो सकता है शिक्षा राज्यमंत्री का वाहन पीछे छूट गया हो। इसलिए छह गाडिय़ों की ही वायरलेस से सूचना मिल रही थी। एएसपी राममूर्ति के सामने सातवीं गाड़ी आ जाने की वजह से रोक दी हो। उनके इस जवाब से साबित होता है कि प्रशासन व पुलिस के बीच तालमेल का साफ तौर पर अभाव था और वीआईपी के लवाजमे की वजह से सारे अफसर होचपोच हो गए। तालमेल का अभाव खुद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, ग्रामीण राममूर्ति जोशी के बयान से भी हो रहा है कि हमारे उच्चाधिकारियों के निर्देशानुसार अन्य गाडियों को रुकवा लिया गया। हमें नहीं मालूम था कि उनमें मंत्री शामिल थे। सवाल ये उठता है कि तो फिर उन्हें मालूम क्या था? वीआईपी विजिट में इसी बात को तो ख्याल रखा जाता है। यदि इसमें पुलिस विफल रही है तो यह उसके नकारापन को साबित करता है।
ऐसे में ठाकुर कहना वाजिब ही है कि प्रशासन को प्रोटोकाल की जानकारी ही नहीं है। वाहन में मंत्री, मेयर व अन्य जनप्रतिनिधि मौजूद थे और एक सब इंस्पेक्टर स्तर का अधिकारी उनको रोक लेता है। कलेक्टर को सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए। वे जिले की सर्वेसर्वा हैं। ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पहले से कोई व्यवस्था नहीं की गई। हवाईपट्टी पर सभी जनप्रतिनिधि मौजूद थे, कलेक्टर उन्हें छोड़ कर अपनी गाड़ी में रवाना हो रही थी। थोड़ी शिष्टता तो होनी ही चाहिए जनप्रतिनिधियों के प्रति। 
प्रभा ठाकुर दिखाया पहली बार रोब
वैसे एक बात तो है। हरदम कूल रहने वाली प्रभा ठाकुर ने भी पहली बार यह अहसास कराया कि वे सांसद हैं और मंजू राजपाल की क्लास ले डाली। ठाकुर ने कलेक्टर को आक्रामक तेवर में जब कहा कि आप बहुत बड़ी मंत्री बन गई हैं, हम बाहर खड़े हैं और आप को जाने की जल्दी है। कार में अजमेर रवाना हो रही हो। यह सुन कर सभी भौंचक्के रह गए। मंजू राजपाल को भी पहली बार सेर को सवा सेर मिल गया। 
अफसरशाही हावी है अजमेर में
इस वारदात से यह भी साबित हो गया है कि अजमेर में अफसरशाही हावी है। जिला प्रशासन व पुलिस जनप्रतिनिधियों को नहीं गांठते। वे कहने भर हो उन्हें जरूर सरकारी बैठकों में बुलाते हैं, मगर करते अपने मन की ही हैं। मेयर के साथ तो जो कुछ हुआ, वह यह पूरी तरह से पुख्ता करता है कि वे जनप्रतिनिधियों को पहचानते ही नहीं अथवा वक्त पडऩे पर पहचानने से ही इंकार कर देते हैं। सीएम व मंत्रियों के काफिले के साथ प्रभा ठाकुर, नसीम अख्तर, बाकोलिया, नरेन शहाणी व रलावता एक ही वाहन में बैठे हुए थे। कड़क्का चौक के पास सीएम का काफिला जाने के बाद एएसपी राममूर्ति जोशी व एसएचओ ने वाहन को रोक लिया। वाहन रोकने पर मेयर ने पुलिस कर्मियों से कहा कि वे मेयर हैं। पुलिस कर्मी ने कहा यहां जो भी आता है, अपने आप को मेयर बताता है। जाहिर है ऐसे में बवाल होना ही था।
ऐसे में मेयर बाकोलिया की यह शिकायत वाजिब ही है कि दरगाह मेले की व्यवस्था नगर निगम व यूआईटी कर रही है। शिक्षा मंत्री खुद मेले की निगरानी कर रही हैं। ऐसे में पुलिस उन्हें ही जाने से रोक लेती है। यह असहनीय है। प्रशासन का रवैया आपत्तिजनक है ऐसा ही रहा तो फिर जनप्रतिनिधियों से सहयोग की अपेक्षा क्यों की जाती है। कुल मिला कर टंडन की जिस शिकायत को लोग मंजू राजपाल से कोई निजी खुन्नस मान रहे थे, अब उन्हें भी समझ में आ गया है कि वे सही ही कह रहे थे, मगर चूंकि कांग्रेस एक बड़ा धड़ा अपनी सरकार के रहते इतजामों के नाम पर प्रशासन को शाबाशी दे रहा था, इस कारण उनकी बात को प्री मैच्योर और इंटेशनल डिलेवरी माना जा रहा था। मगर अब खुद प्रभा ठाकुर कह रही हैं कि हमें अच्छे कलेक्टर की जरूरत है। 

