रविवार, 31 अगस्त 2014

जनप्रतिनिधि की नियुक्ति के बिना एडीए से ज्यादा उम्मीद बेमानी

जब अजमेर नगर सुधार न्यास को अजमेर विकास प्राधिकरण के रूप में तब्दील किया गया था और इस कार्यक्षेत्र अजमेर के अतिरिक्त पुष्कर व किशनगढ़ किया गया तो यहां के निवासियों में खुशी की लहर थी कि अब इस इलाके का तेजी से विकास होगा, मगर चूंकि इसके अध्यक्ष पद पर अब तक किसी राजनीतिक नेता की नियुक्ति नहीं की गई है, इस कारण विकास को जो गति मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पा रही है। सीधी-सीधी बात है कि सरकारी अधिकारी की विशेष रुचि लेकर विकास करने की कभी मंशा नहीं होती, जबकि राजनीतिक नेता वाहवाही के लिए ही सही, कुछ न कुछ नया करने के लिए पूरी ताकत झोंक देता है। मगर अफसोस कि राज्य में नई सरकार बने आठ माह हो गए हैं, मगर इसका जिम्मा सरकारी अधिकारी ही संभाले हुए हैं, जो कि केवल रूटीन का काम करने तक सीमित रहते हैं।
आपको याद होगा कि पिछली सरकार ने बजट में अजमेर प्राधिकरण की घोषणा की थी, तब न्यास अध्यक्ष पद पर नरेन शाहनी भगत थे। कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें प्राधिकरण बनने से पहले ही अध्यक्ष पद की अग्रिम बधाई दे दी थी, लेकिन भूमि के बदले भूमि प्रकरण में नाम आने और एसीबी की कार्रवाई के बाद शाहनी को इस्तीफा देना पड़ा था। दो माह बाद विधानसभा चुनाव होने थे, ऐसे में अध्यक्ष पद सरकार प्राधिकरण के पहले अध्यक्ष पद का दायित्व कलेक्टर वैभव गालरिया को सौंपा गया। जाहिर तौर पर चुनाव होने तक उनसे कोई विशेष अपेक्षा थी भी नहीं, क्योंकि उन पर चुनाव कार्य शांतिपूर्वक कराने का जिम्मा था।
नई सरकार बनी तो फिर उम्मीद जगी कि अब कोई स्थाई नियुक्ति होगी, मगर सरकार ने सीनियर आईएएस देवेंद्र भूषण गुप्ता को अध्यक्ष पद का अतिरिक्त पदभार संभलवा दिया और मनीष चौहान को आयुक्त बनाया गया। यहां उल्लेखनीय है कि प्राधिकरण के नए अध्यक्ष गुप्ता अजमेर के कलेक्टर रह चुके थे, इस कारण उन्हें अजमेर के हालात की पूरी जानकारी थी और यहां की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के अनुरूप विकास को गति दे सकते थे। आयुक्त मनीष चौहान ने भी जता दिया कि वे प्राधिकरण में बिचौलियों पर नकेल कसेंगे, जिससे आम जनता को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि अच्छा प्रशासन उनकी प्राथमिकता होगी। अजमेर शहर का विकास योजनाबद्ध तरीके से किया जाएगा। विकास कार्यों में तेजी लाई जाएगी एवं प्राधिकरण के कार्यों में आय के स्रोत बढ़ाए जाएंगे। वे अपने मत्नव्य में कितने कामयाब हुए, ये सबके सामने हैं। पिछले दिनों सरकार ने एक आदेश जारी कर जिला कलेक्टर भवानी सिंह देथा को प्राधिकरण का जिम्मा सौंप दिया।  ऐसे में अध्यक्ष पद हासिल करने के दावेदार तो निराश हुए ही, जनता की आशाएं भी ठंडी पड़ी हैं।
लोगों को अब भी उम्मीद है कि नई सरकार जल्द ही अध्यक्ष पद पर कोई राजनीतिक नियुक्ति करेगी, मगर आठ माह बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कुछ हरकत होती नजर नहीं आ रही। वजह चाहे इस दरम्यान लोकसभा चुनाव होने की रही हो या फिर कोई और मगर मामला जस का तस है। हालत ये है कि सरकार अभी तक पूरा मंत्रीमंडल ही गठित नहीं कर पाई है। सरकार की सुस्त चाल के पीछे कुछ तार्किक कारण समझ में आते हैं, मगर यह अजमेर पर तो भारी ही पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में मनोनयन से भाजपाई अब तक वंचित हैं, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि भाजपाई दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।
असल में इस बात के प्रमाण हैं कि जब भी न्यास के अध्यक्ष पद पर कोई राजनीतिक प्रतिनिधि बैठा है, शहर का विकास हुआ है। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की। हर न्यास अध्यक्ष ने चाहे शहर के विकास के लिए चाहे अपनी वाहवाही के लिए, काम जरूर करवाया है। पृथ्वीराज चौहान स्मारक, महाराजा दाहरसेन स्मारक, विवेकानंद स्मारक, अशोक उद्यान, राजीव उद्यान सहित अनेक आवासीय योजनाएं उसका साक्षात प्रमाण हैं। जब भी सरकारी अधिकारियों ने न्यास का कामकाज संभाला है, उन्होंने महज नौकरी की बजाई है, विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया है। ऐसे में विकास तो दूर रोजमर्रा के कामों की हालत भी ये है कि जरूरतमंद लोग चक्कर लगा रहे हैं और किसी को कोई चिंता नहीं। नियमन और नक्शों के सैंकड़ों काम अटके पड़े हैं। पिछले सात साल से लोग न्यास के चक्कर लगा रहे हैं, मगर नियमन के मामले नहीं निपटाए जा रहे। असल में न्यास के पदेन अध्यक्ष जिला कलैक्टर को तो प्राधिकरण की ओर झांकने की ही फुरसत नहीं है। वे वीआईपी विजिट, जरूरी बैठकों आदि में व्यस्त रहते हैं। कभी उर्स मेले में तो कभी पुष्कर मेले की व्यवस्था में खो जाते हैं। प्राधिकरण से जुड़ी अनेक योजनाएं जस की तस पड़ी हैं। कुल मिला कर जब तक न्यास के सदर पद पर किसी राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं होती, तब तक अजमेर का विकास यूं ही ठप पड़ा रहेगा।
प्राधिकरण बनने पर ये जगी थीं उम्मीदें
प्राधिकरण गठित होने की वजह से भविष्य में विकास की रफ्तार तेज होने की आशा बलवती हुई थी। वजह ये कि प्राधिकरण का क्षेत्र काफी बड़ा हो गया था। इसके तहत किशनगढ़ और पुष्कर शहर के अतिरिक्त 119 गांव भी इसका हिस्सा बन गए। यानि कि प्राधिकरण यूआईटी की तुलना में एक उच्च शक्ति वाली संस्था बन गई। इसमें सरकार की ओर से घोषित एक चेयरमैन के अलावा एक सचिव और 19 सदस्य का प्रावधान है। 19 सदस्यों में से 12 सदस्य आधिकारिक और 7 सदस्य राजनीतिक नियुक्तियों के रखने का प्रावधान है। जैसे ही प्राधिकरण का गठन हुआ तो सभी समाचार पत्रों में यह शीर्षक सुर्खियां पा रहा था कि अब लगेंगे अजमेर के विकास को पंख। उम्मीद स्वाभाविक भी थी। उम्मीद जताई गई थी कि सही योजनाएं बनीं और तय समय में काम पूरे हुए तो एक दशक में ही अजमेर महानगर में तब्दील हो सकता है। इसके ठोस आधार भी हैं। प्राधिकरण की सीमाएं किशनगढ़ औद्योगिक क्षेत्र तक हैं, यानि केंद्रीय विद्यालय तक हमारी पहुंच हो गई है। बाड़ी घाटी अब प्राधिकरण का हिस्सा है, यानि विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बने पुष्कर तीर्थ को हम विकास की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय सुविधाएं दे सकते हैं। ब्यावर रोड पर सराधना और नारेली तीर्थ हमारी सीमा में आ जाने से हम कई दृष्टि से विकसित हो जाएंगे। हवाई अड्डा तो गेगल निकलते ही हम छू लेंगे। कुल मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन अजमेर के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। इसके अतिरिक्त प्राधिकरण बनने से किसानों को भू-उपयोग परिवर्तन कराने के लिए उपखंड अधिकारी व कलेक्ट्रेट के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। टाउन शिप पॉलिसी के तहत अब प्राधिकरण में होगा यह काम। इससे किसानों के एक ही स्थान पर हो जाएंगे काम। प्राधिकरण के सभी गांवों में यात्री सेवाओं की पहुंच होगी। इससे टेम्पो, सिटी बस व यात्री वाहन का परिवहन बढ़ेगा तथा आम लोग को इस क्षेत्र में कारोबार व रोजगार का लाभ मिलेगा। गांवों के लोगों को सड़क नाली, बिजली के विधायकों व जन प्रतिनिधियों के चक्कर लगाने पड़ते थे लेकिन अब ये काम प्राधिकरण स्तर पर हो जाएंगे। पुष्कर व किशनगढ़ में अब तक आवासन मंडल द्वारा ही मकान बनाए जाते रहे, लेकिन प्राधिकरण भी इन स्थानों पर आवासीय भूखंड करेगा, जिसकी कीमत मंडल से काफी कम होगी। न्यास अध्यक्ष को 25 लाख रुपए और सचिव को दस लाख रुपए के वित्तीय अधिकार थे, मगर अध्यक्ष और कमिश्नर (सचिव) दोनों के वित्तीय अधिकार एक-एक करोड़ रुपए हो गए हैं।
-तेजवानी गिरधर

एक ओर सरकार की ताकत तो दूसरी ओर पायलट की प्रतिष्ठा

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में एक ओर सत्तारूढ़ भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है तो दूसरी ओर अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीट होने के कारण नसीराबाद के उपचुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। चूंकि टक्कर बराबरी की है और मामूली चूक भी पराजय का कारण बन सकती है, इस कारण दोनों दल कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहते। भाजपा ने अपने तीन मंत्री व बीस विधायक चप्पे-चप्पे पर बिखेर दिए हैं तो पायलट ने खुद विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित कर रखा है।
हालांकि नामांकन वापस लेने की तिथि से पहले तक ऐसा लग रहा था कि दोनों दलों के प्रत्याशियों को निर्दलीय कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं, मगर अब तस्वीर साफ है और मुकाबला आमने-सामने का है। असल में जैसे ही निर्दलीय प्रत्याशी कालूराम चौधरी के नाम वापस लिया, भाजपा प्रत्याशी सरिता गैना ने राहत की सांस ली। हालांकि भारतीय आम जन पार्टी के विजय सिंह रावत अभी मैदान में हैं, जो कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं, मगर भाजपा पूरी तरह से तैयार है। जानकारी के अनुसार चौधरी जल संसाधन मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के करीबी माने जाते हैं, इस कारण बाद में कहीं हार का ठीकरा उन पर न फूटे, उन्होंने हरसंभव कोशिश कर चौधरी को बैठा दिया। उधर जागो पार्टी के प्रत्याशी इदरीस के दुर्घटना में निधन होने के बाद कांग्रेस ने राहत महसूस की है। जाहिर तौर पर वे मुस्लिम वोट बैंक में सेंध मार सकते थे। कुल मिला कर मुकाबला अब सीधे तौर पर गुर्जर और जाट के बीच है। कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को अपनी जाति के अतिरिक्त मुस्लिम व अनूसूचित जाति का भरोसा है तो भाजपा प्रत्याशी सरिता गेना को जाटों के अतिरिक्त परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहे रावतों पर आसरा है।
नसीराबाद विधानसभा सीट का उपचुनाव इस कारण भी दिलचस्प है क्योंकि लंबे अरसे बाद यहां पहली बार यहां दो नए प्रत्याशी आमने-सामने हैं। हालांकि उन्हें फ्रेश तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर प्रधान हैं तो भाजपा की सरिता गेना पूर्व जिला प्रमुख रह चुकी हैं, मगर दोनों पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।

इस सीट का मिजाज:-
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर पूर्व में गुर्जर व रावतों का वर्चस्व रहा है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार जीते। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं, हालांकि मुकाबला हर बार कड़ा ही होता था। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर 2008 में पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर वे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर से महज 71 वोटों से हार गए। इसके बाद दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रो. जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। उन्होंने पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर को  28 हजार 900 मतों से पराजित किया। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी।
वस्तुत: नसीराबाद यों तो एससी बहुल इलाका है, लेकिन किसी एक जाति की बात करें तो गुर्जर सबसे ज्यादा हैं। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक नसीराबाद में एससी के करीब 45 हजार, गुर्जर करीब 30 हजार, जाट करीब 25 हजार, मुसलमान करीब 15 हजार, वैश्य करीब 15 हजार, रावत करीब 17 हजार हैं। इनके अलावा ब्राह्मण, यादव मतदाता भी हैं। परंपरागत मतों के हिसाब से जोड़ कर देखें तो गुर्जर, एससी, मुसलमान कांग्रेस का वोट बैंक 90 हजार से अधिक हो जाता है। क्षेत्र में प्रत्याशी के जातिगत मतों और परंपरागत मतों को जोड़कर देखें तो भाजपा का वोट बैंक भी करीब 90 हजार के लगभग हो जाता है। शेष मतों को लेकर दोनों दलों में कांटे का मुकाबला होता है।

भाजपा उत्साहित, मगर कांग्रेस भी हतोत्साहित नहीं
आसन्न उपचुनाव की बात करें तो भले ही केन्द्र व राज्य में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के कारण भाजपा उत्साहित है, मगर मुकाबला कांटे का ही रहने की संभावना है, क्योंकि कांग्रेसी भी हतोत्साहित नहीं हैं। इसकी कुछ वजुआत हैं। हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस का मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होना रेखांकित करने लायक तथ्य है। यानि कि उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला संभव है। कांग्रेसी इस कारण भी कुछ उत्साहित हैं केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकार का चंद माह का परफोरमेंस कुछ खास नहीं रहा, विशेष रूप से महंगाई पर काबू न कर पाने की वजह से आम आदमी की अच्छे दिन आने की उम्मीद पर पानी फिरा है। इसके अतिरिक्त गुर्जरों में बाबा की इस सीट फिर हथियाने का जोश नजर आ रहा है। यह सीट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के लिए प्रतिष्ठा की मानी जाती है, क्योंकि ये उनके संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है और गुर्जर बहुल है। जहां तक प्रत्याशियों के स्वयं के परफोरमेंस का सवाल है, दोनों की ही छवि साफ-सुथरी है। दोनों पर कोई भी बड़ा राजनीतिक आरोप नहीं है, जिसका चुनाव पर असर पड़ता हो।
गुर्जर की बात करें तो उन्हें स्वाभाविक रूप से बाबा के उत्तराधिकार के साथ सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा। उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है, साथ ही कांग्रेस संगठन के अतिरिक्त श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान के रूप में काम करने का भी अनुभव है। श्रीनगर प्रधान के चुनाव में भाजपा के सदस्य अधिक होने के बावजूद वे प्रधान बनने में कामयाब रहे। वैश्य समाज में उनकी पैठ है, ऐसे में वैश्य समाज को वे साथ ले सकते हैं। नसीराबाद के निवासी होने के कारण मतदाताओं को सहज उपलब्धता भी उनके पक्ष में है।
नसीराबाद इलाके में बाऊजी के नाम से सुपरिचित रामनारायण गुर्जर का जन्म 15 अगस्त 1946 को नसीराबाद के सुत्तरखाना मोहल्ले में श्री गोगराज गुर्जर के आंगन में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा अर्जित करने के बाद वे ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर रहे। वे 1988 में नसीराबाद नगर कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1992 तथा 2000 में जिला देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे। वे 1995 तथा 2005 में जिला परिषद सदस्य रहे। इसके 2010 में श्रीनगर पंचायत समिति सदस्य बने और 10 फरवरी 2010 को कांग्रेस के 8 और भाजपा के 11 सदस्य होने के बावजूद श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान बन कर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
बात भाजपा की सरिता गेना की करें तो उन्हें जाट मतों की लामबंदी के साथ स्वच्छ छवि की महिला होने का लाभ मिल सकता है। केन्द्र व राज्य में भाजपा के सत्ता में होने का स्वाभाविक लाभ भी उन्हें मिलेगा। एकाएक कोई भीतरघात नहीं कर सकता। जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है, इस कारण उन पर पूरा दबाव रहेगा कि वे ही मोर्चा संभालें, मगर सीट छोड़ कर लोकसभा चुनाव लडऩे, केन्द्र में मंत्री न बन पाने की आशंका और बेटे को टिकट नहीं दिए जाने से जरा भी बेरुखी रही तो सरिता के लिए मुश्किल हो सकती है। एक ओर जहां जिला प्रमुख रह चुकने के कारण नसीराबाद में भी संपर्क का वे लाभ लेंगी, वहीं गुर्जर की तुलना में स्थानीय संपर्कों का अभाव कुछ दिक्कत पेश आ सकती है। वैसे एक बात है, वे हैं लक्की। आपको याद होगा कि वे जिला प्रमुख सौभाग्य से ही बनी थीं। उन्हें जिला परिषद का टिकट भाग्य से ही मिला। टिकट पहले किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी की पुत्री सरिता को मिलना था, लेकिन खुद विधायक ने रुचि नहीं ली, इस कारण ऐन वक्त पर उनकी ही जेठानी सरिता गैना का भाग्य जाग गया। वे चुनाव जीत कर जिला प्रमुख भी बनी। विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए उन्होंने कोई खास मेहनत नहीं की, मगर समीकरण ऐसे बने कि उनकी चेत गई। किस्मत का वास्तविक चेतना उनके जीतने के बाद ही तय होगा। उनका व्यक्ति परिचय इस एक पंक्ति से जुड़ा है:- राजनीति में कदम रखते ही सफलता का शिखर छूने वालों में श्रीमती सरिता गेना नाम शुमार है। वे सन् 2005 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ीं और जिला प्रमुख पद का चुनाव जीता। श्री जी. एल. परोदा के घर 26 फरवरी 1977 को जन्मी श्रीमती गेना ने एम.ए. तक शिक्षा अर्जित की है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

आखिरी विकल्प के रूप में मिला सरिता को टिकट

नसीराबाद विधानसभा उप चुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व जिला प्रमुख सरिता गेना को आखिरी विकल्प के रूप में टिकट दिया है। इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि उन्होंने टिकट के लिए कोई खास मशक्कत नहीं की। मात्र और मात्र जाट व महिला होने के नाते वे टिकट लेने में कामयाब हो गई।
दरअसल भाजपा की यह मजबूरी थी कि वह यहां से किसी जाट को प्रत्याशी बनाती। हालांकि पूर्व में लंबे समय तक, अर्थात लगातार तीन बार रावत प्रत्याशी के रूप में मदन सिंह को स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के सामने खड़ा किया जाता रहा। ये बात दीगर है कि वे एक बार भी जीत नहीं पाए, मगर टक्कर कांटे की ही होती थी। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर महज 71 वोटों से हार गए। यानि की कांटे की टक्कर रही। दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी। वे जब लोकसभा चुनाव लड़ कर सांसद बन गए तो यह सीट खाली हो गई और उनकी कोशिश तो यही थी कि उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा को टिकट मिल जाए, मगर मौजूदा सांसदों के रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिए जाने के पार्टी के फैसले की वजह से ऐसा हो नहीं पाया। हालांकि रावत समाज की इच्छा थी कि इस बार फिर उन्हें मौका दिया जाए, मगर जिले में पहले से ही दो रावत विधायक होने के कारण यह संभव नहीं था। भाजपा हाई कमान पहले ही तय कर चुका था कि किसी जाट को ही टिकट दिया जाएगा। एक मात्र कारण ये था कि पूर्व मंत्री दिगम्बर सिंह का नाम भी चला, मगर स्थानीयतावाद के आगे पार्टी को झुकना पड़ा। वैश्य समाज से पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व ब्राह्मण समाज से देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत ने भी टिकट मांगा, मगर उस पर गौर नहीं किया गया।
जाट समाज को टिकट देने की वजह स्पष्ट है कि प्रो. जाट के सीट खाली करने के बाद जाट समाज यह बर्दाश्त कर सकता था कि किसी और समाज को टिकट दिया जाता। अगर गलती से भाजपा कोई नया प्रयोग करती तो उसे जाट समाज झटका भी दे सकता था। खैर, अब सवाल आया कि किस जाट नेता को टिकट दिया जाए। पक्के कांग्रेसी रहे अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने लोकसभा चुनाव में खुल कर भाजपा का साथ दिया था, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी इनाम देगी, मगर बताया जाता है कि संघ ने उनका विरोध कर दिया। ऐसे में आखिरी विकल्प के रूप में सरिता गेना का नाम तय किया गया, जो कि पूर्व में जिला प्रमुख रह चुकी हैं। एक तरह से देखा जाए तो सरिता के लिए यह एक लाटरी के टिकट की तरह है। अब ये लॉटरी खुलती है या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा।
अजमेर जिले में जिला प्रमुख बनने के बाद विधानसभा का टिकट पाने वाली सरिता गैना दूसरी महिला बन गई हैं। इससे पहले पूर्व जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा को मसूदा से भाजपा ने टिकट दिया और वह विधायक बनी। उन्होंने उस धारणा को भंग कर दिया कि जो नेता एक बार जिला प्रमुख बन गया, उसके राजनीतिक भविष्य पर पूर्व विराम लग जाता है। बहरहाल, भाजपा ने सरिता पर दाव खेल दिया है, अब देखना ये है कि वह कितना कामयाब होता है।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 23 अगस्त 2014

बाबा के उत्तराधिकार व सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा रामनारायण गुर्जर को

हालांकि नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में भाजपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही यह कहा जा सकेगा कि भिड़ंत कैसी रहेगी, मगर कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को पुड्डुचेरी के पूर्व उपराज्यपाल बाबा गोविंद सिंह गुर्जर की विरासत और खुद के सहज-सरल स्वभाव का लाभ जरूर मिलेगा। बाबा के दो अन्य उत्तराधिकारियों पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर व सुनिल गुर्जर की तुलना में वे बेशक बेहतर उम्मीदवार माने जा रहे हैं। कुद शिकायतों के कारण पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से ट्यूनिंग गड़बड़ हो चुकी थी, कदाचित इस कारण वे टिकट से वंचित रह गए, जबकि इस प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव के लिहाज से सुनिल गुर्जर की अनुभवहीनता टिकट में आड़े आ गई।
जहां तक रामनारायण गुर्जर का सवाल है, उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है, साथ ही कांग्रेस संगठन के अतिरिक्त श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान के रूप में काम करने का भी अनुभव है। इससे भी बड़ी बात ये है कि उनकी छवि साफ सुथरी है और सहज-सरल स्वभाव के कारण लोकप्रिय हैं। जो कुछ भी हो, मगर कांग्रेस की ओर से यह सीट बाबा की विरासत के रूप में ही काउंट हो गई है। ज्ञातव्य है कि बाबा गोविंद सिंह गुर्जर इस सीट पर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार विजयी रहे। उनके निधन के बाद 2008 में महेन्द्र सिंह गुर्जर विजयी हुए। उन्होंने पूर्व मंत्री सांवरलाल जाट को मामूली अंतर से हराया। इसके 2013 के चुनाव में मोदी लहर के चलते जाट ने यह सीट हथिया ली।
यहां आपको बता दे कि हालांकि कुछ और गुर्जर नेताओं ने भी दावेदारी की थी, मगर उनका कद इतना बड़ा नहीं था कि उन पर दाव खेला जा सके। चाहते तो स्वयं सचिन पायलट या उनकी माताश्री रमा पायलट भी चुनाव मैदान में उतर सकती थीं, मगर उन्होंने अपने आप को रोक लिया।
आइये, जरा रामनारायण गुर्जर के बारे में भी कुछ जान लें:-
नसीराबाद इलाके में बाऊजी के नाम से सुपरिचित रामनारायण गुर्जर का जन्म 15 अगस्त 1946 को नसीराबाद के सुत्तरखाना मोहल्ले में श्री गोगराज गुर्जर के आंगन में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा अर्जित करने के बाद वे ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैनेजर रहे। वे 1988 में नसीराबाद नगर कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1992 तथा 2000 में जिला देहात कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे। वे 1995 तथा 2005 में जिला परिषद सदस्य रहे। इसके 2010 में श्रीनगर पंचायत समिति सदस्य बने और 10 फरवरी 2010 को कांग्रेस के 8 और भाजपा के 11 सदस्य होने के बावजूद श्रीनगर पंचायत समिति के प्रधान बन कर अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

यानि रमा का नाम चार दावेदारों की रणनीति का हिस्सा था

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से जैसे ही अचानक अपेक्षा से पहले रामनारायण गुर्जर का नाम घोषित हुआ है, उससे यह साफ हो गया है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की माताश्री रमा पायलट का नाम कैसे उभर कर आया। अपुन को पहले ही आशंका थी कि पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर के साथ तीन और दावेदार हरिसिंह गुर्जर, सौरभ बजाड़ और पार्षद नौरत गुर्जर आए हैं तो या तो ये ऊपर से इशारा है या फिर यह भी एक रणनीति है। रामनारायण गुर्जर का नाम घोषित होने से तो साफ ही हो गया कि रमा का नाम इन चारों दावेदारों की उपज था। वो इसलिए कि  महेन्द्र सिंह गुर्जर को पता लग गया था कि टिकट रामनारायण गुर्जर को मिलने जा रहा है, इस कारण अपने साथ तीन और दावेदारों को जोड़ कर दबाव बनाने की कोशिश की। वे जानते थे कि अन्य तीन को टिकट मिलना नहीं है, क्योंकि उनका कद इतना बड़ा नहीं है, मगर ऐसा करने से प्रदेश आलाकमान दबाव में आ जाएगा। अगर उनको टिकट नहीं भी मिलता है तो कम से कम रामनारायण गुर्जर को नहीं मिले, इस कारण खुद की रमा पायलट का नाम भी सुझा दिया। उनको लगता था कि सचिन अपनी मां के नाम पर तुरंत सहमत हो जाएंगे, मगर सचिन किसी चक्कर में नहीं आए।
ज्ञातव्य है कि रमा पायलट वाली मांग के मामले में रामनारायण गुर्जर व स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के दत्तक पुत्र सुनील गुर्जर शांत थे। इसी से ऐसा प्रतीत हुआ कि कहीं न कहीं कुछ पेच है।
खैर, अब जबकि नाम घोषित हो गया है तो यह सोचने का विषय होगा कि क्या महेन्द्र सिंह गुर्जर सहित चारों दावेदार उनका पूरा समर्थन करेंगे। आशंका इस कारण उत्पन्न होती है क्योंकि उन्होंने ही एक गुट बना कर दबाव कायम करने की कोशिश की थी।
एक बात और, बेशक कांग्रेस के पास मौजूदा विकल्पों में से रामनारायण गुर्जर ही बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि वे बाबा के परिवार से हैं, बुजुर्ग हैं, मगर रमा पायलट से बेहतर नहीं। इसकी वजह ये है कि कांग्रेस यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बनाने पर ही जीतने की स्थिति में आ सकती है। रामनारायण गुर्जर के मामले में शायद ऐसा न हो। सब दावेदारों को एकजुट करना कुछ कठिन हो सकता है, जबकि रमा के आने पर सचिन के कारण खुद ब खुद दावेदार एक हो जाते। अगर रमा मैदान में उतरतीं तो कांग्रेस शर्तिया टक्कर लेने की स्थिति में होती। फिर भी रामनारायण गुर्जर को कमजोर नहीं माना जा सकता।  वे गुर्जरों को इस नाते एक जुट करने में कामयाब हो सकते हैं कि बाबा की विरासत को फिर से उनके परिवार में लाना है।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

ये रमा पायलट का नाम कहां से आया?

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से यकायक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की माताश्री रमा पायलट का नाम उभर आया है। दिलचस्प बात ये है कि खुद दावेदारों ने ही उनका नाम सुझाया है। हालांकि अब तक ये माना जा रहा था कि विशेष परिस्थिति में स्वयं सचिन भी मैदान में उतर सकते हैं, मगर बताते हैं कि उन्होंने चुनाव न लडऩे की बात कह दी है।
अब जब कि रमा पायलट का नाम आया है तो इसमें दो ही बातें हो सकती हैं। या तो ऊपर से सुझाया गया है कि रमा पायलट का नाम लो और उनको प्रत्याशी बनाने की मांग करो, या फिर ये भी एक रणनीति का हिस्सा है। ज्ञातव्य है कि रमा का नाम सुझाने वाले नेताओं में पूर्व विधायक महेंद्र गुर्जर, हरिसिंह गुर्जर, सौरभ बजाड़ और पार्षद नौरत गुर्जर शामिल हैं, जबकि अन्य प्रबल दावेदार रामनारायण गुर्जर व सुनील गुर्जर इस मामले में शांत हैं।  इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं कुछ पेच है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि रमा की मांग करने वालों में से केवल पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर ही प्रबल दावेदार हैं। वजह साफ है कि वे पहले विधायक रहे हैं और बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के परिवार से हैं। असल में इस सीट पर दावा ही बाबा के परिवार का है, जिसका कि इलाके पर खासा अच्छा प्रभाव है। यही वजह है कि बीच में किसी ने बाबा की धर्मपत्नी का नाम भी सुझाया था। वैसे बाबा के परिवार से मुख्य रूप से महेन्द्र सिंह गुर्जर, रामनारायण गुर्जर व सुनील गुर्जर के नाम ही आगे हैं। इनमें से कोई भी आगे आए और बाकी के दोनों व अन्य दावेदार पूरा साथ दें तो यह सीट कांटे की टक्कर की बन सकती है।  मगर अब जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर के साथ हरिसिंह, सौरभ व नौरत आए हैं, इससे लगता है कि महेन्द्र सिंह अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। रहा सवाल रमा पायलट का तो यदि प्रदेश अध्यक्ष चाहेंगे तो वे इंकार भी नहीं कर सकते। ऐसे में लगता ये भी है कि उन्हें ये कहा गया हो कि रमा के नाम पर अपनी सहमति दे दो। जो कुछ भी हो, मगर इतना तय है कि अगर रमा मैदान में उतरीं तो यहां कांग्रेस टक्कर लेने की स्थिति में आ जाएगी। वे न केवल खुद राजनीति की खिलाड़ी हैं, अपितु प्रदेश अध्यक्ष के नाते उनके पुत्र का भी साथ होने से मजबूत उम्मीदवार साबित होंगी। भाजपा को भी उनकी ही टक्कर का नेता मैदान में उतारना होगा।
कांग्रेस इस चुनाव को लेकर विशेष उत्साहित है। इसी कारण अब तक टिकट के लिए प्रतिद्वंद्वी दावेदार भी कहने लगे हैं कि किसी को भी टिकट दे दो, जिताने के लिए जान लड़ा देंगे। कांग्रेस के उत्साह की वजह ये भी है कि  लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन विधानसभा चुनाव से बेहतर रहा। वो ये कि वह सिर्फ 10 हजार 999 मतों से ही पिछड़ी, जबकि विधानसभा चुनाव में सांवर लाल जाट 28 हजार 900 मतों से जीते थे। अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जाट का पिछडऩा तनिक सोचने को विवश करता है, मगर इसकी वजह ये आंकी जाती है कि लोकसभा चुनाव में खुद सचिन पायलट के होने के कारण गुर्जर मत एकजुट हो गए थे। जो भी हो, मगर अंतर कम होना कांग्रेस की हताशा को कम तो करता है। एक और फैक्टर भी कांग्रेसी अपने पक्ष में गिन कर चल रहे हैं कि महंगाई का हल्ला मचा कर जिस प्रकार भाजपा केन्द्र व राज्य में सत्ता में आई और उसके बाद महंगाई और बढ़ गई है, इस कारण आम जनता में अंदर ही अंदर प्रतिक्रिया पनप रही है। राज्य में भाजपा सरकार का अब तक कोई खास परफोरमेंस भी नहीं रहा है, इस कारण कांग्रेसी मानते हैं कि आम जन का भाजपा से मोह भंग हुआ होगा। खैर, देखते हैं कि कांग्रेस किसे चुनाव मैदान में उतारती है।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 16 अगस्त 2014

मात्र दस दिन में तय करने होंगे प्रत्याशी

हालांकि पहले यह जानकारी आई थी कि विधानसभा चुनाव सितम्बर-अक्टूबर में होंगे, मगर यकायक इसका कार्यक्रम अगस्त-सितंबर में कर दिए जाने से सभी अचंभित हैं। हालांकि प्रशासन को शायद पहले से अनुमान था, इस कारण उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी थी, मगर विशेष रूप से कांग्रेस व भाजपा के नेता अचंभित हैं, जिन्होंने अभी कोई खास कवायद शुरू नहीं की थी।
ज्ञातव्य है कि नई सूचना के अनुसार निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव 13 सितबर को कराने का कार्यक्रम जारी किया है। 16 सितंबर को मतगणना होगी। उपचुनाव की अधिसूचना 20 अगस्त को जारी होगी। अधिसूचना जारी होने के पश्चात नामांकन पत्र भरने का काम शुरू हो जाएगा, जिसकी अन्तिम तिथि 27 अगस्त होगी, 28 अगस्त को नामांकन पत्रों की जांच होगी तथा 30 अगस्त को नामांकन पत्र वापस लिए जा सकेंगे। यानि कि अब मात्र दस दिन ही रह गए हैं प्रत्याशी घोषित होने में। दूसरी ओर राजनीतिक दलों ने अभी तक प्रत्याशी चयन की कवायद आरंभ नहीं की है। अंदर ही अंदर भले ही विचार चल रहा हो।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह विधानसभा चुनाव में नसीराबाद सहित अजमेर जिले की सभी सीटों पर हारने और अजमेर संसदीय क्षेत्र में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बुरी तरह से पराजित होने के बाद हतोत्साहित है मगर नसीराबाद में को लेकर हताशा में नहीं है। कांग्रेसी थोड़े से आश्वस्त इस वजह से हैं कि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन विधानसभा चुनाव से बेहतर रहा। वो ये कि वह सिर्फ 10 हजार 999 मतों से ही पिछड़ी, जबकि विधानसभा चुनाव में सांवर लाल जाट 28 हजार 900 मतों से जीते थे। अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जाट का पिछडऩा तनिक सोचने को विवश करता है, मगर इसकी वजह ये आंकी जाती है कि लोकसभा चुनाव में खुद सचिन पायलट के होने के कारण गुर्जर मत एकजुट हो गए थे। जो भी हो, मगर अंतर कम होना कांग्रेस की हताशा को कम तो करता है। एक और फैक्टर भी कांग्रेसी अपने पक्ष में गिन कर चल रहे हैं कि महंगाई का हल्ला मचा कर जिस प्रकार भाजपा केन्द्र व राज्य में सत्ता में आई और उसके बाद महंगाई और बढ़ गई है, इस कारण आम जनता में अंदर ही अंदर प्रतिक्रिया पनप रही है। राज्य में भाजपा सरकार का अब तक कोई खास परफोरमेंस भी नहीं रहा है, इस कारण कांग्रेसी मानते हैं कि आम जन का भाजपा से मोह भंग हुआ होगा। जहां प्रत्याशी का सवाल है, माना जाता है कि कांग्रेस किसी गुर्जर को ही मैदान में उतारेगी। वैसे विधानसभा चुनाव में हारे महेंद्र सिंह गुर्जर, श्रीनगर प्रधान रामनारायण गुर्जर, सुनील गुर्जर, पूर्व संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, पार्षद नौरत गुर्जर, पूर्व मनोनीत पार्षद सुनील चौधरी आदि लाइन में हैं। कुछ नेताओं की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे नसीराबाद सीट से चुनाव लड़ें।
भाजपा की बात करें तो नसीराबाद से जीतने के बाद इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव लडऩे वाले प्रो. सांवर लाल जाट अपने बेटे रामस्वरूप लांबा के लिए टिकट का प्रयास करेंगे। पूर्व में तीन बार स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर से हार चुके मदन सिंह रावत, जिला परिषद सदस्य ओमप्रकाश भडाणा, राजेंद्र सिंह रावत, केसरपुरा के पूर्व सरपंच शक्ति सिंह रावत के नाम भी चर्चा में हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व अनिरुद्ध खंडेलवाल भी हाथ मारने की फिराक में हैं। देहात जिला भाजपा अध्यक्ष बनाए गए प्रो. बी. पी. सारस्वत का चांस अब कम है। जिले से बाहर के नेता भी नजरें गड़ाए हुए हैं, जिनमें पूर्व मंत्री दिगंबर सिंह, आरपीएससी के पूर्व सदस्य ब्रह्मदेव गुर्जर, गुर्जर नेता अतर सिंह भडाणा आदि शामिल हैं।

यादव व किरण की बदोलत अजमेर का बढ़ा मान

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र सिंह यादव को महामंत्री और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी को उपाध्यक्ष बनाए जाने से अजमेर का मान बढ़ा है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार होने और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अजमेर के दो दमदार नेताओं के महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचने से अजमेर को लाभ होगा। वे यहां के विकास के लिए भरपूर दबाव बनाएंगे। हालांकि उनकी नियुक्ति के साथ ही यह लगभग तय माना जा सकता है कि अजमेर को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिल पाएगा।
आपको ज्ञात होगा कि यादव अपनी कॉलेज लाइफ अजमेर में बिता चुके हैं और उनकी अजमेर में खासी रुचि है। इसी कारण यदाकदा अजमेर आते भी रहते हैं। अजमेर उनकी नजर कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने खासमखास अरविंद यादव को शहर भाजपा का अध्यक्ष बनवाया है, ताकि संगठन पर यहां उनकी पकड़ रहे। यहां उनके चहेतों में पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत व पार्षद जे. के. शर्मा की गिनती होती है। जाहिर है वे भी अब प्रभावशाली भूमिका में होंगे।

जहां तक श्रीमती किरण माहेश्वरी का सवाल है, हालांकि वे अभी अजमेर जिले से विधायक नहीं है, मगर अजमेर संभाग की होने और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ चुकने के कारण उनका अजमेर से लगाव है। लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद भी वे यहां कई बार आती रही हैं। वे कह भी चुकी हैं कि भले ही वे अजमेर से हार गईं, मगर यहां का सदैव ध्यान रखेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने वादे पर कायम रहेंगी। अजमेर में उनकी कितनी प्रतिष्ठा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भाजपा की ओर से जारी बधाई संदेश में उनका भी नाम है।

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

सारस्वत के खाते में एक और उपलब्धि दर्ज

देहात जिला भाजपा अध्यक्ष कांग्रेसी बोर्ड में भाजपा का उपाध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है। उनकी कुशल रणनीति से पुष्कर नगर पालिका में कांग्रेस का बोर्ड होने के बाद भी डेढ़ साल से खली पड़ी उपाध्यक्ष की सीट पर भाजपा का कब्जा हो गया। उपाध्यक्ष पद के लिए संपन्न हुए उपचुनाव में भाजपा के पुष्कर नारायण भाटी विजयी रहे जिन्होंने कांग्रेसी उम्मीदवार हरिशचंद धोलपुरिया को 1 मत से हराया। विजयी प्रत्याशी को 17 में से 9 तथा उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को 8 मत मिले।
असल में क्रॉस वोटिंग की आशंका के चलते सारस्वत सहित विधायक सुरेश सिंह रावत ने पार्षदों को अपनी कमान में रखा। वे चुनाव प्रक्रिया के दौरान भी पालिका कार्यालय में ही डेरा डाल कर बैठे रहे। नतीजतन एक भी सदस्य क्रॉस वोटिंग नहीं कर सका।
ज्ञातव्य है कि पालिका बोर्ड के गत पांच साल पूर्व हुए चुनाव के दौरान नजदीक के गांव कानस, नेडलिया समेत पांच गांव शामिल थे। इन गांवों को तीन वार्डों में बांटा गया था। ग्राम नेड़लिया के कांग्रेस समर्थक बुद्धा सिंह रावत उपाध्यक्ष चुने गए। डेढ़ साल पूर्व राज्य सरकार ने पांच गांव दोबारा पालिका सीमा से बाहर कर दिए। इस कारण तीनों ग्रामीण वार्डों का अस्तित्व खत्म हो गया तथा उपाध्यक्ष रावत समेत तीनों वार्ड पार्षदों की सदस्यता समाप्त हो गई। उपाध्यक्ष रावत की सदस्यता समाप्त होने से पालिका बोर्ड में उपाध्यक्ष पद रिक्त हो गया था।
बहरहाल, संगठन प्रमुख के नाते एक और उपलब्धि सारस्वत के खाते में दर्ज हो गई है। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में उन्हीं के नेतृत्व में  देहात जिले की सभी छहों सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया था। हालांकि जीत में मोदी लहर को भी एक वजह माना गया, मगर उनकी कार्यकुशलता भी काउंट की गई। कदाचित इसी वजह से पार्टी ने उन्हें सेवा के काम में ही लगा दिया और दुबारा से देहात जिला अध्यक्ष का जिम्मा सौंप दिया। हालांकि भाजपा की सरकार आने के बाद लग रहा था कि सारस्वत को उनकी सेवा का लाभ मिलेगा और वे अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष अथवा किसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाए जाएंगे, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है।

