शुक्रवार, 27 मई 2016

शिव शंकर शर्मा देवनानी का पीए हो न हो, नजदीकी तो है ही


जयपुर जिले के कोटपुतली के प्रागपुरा इलाके की राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, दांतिल में कार्यरत कार्यालय सहायक दिनेश शर्मा के कार्यस्थल पर ही फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या कर लेने का मामले में प्रमुख आरोपी शिव शंकर शर्मा शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का पीए है या नहीं, मगर मीडिया में छपी खबरों और फेसबुक में शाया एक फोटो तो चुगली खा ही रही है कि वह देवनानी का करीबी है। फेसबुक से मिली जानकारी के अनुसार उसने एक पोस्ट के जरिए यह जताने की कोशिश की कि वह देवनानी का करीबी है। 28 अक्टूबर 2014 को उसने देवनानी की एक फोटो पोस्ट कर लिखा कि उन्होंने जयपुर के मोती डूंगरी स्थित गणेश मंदिर में धोक दे कर आशीर्वाद लिया। जाहिर तौर पर इस प्रकार की पोस्टें आम तौर पर नेताओं के समर्थक इसलिए लगाते हैं कि ताकि लोगों को ये लगे कि अमुक नेता उसका करीबी है। और इसी बात का वे फायदा उठाते हैं। मगर दिलचस्प बात ये है कि यही फोटो अगले दिन यानि 29 अक्टूबर को स्वयं देवनानी ने अपनी वाल पर भी पोस्ट की है। एक रोचक बात ये भी है कि अधिसंख्य भाजपाई उसके फेसबुक फ्रेंड हैं। स्थानीय भाजपाई भी खुसर फुसर कर रहे हैं कि यह वहीं शिव शंकर शर्मा जो देवनानी के काफी करीब है। चुनाव के दौरान भी वह काफी सक्रिय था।
बेशक देवनानी के पास इसका ठोस जवाब हो सकता है कि इस प्रकार की पोस्टें तो फेसबुक पर आती ही रहती हैं, कोई समर्थक अगर निजी स्तर पर कुछ कुकृत्य करता है तो उसको उनसे जोड़ कर नहीं देखा सकता, मगर फेसबुक की इन पोस्टों से यह तो स्पष्ट है कि शिव शंकर शर्मा खुद को देवनानी का करीबी बता कर ही विभागीय कर्मचारियों पर रुतबा झाड़ता रहा होगा। गत दिवस दैनिक नवज्योति समाचार पत्र ने तो बाकायदा संकेत दिए हैं कि वह देवनानी का करीबी है। उसमें लिखा है कि पिछले कार्यकाल में वह उनका पीए था और उनके सारे निजी काम उसके मार्फत होते थे और विभाग में अपनी काफी पैठ जमा रखी थी।
अपुन तो पहले ही उसे कथित पीए लिखा था क्योंकि कभी पुलिस ने कहा कि वह पीए नहीं है तो कभी देवनानी के नाम से खबरें छपीं कि वह उनका पीए नहीं है, जबकि मृतक ने सुसाइड नोट में उसे पीए बताया है, इसलिए अहम मसला ये नहीं था कि वह पीए है या नहीं, मगर इतना तय था कि शिव शंकर शर्मा खुद को देवनानी का पीए बताता रहा होगा और उस पर यकीन करके मृतक दिनेश शर्मा ने रिश्वत की राशि दी होगी। अब यह जांच से ही सामने आएगा कि वस्तुस्थिति क्या है? क्या वह देवनानी को बताए बिना उनके नाम पर तबादलों का गोरखधंधा कर रहा था या यह सब देवनानी की देखरेख में हो रहा था? हालांकि मंत्री होने के कारण यकायक उन पर कोई आंच आती हुई नजर नहीं आ रही, मगर कांग्रेसियों तो उन्हें निशाने पर लेने का मौका मिल ही गया है।