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

सोमवार, 21 मई 2012

शहंशाहों के शहंशाह ख्वाजा गरीब नवाज


दुनिया में कितने ही राजा, महाराजा, बादशाहों के दरबार लगे और उजड़ गए, मगर ख्वाजा साहब का दरबार आज भी शान-ओ-शोकत के साथ जगमगा रहा है। उनकी दरगाह में मत्था टेकने वालों की तादात दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। गरीब नवाज के दर पर न कोई अमीर है न गरीब। न यहां जात-पात है, न मजहब की दीवारें। हर आम-ओ-खास यहां आता है और अपनी झोली भर कर जाता है।
हिंदुस्तान के अनेक शहंशाहों ने बार-बार यहां आ कर हाजिरी दी है।
बादशाह अकबर शहजादा सलीम के जन्म के बाद सन्1570 में यहां आए थे। अपने शासनकाल में 25 साल के दरम्यान उन्होंने लगभग हर साल यहां आ कर हाजिरी दी। बादशाह जहांगीर अजमेर में सन् 1613 से 1616 तक यहां रहे और उन्होंने यहां नौ बार हाजिरी दी। गरीब नवाज की चौखट पर 11 सितंबर 1911 को  विक्टोरिया मेरी क्वीन ने भी हाजिरी दी। इसी प्रकार देश के अनेक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों ने यहां जियारत कर साबित कर दिया है कि ख्वाजा गरीब नवाज शहंशहों के शहंशाह हैं।
इस महान सूफी संत की दरगाह पर हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य की छाया तक नहीं पड़ी है। ख्वाजा साहब के दरगार में मुस्लिम शासकों ने सजदा किया तो हिंदू राजाओं ने भी सिर झुकाया है।
हैदराबाद रियासत के महाराजा किशनप्रसाद पुत्र की मुराद लेकर यहां आए और आम आदमी की सुबकते रहे। ख्वाजा साहब की रहमत से उन्हें औलाद हुई और उसके बाद पूरे परिवार के साथ यहां आए। उन्होंने चांदी के चंवर भेंट किए, सोने-चांदी के तारों से बनी चादर पेश की और बेटे का नाम रखा ख्वाजा प्रसाद।
जयपुर के मानसिंह कच्छावा तो ख्वाजा साहब की नगरी में आते ही घोड़े से उतर जाते थे। वे पैदल चल कर यहां आ कर जियारत करते, गरीबों को लंगर बंटवाते और तब जा कर खुद भोजन करते थे। राजा नवल किशोर ख्वाजा साहब के मुरीद थे और यहां अनेक बार आए। मजार शरीफ का दालान वे खुद साफ करते थे। एक ही वस्त्र पहनते और फकीरों की सेवा करते। रात में फर्श पर बिना कुछ बिछाए सोते थे। उन्होंने ही भारत में कुरआन का पहला मुद्रित संस्करण छपवाया। जयपुर के राजा बिहारीमल से लेकर जयसिंह तक कई राजाओं ने यहां मत्था टेका, चांदी के कटहरे का विस्तार करवाया। मजार के गुंबद पर कलश चढ़ाया और खर्चे के लिए जागीरें भेंट कीं। महादजी सिंधिया जब अजमेर में शिवालय बनवा रहे थे तो रोजाना दरगाह में हाजिरी देते थे। अमृतसर गुरुद्वारा का एक जत्था यहां जियारत करने आया तो यहां बिजली का झाड़ दरगाह में पेश किया। इस झाड़ को सिख श्रद्धालु हाथीभाटा से नंगे पांव लेकर आए। जोधपुर के महाराज मालदेव, मानसिंह व अजीत सिंह, कोटा के राजा भीम सिंह, मेवाड़ के महाराणा पृथ्वीराज आदि का जियारत का सिलसिला इतिहास की धरोहर है। बादशाह जहांगीर के समय राजस्थानी के विख्यात कवि दुरसा आढ़ा भी ख्वाजा साहब के दर पर आए। जहांगीर ने उनके एक दोहे पर एक लाख पसाव का नकद पुरस्कार दिया, जो   उन्होंने दरगाह के खादिमों और फकीरों में बांट दिया।
गुरु नानकदेव सन् 1509 में ख्वाजा के दर आए। मजार शरीफ के दर्शन किए, दालान में कुछ देर बैठ कर ध्यान किया और पुष्कर चले गए।
अंग्रेजों की खिलाफत का आंदोलन चलाते हुए महात्मा गांधी सन् 1920 में अजमर आए। उनके साथ लखनऊ के फिरंगी महल के मौलाना अब्दुल बारी भी आए थे। मजार शरीफ पर मत्था टेकने के बाद गांधीजी ने दरगाह परिसर में ही अकबरी मस्जिद में आमसभा को संबोधित किया था। उनके भाषण एक अंश था- हम सब भारतीय हैं, हमें अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराना है, लेकिन शांति से, अहिंसा से। आप संकल्प करें... दरगाह की पवित्र भूमि पर आजादी के लिए प्रतिज्ञा करें... ख्वाजा साहब का आशीर्वाद लें। इसके बाद वे खादिम मोहल्ले में भी गए। इसके बाद 1934 में गांधीजी दरगाह आए। वे हटूंडी स्थित गांधी आश्रम भी गए और अस्वस्थ अर्जुनलाल सेठी से मिलने उनके घर भी गए।
स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी दरगाह की जियारत की और यहां दालान में सभा को संबोधित किया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू व उनकी पत्नी विजय लक्ष्मी पंडित और संत विनोबा भावे भी यहां आए थे।
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी कई बार दरगाह आईं। एक बार वे संजय गांधी को पुत्र-रत्न (वरुण)होने पर संजय, मेनका व वरुण के साथ आईं और इतनी ध्यान मग्न हो गईं कि चांदी का जलता हुआ दीपक हाथ में लिए हुए काफी देर तक आस्ताना शरीफ में खड़ी रहीं। वह दीपक उन्होंने यहीं नजर कर दिया। कांग्रेस का चुनाव चिह्न पंजा भी यहीं की देन है। उन दिनों पार्टी का चुनाव बदलना जाना था। जैसे ही उनके खादिम यूसुफ महाराज ने आर्शीवाद केलिए हाथ उठाया, वे उत्साह से बोलीं कि मुझे चुनाव चिह्न मिल गया। इसी चुनाव चिह्न पर जीतीं तो फिर जियारत को आईं और एक स्वर्णिम पंजा भेंट किया। जियारत के बाद वे मुख्य द्वार पर दुपट्टा बिछा कर माथ टेकती थीं। उनके साथ राजीव गांधी व संजय भी आए, मगर बाद में राजीव गांधी अकेले भी आए। इसी प्रकार सोनिया गांधी भी दरगाह जियारत कर चुकी हैं। देश के अन्य प्रधानमंत्री, राज्यपाल व मुख्यमंत्री आदि भी यहां आते रहते हैं। पाकिस्तान व बांग्लादेश के प्रधानमंत्री भी यहां आ कर दुआ मांग चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

अद्भुत है हजरत ख्वाजा साहब की जीवन झांकी


हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का दुनिया के अध्यात्मिक सिंह पुरुषों में बहुत ऊंचा स्थान है। खासतौर पर सूफी सिलसिले में तो सर्वाधिक ऊंचाई पर हैं। उनके प्रति हर मजहब व जाति के लोगों में कितनी श्रद्धा है, इसका अंदाजा यहां हर साल जुटने वाले उर्स मेले से लगाया जा सकता है। यूं इस मुकद्दस मुकाम पर मत्था टेकने वालों का सैलाब सालभर उमड़ता रहता है।
ख्वाजा साहब का जन्म हिजरी वर्ष 530 यानि 1135 ईस्वी में असफहान में हुआ। आपके वालिद का नाम ख्वाजा गयासुद्दीन और वालिदा का नाम बीबी माहेनूर था। उनकी वालिदा अब्दुल्ला हम्बली के बेटे दाऊद की बेटी थीं। बचपन से ही ख्वाजा साहब में रूहानी गुण मौजूद थे। महज नौ साल की उम्र में ही वे पूरी कुरान एक सांस में सुना देते थे। इतनी कम उम्र में वे हदीस (रसूल वाणी) और फिका (इस्लामिक न्याय शास्त्र) पढऩे लग गए थे। जब ख्वाजा साहब सिर्फ 15 साल के थे, तभी उनके  वालिद का बगदाद में इंतकाल हो गया। वालिद के इंतकाल के बाद जब घर की संपत्ति का बंटवारा हुआ तो उनके हिस्से में एक चक्की और एक बगीचा आया। हजरत इब्राहिम कंदोजी से मुलाकात ने उनके जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया। ख्वाजा साहब ने उन्हें अंगूरों का एक गुच्छा भेंट किया तो वे दरवेश बहुत खुश हुए और उन्होंने खल की टिकिया चबा कर ख्वाजा साहब को दी। जैसे ही वह टिकिया ख्वाजा साहब ने उसे लिया, उनका इस संसार से मोह भंग हो गया। उन्होंने चक्की और बगीचा बेच दिया। इसके बाद वे खुरसान चले गए। समरकंट व घुटसारा पहुंच कर उन्होंने किताबी ज्ञान हासिल किया। बीस साल तक वे पढ़ाई करते रहे। इसके बाद ईरान से अरब और वहां से हारुन पहुंचे। वहां लौटते हुए वे बगदाद भी ठहरे। उन्होंने सीरिया, किमरान, हमदान, तेहरान, खुरासान, मेमना, हेरात व मुल्तान का सफर किया और लाहौर भी गए।
जियारत हरमैन शरीफेन- 582 ईस्वी में आपने अपने पीरो मुरशद के साथ मक्के मोअज्जमा में हाजिरी दी। एक रात आखिरी पहर में हजरत ख्वाजा उस्माने हारुनी ने आपको बारगाहे इलाही में पेश किया और खाना-ए-काबा का पर्दा औढ़ा कर अर्ज की कि या अल्लाह, मोइनुद्दीन को कुबूल फरमा लो। दुआ फौरन कुबूल हुई और आवाज आई- मोइनुद्दीन मकबूले बारगाह। इसके बाद आपने मदीने तैयबा में हाजिरी दी और नबी-ए-कबीस की बारगाह में सलाम पेश किया। वहां से जवाब आया- वअयलकुलम अस्सलाम या कुतबल मशईख यानि ऐ फरजंद मोइनुद्दीन, हमने तुम्हें हिंद की विलादत अता की।
खिलाफत- ख्वाजा साहब ने हारून के हजरत ख्वाजा उस्मान से दीक्षा ली। उन्होंने ही ख्वाजा साहब को अपना सज्जादानशीन मुकर्रर किया और पैगंबर साहब के पवित्र अवशेष उन्हें सुपुर्द कर दिए।
सफरे हिंदुस्तान- पैगंबर मोहम्मद साहब का आदेश पा कर आप हिजरी 587 यानि 1191 ईस्वी में अजमेर आए। कुछ अरसा यहां रहने के बाद आप गजनी के लिए रवाना हो गए। वहां कुछ समय रहने के बाद वापस अजमेर आ गए। अजमेर से वे एक बार बगदाद भी गए। रास्ते में वे बाल्ख में ठहरे, जहां सुप्रसिद्ध दार्शनिक मौलाना जियाउद्दीन उनके शिष्य बने। वापस लौटते हुए वे गजनी, लाहौर व दिल्ली से खुरसान पहुंचे। वहां से 610 हिजरी यानि 1213 ईस्वी में अजमेर आए।
निकाह- अस्सी साल की उम्र में आपने दो निकाह किए। उनकी पहली बीवी का नाम जौजा-ए-मोहतरमा हजरत बीवी अमतुल्लाह और दूसरी का नाम हजरत बीवी हसमतुल्लाह था।
औलाद अमजाद- हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती आपके फरजंदे अकबर हुए, जिनकी दरगाह अजमेर शरीफ से साठ किलोमीटर दूर सरवाड़ शरीफ में है। मंझले साहबजादे ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती थे। उनके मुतल्लिक मशहूर है कि मर्दाने गैब में शामिल हो कर अबदाल के मर्तबे पर फाइज हुए। हजरत ख्वाजा जियाउद्दीन अबू सईद चिश्ती आपके सबसे छोटे फरजंद थे। आपका मजारे मुबारक दरगाह शरीफ के शाही घाट पर जियरतगाह खासो आम है। ख्वाजा साहब की इकलौती बेटी थी हजरत बीबी हाफिज जमाल। आप पैदाइशी कुराम हाफिज थीं। कमसनी में ही आपने हिफज कर लिया। आप का मनसून हजरत शेख रजीउद्दीन से हुआ। साहबजादी साहेबा का मजार शरीफ हजरते ख्वाजा गरीब नवाज के पांयती आस्ताना-ए-मुकारक के करीब है। ख्वाजा-ए-बुजुर्ग के पोते व हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन के फरजंद थे हजरत ख्वाजा हिसामुद्दीन जिगर सोख्ता। उनकी मजार अजमेर से तकरीबन नब्बे किलोमीटर दूर सांभर में है।
खुलफा-ए-इकराम- ख्वाजा साहब के बहुत से खलीफा हुए, जिन्होंने अनेक इलाकों में गुलशन चिश्त के फूल महकाए, लेकिन खिलाफत हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को मिली। आपका अस्ताना दिल्ली-महरोली में कुतुबमीनार के करीब है। आपके दूसरे खलीफा हुए सुल्तानुल तारकीन हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागौरी, जिनकी दरगाह नागौर में है।
विसाल- हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का विसाल 97 साल की उम्र में हिजरी 633 रजबुल मुर्जब 6 को हुआ। वावक्त विसाल आपकी पेशानी पर लिखा था- हाजा हबीबुल्लाह माता फी कुतुबुल्लाह यानि अल्लाह का हबीब अल्लाह की मोहब्बत में जांबाहक हुआ।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

