शनिवार, 25 मई 2013

डॉ. दत्ता की मौजूदगी से भी तकलीफ, गैर मौजूदगी से भी परेशानी

जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. बी.एस. दत्ता अमूमन चर्चा में रहते हैं। कभी मरीज के परिजन को थप्पड़ मारने या कलेक्टर से भिड़ जाने पर तो कभी कठिनतम ऑपरेशन सफलतापूर्वक करने के लिए। अस्पताल में वे अकेले ऐसे डॉक्टर हैं, जिनकी तीन लोक से मथुरा न्यारी है। राजनीतिक दबाव में न आने और कड़क व्यवहार की वजह से उनके तबादले की मांग उठती रही है तो अब जब उनका तबादला उदयपुर के रविंद्रनाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज में एमसीआई निरीक्षण के तहत किया गया है तो मरीजों को होने वाली परेशानी से चिंतित हो कर जेएलएन मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. पी. के. सारस्वत कहते हैं कि इस बारे में वह राज्य सरकार से बातचीत करेंगे। अस्पताल में एक ही न्यूरो सर्जन है और उनका भी तबादला कर दिया जाता है तो व्यवस्था बनाने में परेशानी हो सकती है।
असल में डॉ. दत्ता न्यूरो सर्जरी के माहिर हैं। उनकी ख्याति दूर-दूर तक है। वे कितने अनुशासनप्रिय और सफाई पसंद हैं, इसका अंदाजा पूरे अस्पताल को देखने और दूसरी ओर उनका वार्ड देखने से हो जाएगा। स्वाभाविक सी बात है कि राजनीतिकों को अनुशासनप्रिय डॉक्टर या अफसर पसंद नहीं आता क्यों कि वह उनके राजनीतिक रुतबे में नहीं आता। उससे भी बड़ी बात कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि उनका तबादला कर दिया जाएगा। कड़वा सच तो ये है कि उन्हें सरकारी नौकरी की परवाह ही नहीं है। वे चाहें तो चौगुने पैकेज पर देश के किसी भी अस्पताल में लग सकते हैं। ऐसे में भला वे काहे को डरें नेताओं या प्रभावशाली लोगों से। बताया जाता है कि वे किसी की सिफारिश नहीं मानते। सिफारिश पर उलटा चिढ़ जाते हैं। इसके विपरीत गरीब मरीजों की सेवा वे मन लगा कर करते हैं। उन्हें अपनी ओर से भी दवाइयां दे देते हैं। कहते हैं न कि हर आदमी में एक ऐब होता है। अति योग्य व्यक्ति में तो होता ही है। यूं मान लीजिए कि इसी कारण डॉ. दत्ता में ऐब है।
एक बार देर रात इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के दो बंदे एक दुर्घटना का शिकार होने पर अस्पताल लाए गए। मीडिया का रुतबा तो आप जानते ही हैं। जयपुर के वरिष्ठ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से संपर्क साधा कि दोनों का ठीक से इलाज कराया जाए। सीएम ऑफिस से कलेक्टर राजेश यादव के पास फोन आया। वे दौड़े-दौड़े अस्पताल आए। उन्होंने डॉ. दत्ता से मोबाइल से संपर्क किया तो उन्होंने स्विच ऑफ कर दिया। इस पर उन्हें पुलिस के एक वाहन से बुलवाया गया। वे आते ही मरीजों के पास गए और कलेक्टर की परवाह ही नहीं की। वहां दोनों के बीच टकराव हो गया। कलेक्टर उन्हें चेता गए कि अपना बोरिया-बिस्तर गोल कर लेना। कल अजमेर में नजर नही आओगे। चूंकि यादव भी बड़े बिंदसा कलेक्टर थे, इस कारण लोगों ने सोचा कि अब मिला सेर को सवार सेर। कलेक्टर ने सरकार को शिकायत भी भेजी, मगर डॉ. दत्ता का कुछ नहीं बिगड़ा। तब लोगों को  पता लगा कि सरकार भी उनके आगे कितनी मजबूर है।
बहरहाल, ऐसे बदमिजाज कहाने वाले डॉ. दत्ता का जैसे ही तबादला हुआ है तो सब को चिंता है कि अजमेर के सिर की चोट के गंभीर मरीजों का क्या होगा? उन्हें सीधे जयपुर ही रैफर करना होगा। वाकई यह चिंता का विषय है। हालांकि मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. पी. के. सारस्वत सरकार से उन्हें यहीं रखने का अनुरोध कर रहे हैं, मगर देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर