सोमवार, 9 जुलाई 2012

आईपीएस अजय सिंह के बच जाने की संभावना


अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह के बच निकलने की पूरी संभावना नजर आने लगी है।
अव्वल तो वे रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ नहीं पकड़े गए थे। रिश्वत तो प्रेम सिंह ने ली थी। अजय सिंह पर तो आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता भवानी सिंह से रिश्वत की रकम प्रेम सिंह के हाथों मंगवाई थी। इसे साबित करना आसान काम नहीं था। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब शिकायतकर्ता भवानी सिंह ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत जो कलम बंद बयान दिए, उसमें उसने अजय सिंह का जिक्र तक नहीं किया। जब कि शुरू में वह खुल कर बयान दे चुका था कि अजयसिंह के लिए ही रिश्वत ली गई थी। जाहिर तौर पर पूर्व के बयानों की अहमियत इस कारण नहीं थी कि वे बाद में बदले भी जा सकते थे। इसे देखते हुए ही एसीबी ने उसके कलमबंद बयान करवाए, मगर हुआ उलटा। भवानी सिंह ने तो उनका नाम लिया ही नहीं। चूंकि वे कलमबंद बयान हैं, इस कारण उनकी ज्यादा अहमियत है। ये परिवर्तन कैसे हुआ, कुछ पता नहीं। हालांकि एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि एसीबी ने 164 के जो बयान दर्ज करवाए, उसमें कुछ ज्यादा ही फुर्ती दिखाई, इस कारण संदेह उत्पन्न होता है। वैसे बताते हैं कि जब शिकायतकर्ता ने एसीबी से संपर्क किया तो उन्हें भी मामला गंभीर नजर आया। उनकी सोच थी कि जो आईपीएस निकट भविष्य में ही कहीं न कहीं एसपी लगने वाले हैं और उनकी अभी उम्र ही क्या है, पूरी जिंदगी कमाने के लिए पड़ी है। जिनका अभी से ये हाल है, वे आगे जा कर क्या करेंगे। यही सोच रख कर कार्यवाही का मन बनाया गया। कार्यवाही में ईमानदार और अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई, ताकि वे कोई ढि़लाई न बरतें। उसी के अनुरूप कार्यवाही हुई भी। यह बात दीगर है कि कार्यवाही के दौरान वे रंगे हाथ नहीं पकड़े जा सके। यहां तक कि वे घटनास्थल पर भी मौजूद नहीं थे।
वैसे चर्चा ये भी है कि अजयसिंह की ओर से किसी ने भवानी सिंह के परिजन से समाज बंधु होने के नाते संपर्क किया था तो उन्होंने उन्हें बचाने से साफ इंकार कर दिया था। यह कह कर कि तब उन्हें समाज बंधु क्यों नहीं नजर आया, जब पैसे के लिए परेशान कर रहे थे। लेकिन बाद में जो कुछ हुआ, उसका परिणाम सामने है।
अजयसिंह के बचने की संभावना इस कारण भी है कि प्रदेश की आईपीएस लाबी इस दाग को मिटाने में रुचि ले रही बताई। रिश्वत के मामले में वे संभवत: पहले आईपीएस हैं, इस कारण आईपीएस लाबी की इच्छा हो सकती है कि नौकरी में जो रिमार्क लगना था, वह लग गया, अब सजा जितनी कम से कम हो या सजा मिले ही नहीं तो बेहतर रहेगा, अन्यथा इस जवान आईपीएस की जिंदगी तबाह हो जाएगी। कदाचित इसी वजह से जो जांच पहले डीआईजी स्तर के अधिकारी कर रहे थे, वह आरपीएस स्तर के अधिकारी को सौंप दी गई है। जाहिर सी बात है कि कनिष्ट अधिकारी अपने से वरिष्ठ के साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकता। वो भी खास कर पुलिस महकमे में, जहां अनुशासन के नाते कनिष्ठता-वरिष्ठता का पूरा ख्याल रखा जाता है।
कुल मिला कर संकेत ये ही मिल रहे हैं कि अजय सिंह इस प्रकरण में बच कर निकल सकते हैं। और अफसोस वे तो बचे हुए ही हैं, जिनकी देखरेख में अजयसिंह के ऊपर इस प्रकार का कारनामा करने का आरोप है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी नया आईपीएस अकेले अपने दम पर इस प्रकार की लूट नहीं मचा सकता।
चलते-चलते इस चर्चा के बारे में भी आपको जानकारी देते चलें कि जिस मार्स बिल्ड होम एंड डवलपर्स की मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी के मामले में यह रिश्वत खाई गई, उसके गेनर्स को नोंचने में कुछ पत्रकारों ने भी कसर बाकी नहीं रखी थी। वो इस बिना पर कि उनके नाम का जिक्र खबरों में बार-बार न आए।
-तेजवानी गिरधर
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