केवल इतनी ही है सुल्तान-उल-हिंद की दौलत


दुनियाभर के गरीब और अमीर को नवाजने वाले, दुनियाभर के दौलतमंदों की झोलियां भरने वाले ख्वाजा गरीब नवाज की दौलत के बारे में जान कर आप चकित रह जाएंगे। जैन दर्शन का एक सिद्धांत है अपरिग्रह, वह ख्वाजा साहब के जीवन दर्शन में इतना कूट-कूट कर भरा है कि आप उसकी दूसरी मिसाल नहीं ढूंढ़ नहीं पाएंगे। वे भारत आते वक्त जो सामान लाए थे, वही सामान उनके पास आखिर तक रहा। उसमें तनिक भी वृद्धि नहीं हुई।
बुजुर्गवार बताते हैं कि उनके व्यक्तिगत सामान में दो जोड़ी कपड़े, एक लाठी, एक तीर-कमान, एक नमकदानी, एक कंछी और एक दातून थी। हर वक्त वे इतना ही सामान अपने पास रखते थे। उन्होंने कभी तीसरी जोड़ी अपने पास नहीं रखी। यदि कपड़े फटने लगते तो उसी पर पैबंद लगा कर साफ करके उसे पहन लेते थे। यह काम भी वे खुद ही किया करते थे।  पैबंद लग-लग कर उनके कपड़े इतने वजनी हो गए थे कि आखिरी वक्त में उनके कपड़ों का वजन साढ़े बारह किलो हो गया था।
केवल सामान के मामले में ही नहीं अपितु खाने-पीने के मामले में भी बेहद सीमित जरूरत रखते थे। पूरे दिन में वे दो बार कुरान पाठ कर लिया करते थे। इस दौरान इबादत में वे इतने व्यस्त हो जाते थे कि उन्हें खाने-पीने की ही खबर नहीं रहती थी। वे लगातार चार-पांच दिन रोजा रख लिया करते थे। यदि रोटी सूख जाती तो उसे फैंकते नहीं थे, बल्कि उसे ही भिगो कर खा लेते थे।
-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

अनके नामों से जाना जाता है ख्वाजा गरीब नवाज को


दुनिया के मशहूर चिश्ती संतों में ख्वाजा गरीब नवाज का नाम से सबसे ऊंचा है। अनेक नामों से उनकी इबादत कर अकीदतमंद सुकून पाते हैं।
ख्वाजा गरीब नवाज का मूल नाम मोइनुद्दीन हसन चिश्ती था। उन्हें यूं तो अनेक नामों से जाना चाहता है, मगर गरीब नवाज एक ऐसा नाम है, जिससे सभी आम-ओ-खास वाकिफ हैं। इस नाम के मायने हैं गरीबों पर रहम करने वाला। यूं तो अनेक नवाबों, राजाओं-महाराजाओं ने यहां झोली फैला कर बहुत कुछ हासिल किया है, मगर गरीबों पर उनका कुछ खास ही करम है। उनके दरबार में तकसीम होने वाले लंगर के लिए अमीर और गरीब एक ही लाइन में खड़े होते हैं, यही वजह है कि उन्हें गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और आम लोगों के बीच ही बिताया। जो लोग आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि से गरीब थे, जिन्हें इबादत करना नहीं आता था, जिन्हें भक्ति व सच्चाई का ज्ञान नहीं था, उन्हें उन्होंने सूफी मत का ज्ञान दिया। उन्होंने किसी भी राजा या सुल्तान का आश्रय नहीं लिया और न ही उनके दरबारों में गए। उन्होंने स्वयं भी गरीबों की तरह सादा जीवन बिताया। इन्हीं गुणों के कारण उन्हें गरीब नवाज कहा जाता है, जो कि उनका सबसे प्रिय नाम है।
ख्वाजा साहब को अता-ए-रसूल के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब होता है खुदा के पैगंबर मोहम्मद साहब का उपहार। अपने जीवन का अधिकांश समय अजमेर से ही सूफीवाद का प्रचार-प्रसार करने और यहीं पर इबादत करने की वजह से उन्हें ख्वाजा-ए-अजमेर के नाम से भी पुकारा जाता है। वे हिंदल वली के नाम से भी जाने जाते हैं, जिसका मतलब होता हिंदुस्तान के संत और रक्षक। इसी प्रकार उन्हें सुल्तान-उल-हिंद भी कहा जाता है, जिसका मतलब आध्यात्मिक संदर्भ में हिंदुस्तान की अध्यात्मिक शक्तियों  का राजा होता है। इसी संदर्भ में उन्हें नायाब-ए-रसूल हिंद भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त उन्हें ताजुल मुकर ए बिन बल मुश्हक कीन भी कहते हैं, जिसके मायने है नैसर्गिक तेज व ज्ञान का आलोक, जिसके चारों ओर हमेशा खुशी ही खुशी और आशीर्वाद व रहमत बरसती रहती है। उन्हें सैयद उल आबेदीन भी कहते हैं, अर्थात पवित्र तजुल आशिकीन प्रेमियों के सम्राट। उन्हें ताज बुरहन उल वासेलीन यानि एकता के प्रतीक, आफताब ए जहान यानि संसार को बेटा, पनाह एक बे कसन यानि बेसहारा को शरण में लेने वाले और दलील उल अरेफी यानि अलौकिक प्रकाश या नूर कहा जाता है।

-तेजवानी गिरधर
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सांप्रदायिक सौहार्द्र की रोशनी देते हैं ख्वाजा गरीब नवाज


