मंगलवार, 22 मार्च 2011

अब दिखाना शुरू किया है बाकोलिया ने अपना वजूद


अजमेर नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया ने भाजपा पार्षद दल, खुद अपनी पार्टी के पार्षदों और प्रशासन के कुछ झटके खाने के बाद अब अपना वजूद दिखाना शुरू कर दिया है। पहले उन्होंने सीईओ सी. आर. मीणा के आदेश पर सीज किए गए पार्वती उद्यान के ताले मीणा के छुट्टी पर होने के दौरान खुलवा दिए। अब उन्होंने बादशाह की सवारी नहीं निकालने का फैसला करके जता दिया है कि वे केवल नाम मात्र के मेयर नहीं हैं, बल्कि अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करना भी जानते हैं।
उल्लेखनीय है कि पार्वती उद्यान के मामले में बाकोलिया की बड़ी किरकिरी हुई थी। उनकी इच्छा के विपरीत और उनसे राय लिए बिना ही सीईओ मीणा ने पार्वती उद्यान को सीज करने को निगम का दल भेज दिया। और तो और जब बाकोलिया ने सीधे ही दल को ताले नहीं लगाने के निर्देश दिए तो उसने उन्हें यह कह कर ठेंगा दिखा दिया कि वे तो सीईओ के आदेश को ही मानेंगे। हालांकि यह मामला ज्यादा गंभीर नहीं था और बाकोलिया व मीणा की आपसी बातचीत से हल हो सकता था, लेकिन जैसे ही बाकोलिया ने पत्र लिखने का सिलसिला शुरू किया तो वह गंभीर हो गया। अधिकारी तो अधिकारी होता है, कम से कम पत्र व्यवहार में तो वह ज्यादा माहिर होता है, सो मीणा ने भी अपने अधिकारों का लिखित में ही उपयोग कर दिया। जैसे ही दूसरे दिन अखबारों में बाकोलिया की दयनीय हालत का खुलासा हुआ तो उन्हें होश आ गया और किसी सलाहकार के जोश दिलाने पर मीणा की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए जनहित का बहाना बना कर उद्यान के ताले खुलवा दिए। चूंकि उन्होंने यह कदम मीणा की गैर मौजूदगी में किया है, इस कारण यह कितना मजबूत है, यह तो मीणा के वापस आने पर ही पता लगेगा।
बाकोलिया ने अपने अस्तित्व का अहसास बादशाह की सवारी नहीं निकालने का फैसला करके करवा दिया है। जैसे कि उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ के बयान हैं, जिसमें उन्होंने इस कदम को निरंकुशता की संज्ञा दी है, यह साफ जाहिर हो गया है कि बाकोलिया ने यह निर्णय चैंबर में बैठे-बैठे ही लिया है। हालांकि यह एक बहस का विषय हो सकता है कि बादशाह की सवारी कितनी सही है और कितनी गलत, मगर बहुमत वाले दल भाजपा को नजरअंदाज करने के साथ कांग्रेस के पार्षदों को भी पूरी तरह से विश्वास में न ले कर उन्होंने जो कदम उठाया है, उससे यह अहसास तो होता कि बाकोलिया के भीतर का हनुमान जाग गया है। उस हनुमान को जगाया किसने है, यह जरूर सोचने का विषय हो सकता है।