देवनानी के विरोध के चलते तो नहीं हुई मोदी की सभा स्थगित

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगामी 31 मई की अजमेर यात्रा यकायक तो तय हुई और तुरत फुरत में स्थगित भी हो गई। हालांकि कहा ये जा रहा है कि ऐसा राज्यसभा चुनाव की वजह से हुआ, मगर यह बात किसी के गले नहीं उतर रही।
यह बात सच है कि वीवीआईपी के पहले से तयशुदा बड़े कार्यक्रम भी किन्हीं भी अपरिहार्य कारणों से आखिरी वक्त पर स्थगित या रद्द हो जाते हैं। मगर ताजा मामला कुछ भिन्न है। सामान्य सी बात है कि राज्यसभा चुनाव का कार्यक्रम तो पहले से ही तय था। जाहिर तौर पर ऐसे मौके पर राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए प्रधानमंत्री का राजधानी में रहना जरूरी था। बावजूद इसके अजमेर का कार्यक्रम अचानक तय कर दिया गया।
अव्वल तो इसी पर अचरज हो रहा था कि जब यहां कोई बड़े स्तर का उद्घाटन या समारोह नहीं हो रहा था तो ऐसी कौन सी विशेष बात थी कि जिसके चलते अजमेर में उनकी सभा निर्धारित की गई। चलो ये बात मान ली जाए कि अपनी सरकार के कार्यकाल के दो साल पूरे होने पर उपलब्धियां गिनाने के लिए वे जनता के बीच जाना चाहते थे, मगर उसके लिए राजस्थान और विशेष रूप से अजमेर ही को क्यों चुना गया? और चुन भी लिया तो उससे ज्यादा अचरज इस बात पर है कि अचानक स्थगित क्यों किया गया? राज्यसभा चुनाव वाली बात तो कम ही समझ में आती है।
आम तौर पर प्रधानमंत्री स्तर के वीवीआईपी के कार्यक्रम 15-20 दिन पहले तय होते हैं। उसके लिए बाकायदा एक हफ्ता पहले खुफिया तंत्र अपना जाल बिछा लेता है। मोदी की यात्रा तो आधिकारिक रूप से अचानक 26 मई को तय हुई और उसकी तैयारी केलिए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी सहित राज्य सरकार के पांच मंत्री अजमेर आ गए। प्रशासन व पुलिस का तंत्र भी तुरत फुरत में मुस्तैद हो गया। सभा कायड़ विश्राम स्थली पर करना तय हुआ। किसी को भी आशंका नहीं थी कि कार्यक्रम यकायक स्थगित हो जाएगा, क्योंकि स्थगित होने का कोई कारण ही नहीं दिखाई दे रहा था। कानाफूसी है कि कहीं परनामी की मौजूदगी में स्वामी कॉम्पलैक्स में हो रही मंत्रियों की बैठक के दौरान शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के जबरदस्त विरोध के चलते तो मोदी की सभा स्थगित नहीं की गई। हो सकता है राज्य सरकार को लगा हो कि चूंकि तबादला व्यवसाय के चक्कर में एक शिक्षा कर्मी की आत्महत्या की वजह से देवनानी कांग्रेस के निशाने पर हैं और मीडिया में भी बढ़-चढ़ कर खबरें आ रही हैं, तो चंद दिन बाद ही मोदी की यात्रा को देखते हुए कांग्रेसी इसे बड़ा मुद्दा न बना लें।  मोदी तो असम में जीत और दो साल पूरे करने की खुशी में सीना फुला कर आएं और यहां उन्हीं की पार्टी की राज्य सरकार के एक मंत्री का भ्रष्टाचार के आरोप में कड़ा विरोध होने पर किरकिरी हो जाए। हालांकि ये कयास मात्र ही है, मगर मोदी की अचानक तय हुई यात्रा अचानक ही स्थगित होने पर सभी आश्चर्यचकित हैं।