हिंदुस्तान की सरजमी पर अजमेर ही एक ऐसा मुकद्दस मुकाम है, जहां महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हर धर्म, मजहब, जाति और पंथ के लोग हजारों की तादात में आ कर अपनी अकीदत के फूल पेश करते हैं। कहने भर को भले ही वे इस्लाम के प्रचारक हैं, मगर उन्होंने इस्लाम के मानवतावादी और इंसानियत के पैगाम पर ज्यादा जोर दिया है, इसी कारण हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी बिना किसी भेदभाव के यहां आ कर सुकून पाते है। हकीकत तो यह है कि यहां जितने मुस्लिम नहीं आते, उससे कहीं ज्यादा हिंदू आ कर अपनी झोली भरते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द्र की ऐसी मिसाल दुनिया में कहीं भी नजर नहीं आती। उनकी दरगाह की वजह से अजमेर को सांप्रदायिक सौहाद्र्र की अनूठे मुकद्दस मुकाम  के रूप में गिना जाता है।
राज-पाठ, शासन-सत्ता और धर्मांतरण से विमुख गरीब नवाज के भारत आगमन का मकसद यहां की आध्यात्कि संस्कृति के साथ मिल-जुल कर एक ही ईश्वर की उपासना करना और अलौकिक ज्ञान अर्जित कर उसका प्रकाश बांटना था।
ख्वाजा साहब के बारे में यह उक्ति बिलकुल निराधार है कि वे इस्लाम का प्रचार करने भारत आए थे। ऐसे मिथक उन कट्टरपंथी लोगों के हो सकते हैं जो कि इंसानी जिंदगी के हर पहलु को कट्टर धार्मिकता  से जोड़ते हैं। वे किसी भी धर्म से जुड़ी अन्य उदारवादी और मानवतावादी विचारधाराओं के अंतर को समझने में असमर्थ हैं। वे नहीं जानते कि दुनिया के सभी मूल धर्मों से उदित कुछ ऐसी विचारधाराएं भी हैं, जो कि मानव समाज में अपना अलग ही आध्यात्मिक महतव रखती हैं। वे विचारधाराएं भले ही अपने-अपने धर्मों से जुड़ी हुई हैं, मगर उनका एक मात्र मकसद मानव की सेवा करना है। जैसे मूल हिंदु धर्म से निकली रहस्यवादी विचारधाराएं, ईसाई धर्म से निकाल वैराग्यवाद और इस्लाम से निकली सूफी विचारधारा। इसी प्रकार अनेक मत और पंथ अपने धर्म के आडंबरों से मुक्त हुए और उन्होंने सारा जोर मानव की सेवा में ही लगा दिया। ख्वाजा साहब का मूल धर्म हालांकि इस्लाम ही था, लेकिन वे इस्लाम व कुरान के मानवतावादी पक्ष में ही ज्यादा विश्वास रखते थे। यदि सूफी दर्शन का गहराई से अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि एक सूफी दरवेश केवल इस्लामी शरीयत का पाबंद नहीं होता, बल्कि उसकी इबादत या तपस्या इन मजहबी औपचारिकताओं से कहीं अधिक श्रेष्ठ होती है। इस्लाम धर्म के मुताबिक पांच वक्त की नजाम अदा करना, रमजान के महिने में तीन रोजे रख लेना, खैरात-जकात निकाल देना, हज को चले जाना तो सभी मुसलमान अपना मजहबी फर्ज समझ कर पूरा करते हैं, लेकिन एक सूफी संत के लिए अल्लाह ही इतनी सी इबादत करना नाकाफी है। वह केवल तीस रोजे से संतुष्ट नहीं होता, बल्कि पूरे 365 दिन भूखे रहना पसंद करता है। वह एक या दो हज नहीं बल्कि अपनी आध्यामिक शक्ति से सैकड़ों हज करने में विश्वास रखता है। एक सूफी शायर ने कहा है कि दिन बदस्त आवर कि हज्जे अकबरस्त यानि किसी दीन-दु:खी के दिन को रख लेना या उसे खुश कर देना एक बड़े हज के समान है।  इस नेक काम को हर सूफी संत बढ़-चढ़ कर अंजाम देता है। इसी कारण उसकी मान्यता यही रहती है कि उसे अल्लाह ने इस जमीन पर भेजा ही इसलिए है कि वह दीन-दु:खियों की ही सेवा करता रहे। सूफी मत की सबसे प्रबल अवधारणा ही यही है कि सभी धर्मों का प्रारंभ आत्मिक व आध्यात्मिक चिंतन से है। जब धर्म आत्मिक केन्द्र से हट जाते हैं तो उनमें केवल आडंबर और औपचारिकताएं शेष रह जाती हैं। वे धार्मिक उन्माद, कट्टरता और सांप्रदायिकता के रूप में ही प्रकट होती हैं। सूफी मत की मान्यता है कि एक आत्मविहीन धर्म पूरे सामाजिक संतुलन को बिगाड़ देता है। इसी असंतुलन की वजह से ही समाज में विद्वेष फैलता है और सांप्रदायिक दंगे भी इसी के देन हैं। सूफी मत के अनुसार किसी भी धर्म की पूर्ण परिभाषा और आत्मा उसके अध्यात्मिक रूप में ही निहित है, औपचारिकता में नहीं। यही वजह है कि दार्शनिक दृष्टि से गरीब नवाज के सूफी दर्शन और भारत के प्राचीन एकेश्वरवाद, एकात्म में पर्याप्त समानता है।

-तेजवानी गिरधर
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रविवार, 20 मई 2012

जेएलएन में सीसी टीवी केमरे लगाने में दिक्कत क्या है?

