शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

डॉ. बाहेती जीतेंगे या प्रो. देवनानी?

हालांकि मतदान बाद हुए सर्वे ये कह रहे हैं कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की संभावना है, मगर अजमेर उत्तर में इस तरह की आम सोच बनी हुई है कि यहां कांग्रेस के डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ही जीतेंगे, चाहे कम ही मतांतर से। जहां कांग्रेस विचारधारा के लोग मानते हैं कि बाहेती अच्छे वोटों से जीतेंगे, वहीं भाजपाई देवनानी की जीत के प्रति आश्वस्त हैं। दोनों ही पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं।
आपको बता दें कि इस बार अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 78 हजार 427 में से 1 लाख 20 हजार 186 मतदाताओं यानि 67.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। यहां 91 हजार 240 पुरुष मतदाताओं में से 62 हजार 631 एवं 87 हजार 187 महिला मतदाताओं में से 57 हजार 555 ने मतदान किया। सन् 2008 में हुए चुनाव में एक लाख 57 हजार 70 मतदाताओं में से 88 हजार 742 मतदाताओं ने मतदान किया। इनमें 48 हजार 107 पुरुष व 40 हजार 635 महिला मतदाता थे। इसका मतलब ये हुआ कि इस बार 31 हजार 544 मतदाता बढ़े। मतदाताओं की संख्या इतनी बढऩे को कांग्रेस व भाजपा अपने-अपने हिसाब अपने पक्ष में मान रहे हैं। कुल मतदाताओं की संख्या में 20 हजार 727 का इजाफा हुआ, जिसे युवा मतदाताओं के रूप में गिना जाता है। भाजपा का तर्क है कि युवा मतदाता इस बार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का दीवाना है और बदलाव चाहता है, इस कारण उनका झुकाव भाजपा की ओर था। दूसरी ओर कांग्रेस का मानना है कि चूंकि इस बार मुसलमानों का मतदान प्रतिशत बढ़ा है, साथ ही वैश्यों ने भी बढ़-चढ़ कर बाहेती को वोट दिया है, इस कारण उनकी जीत में कोई भी संदेह नहीं है। उसका आकलन है कि बाहेती तकरीबन दो हजार वोटों से जीत सकते हैं। इसकी काट में भाजपा का कहना है कि अगर मुसलमानों का मतदान बढऩे को मोदी की अजमेर में हुई सभा की प्रतिक्रिया माना जाता है तो कि क्रिया भी तो हुई होगी। यानि कि मोदी के प्रभाव से हिंदू मतदाताओं की संख्या भी तो बढ़ी होगी। भाजपा का तर्क है कि इस बार महंगाई व भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस के प्रति स्वाभाविक गुस्सा था, उसे कैसे नकारा जा सकता है। इसके अतिरिक्त उसका ये कहना है कि मुसलमानों व वैश्यों के बढ़े वोट अधिक से अधिक 12 से 15 हजार हो सकते हैं। इनको बढ़ी हुई मतदान संख्या 31 हजार 544 में से निकाला जाए तो भी देवनानी तकरीबन दो से ढ़ाई हजार वोटों से जीत सकते हैं। जहां तक सिंधी मतदाताओं का सवाल है, वे अधिसंख्य देवनानी के पक्ष में ही लामबंद रहे। साथ उनका भी मतदान प्रतिशत बढ़ा है।
छवि की अगर बात करें तो कांग्रेसियों का कहना है कि बाहेती की छवि साफ-सुथरी है तो भाजपाई भी कहते हैं कि देवनानी पर भी कोई दाग नहीं है। बात अगर संगठन की करें तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ठीक से काम नहीं किया, तो भाजपा के कुछ नेता भी निष्क्रिय रहे। दोनों को अपने-अपने निजी संबंधों वाले पार्टी कार्यकर्ताओं के भरोसे काम करना पड़ा। बताते हैं कि वैश्य समुदाय से जुड़े कुछ भाजपा नेताओं ने तो जम कर भितरघात किया। बात अगर रणनीति की करें तो बाहेती ने बसपा के सैयद दानिश को मैदान से हटवा कर जीत की आधारशिला रख ली थी। हालांकि निर्दलीय सोहन चीता फिर भी मैदान में डटे रहे, मगर उनका असर कम ही आंका गया। इसी प्रकार संघ के दबाव में निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत के मैदान में नहीं आने से देवनानी को राहत मिली, मगर इसे जरा बारीकी से समझना होगा। पहले माना जा रहा था कि वे देवनानी को हराने के लिए ही, खड़े जरूर होंगे, मगर यह स्थिति केवल दोनों ही प्रत्याशी सिंधी होने पर कारगर होती। जैसे ही कांग्रेस ने गैर सिंधी को टिकट दिया, वह स्थिति बदल गई। इसकी वजह ये है कि सारस्वत के समर्थकों में जहां देवनानी विशेष के विरोधी थे, तो देवनानी के बहाने सिंधी विरोधियों की संख्या अधिक थी। सारस्वत के संघ के दबाव में खड़े न होने से देवनानी को राहत मिली, मगर  धरातल पर ये हुआ कि देवनानी से व्यक्तिगत रूप से नाराज कार्यकर्ता और भाजपा मानसिकता का मगर वैश्यवाद का समर्थक बाहेती के साथ चला गया। इसमें सारस्वत की क्या भूमिका रही, कुछ कहा नहीं जा सकता।
कुल मिला कर अजमेर उत्तर का मुकाबला काफी दिलचस्प रहा। जीत किसकी होगी, यह तो 8 फरवरी को ही पता लगेगा। कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें से जो भी जीतेगा और अगर उसी के दल की सरकार बनी तो उसका मंत्री बनना तय है।
-तेजवानी गिरधर