शनिवार, 9 अगस्त 2014

कवि गौड़ की पहल पर अजमेर में होगा साहित्कारों का समागम

अजमेर। अगले माह यहां साहित्यकारों का विशाल संगम होगा। संभवत: इस प्रकार का समागम अजमेर के इतिहास में पहली बार हो रहा है। अजमेर लिटरेचर फेस्टीवल-2014 के नाम से हो रहा यह आयोजन माखूपुरा-परबतपुरा बाइपास स्थित बिड़ला सिटी वाटर पार्क में 4 से 6 सितंबर तक होगा। अजमेर लिटरेरी सोसायटी की ओर से आयोजित इस फेस्टीवल में देश-विदेश से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, पत्रकार, लेखक, समाजसेवी और बुद्धिजीवी शिरकत करेंगे। बेशक इस आयोजन से अजमेर के साहित्कारों को बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका मिलेगा और साहित्य के क्षेत्र में अजमेर का नाम भी चमकेगा।
संस्था के मीडिया प्रभारी गजेंद्र बोहरा ने बताया कि समारोह का उद्घाटन फिल्म निदेशक पदमश्री मुजफ्फर अली करेंगे। फेस्टीवल में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश दलवीर भंडारी, राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रेम भंडारी, फिल्मकार मीरा अली सहित विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान भाग लेंगे। संयोजक रासबिहारी गौड़ ने बताया कि ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह, हिंदी की वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग, वरिष्ठ आलोचक कवि अशोक वाजपेयी, जनसत्ता के प्रधान संपादक साहित्यकार ओम थानवी, मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त अरुणा रॉय, वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक पुरुषोतम अग्रवाल, हाईकोर्ट के पूर्व जज शिव कुमार शर्मा, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक नंद भारद्वाज, उपनिदेशक कृष्ण कलपित, वरिष्ठ कवि शीन काफ निजाम और आलोक श्रीवास्तव सहित 50 से अधिक विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभागी समारोह में भाग लेंगे।
बोहरा ने बताया कि लिटरेचर फेस्टीवल की खास बात यह होगी कि इसके हर सत्र को अजमेर की कला, साहित्य और संस्कृति से जोड़ कर एक नया रूप दिया जाएगा। फेस्टीवल में प्रवेश के लिए पंजीयन अजमेर लिटरेरी सोसायटी की वेबसाइट www.ajmerlit.org पर कराया जा सकता है।
सोसायटी सदस्य सोमरत्न आर्य ने बताया कि इस त्रिदिवसीय समारोह में विभिन्न विषयों पर दो दर्जन से अधिक सत्र रखे गए हैं। आगाजे गुफ्तगू, सूफीमद प्रेमतत्व, राजस्थान लोक की चुनौतियां, खबरें-उत्पाद पाठक-उपभोक्ता, साहित्य में संप्रेषण, स्त्री तुम कौन हो, सच बोलने के खतरे, अच्छे दिनों की राजनीति, सोशल मीडिया की सामाजिकता और अहिंसक आंदोलन के नैतिक मूल्य सहित अन्य ज्वलंत विषयों पर विमर्श होंगे। संस्था के संयोजक प्रसिद्ध हास्य कवि, लॉफ्टर चैलेंज फेम रासबिहारी गौड़ हैं, जिनकी पहल पर ही यह आयोजन हो रहा है। देशभर में फैले अपने संपर्कों के जरिए वे इसे सफल बनाने में जुट गए हैं। ज्ञातव्य है कि इससे पहले वे अजमेर में जस्ट हास्यम जैसे बड़े और शानदार आयोजनों में अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं।

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

लखावत के प्राधिकरण अध्यक्ष बनने के साथ ही अनिता का चांस कम हो गया था

एक पार्षद पद से राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाली श्रीमती अनिता भदेल के भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बनने के साथ ही उनका कद काफी बढ़ गया है। संगठन में अब वे अहम भूमिका में आ गई हैं। हालांकि इससे पहले वे प्रदेश सचिव भी रही हैं, मगर उपाध्यक्ष पद पर पहुंचने के साथ ही उनका कद प्रदेश स्तरीय नेताओं में शुमार हो गया है। इसकी वजह न केवल उनका लगातार तीन बार विधायक बनना है, अपितु सदैव सक्रिय रहना भी है। हां, इतना जरूर है कि एक ओर जहां मंत्रीमंडल का विस्तार होने को है और उनके भी मंत्री बनने की संभावना है, यकायक प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए जाने के साथ वह कम हो गई है। हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर फिलवक्त ऐसा प्रतीत होता है कि शायद अब उनको चांस न मिले।
असल में उनका चांस तभी कुछ कम हो गया था, जब कि वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत को राजस्थान धरोहर प्रोन्नति प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया, जो कि राज्य मंत्री के समकक्ष है। चूंकि अजमेर में मुख्य रूप से पार्टी लखावत व विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी गुट में बंटी हुई है, इस कारण तभी लग रहा था कि गुटों में संतुलन बनाए रखने के लिए अनिता भदेल की बजाय देवनानी का चांस लग सकता है। वैसे भी एक व्यक्ति एक पद की नीति के नाते अनिता का चांस अब कम हो गया है, हालांकि जब तब देवनानी मंत्री न बन जाएं, तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। ऐन वक्त पर क्या गणित बनता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि देवनानी का मंत्री बनना तय सा है, मगर चूंकि सिंधी समाज से श्रीचंद कृपलानी व ज्ञानदेव आहूजा भी विधायक बन कर आए हैं, इस कारण मुख्यमंत्री वसुंधरा के पास विकल्प हैं। मगर चूंकि अनिता को संगठन में ले लिया गया है और अजमेर में देवनानी के अतिरिक्त कोई प्रबल दावेदार नहीं है, इस कारण कम से कम आधी बाधा तो उनकी दूर हो गई है। वैसे जानकारी ये भी है कि किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा व केकड़ी विधायक शत्रुघ्न गौतम भी मंत्री बनने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। एक फार्मूला ये भी हो सकता है कि इनमें से किसी को मंत्री बना कर अजमेर का कोटा पूरा कर दिया जाए और देवनानी की जगह कृपलानी या आहूजा को मंत्रीमंडल में ले लिया जाए। ये एक कयास मात्र है, संभावना देवनानी के ही मंत्री बनने की है, क्योंकि उनके लिए आरएसएस ने पूरा जोर लगा रखा है। उनकी गिनती संघ लॉबी के प्रमुख कर्ता-धर्ताओं में होती है। इस कारण शायद उनको नजरअंदाज किया जाना वसुंधरा के लिए कुछ कठिन होगा। इसे दूसरे रूप में यूं कहा जा रहा है कि देवनानी संगठन में नहीं लिए गए हैं, अर्थात यह उनका मंत्रिमंडल में स्थान पक्का होने का संकेत है। बहरहाल, देखते क्या होता है, जल्द सामने आ जाएगा।

बुधवार, 6 अगस्त 2014

क्या सारस्वत की किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है?