हाल ही फेसबुक पर अजमेर के एक जागरूक नागरिक श्री सोमेश्वर शर्मा ने एक ज्वलंत और निहायत ही जरूरी मुद्दा उठाया है। उन्होंने सवाल खड़ा किया है कि रोज अखबार में पढ़ते हैं कि जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में सीसी टीवी कैमरे लगेंगे, अरे भई कब लगेंगे? जब कोई बड़ा दंगा-फसाद हास्पिटल मैं होगा तब?
वे लिखते हैं कि हमेशा अखबारों में यह आता है कि डाक्टर और मरीज की लड़ाई हुई। कभी भी कोई मरीज आते ही नहीं लड़ता है। पहले वो डाक्टर से विनती करता है, डाक्टर साहब देख लो, जब डाक्टर साहब नहीं देखते तो मरीज देख लेता है उनको। सच बात तो यह है कि अस्पताल प्रशासन केमरे लगवाना ही नहीं चाहता, क्योंकि इससे आपातकालीन इकाई के अंदर के हालत रिकार्ड हो जाएंगे, जो अंदर की ढ़ील-पोल को खोल देंगे। जब डाक्टर ही विभाग के राज्यमंत्री डा. राजकुमार शर्मा का गिरेबान पकड़ सकते हैं, वो क्या मरीज की अंदर आरती उतारते होंगे, सोचने का विषय है। श्री शर्मा ने अपेक्षा की है कि कोमन काज सोसाइटी इस दिशा में कुछ करेगी।
श्री शर्मा की बात में दम तो है। जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में आए दिन मरीजों के परिजन और डाक्टर्स के बीच भिड़ंत होती रहती है। यहां कभी किसी मरीज के परिजन डाक्टरों के साथ मारपीट कर उत्पात मचाते हैं तो कभी मेडिकोज अस्पताल सहित आसपास के पूरे इलाके में उत्पात मचाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल में पुलिस चौकी भी स्थापित की गई, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। एक बार तो मारपीट की वारदात के बाद पूरे चार घंटे तक अराजकता का माहौल रहा, जिसे जंगलराज की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पुलिस चौकी में भी जम कर तोडफ़ोड़ हुई। मेडिकल कालेज के छात्रों ने इमरजेंसी वार्ड पर कब्जा कर लिया और मरीजों के परिजन के साथ मारपीट की।
अव्वल तो अस्पताल में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाने चाहिए। चाहे पुलिस की व्यवस्था हो चाहे अस्पताल प्रशासन के क्षेत्राधिकार वाले सुरक्षा गार्डों की, ताकि मरीजों के परिजन की हंगामा करने की हिम्मत ही न हो। सुरक्षा कर्मियों के अभाव में मरीज की परेशानी अथवा मृत्यु पर परिजन उत्तेजित हो जाते हैं और नियंत्रण के अभाव में बेकाबू हो जाते हैं। वे ये भी नहीं देखते इससे अन्य मरीजों को परेशानी होगी। हालत ये हो गई है कि हंगामा करना एक चलन सा हो गया है। यदि किसी को डाक्टर के इलाज से संतुष्टी नहीं है तो वह उच्चाधिकारियों से संपर्क कर सकता है। यदि डाक्टर की लापरवाही से मौत हुई तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया जा सकता है। लेकिन इतना इंतजार किसे है। हर कोई कानून हाथ में लेने को उतारू रहता है। और इसी से हालात बिगड़ते हैं।
होता असल में यूं है कि जब-जब भी कोई हंगामा होता है, प्रशासन व पुलिस हरकत में आते हैं, लेकिन जल्द ही ढ़ीले भी पड़ जाते हैं। नतीजतन आज तक इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। इस मामले में अस्पताल प्रशासन का रवैया ढुलमुल रहा है। अफसोसनाक बात ये भी है कि अस्पताल में भिड़ंत को लेकर न तो कोई राजनीतिक संगठन ठीक से बोला है और न ही किसी समाजसेवी संस्था ने आवाज उठाई है। उनका तो मानो ऐसी वारदातों से कोई लेना-देना ही नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि वह पुलिस, अस्पताल प्रशासन व मेडिकल कालेज के छात्रों के साथ मीटिंग कर कोई ऐसी मजबूत व्यवस्था करे ताकि भविष्य में एकाएक ऐसी वारदात न हो। यदि कभी हो भी जाती है तो उस पर तुरंत काबू पाने के इंतजाम होने चाहिए। उत्पात मचाने वालों पर नियंत्रण के लिए जरूरी है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपियों को सजा के अंजाम तक पहुंचाया जाए। अमूमन राजनीतिक दखलंदाजी के कारण या तो समझौता हो जाता है और या फिर मेडिकल छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए नरमी बरती जाती है। इसी कारण कानून-व्यवस्था का डर कभी कायम नहीं हो पाता। यदि यह तथ्य एक बार स्थापित हो जाए कि उत्पातियों को किसी भी सूरत में नहीं बख्शा जाएगा तो ऐसी वारदातों पर अंकुश लग सकता है।
अस्पताल में इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश के लिए विशेष रूप से आपातकालीन इकाई में सीसी टीवी केमरे लगाने की बात भी आई, जहां कि मारपीट की अधिसंख्य वारदातें होती हैं, मगर उसने कभी इस पर गंभीरता नहीं दिखाई। यदि वहां सीसी टीवी केमरे लग जाएं तो न केवल मरीजों के परिजनों पर कुछ अंकुश लगेगा, डाक्टर भी एकाएक उग्र नहीं होंगे। देखते हैं कि अस्पताल प्रशासन या जिला प्रशासन इस दिशा में कोई कदम उठता है या फिर श्री शर्मा की अपील पर कोमन काज सोसायटी जैसे किसी संस्था को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। 

-तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 19 मई 2012

यानि कि मेयर से ज्यादा पावरफुल हैं राजस्व निरीक्षक वर्मा

 ईश्वर वर्मा
मेयर कमल बाकोलिया और कुछ कांग्रेसी पार्षदों की शिकायत पर हालांकि राजस्व निरीक्षक ईश्वर वर्मा का तबादला बाड़मेर नगरपालिका में राजस्व निरीक्षक पद पर कर दिया गया, मगर चौबीस घंटे में ही ईश्वर वर्मा आदेश को रद्द करवा कर अजमेर आ गए। हालांकि वर्मा को पुराने पद पर नहीं रख कर मुख्यालय उपनिदेशक स्वायत्त शासन विभाग कार्यालय में रखा गया है, लेकिन इससे यह तो साबित हो ही गया है कि वे काफी पावरफुल हैं। दिलचस्प बात ये है कि स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने कांग्रेसी पार्षदों की तबादला आदेश निरस्त न करने की मांग को कोई तवज्जो नहीं दी। अब स्थिति ये है कि खिसियाए कांग्रेसी पार्षद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चादर के साथ अजमेर आने वाले नेताओं के सामने प्रदर्शन करेंगे।
मेयर कमल बाकोलिया भले इसे स्वीकार न करें कि राजस्व निरीक्षक ईश्वर वर्मा का तबादला उन्होंने करवाया है, मगर निगम सीईओ सी आर मीणा के बयान से यह साफ हो गया है कि मेयर व सीईओ के बीच विवाद की वजह से ही वर्मा का तबादला हुआ। खुद मीणा से इसे स्वीकार करते हुए कहा है कि उनके और मेयर के बीच चल रहे विवाद का खामियाजा वर्मा को भुगतना पड़ा। असल में जैसे ही वर्मा का तबादला हुआ, उन्होंने अपने संगठन राजस्थान नगरपालिका कर्मचारी फैडरेशन के अध्यक्ष राजेन्द्र सारस्वत से संपर्क साधा। सारस्वत ने तबादले को गलत बताते हुए आंदोलन की चेतावनी दी दी। इस सिलसिले में कर्मचारी नेता धारीवाल से मिले भी। इस पर दबाव में आ कर धारीवाल ने तबादला आदेश निरस्त करते हुए उसमें संशोधन कर दिया। वर्मा को अजमेर में ही रखते हुए उपनिदेशक कार्यालय में भेज दिया। हालांकि दूसरी ओर कांग्रेस पार्षदों ने स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल को संयुक्त हस्ताक्षर युक्त पत्र भेज कर मांग की थी कि वर्मा के भ्रष्ट आचरण को देखते हुए उन्हें दुबारा निगम या अजमेर में पोस्टिंग नहीं दी जाए, लेकिन धारीवाल ने उनकी पहली मांग तो पूरी कर दी, मगर अजमेर में न रखने की मांग को उड़ा दिया। अब धारीवाल के पास कहने को ये है कि मेयर व पार्षदों की मांग पर वर्मा को अजमेर नगर निगम से हटा दिया गया है। रहा सवाल उपनिदेशक कार्यालय में लगाने का तो उस पर उन्हें ऐतराज करने का अधिकार नहीं है।
जहां तक विवाद का सवाल है, बताया जाता है कि कुछ पार्षदों ने निगम प्रशासन पर शहर में बढ़ते अवैध निर्माणों की अनदेखी और कार्रवाई नहीं होने के आरोप लगाए थे। इस पर मेयर बाकोलिया ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी सी आर मीणा से रिपोर्ट मांगी थी। कदाचित इसी को लेकर दोनों के बीच विवाद हो गया। खुद राजस्व निरीक्षक वर्मा ने भी इसका खुलासा करते हुए कहा है कि उन्हें मेयर और सीईओ की लड़ाई का खामियाजा भुगतना पड़ा। सीईओ सबसे बड़े अधिकारी हैं, उनके आदेश की पालना करनी ही पड़ती है और मेयर के आदेशों की पालना भी करते रहे हैं। इसके बावजूद मेयर नाराज हैं। यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि वर्मा अजमेर वर्षों रहे हैं। उन्होंने अब न जाने कितने अफसरों के साथ तालमेल रखा है। इसके अतिरिक्त कर्मचारी संगठन से भी जुड़े हुए हैं। उनकी इसी पावर के चक्कर में मेयर की प्रतिष्ठा पर आंच आ गई।
ज्ञातव्य है कि वर्मा के साथ आयुक्त महेन्द्र सिंह टेलर का भी तबादला किया गया, मगर उन्हें एपीओ कर मुख्यालय अजमेर में ही रख दिया गया था। उन्हें पहले से पता लग गया था कि उनका तबादला होने वाला है, इस कारण एक बैठक में शामिल होने के सिलसिले में फाइल पर लिख दिया कि उनका तबादला होने वाला है, लिहाजा दूसरे अफसर को भेज दिया जाए। उन्हें अफसोस है तो ये कि अजमेर में उनका तबादला किसी की सिफारिश से नहीं हुआ था। तीन माह में अचानक तबादला होने का कोई कारण नजर उन्हें नहीं आ रहा है।

-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 18 मई 2012

सावित्री स्कूल संकट में, बचाने की जिम्मेदारी नसीम पर

सावित्री कन्या सीनियर सेकंडरी स्कूल

नसीम अख्तर 
एक ओर तो सरकार बालिका शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य करने के दावे करती है, दूसरी ओर कानून की पेचीदगी का हवाला दे कर अजमेर के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित सावित्री कन्या सीनियर सेकंडरी स्कूल बंद होने के कगार पर छोड़ रही है। शिक्षकों व कर्मचारियों को अन्य सरकारी स्कूलों में भेजे जाने के आदेश से स्कूल के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यूं तो शहर के राजनेता, शिक्षक संघ और अन्य संगठन आगे आए हैं, मगर अहम जिम्मेदारी शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ पर है।
अव्वल तो अफसोस इस बात का है कि शिक्षा राज्य मंत्री होते हुए भी उनको जानकारी ही नहीं थी और विद्यालय से शिक्षकों को रिलीव किए जाने संबंधी आदेश कब आ गए? हालांकि वे कह रही हैं कि इस मामले पर खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात करेंगी और किसी भी सूरत में स्कूल को बंद नहीं होने देंगी, जो कि संतोषजनक है, मगर उनकी अनभिज्ञता पर अफसोस होना लाजिमी है। इसके सीधे से मायने हैं कि समय रहते उन्होंने ख्याल नहीं रखा। यह तो सब को पता था कि सावित्री स्कूल बंद होने की ओर सरक रहा है। ऐसे में खुद उन्हें ही फालोअप करना चाहिए था। यदि अफसरों ने उन्हें जानबूझ कर अंधेरे में रखा तो यह और भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे राज्य में लालफीताशाही के संकेत मिलते हैं। इसका प्रमाण ये है कि स्कूल के कर्मचारी जब प्रमुख शासन सचिव शिक्षा से मिलने गए तो उन्होंने उन्हें यह कह कर बेरंग लौटा दिया कि सरकार के आदेश हैं, वे कुछ नहीं कर सकते। सवाल उठता है कि क्या वे सरकार से अलग हैं अथवा उनकी जानकारी व सहमति के बिना ही आदेश जारी हो गए? कैसी विडंबना है? जाहिर सी बात है कि जो अधिकारी फैसले में शामिल हो, वो भला आश्वासन दे भी क्या सकता है? इस बारे में शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा का कहना है कि उन्होंने अधिग्रहण के लिए विधि विभाग व महाधिवक्ता से राय ली थी, लेकिन उनका कहना है अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री चाहें तो नियमों में शिथिलता दे सकते हैं। जब वे जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिथिलता दे सकते हैं तो प्रदेश के शिक्षा महकमे के सर्वेसर्वा होने के नाते प्रदेश के पुराने व प्रतिष्ठित स्कूल को बचाने की खातिर उन्होंने मुख्यमंत्री से बात क्यों नहीं की? जाहिर है अजमेर उनका कार्यक्षेत्र नहीं है, इस कारण उन्होंने कोई रुचि नहीं ली। ऐसे में शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर सहित स्थनीय जनप्रतिनिधियों को ही दबाव बनाना होगा।
इस सिलसिले में राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन के प्रदेशाध्यक्ष विजय सोनी का तर्क दमदार है। जब पूरा सैटअप मुफ्त में मिल रहा है तो अफसर व शिक्षा मंत्री अधिग्रहण करने में हिचक क्यों रहे हैं? यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि सरकार ने पिछले वर्ष शिक्षकों का स्थानांतरण इस आधार पर ही रोका था कि स्कूल के अधिग्रहण का प्रस्ताव विचाराधीन है। सोनी का कहना है कि राउमावि क्रिश्चियनगंज के भवन में ही राबाउमावि क्रिश्चियनगंज, राउप्रावि आतेड़ व राबाउप्रावि राजीव कालोनी स्कूल संचालित है। इसी प्रकार राबाउमावि होलीदड़ा मात्र तीन-चार कमरों में ही चल रही है। ऐसे में सावित्री कन्या महाविद्यालय को राजकीय कन्या महाविद्यालय में शिफ्ट किया गया था। उसी प्रकार इनमें से स्कूलों को यहां पर शिफ्ट कर दिया जाए तो हींग लगे ना फिटकरी और रंग आए चोखा वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है। इन सरकारी स्कूलों में भवन की समस्या समाप्त हो जाएगी और सरकारी स्टाफ भी मिल जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि स्कूल के प्रशासक ने भी पूर्व में सरकार को इस आशय की रिपोर्ट भिजवाई थी कि सावित्री विद्यालय को अधिगृहीत करने में राज्य सरकार को एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ेगा। वर्तमान में इसका कोई प्रबंध मंडल नहीं है और न ही कोई विवाद है। ऐसे में सरकार इसे अधिग्रहित कर इसका संचालन अपने हाथ में लेकर छात्राओं की शिक्षा सुचारू रख सकती है। अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता ने भी इस मसले पर चिंता जताई है कि सावित्री स्कूल के अधिग्रहण की कार्यवाही विचाराधीन है और वर्तमान में स्कूल में 2015 बालिकाएं अध्यनरत हैं, ऐसे में शिक्षा उपनिदेशक के निर्णय से अनिश्चय का माहौल बन गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि इसका शीघ्र समाधान कर अभिभावकों व शिक्षिकाओं को राहत प्रदान कराएं। रलावता का कहना है कि सावित्री कॉलेज की ही तरह सावित्री स्कूल का भी हनुमानगढ़ पैटर्न पर मय स्टाफ के अधिग्रहण किया जाए। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने भी शिक्षा मंत्री को पत्र लिख कर कालेज की तरह स्कूल को भी अधिग्रहित करने का आग्रह किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शिक्षा मंत्री सहित कांग्रेसी नेताओं के दबाव से स्कूल का अस्तित्व बचाया जा सकेगा। 

-तेजवानी गिरधर
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कामनकाज सोसायटी की पहल वाकई सराहनीय