भाजपा की सरकार आने के बाद जैसा कि लग रहा था कि प्रो. बी. पी. सारस्वत को उनकी सेवा का लाभ मिलेगा और वे अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष अथवा किसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाए जाएंगे, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है।
पिछले से पिछले तीन विधानसभा चुनावों में वे ब्यावर सीट के दावेदार रहे, जबकि पिछले चुनाव में तो अजमेर उत्तर अथवा केकड़ी से प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। पार्टी ने उनकी सेवाएं देहात जिला इकाई में लीं। बेशक देहात जिले की छहों सीटों पर पार्टी की जीत में मोदी लहर और वसुंधरा इफैक्ट की भूमिका रही, मगर सांगठनिक लिहाज से उनकी कार्यशैली को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। जिले में पूरी निष्पक्षता के साथ शानदार सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी उनके ही खाते में दर्ज है। पार्टी की इतनी सेवा के बाद अब लग रहा था कि इस बार तो जरूर उन्हें किसी लाभ के पद से नवाजा जाएगा, मगर देहात जिले की फिर से जिम्मेदारी देने के साथ फिलवक्त तो उसकी संभावना कम हो गई है।
आपको बता दें कि महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में सेंटर फोर एन्थे्रप्रिनियरशिप एंड स्माल बिजनिस मैनेजमेंट के आठ वर्ष तक डायरेक्टर रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत उच्च शिक्षा जगत के साथ राजनीति में भी एक जाना-पहचाना नाम है। वे मूल्य आधारित विचारधारा के पोषक हैं और मूल्यों की रक्षा के कारण ही वर्तमान उठापटक की राजनीति में अप्रासंगिक से नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों की रक्षा की खातिर ही उन्होंने भाजपा के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पद को त्याग दिया, हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। उन्हें कुशल संगठक के अतिरिक्त प्रखर वक्ता, सशक्त नेता व स्पष्ट वक्ता के रूप में जाना जाता है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं। पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान विहिप नेता श्री प्रवीण भाई तोगडिय़ा के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उनको सहयोग करने वालों में प्रमुख होने के कारण उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।
उनका जन्म जिले के छोटे से गांव ब्रिक्चियावास में सन् 1960 में हुआ। विद्यार्थी काल से ही वे संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वे सन् 1981 से 86 तक परिषद के विभाग प्रमुख रहे। वे सन् 1992 से 95 तक संघ के ब्यावर नगर कार्यवाह रहे। वे सन् 1997 से 2004 तक विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री रहे हैं। वे सन् 1986 से 97 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अनेक पदों पर और 2001 से 2003 तक अजमेर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। काम के प्रति निष्ठा की वजह ही उन्हें विश्वविद्यालय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी जाती रही हैं। वे चीन, सिंगापुर, श्रीलंका व पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।

यादव को मिला यादव का आशीर्वाद

शहर भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व प्रवक्ता अरविंद यादव को सांसद भूपेन्द्र यादव से नजदीकी का फायदा मिल ही गया। हालांकि पार्टी को उनकी सेवाएं भी अहम रही हैं, जिसे कम कर के नहीं आंका जा सकता, मगर माना यही जा रहा है कि भूपेन्द्र यादव ने अपनी जाजम जमाने के लिए उनके नाम पर मुहर लगवाई और वे शहर अध्यक्ष बन गए।
असल में अब तक उन्हें कोई भी गंभीर दावेदार नहीं मान रहा था। हालांकि उनका नाम भी दावेदारों में गिना जाता था, मगर औपचरिकता के नाते। यकायक वे इस पद पर पहुंच जाएंगे, इसका अनुमान किसी को नहीं था। कदाचित उन्होंने भी कोई खास पहल न की हो, क्योंकि उनकी बॉडी लेंग्वेज से कभी ये नहीं लगा कि वे कोई बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं। अब तक उन्होंने लो प्रोफाइल हो कर ही काम किया है। यही उनकी विशेषता है। किसी भी गुट से संलिप्तता न रखने, सदैव कूल मांइड रहने और केवल पार्टी की सेवा करते रहने के गुण ने ही आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है। ज्ञातव्य है कि यादव को औंकार सिंह लखावत व प्रो. वासुदेव देवनानी के गुटों में बंटी भाजपा में कभी किसी एक गुट के साथ नहीं देखा गया। सबके साथ समान व्यवहार किया। अलबत्ता उन्हें पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा का नजदीकी जरूर गिना जाता था।
भारतीय जनता युवा मार्चो के शहर अध्यक्ष से लेकर मातृ संगठन में कई पदों पर रहते हुए आज वे उस मुकाम पर आ गए हैं, जहां पर उन्हें शहर की भाजपा की कमान संभालनी है। समझा जाता है कि उनमें युवा जोश है और निर्गुट होने के कारण एक संतुलित कार्यकारिणी बनाने में कामयाब होंगे, जो कि सबको स्वीकार्य होगी। बाकी एक बात जरूर है कि संगठन के लिहाज से अब सांसद भूपेन्द्र यादव का दौर शुरू हो गया है।
जहां तक अरविंद यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि का सवाल है उनके पिता स्वर्गीय जगन्नाथ यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघ चालक भी रहे हैं। उन्हीं के संस्कारों का प्रतिफल है कि वे सदैव एक सच्चे कार्यकर्ता की तरह ही काम करते रहे हैं। इसका साक्षात उदाहरण ये है कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष होने के बाद भी प्रवक्ता जैसा छोटा जिम्मा लेकर वे रोज पार्टी की ओर से विज्ञप्ति जारी करते रहे। समझा जा सकता है कि रोज विज्ञप्ति जारी करना कितना श्रमसाध्य है। हालांकि इसमें भी कोई दोराय नहीं कि इस काम में उनका सहयोग देकर प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी ने अहम भूमिका निभाई है। दरअसल में प्रेस विज्ञप्ति व फोटो आदि के लिए पार्टी में पहली बार कंप्यूटर व इंटरनेट का उपयोग करने का श्रेय किशनानी को ही है। उनके पास इससे संबंधित सभी संसाधन है, जिसका पार्टी को भरपूर लाभ मिला है।