अजमेर शहर के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील कामनकाज सोसायटी ने वर्षों से अपेक्षित सीवरेज सिस्टम का चालू करवाने के लिए वाकई सराहनीय कदम उठाया है। शहर में पिछले कई साल से चल रहे सीवरेज कार्य को जल्द अंजाम तक पहुंचाने व नागरिकों को सहूलियत देने को लेकर कामनकाज सोसायटी की ओर से दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव समेत संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
ज्ञातव्य है कि अजमेर में वर्ष 2002 में राजस्थान शहरी ढांचागत विकास परियोजना आरयूआईडीपी द्वारा सीवरेज निर्माण का कार्य शुरू किया था, जो 2008 में समाप्त हो गया है। इसके तहत 207.23 किलोमीटर सीवरेज लाइन बिछाने एवं 20 एमएलडी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण खानपुरा में किया जा चुका है। 61.62 करोड़ रुपए खर्च किए जाने के बावजूद अब तक न तो नगर निगम सीवरेज संचालन का दायित्व ग्रहण किया है और न ही सीवेज लाइनों का कनेक्शन घरों में किया गया है। सरकारी कामकाज की कछुआ चाल के लिए जहां प्रशासन दोषी है, वहीं हमारे जनप्रतिनिधि भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जो अपेक्षित दबाव बना कर काम समय पर पूरा नहीं करवा पा रहे। ऐसे में सोसायटी के सचिव मनोज मित्तल ने अपने वकील पीयूष नाग के जरिए हाईकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार समेत, नगरीय विकास विभाग, स्वायत्त शासन विभाग, संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, नगर निगम और नगर सुधार न्यास के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि सीवरेज योजना में जनता का धन लगा है। इसके निर्माण के दौरान नागरिकों को यातायात संबंधी भीषण परेशानियों, जगह जगह खुदी सड़कों की वजह से कई हादसे भी हुए और लोगों को जान तक गंवानी पड़ी। जिस परियोजना पर 170 करोड़ रुपए खर्च होने जा रहे हैं, उसका लाभ अजमेर की जनता को मिलना चाहिए। मित्तल ने अपनी याचिका में कहा कि घरों में सीवर लाइन के कनेक्शन का कार्य तुरंत प्रारंभ कर सीवर सिस्टम को प्रभावी तरीके चालू किया जाए। अजमेर निगम को सीवरेज व ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन का दायित्व व कार्य सौंपने के निर्देश दिए जाएं, निगम असमर्थ हो तो अन्य एजेंसी को जिम्मेदारी दी जाए। जेएनएनयूआरएम के तहत 108 करोड़ की लागत से खानपुरा में 40 एमएलडी, आनासागर जोन में 13 एमएलडी और पुष्कर में 3.5 एमएलडी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण और शेष बची सीवर लाइनों का कार्य समय पर पूरा हो। सीवर लाइन डालने 15 दिन के अंदर खोदी गई सड़कों को अनुबंध की शर्तों के अनुसार ठीक किया जाए। सीवरेज लाइन के संचालन एवं देखरेख के लिए पृथक से सीवरेज सेल गठित करे ताकि कार्य कुशलतापूर्वक संचालित हो सके। नगर सुधार न्यास, जेएनएनयूआरएम के तहत करवाए जा रहे सीवरेज निर्माण कार्य में नगर निगम अथवा अन्य एजेंसी की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने इससे काम में कोई कमी नहीं रहे। जो क्षेत्र अब तक परियोजना में शामिल नहीं किए गए हैं, उन्हें भी शामिल किया जाए। आनासागर ट्रीटमेंट प्लांट के चालू होने तक यहां उत्पन्न दुर्गंध की समस्या का अविलंब समाधान किया जाए। जब तक अजमेर में सीवरेज सिस्टम पूरी तरह कार्यशील नहीं हो तक तक सीवरेज सिस्टम से संबंधित सभी गतिविधियों के लिए हाईकोर्ट की देखरेख में एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया जाए। इसमें न्यास, निगम, अन्य सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों एवं नगर के प्रमुख नागरिकों को शामिल किया जाए तथा समय समय पर रिपोर्ट कोर्ट में पेश हो। इस याचिका पर की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव समेत संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। उम्मीद है कि सोसायटी की इस पहल का जनता को जल्द लाभ मिलेगा।
ज्ञातव्य है कि इससे पहले अजमेर व पुष्कर की छह झीलों के भराव क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण और निर्माण कार्यों पर रोक के लिए भी सोसायटी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिस पर कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया था। हालांकि हमारी निष्पक्ष व कड़ी न्यायिक व्यवस्था के चलते सोसायटी को यह जनहितकारी सफलता मिली, लेकिन कितना अफसोसनाक पहलु है कि सरकार और प्रशासन अपने स्तर पर जनहित में कुछ नहीं करना चाहते। उन पर अंकुश लगाने के लिए कोर्ट की मदद लेनी पड़ती है। यदि सोसायटी जैसी संस्थाएं न हों तो प्रशासन, नगर परिषद व नगर सुधार न्यास में बैठे स्वार्थी तत्व पूरे आनासागर को ही बेच खाएं। सोसायटी वाकई साधुवाद की पात्र है। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

टंडन के उपवास पर तकलीफ तो व्यवस्थाएं क्यों नहीं सुधारीं?

ख्वाजा साहब के 800वें सालाना उर्स की अव्यवस्थाओं को लेकर बार अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव राजेश टंडन का एक दिन का उपवास विवाद में आ गया। विवाद इतना भर है कि प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने जबरन टांग अड़ा कर यह कह दिया है कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा की यह बात है ही बेहूदा कि टंडन को पूर्व सचिव के नाते उपवास करने का अधिकार नहीं है। कौन बेवकूफ होगा जो अपने पूर्व पद के नाते आंदोलन करेगा। पूर्व पद के नाते आंदोलन होते भी हैं क्या? रहा सवाल टंडन के पूर्व सचिव होने का तो वह ऐसा पद है, जो उनसे अब कोई नहीं छीन सकता। ऐसे में यह शर्मा की अड़ंगी ही मानी जानी चाहिये क्योंकि टंडन कांग्रेस के बैनर तले अथवा यह बता कर कि वे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव हैं और उस हैसियत से तो उपवास कर नहीं रहे, वे तो वैसे भी निजी तौर पर कर रहे हैं।
अगर इसे शर्मा के महासचिव होने के नाते प्रदेश कांग्रेस का फरमान माना जाए तो असल बात ये है कि टंडन के उपवास करने से कांग्रेसी सरकार की ही हल्की होती है। आखिर वे हैं तो वरिष्ठ कांग्रेसी ही न, भले ही अभी किसी पद न हों। शर्मा को लगा होगा कि कहीं टंडन के साथ अन्य कांगे्रसी भी न खड़े हो जाएं। मगर असल बात ये है टंडन कांग्रेस सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि जिला प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ उपवास पर बैठे हैं। उन्होंने इस सिलसिले में कभी कांग्रेस सरकार की आलोचना नहीं की। वे तो यही कहते रहे कि जिला प्रशासन लापरवाही बरत रहा है। इसकी शिकायत वे हाल ही उर्स मेले की तैयारियों के सिलसिले में अजमेर आए राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू से भी कर चुके थे। उनके सामने ही अपने उपवास करने का ऐलान भी कर चुके थे। शर्मा की इस बात को ध्यान में रखा जाए कि टंडन को व्यवस्था में कमियां नजर आती हैं तो पार्टी या प्रशासन के सामने रख कर दूर कराने का प्रयास करें, तब भी टंडन कहीं गलत नजर नहीं आते। वे राजस्थान प्रशासन के सबसे बड़े अफसर को शिकायत कर चुके। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को नकारा बताते हुए उन्हें हटाने का आग्रह सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा से भी कर चुके। उसके बाद भी यदि जिला प्रशासन व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं करता तो प्रशासन ही दोषी हुआ न, टंडन कैसे दोषी हो गए? प्रशासन ही क्यों कांग्रेस संगठन व सरकार भी उतने ही जिम्मेदार हैं। उन्हें टंडन की शिकायत पर गौर करना चाहिए था। तब शर्मा कहां थे। तब उन्हें यह ख्याल नहीं आया कि टंडन के उपवास से कांग्रेस सरकार की बदनामी होगी।
रहा सवाल शर्मा के यह कहने का कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद उर्स की व्यवस्थाओं पर नजर रखे हुए हैं और सरकार ने उर्स को लेकर अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराई है तो यह सही है, मगर स्वीकृत तीन करोड़ रुपए से क्या हो सकता था? यह भी तब मंजूर की जब तीन सौ करोड़ की योजना पर खुद ही ध्यान नहीं दिया और वह अधर में लटकी गई। इज्जत बचाने की खातिर तीन करोड़ दिए। बहरहाल, जो तीन करोड़ आए, उनसे हुए कामों का परिणाम ये है कि पूरे मेला क्षेत्र में आज भी भारी अव्यवस्थाएं पसरी पड़ी हैं।
शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया है। इसे सही माना जाए तो कांग्रेस ने उन्हें पिछले तीन साल में दिया भी क्या है? इतने वरिष्ठ कांग्रेसी को बर्फ में लगा रखा है। वो तो वे अपने दम पर दुबारा बार अध्यक्ष बन गए, वरना कांग्रेस तो उन्हें भुला ही चुकी थी। ऐसे में अब पूर्व सचिव होने के नाते उपवास पर ऐतराज करने के क्या मायने रह जाते हैं?
असल में दरगाह की व्यवस्थाओं को लेकर कांग्रेस में ही दो धड़े से बन गए हैं। एक ओर शिक्षा मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर हैं तो दूसरी ओर अन्य। इससे पहले जब पूर्व विधायक डा. श्रीगोपाल बाहेती बोले थे तो नसीम अख्तर खेमे के चंद कांग्रेसियों ने उस पर कड़ा ऐतराज किया था। उन्होंने इसे डा. बाहेती राजनीतिक स्वार्थ करार दिया था और आरोप लगाया था कि डा. बाहेती ने सार्वजनिक बैठक लेकर लोगों को प्रशासन के खिलाफ उकसाने, भड़काने एवं गुमराह करने का काम किया है, जबकि सरकार ने पहली बार नसीम अखतर को उर्स की जिम्मेदारी सौंपी है। जाहिर सी बात है कि उन्हें तकलीफ ये रही कि जब मंत्री महोदया को जिम्मेदारी दे दी गई है तो बाहेती बीच में कैसे बोल रहे हैं। बाहेती तो चूंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं, इस कारण विवाद से बचते हुए चुप हो गए, मगर टंडन ने झंडा हाथ में थामे रखा।
उधर भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहित फखर ने टंडन के आंदोलन को समर्थन दे कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। टंडन की हालत अन्ना हजारे जैसी हो गई है। बेचारे अन्ना बार बार इंकार करते रहे कि संघ से उनका कोई लेना देना नहीं है, मगर संघ वाले अपनी मर्जी से ही समर्थन करने लगे तो अन्ना भी इंकार नहीं कर पाए। कुल मिला कर टंडन के लिए मामला पेचीदा हो गया है। कहीं अजमेर के अन्ना के रूप में उनका नया अवतार तो नहीं होने वाला है?

-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 16 मई 2012

न्यास की एक और मंशा पर पानी फेरा पत्रकारों ने

अजमेर। पत्रकारों की पहल पर स्वायत्त शासन विभाग व नगरीय विकास विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव जी. एस. संधु ने अजमेर नगर सुधार सचिव श्रीमती पुष्पा सत्यानी को नसीहत दे दी है कि वे आवासीय योजनाओं में मकानों के व्यावसायिक भू उपयोग परिवर्तन न नहीं करें। जाहिर सी बात है कि भू उपयोग परिवर्तन के मामलों में आवेदक कुछ ले दे कर अपना काम करवाना चाहता है। यानि कि संधु के निर्देश के बाद अब खाने-कमाने का यह जरिया तो बंद हो जाएगा।
असल में हुआ यूं कि संधु हाल ही जब उर्स की तैयारियों के सिलसिले में अजमेर आए तो पत्रकारों ने उनसे कई विषयों पर चर्चा की। दैनिक नवज्योति के पत्रकार संजय माथुर ने संधु के सामने सवाल खड़ा किया कि आवासीय योजना के भूखंडों का योजना मानचित्र से परे जा कर भूउपयोग परिवर्तन आवासीय से व्यावसायिक करके योजना के मूल स्वरूप को क्यों बदला जा रहा है, जबकि योजना में ही व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पहले से ही स्थान आरक्षित है? इसी सिलसिले में उन्होंने न्यास की दोहरी नीति की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। एक ओर तो वह किसी कालोनाइजर की स्कीम में व्यावसायिक परिसर, स्कूल, पार्क आदि के लिए पर्याप्त जगह न छोड़े जाने पर उसका नक्शा निरस्त कर देता है, जब कि खुद की बसाई हुई कालोनियों में सारे नियम कायदे तक पर रख रहा है।
इस पर संधु ने न्यास सचिव की ओर मुखाबित होते हुए कहा कि इस प्रकार के आवेदन करने वालों को हतोत्साहित कीजिए। इसी प्रकार के निर्देश नगर निगम सीईओ सी आर मीणा को भी दिए कि हाउसिंग बोर्ड से निगम को हस्तांतरित योजनाओं में पूर्व में आवंटित आवासों का व्यावसायिक प्रयोजन के लिए भू उपयोग परिवर्तन पर पाबंदी लगाएं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आवासीय योजनाओं को उसी रूप में रहने दें, उसका स्वरूप न बिगाड़ें। यहां उल्लेखनीय है कि न्यास ने हाल ही भू उपयोग परिवर्तन के कुछ आवेदित मामलों में आपत्तियां मांगी थी, जिसका मतलब ये है कि न्यास भू उपयोग करने को तैयार है। बहरहाल, स्वायत्त शासन महकमे के सबसे बड़े अफसर के निर्देश के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि अजमेर को सुंदर और सुव्यवस्थित करने की जिम्मेदारी रखने वाले अधिकारी इसे और नहीं बिगडऩे देंगे।
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि संजय माथुर की रिपोर्ट पर ही भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने अफोर्डेबल स्कीम के तहत आवास बनाने की योजना में की जा रही नियमों की अनदेखी का मसला सरकार के सामने उठाया और उसे बंद करने के आदेश हो गए। इसमें भी अच्छी खासी आमदमी होने की उम्मीद थी, जिस पर पानी फिर गया। वस्तुतः माथुर को स्वायत्त शासन विभाग से संबंधित मामलों में विशेषता हासिल हैं, जिसकी खुद संधु ने भी आश्चर्य जाहिर करते हुए सराहना की।
पत्रकारों के भूखंडों की लाटरी निकलने का रास्ता साफ
माथुर व वहां मौजूद अन्य पत्रकारों की पहल से नगर सुधार न्यास में पत्रकारों के लिए भूखण्ड आवंटन की लाटरी निकलने का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है। जब संधु को बताया गया कि नगर सुधार न्यास प्रशासन जयपुर की बैठक के निर्णयों को जयपुर विकास प्राधिकरण से जुड़ा निर्णय बता कर अजमेर में इन्हें लागू नहीं कर रहा है और राज्य स्तरीय समिति के निर्णय न्यास प्रशासन नहीं मानता, तो संधु ने न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी को निर्देश दिए कि वे उक्त निर्देशों की रोशनी में न्यास में प्राप्त पत्रकारों के आवेदनों का निस्तारण कर भूखण्ड आवंटन की लाटरी जल्द निकालें।
उल्लेखनीय है कि संधु की अध्यक्षता में ही गत 16 जून 2011 को जयपुर में पत्रकारों की आवासीय समस्याओं के समाधान के लिए गठित राज्य स्तरीय समिति की बैठक में श्रमजीवी पत्रकारों को पीपीएफ विवरणी जमा कराने के साथ फार्म 16 भरकर देने की अनिवार्यता से मुक्ति दी गई थी। समिति ने श्रमजीवी पत्रकारों के लिए पीपीएफ विवरणी देने की अनिवार्यता को हटाने के साथ ही यह निर्णय लिया था कि साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक समाचार पत्रों के लिए ही फार्म नंबर 16 एवं आयकर विवरण का शपथ पत्र लिया जायेगा। इस समिति ने उन पत्रकारों को भी भूखण्ड का आवंटन का पात्र माना था, जो राजस्थान के मूल निवासी है, किंतु प्रदेश के बाहर कार्यरत हैं, लेकिन उनके साथ यह शर्त जोड़ी थी कि उन्हें अपने मूल निवास का प्रमाण पत्र देना होगा। चूंकि संधु को इस बारे में पूरी जानकारी थी, इस कारण वे तुरंत सहमत हो गए और हाथोंहाथ न्यास सचिव को निर्देश दे दिए। इस प्रकार पत्रकारों की तकरीबन छह साल पुरानी समस्या का समाधान होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। उल्लेखनीय है कि पूर्व कलैक्टर राजेश यादव ने अपने पूरे कार्यकाल में इसमें रुचि नहीं ली और जब उनके तबादला आदेश आए तो रिलीव होने वाले दिन न जाने क्या सोच कर आवेदन पत्रों की छंटनी करवाई, मगर उनकी लाटरी नहीं निकाली। उधर जैसे नई कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल ने कार्यभार संभाला तो उनके सामने अनेक शिकायतें पेश हो गईं। इससे वे भिन्ना गईं और यह तय कर लिया कि कम से कम वे तो लाटरी नहीं निकालेंगी। जब न्यास अध्यक्ष पद पर नरेन शहाणी नियुक्त हुए तो पत्रकारों की उम्मीद जागी, मगर वे भी किसी विवाद फंसने की आशंका में मामले को लटकाते रहे। आखिरकार अब जब कि विभाग के सर्वोच्च अधिकारी ने निर्देश दे दिए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि अब जल्द ही पत्रकारों का अपना घर बनाने का सपना पूरा हो जाएगा। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com